शनिवार, 1 मई 2010
धीमा दिमाग अधिक रचनात्मक होता है
अजय कुमार विश्वकर्मा
एक नए शोध से पता लगा है कि दिमाग के कुछ हिस्सों के बीच धीमा सम्पर्क व्यक्ति को अधिक रचनात्मक बना सकता है। अलबुकर्क के न्यू मेक्सिको विश्वविद्यालय में शोधकर्ता रेक्स जुंग और उनके सहयोगियों ने पता लगाया है कि रचनात्मकता का रसायन एन एसिटिलास्परटैट के कम स्तर के साथ सहसंबंध है जो तंत्निका कोशिका में पाया जाता है और संभवत: स्नावयिक स्वास्थ्य और चयापचय को बढाता है। स्नायुकोशिकाएं मस्तिष्क में एक धूसर पदार्थ को निíमत करती हैं। यह एक ऊतक है जिसका परम्परागत रूप से रचनात्मकता के बजाय सोचने की क्षमता के साथ ताल्लुक है।
इसलिए प्रोफेसर जुंग रचनात्मकता के बारे में अपने अध्ययन को अब सफेद पदार्थ पर केन्द्रित कर रहे हैं जो अधिकांशत: चर्बीदार माइलिन आवरण से बनी होती हैं। माइलिन का यह आवरण तंत्निकाकोशिकाओं के चारों ओर लिपटा रहता है। कम माइलिन का मतलब है कि सफेद पदार्थ कम खंडित होता है और सूचना ज्यादा धीमीगति से भेजता है। हाल के कई अध्ययनों में बताया गया था कि कार्टेक्स प्रांतस्था में अधिक अखंडता वाले सफेद पदार्थ का मतलब है कि व्यक्ति अधिक बुद्धिमान होता है लेकिन प्रोफेसर जुंग ने जब सफेद पदार्थ और रचनात्मकता के बीच संबंध के बारे में परीक्षण किया तो उन्हें कुछ अलग ही बात मालूम हुई।
प्रोफेसर जुंग ने ७२ व्यक्तियों के मस्तिष्क में सफेद पदार्थ का अध्ययन करने के लिए डिफ्यूजन टेंसर इमे¨जग डीटीआई तकनीक का इस्तेमाल किया। डीटीआई उस परिचालन को मापती है जिसमें पानी सफेद पदार्थ के जरिए फैलता है। उन्होंने व्यक्तियों की भिन्न विचार क्षमता का परीक्षण करने के बाद पाया कि कम रचनात्मक व्यक्तियों की तुलना में सबसे ज्यादा सर्जनात्मक व्यक्तियों के मस्तिष्क के उस क्षेत्न में सफेद पदार्थ में न्यूनतर अखंडता देखने को मिली जो पूर्वाग्रभाग कोर्टेक्स को एक अधिक गहरी संरचना के साथ जोडता है जिसे थैलेमस कहा जाता है। इसके आधार पर प्रोफेसर जुंग ने निष्कर्ष निकाला कि मस्तिष्क के कुछ हिस्सों के बीच धीमा सम्पर्क वास्तव में लोगों को अधिक सर्जनात्मक बनाता है। यह संभवत: अधिक भिन्न विचारों अधिक विलक्षणता और अधिक रचनात्मकता से जोडता है। अन्य अध्ययनों में संकेत दिया गया है कि इसी तरह सफेद पदार्थ कुछ मनोरोगों में प्रभावित हो सकता है। इसलिए अध्ययन का नतीजा रचनात्मकता और दिमागी बीमारी के बीच संबंध होने की बात को भी पक्का करता है।
प्रोफेसर जुंग के अध्ययन की एक विशेष बात यह है कि जब सफेद पदार्थ मनोरोगी व्यक्तियों के दिमाग में टूटने लगता है तो वे अक्सर अधिक रचनात्मक बन जाते हैं। लास एंजिलिस में कैलीफोíनया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पाल थाम्पसन कहते हैं यह देखते हुए कि सफेद पदार्थ में अधिक अखंडता को सामान्यत: अच्छी बात माना जाता है अध्ययन के नतीजे आश्चर्यजनक हैं। वह मानते हैं कि रचनात्मक विचार के लिए त्वरित सूचना हस्तांतरण शायद अधिक महत्वपूर्ण नहीं है। दिमागी तेजी शतरंज खेलने या रबिक का क्यूब तैयार करने के लिए अच्छी हो सकती है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आप इससे उपन्यास लिखने या कला सृजन के बारे में सोच सकते हैं। जुंग जोर देकर कहते हैं कि रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता अब भी साथ साथ हो सकते हैं। ऐसा लगता है कि ये अलग अलग क्षेत्नों में सफेद पदार्थ से नियंत्नित किए जाते हैं। इसलिए सिद्धांतत: कोई कारण नहीं दिखाई देता कि किसी व्यक्ति में बुद्धिमत्ता के लिए कोर्टेक्स में अधिक अखंडता क्यों नहीं हो सकती है लेकिन कोर्टेक्स और मस्तिष्क के गहरे हिस्सों के बीच कम अखंडता रचनात्मक विचारों की ओर ले जाती है। ऐसा लगता है कि वे अपेक्षाकृत स्वतंत्न रूप से काम करते हैं।
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दृष्टिकोण
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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quite informative.
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