मंगलवार, 4 मई 2010
सामाजिक सरोकार वाली फिल्में बनाने में माहिर है एन.चन्द्रा
प्रेम कुमार
¨हिंदी सिनेमा में एन.चंद्रा का नाम एक ऐसे निर्माता-निर्देशक के रूप में लिया जाता है जाता है .जिन्होंने सामाजिक पृष्ठभूमि पर फिल्में बनाकर दर्शकों के बीच अपनी खास पहचान बनाई है। एन चंद्रा के नाम से मशहूर चंद्रशेखर नरभेकर का जन्म क्४ अप्रैल १९५२ को मुंबई में हुआ। उनकी मां मुंबई म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में लिपिक का कार्य करती थीं और जबकि उनके पिता फिल्म सेंटर में लैबोरेटरी इंचार्ज के रूप में काम किया करते थे। एन.चंद्रा ने अपनी स्नातक की पढ़ाई मुंबई विश्वविद्यालय से बतौर सहायक एडिटर काम करने लगे। एडिटर के यप में उन्होंने अपने कैरयिर की शुरूआत १९६९ में प्रदíशत फिल्म ‘‘रेशमा और शेरा ‘‘से की। इस बीच उन्होंने प्राण मेहरा,वामन भोंसले के साथ भी सहायक एडिटर के रूप में काम किया। इसके बाद वह निर्माता-निर्देशक गुलजार के साथ जुड़ गए और उनके सहायक निर्देशक के यप में काम करने लगे।
एन .चंद्रा ने निर्माता -निर्देशक के रूप में अपने सिने कैरियर की शुरूआत १९८६ में प्रदíशत फिल्म .अंकुश. से की। सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म की कहानी कुछ ऐसे बेरोजगार युवकों पर आधारित थी जो काम नहीं मिलने पर समाज से नाराज हैं और उल्टे रास्ते पर चलने लगते हैं। ऐसे में उनके मुहल्ले में एक महिला अपनी पुत्नी के साथ रहने के लिए आती है. जो उन्हें सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती है। वर्ष १९८७ में एन.चंद्रा के सिने कैरियर की एक और महत्वपूर्ण फिल्म ‘‘प्रतिघात ‘‘प्रदíशत हुई। आपराधिक राजनीति की पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म भ्रष्ट राजनीति को बेनकाब करती है। फिल्म की कहानी अभिनेत्नी सुजाता मेहता के इर्द गिर्द घूमती है जो समाज में फैले भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करती है और गुंडे काली का अकेले मुकाबला करती। हालांकि इसमें उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है लेकिन अंत में वह विजई होती है। वर्ष १९८८ में प्रदíशत फिल्म ‘‘तेजाब ‘‘एन.चंद्रा के सिने कैरियर की सर्वाधिक सुपरहिट फिल्म में शुमार की जाती है। इसमें अनिल कपूर ने एक सीधे सादे नौजवान की भूमिका निभाई जो देश और समाज के
प्रति समíपत है लेकिन समाज में फैले भ्रष्टाचार की वजह से वह लोगो की नजर में तेजाब बन जाता है .जो सारे समाज को जलाकर खाक कर देना चाहता है। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की जबरदस्त कामयाबी ने न सिर्फ एन.चंद्रा बल्कि अभिनेता अनिल कपूर और अभिनेत्नी माधुरी दीक्षित को भी शोहरत की बुंलदियों पर पहुंचा दिया। आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्नमुग्ध कर देते हैं। लक्ष्मीकांत -प्यारे लाल के संगीत निर्देशन में अलका याज्ञनिक की दिलकश आवाज में गाया गीत ‘‘एक दो तीन चार पांच . उन दिनो
श्रोताओं के बीच क्रेज बन गया था .जिसने फिल्म को सुपरहिट बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। आज भी यह गीत श्रोताओं के बीचबेहद लोकप्रिय है।
वर्ष १९९१ में प्रदíशत फिल्म ‘‘नरसिम्हा ‘‘एन चंद्रा के सिने करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। फिल्म की कहानी एक ऐसे युवक नरसिम्हा के इर्द गिर्द घूमती है जो अपनी ¨जदगी से हताश है और प्रांत के सरगना बापजी के इशारे पर आपराधिक काम किया करता है लेकिन बाद में उसे अपनी भूल का अहसास होता है और वह बाप जी के विरूद्ध आवाज उठाता है और उसमें विजई होता है। फिल्म में नरसिम्हा की टाइटिल भूमिका सन्नी देवोल ने निभाई थी जबकि बापजी की भूमिका ओमपुरी ने निभाई। वर्ष १९९२ से २क्क्क् तक का वक्त एन .चन्द्रा के सिने कैरियर के लिए बुरा साबित हुआ। उनकी हमला,युगांधर, तेजिस्वनी, बेकाबू ् वजूद और शिकारी जैसी कई फिल्में बॉक्स आफिस पर असफल हो गई लेकिन वर्ष २क्क्२ में प्रदर्शित फिल्म ‘‘स्टाइल ‘‘की कामयाबी के बाद वह एक बार फिर से अपनी खोई हुई पहचान बनाने में सफल रहे।
फिल्म स्टाइल के पहले एन.चंन्द्रा सामाजिक सरोकार वाली थिल्रर फिल्म बनाने के लिए मशहूर थे लेकिन इस बार उन्होंने अपनी सुपरहिट फिल्म में हास्य को अधिक प्राथमिकता दी। फिल्म में उन्होंने दो नए अभिनेता शरमन जोशी और साहिल खान को काम करने का अवसर दिया.जो उनकी कसौटी पर खरे उतरे। इन दोनो अभिनेताओं ने जबरदस्त हास्य अभिनय से दर्शको को हंसाते हंसाते लोटपोट कर दिया। वर्ष 2003 में एन .चन्द्रा ने अपनी फिल्म स्टाइल का सीक्वेल .एक्सक्यूज मी ‘‘बनाया.जिसमें उन्होंने एक बार फिर से फिल्म में शरमन जोशी और साहिल खान की सुपरहिट जोड़ी को रिपीट किया। लेकिन कमजोर पटकथा के कारण इस बार फिल्म टिकट खिड़की पर असफल हो गई।
बहुमखी प्रतिभा के धनी एन.चंद्रा ने निर्माण और निर्देशन के अलावा फिल्म और संपादन भी किया है। उन्होंने बेजुबान १९८१, वो सात दिन ्धरम और कानून १९८४, मोहब्बत १९८५, मेरा धर्म १९८६ प्रतिघात १९८७ और तेजाब १९८८ जैसी फिल्मों का संपादन किया। इसके अलावा अंकुश, प्रतिघात, तेजाब और नरसिम्हा जैसी हिट फिल्मों की कहानी भी लिखी।
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फिल्म संसार
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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अच्छी विवेचनात्मक और किसी के गुणों की बखान करती इस रचना के लिए आपका धन्यवाद /
जवाब देंहटाएंएन चंद्रा मेरे पसंदीदा निर्देशकों में से एक है.. इस लेख में बहुत कुछ जानने को मिला उनके बारे में.. वैसे अंत में आप उनकी अंतिम रिलीज फिल्म 'ये मेरा इण्डिया' का जिक्र करना भूल गए.. पिछले साल अगस्त के आखिरी सप्ताह में रिलीज हुई इस फिल्म को मैं उनकी अब तक की बनायीं सबसे बढ़िया फिल्म समझता हूँ... काश की इस फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया जाता..
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