शुक्रवार, 4 मार्च 2011

सरकार पर बुरी तरह से हावी है तम्बाखू लॉबी


डॉ. महेश परिमल
आज हमारे पास समय नहीं है, यह सच है, पर भविष्य में समय की और भी कमी होने वाली है। हमारे पास इतना भी समय नहीं होगा कि हम अपने परिजनों की अंत्येष्टि में शामिल हो पाएँगे। क्योंकि अब महीनों सप्ताहों में नहींे, बल्कि हर रोज हमारे किसी न किसी परिजन की मौत होने वाली है। जिस तेजी से तम्बाखू से जुड़ी चीजों का सेवन बढ़ रहा हे, उससे आगामी 9 वर्षो में 13 लाख लोगों की मौत केवल इस व्यसन से होने वाली है। सोचो, आप अपने कितने परिजनों की अंत्येष्टि में श्रामिल हो पाएँगे। यह बहुत ही कड़वा सच है, इसे हम समझ रहे हैं, पर हमारी गठबंधन वाली विवश सरकार समझ ही नहीं पा रही है। सुूप्रीमकोर्ट ने आदेाश् दिया है कि पहली जून से तम्बाखू और सिगरेट के पैकेट पर डरावने चित्रों के साथ यह बताया जाए कि इससे कैंसर होता है। कोट्र्र ने इसे अनिवार्य रूप से लागू करने का फैसला दिया है। पर सरकार पर तम्बाखू लॉबी इतनी अधिक हॉवी है कि वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही है। वैसे भी सुप्रीमकोर्ट के न जाने कितने नियम-कायदों की सरेआम धज्‍जिजयां उड़ रहीं हैं, ऐसे में एक और नियम आ गया, तो क्या फर्क पड़ता है?
सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर पहली जून से सिगरेट के पैकेट पर 40 प्रतिशत स्थान डरावने चित्रों के लिए सुरक्षित रखने और ‘तम्बाखू यानी कैंसर’ जैसी चेतावनी लिखना अनिवार्य होगा। पर हमारे देश की राजनीति पर तम्बाखू लॉबी इतनी अधिक हावी है कि सरकार चाहकर भी इस लॉबी के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई करने से बच रही है। वैसे भी प्रधानमंत्री ने यह तो स्वीकार कर ही लिया है कि गठबंधन सरकार की अपनी मजबूरियाँ होती हैं। इसलिए कोई घोटाले कर सकता है, तो कोई सुप्रीमकोर्ट के आदेश की खुलेआम अवहेलना भी कर सकता है। सरकार तब भी विवश थी, आज भी विवश है।
‘सीने में तेजी का दर्द, साँस रुकने लगे और ऐसा दबाव का अनुभव होने लगे, इस पीड़ा को महसूम करना हो, तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के किसी भी अधिकारी से मिल लो, वह बताएगा कि हमारा विभाग किस तरह से तम्बाखू लॉबी के दबाव का शिकार है।’ ये अधिकारी बताते हैं कि तम्बाखू से हर वर्ष देश में 9 लाख लोग एड़ियाँ रगड़-रगड़कर मरते हैं। फिर भी तम्बाखू लॉबी अपने निहित स्वार्थ के कारण केवल अपना मुनाफा ही देख रही है। कितने बरस हो गए, सिगरेट के पैकेट पर डरावने चित्र और इससे होने वाली हानियों को बताने के आदेश हो चुके हैं, पर सरकार चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही है। आश्चर्य की बात यह है कि हमारे देश के कृषि मंत्री शरद पवार तम्बाखू की लत के कारण होठों का ऑपरेशन करा चुके हैं, इसके बाद भी उनके जैसे कई मंत्री हैं, जिन्हें तम्बाखू की लत है और वे इस व्यसन को छोड़ने को तैयार ही नहीं हैं।
फिर भी तम्बाखू का इस्तेमाल करने वाले हमेशा यही सोचते हैं कि तम्बाखू दूसरों को भले ही नुकसान पहुँचाए, पर हमें कभी नुकसान नहीं पहुँचाएगा। उनकी यही सोच उनके परिवार वालों पर किस तरह से भारी पड़ती है, इसे शायद वे समझने को तैयार नहीं हैं। तम्बाखू लॉबी सरकार पर लगातार हॉवी होती जा रही है। तम्बाखू और सिगरेट के पैकेट पर डरावने चित्र होने चाहिए, इसके लिए सरकार भी राजी है, पर जब भी वह इस दिशा में कदम उठाती है, तम्बाखू लॉबी ऐसा करने से रोक देती है। विवश सरकार एक बार फिर मजबूर हो जाती है। इस दिशा में सरकार की सक्रियता को देखते हुए पिछले सारल तम्बाखू उत्पादकों ने अपने कारखाने बंद कर दिए। उनका मानना था कि सरकार को तम्बाखू के व्यसनी ही विवश करेंगे, हमारे कारखाने खोलने के लिए। आखिर सरकार ही झुकी। करीब 11 साल हो गए, तम्बाखू के उत्पादों पर डरावने चित्र प्रकाशित करने का आदेश हुए, पर अब पहली जून से यह आदेश अनिवार्य रूप से लागू करने की योजना है। दूसरी ओर गठबंधन सरकार की विवशताओं के चलते सुप्रीमकोर्ट का यह निर्णय कितना अमल में लाया जाएगा, इस पर संदेह के बाद ल उमड-घुमड़ रहे हैं।
सुप्रीमकोर्ट का यह आदेश तम्बाखू कंपनियाँ मानने वाली नहीं हैं। ये अच्छी तरह से जानती हैं कि हमारे राजनैतिक आका ही ऐसा होने नहीं देंगे। दूसरी ओर सुप्रीमकोर्ट ने सरकार को स्पष्ट रूप से कह दिया है कि सरकार अब इस दिशा में सक्रिय हो जाए और पहली जून से सिगरेट-तम्बाखू के पैकेट पर डरावने चित्रों के साथ यह भी लिखा जाए कि तम्बाखू से कैंसर होता है। सरकार तो यह कहने से भी नही अघाती कि हम तो इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं, पर हम पर तम्बाखू लॉबी का दबाव है। सुप्रीमकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग से पूछा है कि हमें यह बताया जाए कि हमारे आदेश का पालन करने की दिशा में आपने क्या कदम उठाए हैं? इसकी सारी जानकारी कोर्ट में दें।

तम्बाखू उद्योग के रसूखदार हमारे कामों में पहाड़ जैसे अवरोध उत्पन्न करते हैं, यह बताते हुए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अपना नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि वालंटरी हेल्थ ऐसोसिएशन ऑफ इंडिया नामक एनजीओ चलाने वाले बिनोय मैथ्यू आरटीआई के तहत इस आशय की जानकारी माँगी। तब केंद्र सरकार ने स्वीकार किया कि तम्बाखू लॉबी हम पर दबाव डालती है। यह सच है। टोबेको इंस्टीटच्यूट ऑफ इंडिया, जाफरानी, जर्दा, पान मसाला एसोसिएशन आफ इंडिया और बीड़ी मर्चेट एसोसिएशन इस मामले पर सरकार पर लगातार दबाव बनाए हुए हैं। पिछले वर्ष 9 नवम्बर को स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने संसद में कहा था कि हम तम्बाखू और सिगरेट के पैकेट पर गंभीर चेतावनी प्रकाशित करने के लिए तैयार हैं, किंतु ऐसे विज्ञापन पहले भी प्रकाशित हुए हैं, पर इसका असर नहीं होता। मैथ्यू तो साफ-साफ कहते हैं कि नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति स्वास्थ्य विभाग ही गंभीर नहीं है।, तो फिर आम आदमी कैसे गंभीर रह सकता है? स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता फैलाने में यह विभाग पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ है।
विश्व के कई देशों में सिगरेट और तम्बाखू के पैकेट्स पर इस तरह की गंभीर चेतावनी प्रकाशित करते हुए डरावने चित्र प्रकाशित किए हैं, इसका असर भी हुआ है। इसकी बिक्री भी प्रभावित हुई है। हमारा कट्टर दुश्मन पाकिस्तान भी इस दिशा में सचेत है। वह भले ही तम्बाखू का उत्पादन हमसे अधिक करता हो, पर वहाँ भी सिगरेट-तम्बाखू के पैकेट्स पर डरावने चित्र और गंभीरत चेतावनी प्रकाशित की जाती है, इससे वहाँ के लोगों ने इसका उपयोग कम कर दिया है। यदि आँकड़ों पर ध्यान दिया जाए, तो यह तय है कि आगामी 9 वर्षो के अंदर ही तम्बाखू के सेवन से हमारे देश के 13 प्रतिशत लोग अकाल मौत के शिकार होंगे। 38.4 मिलियन लोग बीड़ी से, 13.2 लोग सिगरेट से होने वाले रोगों से मौत का शिकार होंगे। सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर प्रतिबंध तो लगा दिया है, पर वह कितना अमल में लाया जा रहा है, इसे सभी जानते हैं। आज भी शालाओं, कॉलेजों के आसपास इस तरह की प्रतिबंधित चीजों की खुलेआम बिक्री हो रही है। सरकार कुछ कर ही नहीं पा रही है।
डॉ. महेश परिमल

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