मंगलवार, 22 मार्च 2011

कोई काम न आई सुप्रीमकोर्ट की लताड़: हसन अली जमानत पर रिहा

डॉ. महेश परिमल
आखिर देश के कानून को धता बताते हुए हसन अली खान जमानत पर रिहा हो ही गया। यह हमारी लचर कानून व्यवस्था का इस सदी का सबसे बड़ा उदाहरण है। सभी जानते हैं कि हसन अली एक अपराधी है, उसने अपराध किया है, लेकिन हम हैं कि उसके खिलाफ सुबूत इकट्ठा नहीं कर पाते। यह सच है कि संरक्षण के बिना कोई भी अपराध पनप नहीं सकता है। जितना बड़ा संरक्षण, उतना बड़ा अपराध। हसन अली के सर पर निश्चित रूप से किसी बड़ी राजनीतिक हस्ती का हाथ है, इसलिए वह कानून से भी खेल जाने में देर नहीं करता। अभी तक इस देश में जितने भी घोटाले हुए हैं, सभी में राजनीतिक संरक्षण प्राप्तर रहा है। बिना इसके कोई भी असंवैधानिक काम हो ही नहीं सकता। राजनीति ने देश की जड़ों को खोखला कर दिया है। इसलिए हसन अली जैसे लोगों के सरमायादार कभी कानून के हाथ नहीं आएँगे, यह तय है। पर आखिर जनता कब तक ऐसा होते हुए देख पाएगी? कभी तो आक्रोश का ज्वालामुखी फटेगा? तब इन राजनीतिज्ञों को कौन सँभालेगा? कभी सोचा है इन्होंने? सुप्रीमकोर्ट बार-बार लताड़ रही है, पर हमारे देश के कर्णाधारों के कानों में जूँ तक नहीं रेंग रही है। कितनी मोटी खाल है? सब कुछ जानते हुए भी ये अनजान हैं। देश की इज्जत खाक में मिल रही है। लोग देश को लूटने मे किसी भी तरह से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे अपराधियों के खिलाफ जो कुछ करना चाहिए, उसे होने में काफी वक्त लग जाता है। तब तक अपराधी अपने खिलाफ आने वाले सभी सुबूतों को खत्म करवा देता है। एक तरह से काम में देरी का आशय यही हुआ कि अपराधी को पूरा मौका दिया जाए, अपने खिलाफ तमाम सुबूतों को खत्म करने का। फिर कानून का सहारा देकर उसे बेदाग बरी करवा देना। शायद अब यही हो गया है कानून के नाम पर अपना स्वार्थ सिद्ध करने का एक जरिया।
एक आदमी लगातार अपराध करता रहे। उसके खिलाफ अपराध विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज होता भी रहे। इसके बाद भी वह बरसों तक आजाद घूमता रहे। ऐसा केवल हमारे देश में ही हो सकता है। जी हाँ हसन अली खान के मामले में तो यही कहा जा सकता है। स्वतंत्र भारत में ऐसा मामला अभी तक नहीं आया। सरकार कितनी भी कोशिश कर ले, यह तय है कि एक दिन हसन अली कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए विदेश भाग जाएगा। फिर उसे वापस लाने की सारी कोशिशें नाकाम हो जाएँगी। विदेश भी वह हमारे राजनीतिक आकाओं के संरक्षण में ही भागेगा। क्योकि उसका भारत में रहना ही कई चेहरों के बेनकाब होने का सबब बन सकता है। ये वे सफेदपोश चेहरे हैं कि जो हमारे लिए जाने-पहचाने हैं लेकिन अपराध की दुनिया के सरगना हैं। वे ऐसे एक नहीं अनेक हसन अली जेसे लोगों को पालते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं।
आइए जानें, हसन अली का इतिहास। हसन अली हैदराबाद में तैनात रहे एक एक्साइज अफसर का बेटा है। हसन ने अपने शुरुआती दिनों में पुरानी चीजें बेचने सहित कई तरह के धंधे किए। हसन अली दावा करता है कि वह हैदराबाद के निजाम के खानदान से ताल्लुक रखता है। घुड़दौड़ के कारोबार की दुनिया से वह 1990 की शुरुआत में हैदराबाद में रहने के दौरान जुड़ा। बाद में इसी कारोबार से जुड़े रहते हुए उसने मुंबई, पुणो और अन्य शहरों की ओर रुख किया। वह रहीमा से शादी करने के बाद पुणो जाकर बस गया। देश के किसी भी कोने में कहीं भी होने वाली घुड़दौड़ में अक्सर दोनों साथ नजर आते थे। बताया जाता है कि उसने अपनी पहली पत्नी को तलाक दे दिया है, जिसके साथ वह हैदराबाद में रहता था।
5 साल पहले पड़ा था छापा
हसन अली का नाम पहली बार सुर्खियों में पांच साल पहले तब आया जब आयकर विभाग ने पुणो में कोरेगांव पार्क स्थित उसके घर पर छापा मारा। गुप्तचर एजेंसियाँ हसन अली पर एक अर्से से नजर गड़ाए बैठी थीं। एक टेलीफोन वार्ता गुप्तचर एजंसियों ने टेप की थी, जिसमें हसन अली यूनियन बैंक आफ स्विट्जरलैंड के अपने पोर्टफोलियो मैनेजर से बात कर रहा था। उस पोर्टफोलियो मैनेजर से जितनी बड़ी रकम की ट्रांसफर की बात सुनी गई, उससे टेलीफोन सुनने वाले चकरा गए। टेलीफोन वार्ता को गुप्तचर एजेंसियों की मानीटरिंग एजेंसी को सौंपा गया। अधिकारियों की समझ में नहीं आ रहा था कि हसन अली पर हाथ डाला कैसे जाए? निर्णय किया गया कि आयकर विभाग हसन अली के घर छापा मारेगा। आयकर अधिकारी जब हसन अली के घर पर छापा मारने पहुंचे तो एक मध्यमवर्गीय परिवार के मकान में 8.04 बिलियन डॉलर (करीब 38 हजार करोड़ रुपए) यूनियन बैंक ऑफ स्विट्जरलैंड (यूबीएस बैंक) में जमा होने के दस्तावेज मिले। आयकर विभाग के इस छापे के बाद पहली बार हसन अली का नाम सुर्खियों में आया। इसके बाद विदेशी धन के स्रोतों की जांच की अभ्यस्त एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय ने जांच शुरू की, लेकिन जल्द ही उन्हें अहसास हो गया कि वे हसन अली की ऐसी अंधी गली में प्रवेश कर गए हैं जिसका कोई अंत नहीं है। एक सीमा से आगे जाने के उनके सारे रास्ते बंद नजर आने लगे, क्योंकि हसन अली के बड़े-बड़े नेताओं से संबंध हैं। आयकर विभाग भी इस जांच को न तो जारी रख पा रहा था और न ही बंद कर पा रहा था। आयकर नियमावली ऐसी है कि छापे के दौरान आयकर विभाग जब कागजात जब्त करता है, तो वह तब तक फाइल बंद नहीं कर सकता जब तक कि संबंधित व्यक्ति खुद यह साबित न कर दे कि उसके यहां मिले कागज अर्थहीन हैं। अगर संबंधित व्यक्ति यह साबित नहीं सकता है तो उसके खिलाफ आयकर विभाग कार्रवाई करने के लिए बाध्य होता है। इसलिए आयकर विभाग ने हसन अली के पास से बरामद दस्तावेज के आधार पर उसके खिलाफ करीब 40 हजार करोड़ रुपए का कर बकाया होने का नोटिस जारी किया।
हसन अली के खिलाफ जांच तो 2007 से ही चल रही है, लेकिन इस मामले में तेजी पिछले सप्ताह से आई है, जब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई। दूसरी तरफ, हसन अली के लिए 14 दिन की रिमांड मांग रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को बुधवार को अदालत की कड़ी फटकार सुननी पड़ी। ईडी ने सोमवार को हसन अली को उसके पुणो स्थित घर से हिरासत में लिया। इसके बाद उसी रात मुंबई में पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया था, तब से अब तक उसे दो बार जज तहलियानी के सामने पेश किया जा चुका है। तहलियानी ने बुधवार को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग (अवैध धन को वैध बनाने) की धारा-44 के तहत मामले की सुनवाई शुरू की तो ईडी की वकील नीति पुंडे अपने तकोर्ं से अदालत को सहमत नहीं कर पाईं। इस पर तहलियानी ने उन्हें फटकारते हुए कहा कि आप कोई भी मामला बनाने में सक्षम नहीं हैं और चाहते हैं कि मैं आपको सुनूं। आप आरोपी की क्यों रिमांड चाहते हैं। आप अली के खिलाफ एक आरोप पुष्ट करें, मैं रिमांड दे दूंगा।
क्या हैं ईडी के पास सबूत
प्रवर्तन निदेशालय ने जनवरी 2007 में दायर केस इंफॉर्मेशन रिपोर्ट दी। इसमें आयकर विभाग, मुंबई के अतिरिक्त निदेशक से मिली रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि हसन अली, रीमा अली, फैसल अब्बास की ओर से आयकर रिटर्न जमा नहीं किया गया है, जबकि वे 8 अरब डॉलर से अधिक के लेन-देन में शामिल हैं। ईडी के पास यूबीएस, ज्यूरिख की ओर से 8 दिसंबर 2006 को हसन अली को भेजा गया पत्र है जिसमें लिखा था कि यह रकम उनके यहां जमा है और उन्हें 6 अरब डॉलर निकालने की इजाजत है। यूबीएस, ज्यूरिख के इसी खाते से पता चलता है कि चार महीने में इस खाते में जमा रकम 1.38 अरब डॉलर से अधिक और बढ़ गई। ईडी को इस बात की भी जानकारी है कि कई लाख रुपए के करीब 20 घोड़े, करोड़ों की कारें, जिनमें मर्सिडीज बेंज, एक पोर्श, हुंडई सोनाटा, ओपल एस्ट्रा, एक स्कोडा कार शामिल हैं नगद भुगतान कर हसन ने खरीदीं थीं। आयकर विभाग ने उनके यहां से भारी मात्रा में नगद और करोड़ों रु. के जेवर बरामद किए। हसन अली खान के लेन-देन भारतीय बैंकिंग कानून का गंभीर उल्लंघन हैं। सरकारी एजेंसियों के अनुसार हसन के कारोबारी कामकाज से साफ है कि उसकी मंशा काली कमाई को विदेश में जमा करने की थी। आतंकवादी गतिविधियों और इस अवैध रकम के बीच मिलीभगत की गहरी जांच की बात ईडी ने की थी। प्रवर्तन निदेशालय के पास हसन के खिलाफ इतनी जानकारी होने के बाद भी शुक्रवार को उसे जमानत मिल ही गई। निश्चित रूप से ईडी का दावा खोखला था। उसने शायद जान बूझकर हसन के खिलाफ ऐसे सुबूत ही तैयार नहीं किए, जिससे वह कानून के दायरे में आए।
अपनी काली करतूतों के कारण ही हसन अली को हैदराबाद छोड़ना पड़ा था। 2007 के मार्च महीने में हैदराबाद के कमिश्नर बलविंदर सिंह ने एक पत्र वार्ता में यह घोषणा की थी कि हसन अली के खिलाफ बैंक से धोखाधड़ी करने के दो मामले, ठगी के चार मामले और एक चिकित्सक पर तेजाब से हमला करने के केस पेंडिंग हैं। 1990 में वह स्टेट बैंक की चारमीनार शाखा के मैनेजर ने थाने में यह रिपोर्ट लिखाई थी कि हसन अली ने उनकी बैंक से गलत तरीके से 26 लाख रुपए निकाल लिए हैं। हसन अली ने यह राशि तीन बार में अपने खाते से निकाली थी। उनके सामने ही हसन अली ने जो चेक जमा किए थे, वे बाउंस हो गए थे। हसन अली ने ग्रिनलेज बैंक के साथ भी इसी तरह की ठगाई की थी। भारत के चार नागरिकों ने हसन अली से सम्पर्क किया था। हसन अली ने इन्हें रुपए को डॉलर के मनिआर्डर देने का वचन दिया था। जिसे वह पूरा नहीं कर पाया। हसन अली ने अपने पास से 60 लाख रुपए इकट्ठा कर उसके बदले में डॉलर के नकली डिमांड ड्राफ्ट दिए थे। हैदराबाद पुलिस हसन अली खान की धरपकड़ 1991और 1992 में इन मामलों में की थी। 1991 में ही वह टोरंटो भाग गया था, तब हैदराबाद पुलिस ने इंटरपोल की मदद से उसकी धरपकड़ की थी।
हसन अली खान का संबंध शस्त्रों के अंतरराष्ट्रीय सौदागर अदनान खाशोगी के साथ भी रहे हैं। खाशोगी अपने न्यूयार्क की चेज मेनहट्टन बैंक खाते से 30 करोड़ डॉलर यानी 1400 करोड़ रुपए हसन अली के ज्यूरिख की यूबीएस बैंक के खाते में ट्रांसफर किए थे। बाद में स्वीस बैंक ने हसन अली की इस राशि को फ्रीज कर दिया था। इसके बाद हसन अली के यूबीएस बैंक के खाते में 2007 में आठ अरब डॉलर मिले। आयकर अधिकारियों ने जब हसन अली के पुणो स्थित घर में छापा मारा था तक एक लेपटाप में इस खाते की विस्तार से जानकारी मिल गई थी।केंद्र सरकार के एंक्रोर्समेंट विभाग ने इस मामले की जाँच शुरू की थी। इसके बाद भी हसन अली के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। एंक्रोर्समेंट विभाग के जिन अधिकारियों ने यह जाँच शुरू की थी, उन तबादला कर दिया गया। इससे जाँच का काम ढीला पड़ गया। इससे यह स्पष्ट है कि हसन अली के पास जो धन है, वह उसका नहीं है। वह धन निश्चित रूप से किसी राजनीतिक या फिर किसी उद्योगपति का है। ये लोग अपने दो नम्बर की कमाई को हवाला के माध्यम से विदेश भेजना चाह रहे होंगे। इसके लिए हसन अली को मोहरा बनाया गया होगा। यही लोग है, जो अभी तक उसे बचा रहे हैं। जैसे ही हसन अली का संबंध खाशोगी के साथ होने की जानकारी बाहर आई, वैसे ही एंक्रोर्समेंट विभाग ने उसके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई करने को टाल दिया था। खाशोगी के संबंध चंद्रास्वामी के साथ भी थे। इन दोनों को मिलवाने में हमारे देश के राजनेताओं ने ही विशेष भूमिका निभाई थी। 2008 में हसन अली को एक नोटिस भेजा गया था, जिसमें उससे 50 हजार करोड़ रुपए आयकर जमा करने का आदेश दिया गया था। आयकर विभाग की यह कार्रवाई स्वीस बैंक में जमा आठ अरब डॉलर की राशि के संदर्भ में की गई थी।
हसन अली के बारे में यह भी जानकारी मिली है कि उसने कई साल पहले कोलकाता के काशीनाथ टापोरिया के साथ भागीदारी में धंधा किया था, इस जानकारी के आधार पर जब काशीनाथ के कोलकाता स्थित घर और कार्यालय में छापा मारा गया, तब टापोरिया ने हसन अली के साथ किसी भी तरह का संबंध होने से इंकार किया था। दिल्ली के होटल मालिक फिलीप आनंद राज के साथ भी हसन अली के साथ संबंधों की जानकारी मिली है। इस पर भी पूछताछ जारी है। एक आदमी के पास आठ अरब डॉलर की संपत्ति हो और इसकी जानकारी देश की गुप्तचर संस्थाओं को न हो, यह संभव नहीं है। हसन अली से सघन पूछताछ की जाए, तो कई चौंकाने वाले रहस्य सामने आ सकते हैं। पर क्या यह हमारे देश में संभव है? सरकार तो शायद यह नहीं चाहती कि हसन अली के तमाम संबंध बाहर आएँ। कई मामलों में सरकार की सुस्ती की गंध सुप्रीमकोर्ट को आ गई थी, इसीलिए उसने बार-बार लताड़ा और हसन अली के खिलाफ पुख्ता सुबूत तैयार करने को कहा, पर प्रवर्तन निदेशालय ऐसा नहीं कर पाया, अंतत: हसन अली को जमानत मिल ही गई। यह इस देश का दुर्भाग्य है कि एक साधारण चोर पुलिस की पिटाई से मारा जाता है और राजनीति संरक्षण प्राप्त कथित घोटालेबाज, तस्कर और घोषित अपराधी जमानत पर रिहा भी हो जाता है।
डॉ. महेश परिमल

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