सोमवार, 24 मई 2010
क्रेडिट और डेबिट कार्ड इस्तेमाल करने वाले हो जाएं सावधान
क्रेडिट और डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करने वाले लोगों को सावधान रहने की जरूरत है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जिस चिप और पिन प्रणाली को इन कार्डो की सुरक्षा की गारंटी समझा जाता था.उसमें एक गंभीर खामी है और चोर इससे फायदा उठा सकते हैं। इस खामी का मतलब है कि चुराए गए कार्ड का इस्तेमाल शाप टíमनलों और एटीएम में किया जा सकता है और चोर पहचाना भी नहीं जा सकेगा। चोरों को चार अंक के पिन के इस्तेमाल की जरूरत ही नहीं पडेगी और वह नकदी निकालने और खरीदारी करने का काम कर सकते हैं।
चिप और पिन प्रणाली को २क्क्६ में वैलेंटाइन डे पर पूरे विश्व में लागू किया गया था। इसके शुरु होने के बाद खरीदारी के लिए हस्ताक्षर के इस्तेमाल की जरूरत खत्म हो गई थी। उस समय बैंकों ने कहा था कि पिन प्रणाली के लागू होने से कार्डो से होने वाली धोखाधड़ी में कमी आएगी। उनकी दलील थी कि नम्बर नहीं जानने के कारण चोर कार्ड का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे लेकिन कैम्ब्रिज यूनिवíसटी कम्प्यूटर लैब के प्रोफेसर रास एंडरसन ने इस बात को गलत साबित किया है। उन्होंने कई ऐसे तरीकों का पता लगाया है.जिससे इस प्रणाली को नकारा किया जा सकता है। प्रोफेसर एंडरसन का कहना है कि उनकी इस नई खोज के बाद अब बैंकों को चिप और पिन प्रणाली को पूरी तरह सुरक्षित बनाने के लिए सुरक्षा साफ्टवेयर में परिवर्तन करना होगा। शोधकर्ताओं के अनुसार कम्प्यूटर चिप और ट्रांसमीटर लगे एक छोटे सíकट बोर्ड को चोरी किए गए क्रेडिट और डेबिट कार्ड में लगे चिप से जोड़ा जा सकता है. जिसे चोर अपनी आस्तीन में छिपा लेता है। इसके जरिए वह अपने पिट्ठू बैग या ब्रीफकेस में रखे कम्प्यूटर से जुड़ा रहता है। कैश मशीन पर कार्ड का इस्तेमाल करते समय चार अंक का पिन मांगे जाने पर वह कोई भी चार नम्बर उसमें डाल देता है और तब कार्ड से जुड़ा साफ्टवेयर टíमनल को संकेत देता है कि सही पिन का इस्तेमाल किया जा रहा है।
प्रारंभ में कार्डो से धोखाधड़ी के मामलों में गिरावट आई थी लेकिन वर्ष २क्क्८ के आखिर तक इसमें 61 करोड़ डालर की बढोत्तरी होने से आंकड़ा 43 प्रतिशत तक पहुंच गया। प्रोफेसर एंडरसन ने कहा हमारे विचार से पिन प्रणाली की यह अब तक की सबसे बड़ी खामी है। मैं इस पर25 साल से काम करता रहा हूं बीबीसी के न्यूजनाइट कार्यक्रम में चिप और पिन कार्ड में खामी के इन ब्योरों का खुलासा किया गया। इसमें दिखाया गया कि किस तरह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक कैंटीन में क्क्क्क् के फर्जी पिन का इस्तेमाल करके चार कार्डो से खरीदारी की गई। उपभोक्ता मामलों के वकील स्टीफन मैसन ने कार्यक्रम में कहा चिप और पिन प्रणाली में ये खामियां गंभीर हैं। मुझे नहीं लगता कि बैंकों ने इस समस्या का उचित समाधान किया है। उन्हें इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। चिप और पिन प्रणाली की शुरुआत के साथ बडे खतरे भी सामने आए हैं। कार्डो से हुई धोखाधड़ी के शिकार लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। कुछ बैंकों ने तो यह कहकर नुकसान की भरपाई करने से इन्कार कर दिया कि उपभोक्ताओं के कार्ड के साथ लापरवाही बरतने के कारण ऐसा हुआ। वे अपने पिन को गोपनीय नहीं रख पाए। प्रोफेसर एंडरसन का कहना है कि बैंक अपनी प्रणालियों की सुरक्षा के बारे में झूठ बोलते रहे हैं। लेकिन बैंकों के श्रम संगठन यू के कार्डस एसोसिएशन ने इस खोज को ज्यादा महत्व नहीं दिया है। उसका कहना है यह जटिल प्रणाली हमारे ग्राहकों के कार्ड के लिए वास्तविक खतरा नहीं बन सकती।
अजय कुमार विश्वकर्मा
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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परिमल जी बहुत ही उम्दा और उपयोगी जानकारी दिया है आपने इस पोस्ट के जरिये ,आशा है लोग जागरूक और सावधान हो जायेंगें / ब्लॉग का सार्थक प्रयोग के लिए आभार /
जवाब देंहटाएंचोर हर जगह दो कदम आगे रहते हैं
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