मंगलवार, 6 जुलाई 2010
साइनालिखेगी राष्ट्रीय गौरव की नई इबारत
डॉ. महेश परिमल
एक आलसी और खूब सोने वाली लड़की से भला क्या अपेक्षा की जा सकती है? क्या उसके माता-पिता यह सोच सकते हैं कि एक न एक दिन वह हमारा ही नहीं, बल्कि देश का नाम ऊँचा करेगी। लड़की के आलसपन को देखते हुए ऐसा सोचना बहुत ही मुश्किल है। पर जब लड़की को यह महसूस हो कि सोने से वह काफी कुछ गवाँ देगी, तो उसका जागना स्वाभाविक ही था। उसे जगाया माता-पिता के सपनों ने, इस सपने को उन्होंने बेटी पर लादा नहीं, बल्कि उस सपने को पूरा करने की हिम्मत दी। उसे तकलीफ न हो, इसलिए अपना घर स्टेडियम के पास ले लिया, ताकि बेटी को आने-जाने में परेशानी न हो। लंबी यात्राओं में वह सो जाया करती थी, पर माँ जागती रहती थी। माँ ने उसे जगाती। आज वह लड़की इतनी जाग गई है कि अपने जैसी साथियों के लिए प्रेरणा बन गई है। हम सब उसे साइना नेहवाल के नाम से जानते हैं।
साइना उस राज्य से है, जहाँ भ्रूण हत्याएँ सबसे अधिक होती हैं। इसी राज्य से कल्पना चावला भी थीं। साइना आज भले ही जाना-पहचाना नाम बन गया हो, पर सच तो यह है कि इस शटल गर्ल में सनसनी नहीं है। यह आज जिस मुकाम पर है, उसके पीछे उसका अदम्य साहस और धर्य है। इसने मीडिया के पीछे भागने की अपेक्षा अपने प्रदर्शन में लगातार सुधार किया। यह अच्छी तरह से जानती हैं कि यही मीडिया आज उसे सर आँखों पर ले रहा है, तो कल उसे जमीन पर गिराने में भी देर नहीं करेगा। बैडमिंटन का वह खेल जिस पर किसी कैमरे की निगाह मुश्किल से जाती है, इस गुणा-भाग से बाहर है. ग्लैमर के बाजार से जुड़ा वह मायाजाल, जो टेनिस की सानिया मिर्जा को तो गढ़ता है, लेकिन बैडमिंटन को अपनी जिंदगी बनानेवाली इस लड़की से आंखें चुराता है. ये साइना नेहवाल हैं. 21 दिन में तीन खिताब जीतनेवाली साइना नेहवाल. बैडमिंटन के कोर्ट पर साइना की यह कामयाबी सीधे-सीधे तीन दशक पहले प्रकाश पादुकोण के लिजेंसी (मिथ) की याद दिलाती है. प्रकाश ने 25 दिन के दौरान फ्रेंच ओपन, डेनमार्क ओपन और उसके बाद आएल इंग्लैंड को फतह किया था. यही साइना नेहवाल अपने माता-पिता के ख्वाबों को हकीकत में तब्दील करने में जुटी है. यह हमें भारतीय आधुनिकता की पहचान के करीब ले जाती है, जहाँ हम अपनी विरासत से अलग नहीं होते, उसे लगातार आगे बढाते हैं. फिर साइना का यह ग्लैमरहीन बैडमिंटन है, जो अभी तक टेनिस की तरह अमेरिकी खेल नहीं बन पाया है. टेनिस में कोई जीतता है, तो अमेरिकी गर्व का बोध उसके साथ जुड़ जाता है. सानिया मिर्जा को मिलनेवाली कामयाबी में इसी बोध के अहसास से हम भर जाते हैं. कुछ ऐसे अहसास से कि हम ताकतवर मुल्कों के बराबर खड़े हैं. सच पूछें तो संबंधों को बनाने-सँवारने के साथ खेलों की यह भी एक बड़ी भूमिका है. यह सब कुछ इसी तरह है, जैसे राजनीति से लेकर आर्थिक मोर्चे पर हम अमेरिका और यूरोप की ओर देखते हैं. उसके बराबर खड़ा होने के ख्वाब संजोते हैं. लेकिन इसी टेनिस की तुलना में बैडमिंटन पूरी तरह से एशियाई खेल है. अगर टेनिस में अमेरिका और यूरोप का दबदबा है, तो बैडमिंटन में एशिया का. साइना की यह जीत जाहिर करती है कि इस मोर्चे पर भारत एशिया में एक बड़ी ताकत है. फिर यही साइना नेहवाल देश में गढे-गढाए एक सिस्टम से हटकर खुद अपना सिस्टम गढ रही है. वह स्कूली शिक्षा से लेकर मैनेजमेंट के क्षेत्र तक में कामयाबी हासिल कर रही लड़कियों से बेहद अलग है. उन लड़कियों को मालूम है कि अगर एक खास सिस्टम के बीच वो पूरी शिद्दत से जुटी रहें, तो अपनी मंजिल तक पहुंच जाएँगी. उन्हें बस इस सिस्टम के बने बनाए मानकों पर चलते हुए यह मंजिल हासिल हो जाएगी. लेकिन साइना ने जिंदगी के मानक खुद तय किए हैं. वह अपना रास्ता खुद गढ रही हैं. जिंदगी उनकी नियति को तय नहीं कर रही. बल्कि वो अपनी नियति को खुद तय कर रही हैं.
लोगों के मनोमस्तिष्क में साइना अधिक करीब है। सानिया को लोगों ने सर आँखों पर उठाया, पर उसने जिस तरह से अपनी शादी रचाई, जो काफी विवादास्पद भी हुई। उससे लोगों को लगा कि हमने गलत किया। कहीं न कहीं उसके प्रशंसकों को ठेस पहुँची, इसलिए लोगों ंने देर से ही सही, पर सधे कदमों से साइना को सर-आँखों बिठाया। साइना में लोग अपनापन देखते हैं। उसकी मुस्कराहट, उसकी बोलती आँखें सब-कुछ अपना-सा लगता है। अभी तक साइना को ऐसा कोई बयान भी सामने नहीं आया, जिसमें गर्वोक्ति झलकती हो। उसने जो कुछ भी कहा और किया उसमें देश शामिल था। उसकी सोच देश को लेकर है। उसकी सोच में वह भारतीय लड़कियाँ हैं, जिनमें प्रतिभा है, जिनमें हौसला है, फिर भी वे समाज के दायरे से बाहर नहीं आ पातीं। वह ऐसे लोगों के लिए ही काम करना चाहती हैं, ताकि वे भी देश का नाम रौशन कर सकें। साइना की सहजता, सरलता, बिंदासपन में भारतीयता झलकती है। विश्वास है वह अपने खेल को और अधिक सँवारेगी और भारतीयों के दिलों में राज करेगी। हर भारतीय की दुआएँ उसके साथ हैं।
अभी उन्हें नंबर एक की वर्ल्ड रैंकिंग के साथ विश्व चैंपियनशिप, कॉमनवेल्थ और ओलिंपिक जैसे टूर्नामेंट जीतने हैं। जैसी तन्मयता और एकाग्रता से वह खेल रही हैं, कामना करनी चाहिए कि वे सारे शीर्ष खिताब देर-सबेर अपनी झोली में डाल सकेंगी। तभी उनसे प्रेरणा लेकर देश की कई बेटियां अपनी-अपनी जकड़बंदियों से निकलकर राष्ट्रीय गौरव की नई कथाएं लिखने निकल पड़ेंगी।
डॉ. महेश परिमल
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दृष्टिकोण
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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