बुधवार, 21 अप्रैल 2010

झूठ बोलना सिखा रहा है मोबाइल


सुनने में अटपटा लगे लेकिन यह सच है कि आपका मोबाइल फ ोन आपको तथा आपके बच्चे को झूठ बोलना सिखा रहा है। व्यस्त जीवन और काम के बोझ के तले दबे लोग पेशेवर जाने अनजाने झूठ बोलने की आदत का शिकार हो रहे हैं और यह सिखा रहा है उनका हरदम जेब में साथ रहने वाला छोटा सा मोबाइल फोन।
मनोचिकित्सक भी इस बात से इत्तफाक रखते हैं कि मोबाइल क्रांति ने आम आदमी की जीवन शैली को पूरी तरह बदल दिया है। इसके लाभ अनेक हैं लेकिन हानियां भी कम नहीं। समय की पाबंदी के बीच एक समय कई ग्राहकों को एक साथ निपटाने की जद्दोजहद में पेशेवर कई बार ग्राहक को संतुष्ट करने के लिहाज से झूठी जानकारी देते हैं और उनकी यह आदत कब उनकी कार्यप्रणाली में समा जाती है इसका उन्हें भी पता नहीं चलता। छत्नपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय में मनोरोग विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक प्रभात सिठोले ने कहा कि झूठ बोलने की आदत वास्तव में एक बीमारी है जिसे चिकित्सा क्षेत्न की भाषा में पैथालोजिकल लाइंग कहते हैं और इसे एंटी सोशल पर्सनालिटी की एक शाखा के रूप में जाना जाता है। डा सिठोले ने बताया कि काम के बोझ तले झूठ बोलने वाले लोग इस बात से अनजान रहते हैं कि उनकी बातों को उनका बच्च भी सुन रहा है। बच्चे जिज्ञासु होते हैं और वह घर और आसपास के बुजुर्गो से ही संस्कार लेते हैं। ऐसे में वह बड़ों की देखादेखी झूठ बोलने की आदत भी सीख सकते हैं। मनोचिकित्सक ने कहा कि अमरीका से प्रकाशित पत्निका कम्र्पैहैन्सिव टैक्सट बुक आफ साइकोथैरपी के अनुसार भारत समेत दुनिया के अधिसंख्य देशों में आमतौर पर ३क् प्रतिशत लोग झूठ बोलने में तनिक भी नहीं हिचकिचाते। चिकित्सा विज्ञान में झूठ बोलने की आदत से निजात पाने का उपाय है लेकिन यह २५ वर्ष से कम उम्र के लोगों पर ही अधिक प्रभावी रहता है।इससे अधिक उम्र के लोगों क ी मानसिक क्षमता के स्थायित्व के चलते यह इलाज अधिकतर निष्प्रभावी ही साबित होता है। ऐसे लोग यदि स्वयं चाह लें तो ही उन्हें इस रोग से मुक्ति मिल सकती है। इस बारे में कानपुर के गणेश शकंर विद्यार्थी मेडिकल कालेज में मनोरोग विभाग के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर आर आर अग्निहोत्नी ने कहा कि पैथालाजिकल लाइंग का एक पहलू यह भी है कि बच्चों में पनपती ऐसी आदतों में यदि अभिभावक जल्द ध्यान नहीं देते हैं तो यह किशोरावस्था से ही अपराध के दलदल में फंस सकते हैं। अमरीका समेत कई विकसित देशों में ऐसे मरीजों के लिए करेक्शन होम होते हैं जहां बिहैवियर थैरपी के जरिए उन्हें इस समस्या से छुटकारा दिलाया जाता है जबकि देश में इस नाम को बाल सुधार गृह के नाम से जाना जाता है। झूठ बोलने से ग्रसित बच्चों के अभिभावक को कहा जाता है कि वे बच्चे के सच बोलने पर उसे प्रोत्साहन के तौर पर उपहार दें जबकि झूठ बोलने पर दंड की हिदायत दें। बच्चों को यह भी कहें कि यदि उसने झूठ बोला तो उसकी कोई भी मांग नहीं मानी जाएगी। अभिभावक को यह भी चाहिए कि वह बच्चों के सामने आपस में कभी न झगड़े अथवा झूठ का सहारा न लें। घर में अनुशासन का माहौल बनाएं। झूठ बोलने पर बच्चों को मारने पीटने की जगह कुछ समय के लिए उससे बात करना बंद कर दें।

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