बुधवार, 12 मई 2010
मुस्लिम समाज की अनुकरणीय पहल
डॉ. महेश परिमल
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहकर वह हमेशा अपने स्वार्थ से सधे काम ही करता रहता है। आजकल लोगों के पास समय ही इतना कम है कि वह समाज सेवा चाहकर भी नहीं कर पाता। कई सामाजिक संस्थाएँ हैं, जो कथित रूप से समाज सेवा करती हैं। कथित रूप से इसलिए कि वह पहले अपने द्वारा किए जा रहे कार्यो का प्रचार-प्रसार करती हैं। फिर काम करती हैं। ऐसे कार्य प्रचारित तो खूब होते हैं, पर जमीनी हकीकत से दूर होते हैं। इसके अलावा बहुत से कार्य ऐसे होते हैं, जिसके लिए किसी प्रचार की आवश्यकता नहीं होती। वास्तव में जिन कार्यो के लिए प्रचार-प्रसार की आवश्यकता होती हो, उनका उद्देश्य समाज-सेवा हो ही नहीं सकता।
अभी कुछ दिनों पहले ही यह जानने का मौका मिला कि इंदौर के मुस्लिम समुदाय ने रास्ते में आने वाली करीब सौ साल पुरानी दरगाह को खुद ही हटा ली। उन्हें लगा कि रास्ते में आने वाली यह दरगाह आवागमन में बाधा पहुँचा रही है। इससे शहर का विकास अवरुद्ध हो रहा है। उन्हें लगा कि शहर के विकास से बढ़कर धर्म नहीं, बल्कि धार्मिक भावनाओं से बढ़कर विकास है। उनकी इसी भावना ने एक ऐसी मिसाल दी है, जिससे अन्य समाज को प्रेरणा लेनी चाहिए। समाज ने गुम्बद इस तरह हटाया गया कि मजार को क्षति न पहुँचे।
हमारे देश में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं, जो सड़क किनारे हैं, या फिर सड़क के बीचों-बीच, इनसे यातायात कितना अवरुद्ध होता है, यह सब जानते हैं, पर बोल कोई नहीं पाता। प्रशासन भी इस दिशा में कहीं न कहीं पक्षपात करता है। हाल ही में भोपाल के जे के रोड से अतिक्रमण हटाया गया, पर वहाँ स्थित मंदिर पर एक खरोंच तक नहीं आई। वह अब भी कायम है। देखा जाए, तो सबसे पहले उसी मंदिर को हटाया जाना था। क्यांेकि जब मंदिर बनने की शुरुआत हुई, तब वहाँ एक छोटा-सा पत्थर रखा गया, धीरे-धीरे उस क्षेत्र का आकार बढ़ने लगा। फिर मूर्ति स्थापना, मंदिर, चबूतरा आदि सब-कुछ बनने के बाद पुजारी के लिए घर भी बनने लगा। तब तक प्रशासन की उस ओर दृष्टि नहीं गई। जब मंदिर ने विस्तार प्राप्त कर लिया, तो उसे हटाने के विरोध में कई धार्मिक संस्थाएँ सामने आने लगी। देखा जाए, तो इसी तरह के मंदिर के कारण सड़क किनारे अतिक्रमण को बढ़ावा मिलता है।
इंदौरमें कुछ दिनों पहले करीब 100 साल पुरानी एक दरगाह को रविवार को जिला प्रशासन ने स्थानांतरित कर दिया। संभवत: यह पहला मौका है, जब मुस्लिम समाज के किसी उपासना स्थल को हटाया गया है। यह कार्रवाई व्हाइट चर्च मार्ग पर कृषि महाविद्यालय से पीपल्याहाना चौराहे के बीच की गई। 15 घंटे से अधिक की मशक्कत के बाद दरगाह को बिना क्षति पहुँचाए पास में ही स्थानांतरित कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि दंदौर में सड़कों के चौड़ीकरण में कई धर्मस्थल बाधक हैं। इस कारण बीआरटीएस सहित कई मागोर्ं के निर्माण संबंधित क्षेत्रों में रुके हुए हैं। कुछ दिन पूर्व ही प्रशासन ने उक्त क्षेत्र में स्थित मंदिर की दीवार भी हटाई थी। इस मार्ग को 80 फुट चौड़ा बनाया जा रहा है। इस मार्ग पर अभी कई मंदिर तथा मकान हटाए जाने हैं। व्हाइट चर्च चौराहे से कृषि महाविद्यालय तक मार्ग बन चुका है, लेकिन इसके बाद का कार्य धर्मस्थलों के पास जाकर रुक गया था। कलेक्टर ने दरगाह को स्थानांतरित करने की योजना बनाई। उनके निर्देश पर एसडीएम विवेक श्रोत्रिय ने करीब पंद्रह दिनों में क्षेत्र के मुस्लिम समाज के लोगों के साथ कई बैठकें कीं। अंतत: सभी लोगों ने शहर के विकास के लिए दरगाह हटाने हेतु सहमति दे दी।
अमूमन मुस्लिम समुदाय को दकियानूसी समझा जाता है। पर इंदौर में इस समाज ने जिस तरह से अपनी प्रगतिशीलता का परिचय दिया है, उससे अन्य समाज भी इसी तरह के कार्यो में सामने आएँ, तो समाज को एक नई दिशा मिल सकती है। देखा जाए, तो इसी तरह के छोटे-छोटे कार्यो से ही समाज की पहचान बनती है। रास्ते में धार्मिक स्थल बनाना आसान है, पर स्वयं उसे हटाना बहुत ही मुश्किल है। मुझे यह समझ में नहीं आता है कि शोर-शराबे से घिरे हुए धार्मिक स्थलों पर पहुँचकर मनुष्य किस तरह की शांति प्राप्त करता है? सड़क का शोर-शराबा, उस पर मंदिर पर लगे ध्वनि विस्तारक यंत्रों से से होने वाला शोर। क्या इस शोर में शांति की तलाश करते हैं हम? जितना समय हम इन धार्मिक स्थलों पर जाकर बिताते हैं, उतना समय यदि हम अपने परिवार को देंगे, तो हम परिवार के अधिक निकट हो सकते हैं। अपनों के निकट हो सकते हैं। आजकल इन्हीं मंदिरों से रोज ही चीख-चीखकर गाने और चिल्लाने की आवाज ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से आती रहती है। क्या प्रशासन इस पर रोक नहीं लगा सकता? वैसे भी शहरों में धार्मिक स्थलों से होने वाले शोर और सड़कों पर दौड़ने वाले वाहनों के शोर पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने काफी पहले ही कह दिया है। पर उस पर अभी तक अमल नहीं हो रहा है। न राज्य सरकार, न प्रशासन और न ही सामाजिक संस्थाएँ। धार्मिक स्थलों से ध्वनि विस्तारक यंत्रों को पूरी तरह से निकाल दिया जाना चाहिए। विदेशों में तो ऐसा नहीं होता। कई मामलों में विदेशों की नकल करने वाले हम आखिर इस बात को क्यों भूल जाते हैं कि ये शोर हमें ही नहीं, बल्कि हमारी संतानों पर बुरा असर डाल रहे हैं। डीजे के माध्यम से पार्टियों में इन दिनों कुछ अधिक ही शोर हो रहा है, यह पुलिस प्रशासन की लाचारी का उदाहरण है।
कभी अस्पताल का दौरा कर लें, या स्वास्थ्य संबंधी रिपोर्ट का अवलोकन कर लें, आप पाएँगे कि इन दिनों ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिन्हें सुनने में तकलीफ होती है, या वे ऊँचा सुनते हैं। ये आज की पीढ़ी है, यदि शोर पर काबू नहीं पाया गया, तो अगली पीढ़ी अपनी मां की लोरी सुनने से वंचित रह जाएगी, यह तय है। शोर लगातार हमें आक्रामक बना रहा है, हमारे सोचने-समझने की शक्ति को कमजोर कर रहा है। हमें अपनों से दूर कर रहा है। इन बातों को हमें ही समझना होगा। शोर चाहे घर के इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों का हो, या फिर धार्मिक स्थलों से होने वाला, शोर हर तरह से शरीर को नुकसान ही पहँुचाता है। शोर से हम धार्मिक स्थलों को अपवित्र कर रहे हंैं। मंदिर ने हमारे देश में सैकड़ों जानें ली हे, वह मुद्दा भले ही कितना भी राजनैतिक क्यों न हो, पर मंदिर का सड़क पर होना कभी समाज के लिए अच्छा नहीं हो सकता। जैसे हर चीज का अपना स्थान होता है, वैसे ही मंदिर का भी अपना स्थान होता है। सड़क आवागमन का साधन है, इस पर अवरोधक के रूप में जो भी हो, उसे हटाना समाज का ही काम है, फिर वह मंदिर, दरगाह, चर्च या फिर कोई आवारा पशु की क्यों न हो?
सड़क गति का सूचक है। इसकी गतिशीलता ही इसकी पहचान है। जिस सड़क पर जाम अधिक होता है, उस पर लोग चलना कम कर देते हैं। जाम यानी शहर का अवरुद्ध होता विकास। शहर का विकास यानी व्यक्ति का विकास। इसलिए सड़क पर जाम होने का कारण जो भी हो, उसे दूर किया ही जाना चाहिए।
डॉ. महेश परिमल
लेबल:
दृष्टिकोण
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
एक अच्छा कदम
जवाब देंहटाएंइंदौर के मुस्लिम भाइओ का यह सराहनीय स्वागतयोग्य कदम है....
जवाब देंहटाएंIndore ke muslimo dvara bahut badiya udaharan pesh kiya gaya isake liye ve badhai ke patra hai.. jankari pahuchane ke liye aapk ka dhanyavaad
जवाब देंहटाएंयदि यही सहनशीलता मुस्लिमों के अन्दर आ जाये तो तमाम दिक्कतें दूर हो जायेंगी, लेकिन ऐसा होगा क्या??
जवाब देंहटाएंindore k muslim samaj ne jo kar dikhaya hai, vaisaa poore desh ke musalamaan karane lage to sampradayik sadbhavanaa kaa adbhut vatavaran banega. achchhi rapad ke liye badhai.
जवाब देंहटाएं