गुरुवार, 6 मई 2010
कसाब की सजा सवालों के सलीब पर
डॉ. महेश परिमल
सभी की निगाहें आज अदालत के उस फैसले की ओर लगी हुई है, जहाँ २६/११ के आतंकी कसाब के भविष्य का निर्णय करेगी। देखा जाए, तो कसाब को फाँसी से भी बड़ी कोई सजा है, तो वही उसे मिलनी चाहिए। वह एक दरिंदा है, जो लोगों को तड़पता और मरता देखकर खुश होता है। वह एहसानफरामोश है, जो भला करता है, उसी की हत्या करने में भी देर नहीं करता। सवाल यह उठता है कि आखिर हम आतंकवादियों को क्यों पालते हैं? अफजल गुरु ही नहीं, ऐसे बीस आतंकी हमारे देश में हैं, जिनका गुनाह तो सिद्ध हो चुका है, सजा भी हो चुकी है, पर हम उन्हें सजा नहीं दे पा रहे हैं। कसाब को लेकर भी कई तरह की चर्चाएँ हैं, जिसका उत्तर सरकार को देना है। आज कसाब की सजा सवालों के सलीब पर है, क्यों न इस मामले में जो भी सजा मुकर्रर हो, उसे तत्काल ही अमल में लाया जाए।
फाँसी से भी बड़ी कोई सजा हो सकती है क्या? आज हर तरफ २६/११ के आतंकी आमिर अजमल कसाब को दी जाने वाली सजा की ही चर्चा है। इस सजा से कई सवाल और खड़े हो गए हैं। आज देश का बच्च-बच्च यही चाहता है कि फाँसी से भी बड़ी कोई सजा है, तो वह कसाब को मिलनी चाहिए। क्योंकि कसाब के लिए फाँसी तो बहुत ही छोटी सजा है। उसने जो अपराध किया है, वह दरिंदगी की सीमाओं को पार करता है। करोड़ों भारतीयों की भावनाओं का यदि सम्मान किया जाए, तो कसाब को सजा देने के लिए जितना समय लगा, उससे भी कम समय में उसे फाँसी हो जानी चाहिए। कसाब को फाँसी की सजा से यह संदेश जाना चाहिए कि अब भविष्य में कोई भी आतंकी अपने काम को अंजाम देने के पहले सौ बार सोचे। लेकिन कसाब को दी गई सजा में विलम्ब और उस पर अमल को लेकर अभी भी लोगों में संशय है।
कसाब को लेकर जो सबसे अधिक चिंता की बात है, वह यह कि कसाब को सजा सुनाने में आखिर इतना वक्त कैसे लग गया? क्या हमारी न्याय व्यवस्था इतनी लचर है कि देश के दुश्मन को भी सजा देने में इतना समय लगाया जाए। सच्च न्याय तो वही होता है, जो समय पर मिले। देर से मिलने वाले न्याय का कोई महत्व नहीं होता। जब सजा सुनाने में इतना समय लग सकता है, तो उस पर अमल करने में आखिर कितना समय लगेगा?
संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को फाँसी की सजा सुनाने में बरसों बीत गए, इसके बाद भी वह जिंदा है। उसे फाँसी पर लटकाने में केंद्र सरकार साँसत में है। वह इसके लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। जब यह बात जोर-शोर से उठी कि अफजल को फाँसी क्यों नहीं दी जा रही है, तो सरकार का कहना था कि अफजल गुरु क आगे फाँसी की सजा पाने वाले करीब २क् लोग और भी हैं। जब अफजल की बारी आएगी, तो उसे फाँसी दे दी जाएगी। सोच लो, जब फाँसी की सजा सुनाने के बाद अफजल इतने वर्षो तक जिंदा रह सकता है, तो फिर कसाब के जीवन की रेखा कितनी लंबी होगी?
कसाब को फाँसी की सजा होना यह अंत नहीं है। फिर कोई आतंकवादी ऐसी हिम्मत न कर पाए, यह कोशिश होनी चाहिए। ऐसे हमले निष्फल हो जाएँ, इसकी मंशा भी सजा में होनी चाहिए। होना तो यह भी चाहिए कि अब अगर पड़ोसी देश से आतंकवादी हमारे देश में घुसते हैं, तो उन्हें इस बात का डर होना चाहिए कि यदि यहाँ पकड़े गए, तो वह जिंदगी मौत से भी बदतर होगी। लेकिन हमारे न्यायतंत्र की प्रक्रिया को देखकर ऐसा नहीं लगता कि आतंकवादी हमारी न्याय व्यवस्था से डरेंगे। अब आतंकवादी यह अच्छी तरह से समझने लगे हैं कि भारत में किसी भी प्रकार की आतंकी कार्रवाई की भी जाए, तो उसका फैसला देर से होता है और उस पर अमल होने में तो और भी देर होती है। तब तक जिंदगी के पूरे मजे ले लो।
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि इन आतंकवादियों पर हमारे देश का कितना धन बरबाद हो रहा है। २६/११ के दौरान जो आतंकवादी हमारे देश में घुस आए थे, कसाब को छोड़कर सभी मारे गए। इन आतंकवादी की लाशें अभी तक सुरक्षित रखी हुईं हैं, इन पर अभी तक करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं। कसाब के इलाज पर भी अब तक लाखों रुपए खर्च हो चुके हैं। इन लोगों पर देश का जितना धन खर्च हुआ है, उतना तो २६/११ के दौरान मारे गए लोगों को मुआवजे के रूप में नहीं मिला है। कसाब के खिलाफ फैसला देने में कुल २७१ दिन लगे, इस दौरान कागजी कार्रवाई में ही लाखों रुपए खर्च हो गए। अंडा सेल इतनी मजबूत है कि विस्फोटक से भरा ट्रक भी इससे टकरा जाए तो यह नहीं टूटती। लगभग एक करोड़ खर्च करके जेजे अस्पताल में कसाब के लिए बुलेटप्रूफ सेल बनवाई गई है जहां उसका इलाज हो सके। हालांकि, कसाब को स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने पर डॉक्टर स्वयं अस्पताल आते थे। घायल कसाब का इलाज 16 से 24 डॉक्टर करने में लगे थे। कसाब की सुरक्षा में भी लाखों खर्च हो रहे हैं। कसाब के खाने-पीने, वकील और इलाज में लाखों खर्च हो चुके हैं।
कसाब को भले ही विशेष अदालत ने दोषी मान लिया हो, लेकिन अभी केस और लंबा लटक सकता है। सरकारी वकील उज्जवल निकम ने भी कहा है कि केस अभी लंबा खिंच सकता है। कसाब के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प है और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट अगर उसे मौत की सजा सुना भी देती है तो वह राष्ट्रपति के पास मौत से बचने के लिए दया याचिका लगा सकता है। यानी स्वयं पर करोड़ांे खर्च करा चुका कसाब अभी और पैसा खर्च करवाएगा।
हमे शर्म आनी चाहिए कि इस देश में वीरों से अधिक सम्मान तो आतंकवादियों को मिलता है। आतंकवादियों को दी जाने वाली सुविधा के सामने सीमा पर तैनात हमारे जाँबाजों को मिलने वाली सुविधा तो बहुत ही बौनी है। आखिर आतंकवादियों हमारे लिए इतने अधिक महत्वपूर्ण क्यों होने लगे? कसाब को मिलनी वाली तमाम सुख-सुविधाओं को देखते हुए आम युवाओं में यही संदेश जाएगा कि देश का सैनिक बनने से तो बेहतर है, आतंकवादी बनना। मौत कितनी भी भयानक हो, पर जिंदगी तो बहुत ही खुशगवार होगी। युवाओं की इसी तरह की सोच के ही कारण आज देश के युवा भटक रहे हैं। देश के लिए सबसे शर्म की बात तो तब सामने आई, जब सेना में भर्ती के लिए सरकार ने विज्ञापन प्रकाशित किए। यह विज्ञापन नहीं, देश के युवाओं में जमे हुए रक्त का हस्ताक्षर है। आज कोई युवा सेना में जाना ही नहीं चाहता। मोहल्ले, कस्बे में थोड़ी सी नेतागिरी से ही इतनी आय तो हो ही जाती है, जो एक सैनिक की आय तो बहुत ही अधिक होती है।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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