शनिवार, 12 नवंबर 2011
सरकार की ठंड उड़ा देगा शीतकालीन सत्र
डॉ. महेश परिमल
ममता की धमकी, केरल हाईकोर्ट की नाराजगी, अन्ना की हुंकार, सहयोगी दलों के सांसदों की बेरुखी और मौके की ताक पर बैठे विपक्ष की बेकरारी यह संकेत करती है कि संसद का शीतकालीन सत्र सरकार की ठंड को उड़ा देगा। इस सत्र के दौरान अन्ना हजारे की भी अग्निपरीक्षा हो जाएगी। अभी तो सरकार चारों तरफ से घिरी हुई है। एक तरफ वह अपने ही साथियों की नाराजगी झेल रही है, दूसरी तरफ उसका पूरा प्रयास है कि अन्ना के साथियों में बिखराब आ जाए। सरकार जितना अधिक प्रयास करती है उलझनों से बाहर निकलने की, वह उसमें उतनी ही उलझती जा रही है। इसके बाद भी प्रणब मुखर्जी जैसे बड़े नेता यह कहने लगे कि महँगाई अभी और बढ़ेगी, तो आम आदमी का हौसला पस्त होने लगता है। यह अवश्य है कि उनके बयानों से व्यापारियों के पौ-बारह हो जाते हैं। वे जमाखोरी और कालाबाजारी में लिप्त हो जाते हैं।
इšार अन्ना हजारे की हुंकार के बाद उनके समर्थकों पर प्रहार तेज हो गए हैं। किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल ने धन वापस करके एक मिसाल तो पेश की ही है। फिर भी उन पर भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लगी ही है। पूरे देश की नजरें इस समय शीतकालीन सत्र पर है। इसमें यूपीए सरकार के अलावा टीम अन्ना की भी अग्निपरीक्षा होनी है। यह सच है कि कोई साल भर लगातार बोलता ही रहे, तो लोग उससे आजिज आ जाते हैं। पर लम्बी खामोशी के बाद यदि कुछ कहा जाता, तो उसका महत्व होता है। अन्ना हजारे ने 19 दिनों का मौन रखकर जब कुछ कहा, तो वह कांग्रेस के खिलाफ ही गया। इसका भी महत्व है। अब उन्होंने कहा है कि यदि जन लोकपाल बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पारित नहीं किया गया, तो वे तीसरी बार अनशन करेंगे। उšार सरकार की पूरी कोशिश है कि सत्र के पहले अन्ना की टीम को किसी भी तरह से कमजोर कर दिया जाए। दिग्विजय सिंह की तीखी कटह्वार अभी भी चल ही रही है। अभी तक उस पर कोई अंकुश नहीं है। वे कांग्रेस प्रवक्ता से अधिक बोल रहे हैं। उन्होंने संघ परिवार पर हमला करते हुए यह भी कह दिया है कि संघ अपने तीसरे प्लान के अनुसार श्रीश्री रविशंकर को भी मैदान में उतारना चाहता है। अन्ना पर संघ परिवार का वरदहस्त है, इससे तो अन्ना के साथी भी इंकार नहीं कर रह हैं। वे तो यहाँ तक कहते हैं कि हमें देश की कोई भी संस्था अपना समर्थन दे सकती है। इसमें गलत क्या है? दूसरी ओर अन्ना के साथी समय-समय पर संघ परिवार पर प्रहार करने से भी नहीं चूकते। अन्ना टीम और संघ परिवार के बीच कोई गुप्त समझौता हुआ है, इसका सबूत यही है कि भाजपाशासित उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी निशंक सरकार को पदभ्रष्ट करने के बाद खंडूरी सरकार अन्ना हजारे के मन मुताबिम लोकायुक्त बिल विधानसभा से पारित किया। मौनव्रत तोड़ने के बाद अन्ना ने उत्तराखंड सरकार की खूब प्रशंसा की और वहाँ जाने की भी इच्छा जताई। उत्तराखुड में जो लोकायुक्त बिल पारित किया गया, वह अन्ना हजारे के जन लोकपाल बिल के कार्बन कॉपी की तरह ही है। इस बिल में विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री, सरकारी अधिकारी एवं न्यायाधीशों को भी दायरे में लाया गया है। उšार संसद में सरकार जो बिल लाने वाली है, वह अन्ना के मुताबिक न होने के कारण अन्ना ने अभी से ही अपनी भाषा को मुखर बना दिया है। सच तो यह है कि अब यदि अन्ना उसवास करते भी हैं, तो आमरण अनशन नहीं करेंगे, यह तय है। इस बार उन्होंने जो धमकी दी है, उसमें कहा गया है कि यदि शीतकालीन सत्र में जन लोकपाल बिल पास नहीं किया गया, तो वे पहले तीन दिनों तक प्रतीक उसवास रखेंगे, उसके बाद जिन पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहाँ जाकर वे कांग्रेस के खिलाफ चुनाव प्रचार करेंगे। यदि अन्ना अपनी पूरी ताकत से उक्त पांच राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करते हैं, तो यह रामलीला मैदान से भी अधिक हानिकारक साबित होगा। जिन पाँच राज्यों में चुनाव होने हैं, उसमें से चार तो ऐसे राज्य हैं, जहाँ कांग्रेस की सरकार ही नहीं है। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार है, इस राज्य में दूसरे स्थान पर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी है,भाजपा तीसरे और कांग्रेस चौथे स्थान पर है। कांग्रेस महामंत्री राहुल गांधी इस राज्य में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। यदि यहाँ के मतदाता अन्ना की सुनते हैं, तो कांग्रेस की रही सही आशाओं पर पानी फिर जाएगा, इसका पूरा फायदा भाजपा और मायावती को मिलेगा। इसके बाद बच जाते हैं, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर। इसमें से उत्तराखंड में तो भाजपा की सरकार है ही। पंजाब में अकाली दल के साथ भाजपा का समझौता है। उत्तराखंड में भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते वहाँ स्थिति डगमगा गई थी, पर समय रहते वहाँ मुख्यमंत्री बदलकर स्थिति को काफी हद तक अंकुश में लाया गया है। लोकायुक्त बिल पारित करके सरकार ने एक अच्छा कदम उठाया है, इसका पूरा लाभ चुनाव में मिलेगा, यह तय है। इन हालात में यदि अन्ना कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ प्रचार करते हैं, तो इसका पूरा लाभ भाजपा को ही मिलेगा। गोवा में कांग्रेसी मोर्चे की सरकार है। यहाँ के मुख्यमंत्री दिगंबर कामथ भी भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं। उनके मंत्रिमंडल पर 25 जार करोड़ रुपए का खनिज घोटाला का आरोप है। गोवा के बाजू में ही स्थित कर्नाटक में जो खनिज घोटाला हुआ, उसमें मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा को अपने पद से हाथ धोना पड़ा, आज वे जेल की हवा खा रहे हैं। यहाँ अपनी छवि साफ करके भाजपा गोवा में कब्जा करना चाहती है। यहाँ भी यदि लोग अन्ना की सुनते हैं, तो इसका पूरा लाभ भाजपा को ही मिलेगा, इसमें कोई शक नहीं। ऐसे में यदि गोवा में भी भाजपा की सरकार आ जाए, तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। अंत में बचता है पूर्वाेत्तर राज्य मणिपुर। यहां कांग्रेस की सरकार है, जो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुूई है। यहाँ की सरकार में सीपीआई और आरजेडी की भागीदारी है। हाल ही में आतंकवादियों द्वारा मणिपुर का हाईवे जाम कर देने से यह राज्य गंभीर आर्थिक स्थिति से जूझ रहा है। केंद्र सरकार बरसों से इस राज्य की उपेक्षा कर रही है। पर अब चुनाव करीब आते ही वह सक्रिय हो गई है। कांग्रेसी नेताओं ने मणिपुर की ¨चंता करनी शुरू कर दी है। यहाँ भाजपा सीमित है, इसलिए अन्ना की अपील का कोई असर होगा, कहा नहीं जा सकता।
भ्रष्टाचार के विरोध में टीम अन्ना की लड़ाई में जो पागलपन दिखाई दे रहा है,उसमें भी एक तथ्य है। इस तथ्य के अनुसार भाजपा और संघ परिवार का टीम अन्ना से क्या रिश्ता है, यह रहस्य के आवरण में है। टीम अन्ना के समर्थक यह मानते हैं कि अन्ना हजारे और उनके साथी संघ परिवार और भाजपा के नेटवर्क का चालाकीपूर्ण उपयोग करके अपना मिशन चला रहे हैं। दूसरी ओर संघ परिवार के समर्थक यह मानते हैं कि भाजपा और संघ परिवार ने टीम अन्ना का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है और वे संघ परिवार के एजेंडा के अनुसार ही चल रहे हैं। राजघाट में अन्ना हजारे ने अपने भाषण में कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में भाजपा यदि ग्रेजुएट है, तो कांग्रेस पीएचडी है। टीम अन्ना, कांग्रेस और भाजपा के बीच कितना प्यार और कितनी नफरत है, यह तो शीतकालीन सत्र में सामने आ ही जाएगा। बहरहाल देखना यह है कि कांग्रेस अन्ना के खिलाफ क्या कर सकती है? वैसे सरकार तो खुद ही उलझी हुई है। ममता का अड़ियलपन एक बार फिर सामने आ गया है। सहयोगी दल भी अपने तेवर दिखा रहा है। चुनाव आते ही समीकरण बदलने लगे हैं, सभी को जनता के सामने जवाब देने जाना है। कांग्रेस ने उन्हें कहीं का नहीं रखा। ममता ने तो अपनी ताकत दिखा दी, अन्य दल भी अपना पूरा जोर लगाएँगे ही। इन हालात में संसद का शीतकालीन सत्र देश को एक नए मोड़ पर ला देगा, इसकी पूरी संभावना है।
डॉ. महेश परिमल
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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