डॉ महेश परिमल
चीन में व्यापार करने जाने वाले भारतीय व्यापारियों पर पिछले दिनों जिस तरह से व्यवहार किया गया, उससे यही साबित होता है कि वहाँ भारतीय व्यापारी असुरक्षित हैं। आखिर क्या कारण है कि इतनी दूर जाकर भी माल लाने पर व्यापारियों को फायदा होता है? जिल्लत सहकर भी व्यापारी चीन से माल लाते हैं और भारी मुनाफा कमाते हैं। भारतीय व्यापारी यदि चीन जाकर वहाँ से माल के बजाए उनकी तकनीक सीखकर आएँ, तो फिर क्या आवश्यकता है, माल लाने की? आखिर वह कौन से कारण है कि चीन के व्यापारी को जो माल 9 लाख रुपए में पड़ता है,उसके लिए भारतीय व्यापारी को 60 लाख रुपए चुकाने होते हैं? इसकी वजह यही है कि वहाँ की सरकार लघु एवं गृह उद्योगों को खूब प्रोत्साहन देती है। यही कारण है कि वहाँ का माल भारत लाकर भी भारतीयों को सस्ता पड़ता है। यदि हमारे देश की सरकार भी चीन की तरह करे, तो चीन से माल लाने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।दीपावली पर हमने जो इलेक्ट्रानिक तोरण का इस्तेमाल किया, वह चीन से आयात किया हुआ था। होली में बच्चे जिन पिचकारियों का इस्तेमाल किया, वह चीन से आयातित था। हमारे बच्चे जिन खिलौनों से खेलते हैं, वह चीन का होता है।पूरे देश में चीन से हर साल अरबों रुपए का माल आता है। दिल्ली-मुम्बई में चाइना मेड माल के कई होलसेल बाजार हैं। हाल ही भारतीय व्यापारियों से चीन के शेझियांग प्रांत के यिवु शहर में जिस तरह का व्यवहार किया गया है, उससे भारतीय व्यापारियों में ¨चता व्याप्त है। भारतीय व्यापारी यिवु से इसलिए माल लाते हैं, क्योंकि यहाँ की कंपनियाँ डिस्काउंट देने में विख्यात हैं। यहाँ पर दुनिया भर से व्यापारी माल लेने आते हैं। भारत से करीब सौ व्यापारी नियमित रूप से यिवु जाते हैं और वहाँ से खरीदी करते हैं। भारत के कई व्यापारी तो पश्चिम एशिया के अरब देशों के एजेंट के रूप मंे काम करते हैं। अरब देशों में अराजकता की स्थिति के कारण वहाँ से ग्राहकी कम हो गई है। कई कंपनियों का दीवाला ही निकल गया है। इस कारण चीन के व्यापारी भारत के एजेंटों से खफा हो गए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि यिवु के व्यापारियों के रोष के आगे वहाँ का प्रशासन तंत्र भी लाचार हो जाता है। वह भी चीनी व्यापारियों का ही पक्ष लेता है। अदालतें भी असहाय नजर आती हैं। इसलिए भारतीय दूतावास से यह आदेश जारी हुआ है कि भारतीय व्यापारी यिवु के व्यापारियों से माल न खरीदें। यहाँ मुश्किल यह है कि भातर में चीन से जो माल आता है, उसका 75 प्रतिशत तो केवल यिवु से ही आता है। यदि भारतीय यिवु से माल खरीदना बंद कर दें, तो वहाँ के व्यापारियों और उद्योपगतियों के सामने भूखे रहने की स्थिति आ सकती है। चीन में भारतीय व्यापारियों को प्रताड़ित करने की यह पहली घटना नहीं है। मुंबई के एक व्यापारी को चीनी भाषा न आने के कारण उसने यिवु के एक दुभाषिये को एजेंट के रूप में नियुक्त किया। इस एजेंट भारतीय व्यापारी के नाम पर खरीदी की और माल लेकर भाग गया। उक्त भारतीय व्यापारी जब यिवु गया, तो उसके साथ मारपीट की गई। भाषा के कारण भारतीय व्यापारियों को वहाँ एजेंट रखना अनिवार्य होता है। इन एजेंटों को दोनों तरफ से कमिशन मिलता है। ये एजेंट यदि किसी प्रकार का घालमेल करें, तो उसकी सजा भारतीय व्यापारियों को भोगनी होती है।जब से चीन से सस्ता माल आने लगा है, तब से भारतीय उद्योग को काफी नुकसान होने लगा है। यहाँ के कारीगर बेकार होने लगे हैं। चीन के लघु उद्योग तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। भारतीय कारीगरों की बेकारी ने चीनी उद्योग को मालामाल कर दिया है। चीन में जिस माल की कीमत 9 लाख रुपए है, उसके लिए भारतीयों को 60 लाख रुपए चुकाने होते हैं। इसलिए भारत के साथ व्यापार करने में चीन को भारी मुनाफा होता है। भारत को जितनी गरज है, उससे अधिक गरज चीन की है। इस बात को अभी तक किसी ने समझने की कोशिश नहीं की है। यह भी सच है कि चीनी माल से अब भारतीयों का मोहभंग होने लगा है। एक तो उसकी गुणवत्ता निम्न दर्जे की होती है। उस पर इस्तेमाल किए गए रंगों से स्वास्थ्य को हानि होती है। दिल्ली के व्यापारियों ने एकजुट होकर कहा है कि यदि भारतीय व्यापारियों के साथ चीन में इस तरह से र्दुव्यवहार होता रहेगा, तो वे चीनी माल का बहिष्कार कर भारतीय माल ही बेचेंगे। वैसे दिल्ली के व्यापारियों का यह भी कहना है कि वे काफी बरसों से चीन के साथ व्यापार कर रहे हैं, उन्हें अब तक किसी प्रकार का खराब अनुभव नहीं हुआ है। उनका कहना है कि यिवु शहर में भारतीय व्यापारियों की काफी इज्जत की जाती है। पर जो व्यापारी उधारी करते हैं और समय पर नहीं चुकाते, तो उनका व्यवहार बदल जाता है। उसके बाद तो वे कानून हाथ में लेने से नहीं हिचकते। इन दिनों यिवु के व्यापारी भारतीय व्यापारियों से इसलिए नाराज चल रहे हैं, क्योंकि कई भारतीय माल लेकर गुम हो गए हैं। चीनी इस तरह की दगाबाजी सहन नहीं करते। इस दौरान यदि उन्हें कोई ईमानदार भारतीय व्यापारी भी मिल जाए, तो वे उसके साथ मारपीट करते हैं। भारतीय व्यापारी चीन से केवल माल लेकर आते हैं, वहाँ की तकनीक नहीं लाते। यदि वे वहाँ से तकनीक लाएँ और हमारे ही देश में सस्ता माल बनाएँ, तो भला चीनी माल क्यों खरीदा जाए? चीनी तकनीक के अलावा वहाँ की सरकार द्वारा लघु और गृह उद्योगों को प्रोत्साहन देने की नीति भी माल को सस्ता बनाती है। भारत ने वर्ल्ड ट्रेड आर्गनाइजेशन के जिन दस्तावेज पर हस्ताखर किए थे, उसके आधार पर आयात से ड्यटी हटा दी गई थी। इसी कारण भारत के बाजारों में चीन के सस्ते और गुणवत्ता में हलके माल आने शुरू हो गए। देश का मध्यम वर्ग आज भी चीन के बने उत्पादों का इस्तेमाल करता है। किंतु उच्च वर्ग ने चीन के उत्पादों से मुँह फेर लिया है। यह सोचने वाली बात है कि चीन से उत्पाद भारत आता है, इसके परिवहन खर्च के बाद भी देश में इतना सस्ता मिल रहा है। तो फिर भारत में ही बने उत्पाद इतने सस्ते क्यों नहीं हो सकते? इस सवाल का जवाब भारतीय उद्योगपतियों, व्यापारियों, ग्राहकों और सरकार को देना चाहिए।
डॉ. महेश परिमल
सोमवार, 16 जनवरी 2012
भारतीय चीन से तकनीक क्यों सीखना नहीं चाहते?
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अभिमत
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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