गुरुवार, 15 जुलाई 2010
आखिर क्या है पॉल बाबा का सच?
फीफा वर्ल्ड का सबसे बड़ा हीरो कौन? इस सवाल का जवाब हर किसी की जबान है, जवाब है पॉल बाबा! जी हाँ इसी पॉल बाबा के चर्चे आज पूरी दुनिया में है। मीडिया तो इसका दीवाना हो चुका है। स्पेन इसे 38000 डॉलर(करीब 17 लाख 75 हजार रुपए) में खरीदने को तैयार भी है। भला एक ऑक्टोपस की कीमत इतनी अधिक हो सकती है? लेकिन जो पॉल बाबा ने किया, उसके रहस्य की ओर थोड़ा-सा भी झाँकने की कोशिश करेंगे, तो हम पाएँगे कि यह तो संभावनाओं का सिद्धांत है। नई जानकारी के अनुसार अब पॉल बाबा संन्यास ले रहे हैं। यह तो तय था, अब लोग उससे अधिक अपेक्षा रखेंगे। इस दौरान यदि कहीं कोई चूक हो गई, तो हो गया बेड़ा गर्क। वैसे भी हालेंड और जर्मनी के लोग उसे कच्च चबाने की फिराक में हैं। अब पॉल बाबा पहले की तरह बच्चों को हँसाने का काम करेंगे। देखते हैं वे बच्चों को किस तरह से हँसाते हें। कई देशों के लोगों को रुलाकर अब हँसाने का काम किया जाए, तो यह शोभा नहीं देता।
जर्मनी के एक एक्वेरियम में पल रहे ऑक्टोपस यानी पॉल बाबा की भविष्यवाणी के सामने सिंगापुर का तोता फीका पड़ गया। उसने नीदरलैंड के जीतने की भविष्यवाणी की थी। अभी कुछ दिनों में कई बाबा अवतरित हुए। पर इन सबमें हिट रहे पॉल बाबा। जो अंधविश्वासी नहीं हैं और गणित के जानकार हैं, तो वे इस पॉल बाबा के रहस्य को आसानी से समझ सकते हैं। पॉल बाबा भी वही कर रहे हैं, जो आजकल के ज्योतिषि करते हैं। मान्यतावाद को समझकर चलने वालों के लिए संभावनाओं के इस सिद्धांत को समझना आसान है। आओ एक कोशिश करके देखें और जानें कि आखिर क्या है पॉल बाबा का रहस्य?
इस ऑक्टोपस से जो करवाया जा रहा है, वह नया नहीं है। हमारे समाज में ज्योतिषियों की दुकानें भी ऐसे ही चलती हंै। असल में इसका रहस्य किसी ज्योतिष या पारलौकिक शक्ति में नहीं है, बल्कि ठेठ गणित में छिपा है। इस रहस्य को सुलझाने के लिए हम पहले ऑक्टोपस द्वारा भविष्यवाणी किए जाने के तरीके का आकलन करते हैं। मैच का नतीजा जानने के लिए ऑक्टोपस के सामने दो डिब्बों में भोजन परोसा जाता है। ये दोनों डिब्बे एक-एक टीम का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन पर संबंधित देश का चिह्न् लगा होता है। ऑक्टोपस भोजन ग्रहण करने के लिए जिस डिब्बे को खोलता है, मान लिया जाता है कि उसी की टीम जीतेगी और ज्यादातर मामलों में वही टीम जीती भी है।
इसमें विजेता टीम चुनने के तरीके का चयन ऑक्टोपस ने नहीं मनुष्य ने अपनी सहज बुद्धि से किया है। इसी में इसका राज भी छुपा है। ऑक्टोपस के सामने दो ही डिब्बे रखे जाते हैं, इसलिए जब-जब मैच फँसे, भविष्यवाणी गलत निकली। ऑक्टोपस को रोज की ही तरह ही भोजन ग्रहण करना है, इसलिए उसने हमेशा की तरह ही एक डिब्बा खोला है। उसके लिए यह भविष्यवाणी नहीं उसका रोज का काम है। इस काम में मनुष्य ने जो भविष्यवाणी निकाली है उसका रहस्य प्रायकता यानी प्रोबेबिलटी में छुपा है। जिन्होंने गणित पढ़ा है, उन्हे पियरे सिमन लाप्लास का प्रोबबिलटी का सूत्र भी पता होगा। जितने कम विकल्प होते हैं उनके सच साबित होने की संभावना उतनी ही ज्यादा होती है। जब आपको दो विकल्पों में से एक चुनना होता है, तो उसके सही होने की दर काफी ज्यादा एक बटा दो अर्थात दशमलव पांच है। दूसरी ओर किसी छह फलक वाले लूडो के पांसे में एक निर्धारित अंक आने की संभावना इससे काफी कम दशमलव एकछह (.16) ही रह जाती है।
अब हम देखते हैं कि यदि ऑक्टोपस के सामने तीन डिब्बे रखे जाते तो क्या उसकी वे भविष्यवाणियां भी सही साबित होतीं, जो मैच ड्रा होने या फँसने की वजह से सही नहीं हो पाईं। तीसरा डिब्बा ड्रा की भविष्यवाणी के लिए होता। अगर आप हाँ कहते हैं, तो यह सिर्फ आपकी पूर्व मान्यता है और आपका विश्वास चमत्कार पर जम गया है। लेकिन आप गलत हैं। तब गलती होने की संभावना बढ़ जाती और भविष्यवाणी सच साबित होने की संभावना दशमलव पांच से घटकर दशमलव तीन तीन पर आ जाती।
इसी चतुराई के चलते अधिक डिब्बे ऑक्टोपस के सामने नहीं रखे गए। अब विचार करें कि वल्र्डकप शुरू होने से पहले सभी 32 टीमों के डिब्बे एक साथ पॉल बाबा के आगे रखकर विजेता की भविष्यवाणी कराई जाती तो क्या होता। ऐसा नहीं था कि उस भविष्यवाणी के सच होने की संभावना नहीं थी, मगर यह काफी कम दशमलव शून्य शून्य तीन के करीब होती। पॉल बाबा तो तब भी एक ही डिब्बा खोलते मगर भविष्यवाणी गलत होने का इतना बड़ा जोखिम भला कौन उठाता?
पॉल बाबा के संरक्षकों से ज्यादा हिम्मतवाला तो वो जुआरी होता है जो ताश के 52 पत्तों पर दांव लगाता है। सोचो, उसके लिए कितनी कम संभावना होती है और फिर भी वह दाँव लगाकर जीतता है और कई बार जीतता ही चला जाता है। कभी हारता भी है और हारता ही चला जाता है। इसी तरह पॉल बाबा की भविष्यवाणियां भी कभी सच साबित होती जाएंगी और कभी गलत भी निकलेंगी। लेकिन जब गलत निकलने लगेंगी लोग उसे भूल जाएंगे। अब जब सच हैं, तो सब उसके दीवाने हैं। यही अंधविश्वास है। यही मान्यतावाद है।
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चिंतन
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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रोचक विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंयहां तक का विश्लेषण तो बिल्कुल सही है आपका .. पर एक जुआरी कभी जीतता ही जाता है .. और कभी हारता ही जाता है .. उसमें भी तो कोई रहस्य हो सकता है .. या यह मात्र संयोग और दुर्योग की कहानी होती है ??
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