बुधवार, 28 अप्रैल 2010

सौंदर्य और अभिनय का अनूठा संगम: जयाप्रदा


अभिनेत्नी जयाप्रदा भारतीय सिनेमा की उन गिनी.चुनी अभिनेत्नियों में हैं .जिनमें सौंदर्य और अभिनय का अनूठा संगम देखने को मिलता है। महान फिल्मकार सत्यजीत रे जयाप्रदा के सौंदर्य और अभिनय से इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने जयाप्रदा को विश्व की सुंदरतम महिलाओं में एक माना था। सत्यजीत रे उन्हें लेकर एक बांग्ला फिल्म बनाने के लिए इच्छुक थे लेकिन स्वास्थ्य खराब रहने के कारण उनकी योजना अधूरी रह गई। जया प्रदा .मूल नाम ललिता रानी. का जन्म आंध्रप्रदेश के एक छोटे से गांव राजमुंदरी में ३ अप्रैल १९६२ को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता कृष्णा तेलुगु फिल्मों के वितरक थे। बचपन से ही जयाप्रदा का रूझान नृत्य की ओर था। उनकी मां नीलावनी ने नृत्य के प्रति उनके बढ़ते रूझान को देख लिया और उन्हें नृत्य सीखने के लिए दाखिला दिला दिया। चौदह वर्ष की उम्र में जयाप्रदा को अपने स्कूल में नृत्य कार्यक्रम पेश करने का मौका मिला . जिसे देखकर एक फिल्म निर्देशक उनसे काफी प्रभावित हुए और अपनी फिल्म ‘‘भूमिकोसम ‘‘में उनसे नृत्य करने की पेशकश की लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। बाद में अपने माता-पिता के जोर देने पर जयाप्रदा ने फिल्म में नृत्य करना स्वीकार कर लिया। इस फिल्म के लिए जयाप्रदा को पारश्रमिक के रूप में महज १क् रूपए प्राप्त हुए लेकिन उनके तीन मिनट के नृत्य को देखकर दक्षिण भारत के कई फिल्म निर्माता -निर्देशक काफी प्रभावित हुए और उनसे अपनी फिल्मों में काम करने की पेशकश की जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
वर्ष १९७६ जयाप्रदा के सिने कैरियर का महत्वपूर्ण वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष उन्होंने के.बालचंद्रन की अंथुलेनी कथा ्के.विश्वनाथ की श्री श्री मुभा और वृहत पैमाने पर बनी एक धाíमक फिल्म ‘‘सीता
कल्याणम ‘‘में सीता की भूमिका निभाई। इन फिल्मों की सफलता के बाद जयाप्रदा दक्षिण भारत में अभिनेत्नी के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गईं। वर्ष १९७७ में जयाप्रदा के सिने कैरियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म ‘‘आदावी रामाडु ‘‘प्रदíशत हुई. जिसने टिकट खिड़की पर नए कीíतमान स्थापित किए। इस फिल्म में उन्होंने अभिनेता एन.टी.रामाराव के साथ काम किया और शोहरत की बुलंदियो पर जा पहुंचीं। वर्ष १९७९ में के.विश्वनाथ की ‘‘श्री श्री मुवा ‘‘ की ¨हदी में रिमेक फिल्म ‘‘सरगम ‘‘के जरिए जयाप्रदा ने ¨हदी फिल्म इंडस्ट्री में भी कदम रख दिया। इस फिल्म की सफलता के बाद वह रातो रात ¨हदी सिनेमा जगत में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गई और अपने दमदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्नी के फिल्म फेयर पुरस्कार से नामांकित भी की गई। सरगम की सफलता के बाद जयाप्रदा ने लोक परलोक, टक्कर, टैक्सी ड्राइवर और प्यारा तराना जैसी कई दोयम दर्जे की फिल्मों में काम किया लेकिन इनमें से कोई फिल्म टिकट खिड़की पर सफल नहीं हुई। इस बीच जयाप्रदा ने दक्षिण भारतीय फिल्मों में काम करना जारी रखा।
वर्ष १९८२ में के.विश्वनाथ ने जयाप्रदा को अपनी फिल्म ‘‘कामचोर ‘‘के जरिए दूसरी बार ¨हदी फिल्म इंडस्ट्री में लांच किया। इस फिल्म की सफलता के बाद वह एक बार फिर से ¨हदी फिल्मों में
अपनी खोई हुई पहचान बनाने में कामयाब हो गई और यह साबित कर दिया कि वह अब ¨हदी बोलने में भी पूरी तरह सक्षम है। वर्ष १९८४ में जयाप्रदा के सिने कैरियर की एक और सुपरहिट फिल्म ृ ‘‘शराबी ‘‘प्रदíशत हुई। इस फिल्म में उन्हें सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई। इसमें उनपर फिल्मायागीत ‘‘दे दे प्यार दे ‘‘ श्रोताओं के बीच उन दिनों क्रेज बन गया था। वर्ष १९८५ में जयाप्रदा को एक बार फिर से के.विश्वनाथ की फिल्म ‘‘संजोग ‘‘में काम करने का अवसर मिला. जो उनके सिने कैरियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में जयाप्रदा ने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया. जो अपने बेटे की असमय मौत से अपना मानसिक संतुलन खो देती है। अपने इस किरदार को जयप्रदा ने सधे हुए अंदाज से निभाकर दर्शको का दिल जीत लिया। ¨हिंदी फिल्मों में सफल होने के बावजूद जयाप्रदा ने दक्षिण भारतीय सिनेमा से भी अपना सामंजस्य बिठाए रखा। वर्ष १९८६ में
उन्होंने फिल्म निर्माता श्रीकांत नाहटा के साथ शादी कर ली। लेकिन फिल्मों मे काम करना जारी रखा। इस दौरान उनकी घराना, ऐलाने जंग ् मजबूर और शहजादे जैसी फिल्में प्रदर्शित हुईें जिनमें जया प्रदा के अभिनय के विविध रूप दर्शकों को देखने को मिले। वर्ष १९९२ में प्रदíशत फिल्म ‘‘मां ‘‘जया प्रदा के सिने कैरियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में एक है। इस फिल्म में उन्होंने एक ऐसी मां का किरदार निभाया जो अपनी असमय मौत के बाद अपने बच्चे को दुश्मनों से बचाती है। अपने इस किरदार को उन्होंने भावपूर्ण तरीके से निभाकर दर्शकों को मंत्नमुग्ध कर दिया। वर्ष १९८२ में के.विश्वनाथ ने जयाप्रदा को अपनी फिल्म ‘‘कामचोर ‘‘के जरिए दूसरी बार ¨हदी फिल्म इंडस्ट्री में लांच किया। फिल्म कामचोर की सफलता के बाद जयाप्रदा एक बार फिर से ¨हदी फिल्मों में अपनी खोई हुई पहचान बनाने में कामयाब हुई। फिल्म कामचोर के जरिए जयाप्रदा ने यह साबित कर दिया कि वह अब ¨हदी बोलने में भी पूरी तरह सक्षम है। वर्ष १९८४ में जयाप्रदा के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म ृ ‘‘शराबी ‘‘प्रदर्शित हुई। इस फिल्म में उन्हें सुपर स्टार अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई। फिल्म में उनपर फिल्माया यह गीत ‘‘दे दे प्यार दे ‘‘ श्रोताओं के बीच उन दिनों क्रेज बन गया था और आज भी श्रोताओं के बीच यह गीत शिद्धत के साथ सुने जाते है। वर्ष १९८५ में जयाप्रदा को एक बार फिर से के.विश्वनाथ की फिल्म ‘‘संजोग ‘‘में काम करने का अवसर मिला जो उनके सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में जया प्रदा ने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो अपने बेटे की असमय मौत से अपना मानसिक संतुलन खो देती है। फिल्म में अपने इस किरदार को जयप्रदा ने सधे हुए अंदाज से निभाकर दर्शको का दिल जीत लिया।
हिंदी फिल्मों में सफल होने के बावजूद जयाप्रदा ने दक्षिण भारतीय सिनेमा में भी अपना सामंजस्य बिठाए रखा। वर्ष १९८६ में जयाप्रदा ने फिल्म निर्माता श्रीकांत नाहटा के साथ शादी कर ली। इसके बाद भी जयाप्रदा ने फिल्मों मे काम करना जारी रखा। इस दौरान उनकी घराना, ऐलाने जंग, मजबूर शहजादे जैसी फिल्में प्रदर्शित हुई जिसमें जया प्रदा के अभिनय के विविध रूप दर्शको को देखने को मिले। वर्ष १९९२ में प्रदर्शित फिल्म ‘‘मां ‘‘जया प्रदा के सिने करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में एक है। इस फिल्म में उन्होंने एक ऐसी मां के किरदार निभाया जो अपनी असमय मौत के बाद अपने बच्चे को दुश्मनों से बचाती है।अपने इस किरदार को जयाप्रदा ने भावपूर्ण तरीके से निभाकर दर्शकों को मंत्नमुग्ध कर दिया। फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद जयाप्रदा ने समाज सेवा के लिए राजनीति में भी भूमिका निभाई। वर्ष १९९४ में वह तेलुगु देशम पार्टी में शामिल हो गई। हालांकि बाद में वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई और वर्ष २क्क्४ में रामपुर से चुनाव लड़कर लोकसभा सदस्य बनी।
जयाप्रदा के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी अभिनेता जितेन्द्र के साथ काफी पसंद की गई।यह जोड़ी सबसे पहले वर्ष १९८३ में प्रदíशत फिल्म ‘‘मवाली ‘‘में आई। बाद में इस जोड़ी ने तोहफा मकसद, हकीकत, पाताल भैरवी, संजोग, ¨सहासन, स्वर्ग से सुंदर मजाल, ऐसा प्यार कहां, औलाद, सौतन की बेटी, थानेदार, सपनों का मंदिर, मां, खलनायिका, लव और कुश, जैसी कई फिल्मों में एक साथ काम किया। जयाप्रदा की जोड़ी सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के साथ भीकाफी पसंद की गई। यह जोडी सबसे पहले १९८४ में प्रदíशत फिल्म ‘शराबी‘ में दिखाई दी। बाद में इस जोडी ने आखिरी रास्ता ् गंगा जमुना सरस्वती, जादूगर, आज का अजरुन, इंद्रजीत, इंसानियत ् कोहराम और खाकी जैसी फिल्मों में भी एक साथ काम करके दर्शकों का भरपूरमनोरंजन किया। जया प्रदा ने अपने तीन दशक लंबे सिने करियर में लगभग २क्क् फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीता लेकिन दुर्भाग्य से वह किसी भी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्नी के फिल्म फेयर से सम्मानित नही की गई। हालांकि सरगम १९७९, शराबी १९८४ और संजोग १९८५ के लिए वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्नी के लिए अवश्य नामांकित की गई।
जयाप्रदा ने ¨हदी फिल्मों के अलावा तेलुगु, तमिल ्मराठी, बांग्ला मलयालम और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है। उनकी कुछ उल्लेखनीय फिल्में हैं. आवाज १९८४, ¨सदूर १९८७, घर घर की कहानी १९८८, घराना ऐलाने जंग,शहजादे १९८९, फरिश्ते १९९१, त्यागी १९९२ ्इंसानियत के देवता, १९९३, चौराहा १९९४, मैदाने जंग १९९५, भारत भाग्य विधाता २00२, तथास्तु २00६ .दशावतारम २00८ आदि।

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