डॉ. महेश परिमल
यह एक अनोखी जिद थी कि डेढ़ साल के मासूम की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार उसके पिता ही करेंगे। अदिती की यह जिद सात समुंदर पार सीखचों के पीछे कैद मासूम के पिता सुनील जेम्स को रिहा कर सकती है, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। पर मां की ममता और पिता का प्यार ही था, जिस पर हावी थी संवेदनाएं। सुनील टोगो की जेल से रिहा हो गए, भारत आए और अपने मासूम को अंतिम बार देखा, और उसे चिर विदाई दी। इसे अदिती की संवेदनाओं की जीत कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। पूरी घटना पूरी तरह से भावनात्मक है। आफ्रिकी देश टोगो में सुनील जेम्स की गिरफ्तारी हुई। पति की रिहाई के लिए अदिती ने प्रधानमंत्री से भेंट की। पर कुछ नहीं हो पाया। ऐसे में बेटा विवान बीमार पड़ गया। कुछ दिन बाद दो दिसम्बर को उसकी असामयिक मौत हो गई। पत्नी अदिती ने जिद पकड़ ली, जब तक विवान के पिता नहीं आ जाते, मैं बच्चे का अंतिम संस्कार नहीं करुंगी। 17 दिनों तक विवान के शव को अस्पताल में रखा गया। आखिर में अदिती की संवेदनाओं ने वह कर दिखाया, जो असंभव था। भारत के प्रयासों से सुनील को टोंगो की जेल से मुक्ति मिली।
इंडियन मर्चेट नेवी के आइल टैंकर एमटी ओशन सेंचुरियन के कैप्टन सुनील जेम्स ने अप्रेल में नाइजीरिया जाने के लिए फ्लाइट पकड़ी, तब उसे कल्पना भी नहीं थी कि उनकी यह ट्रीप खतरनाक साबित होगी। नाइजीरिया पहुंचकर उन्हें शिश्प का कंट्रोल लेना था और शिप को आगे ले जाना था। नाइजीरिया से रवाना होते ही सुनील का शिप अभी कुछ ही दूर पहुंचा था कि कुछ ऐसा हो गया, जिसे फिल्मी ड्रामा कहा जा सकता है। वह तारीख थी 18 जुलाई 2013। एक स्पीड बोट ओशन सेंचुरियन शिप की तरफ आती दिखाई दी। स्पीड बोट में जो थे, वे कमांडो की पोशाक में थे। सभी के हाथ में ए के 47 मशीनगन थी। बोट पर मरिन फोर्स का झंडा था। सभी कमांडो आइल टैंकर ओशन सेंचुरियन में घुस आए। कैप्टन सुनील जेम्स और अन्य स्टाफ को लगा कि यह शायद रुटीन चेकअप होगा। पर बोट से आए लोगों ने सभी को निशाने पर ले लिया और आदेश दिया कि जो कुछ भी हो, वह उन्हें दे दिया जाए। तब पता चला कि ये मरीन कमांडो नहीं, बल्कि समुद्री डाकू हैं। ओशन सेंचुरियन का आइल टैंकर खाली था, इसलिए आइल लूटने की कोई बात ही नहीं थी। पर जब भी कोई शिप दूरस्थ क्षेत्रों की यात्रा पर होता है, तो नकद राशि तो होती ही है। अन्य कई सामान भी होते ही है। इसके बाद उन्होंने नकद राशि और जो उन्हें अच्छा लगा, लूटकर कुछ ही देर में वहां से चले गए। अब सुनील को समझ में आ गया कि वे सभी नाइजीरियन गेंग के सदस्य थे। समुद्री लूटपाट के लिए सोमालिया जितना ही नाइजीरिया भी कुख्यात है।
समुद्री परिवहन का यह नियम है कि जब समुद्र में कोई घटना या दुर्घटना होती है, तो जो सबसे करीब का देश है,वहां रिपोर्ट लिखाई जाती है। उस समय शिप टोगो देश से 45 नोटिकल मील दूर था। कैप्टन सुनील ने शिप टोगो की तरफ घुमा दिया। शिप जब टोगो पहुंचा, तो वहां उन्होंने इस लूटपाट की रिपोर्ट लिखवाई। यहां एक दूसरी घटना ने जन्म लिया। टोगो प्रशासन ने उन्हें समुद्री डाकुओं की मदद करने के आरोप में दो अन्य साथियों सहित गिरफ्तार कर लिया। सभी को जेल भेज दिया गया। जेल में उन्हें अपराधियों के साथ रखा गया। बहुत मुश्किल से उन्हें फोन करने दिया गया। सुनील ने मलाड में स्थित अपने घर पर पत्नी अदिती को फोन पर बताया कि वे अपने दो साथियों समेत टोगो की जेल में बंद हैं। हमें गलत तरीके से जेल में बंद कर दिया गया है। तब से अदिती ने पति की रिहाई के प्रयास शुरू कर दिए। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह से भी मुलाकात की। पर टोगो सरकार से किसी तरह की बातचीत नहीं हो पाई। इस बीच 11 माह का विवान बीमार पड़ गया। उसे सप्टेसीमिया हो गया था। इलाज में कोई कमी नहीं रखी गई। आखिर 2 दिसम्बर को उसकी मौत हो गई। तब हारकर अदिती ने यह जिद पकड़ी कि जब तक विवान के पिता नहीं आते, तब तक विवान का अंतिम संस्कार नहीं होगा। कई लोगों ने इसे भावनात्मक ब्लेकमेल कहा, पर इस बार अदिती ने तय कर लिया था कि विवान का अंतिम संस्कार उसके पिता ही करेंगे। एक तरह से यह एक मां का अल्टीमेटम था, देश की सरकार के लिए। तब सरकार जागी। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने टोगो के विदेश मंत्री से बात की। सरकार ने भी टोगो के राष्ट्रपति ग्नेसिंग्बे से अनुरोध किा कि मानवता के नाते सुनील को रिहा कर दें। ताकि वे अपने बेटे का अंतिम संस्कार कर सकें। आखिर टोगो सरकार झुकी। 19 दिसम्बर को सुनील को टोगो की जेल से रिहा कर दिया।
सुनीलजेम्स की घटना से ऐसा कहा जा सकता है कि उसे केवल इसलिए कैद किया गया, ताकि शिप कंपनी से और अधिक राशि हड़पी जा सके। असली बात क्या है, यह तो किसी को भी नहीं मालूम। पर बात जब बेटे की मौत और अंतिम संस्कार की आती है, तो सुनील को माफ किया जा सकता है। आरोप तो अदिती पर भी लगे हैं कि उसने सरकार के साथ इमोशनली ब्लेकमेल किया है। पर इसे भी तो समझना चाहिए कि एक लाचार नारी इसके सिवाय और कर भी क्या सकती थी? मासूम बेटे की मौत और पति सात समुंदर पार एक देश की जेल में बंद है, तो वह लाचार क्या करे? जेम्स ने अपने बेटे का चेहरा अंतिम बार देख लिया, इसके पहली जब अंतिम बार उसे देखा था, तो वह हंसता-खेलता बच्च था। आज उनका बेटा विवान इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए रुखसत कर गया है। इसके लिए अदिती की संवेदनाओं के अलावा उनकी मेहनत भी है, जिन्होंने अदिती की सहायता की। साथ ही टोगो के मंत्रियों-अधिकारियों को भी नहीं भूलना चाहिए, भले ही वे अनपढ़ हों, गरीब हों, जंगली हो, पर उन्होंने सुनील को रिहा कर यह बता दिया कि उनका भी दिल है, जो धड़कता है।
वैसे कुछ आफ्रिकी देशों के बारे में यह कहा जाता है कि वहां कानून-व्यवस्था जैसी कोई चीज ही नहीं है। सरकार भी कई बार विवश हो जाती है। टोगो देश की प्रशंसा तो नहीं की जा सकती। घाना के करीब स्थित इस देश में गरीबी, बेकारी, और भुखमरी से त्रस्त है। लोग अशिक्षित हैं। 56785 वर्ग किलोमीटर में फैले इस देश की जनसंख्या हमारे देश के एक महानगर से भी कम है। गरीबी और भुखमरी के कारण यहां के निवासियों की औसत आयु भी कम है। पुरुषों की औसत 56 और महिलाओं की 59 वर्ष।
डॉ. महेश परिमल
यह एक अनोखी जिद थी कि डेढ़ साल के मासूम की मौत के बाद उसका अंतिम संस्कार उसके पिता ही करेंगे। अदिती की यह जिद सात समुंदर पार सीखचों के पीछे कैद मासूम के पिता सुनील जेम्स को रिहा कर सकती है, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था। पर मां की ममता और पिता का प्यार ही था, जिस पर हावी थी संवेदनाएं। सुनील टोगो की जेल से रिहा हो गए, भारत आए और अपने मासूम को अंतिम बार देखा, और उसे चिर विदाई दी। इसे अदिती की संवेदनाओं की जीत कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। पूरी घटना पूरी तरह से भावनात्मक है। आफ्रिकी देश टोगो में सुनील जेम्स की गिरफ्तारी हुई। पति की रिहाई के लिए अदिती ने प्रधानमंत्री से भेंट की। पर कुछ नहीं हो पाया। ऐसे में बेटा विवान बीमार पड़ गया। कुछ दिन बाद दो दिसम्बर को उसकी असामयिक मौत हो गई। पत्नी अदिती ने जिद पकड़ ली, जब तक विवान के पिता नहीं आ जाते, मैं बच्चे का अंतिम संस्कार नहीं करुंगी। 17 दिनों तक विवान के शव को अस्पताल में रखा गया। आखिर में अदिती की संवेदनाओं ने वह कर दिखाया, जो असंभव था। भारत के प्रयासों से सुनील को टोंगो की जेल से मुक्ति मिली।
इंडियन मर्चेट नेवी के आइल टैंकर एमटी ओशन सेंचुरियन के कैप्टन सुनील जेम्स ने अप्रेल में नाइजीरिया जाने के लिए फ्लाइट पकड़ी, तब उसे कल्पना भी नहीं थी कि उनकी यह ट्रीप खतरनाक साबित होगी। नाइजीरिया पहुंचकर उन्हें शिश्प का कंट्रोल लेना था और शिप को आगे ले जाना था। नाइजीरिया से रवाना होते ही सुनील का शिप अभी कुछ ही दूर पहुंचा था कि कुछ ऐसा हो गया, जिसे फिल्मी ड्रामा कहा जा सकता है। वह तारीख थी 18 जुलाई 2013। एक स्पीड बोट ओशन सेंचुरियन शिप की तरफ आती दिखाई दी। स्पीड बोट में जो थे, वे कमांडो की पोशाक में थे। सभी के हाथ में ए के 47 मशीनगन थी। बोट पर मरिन फोर्स का झंडा था। सभी कमांडो आइल टैंकर ओशन सेंचुरियन में घुस आए। कैप्टन सुनील जेम्स और अन्य स्टाफ को लगा कि यह शायद रुटीन चेकअप होगा। पर बोट से आए लोगों ने सभी को निशाने पर ले लिया और आदेश दिया कि जो कुछ भी हो, वह उन्हें दे दिया जाए। तब पता चला कि ये मरीन कमांडो नहीं, बल्कि समुद्री डाकू हैं। ओशन सेंचुरियन का आइल टैंकर खाली था, इसलिए आइल लूटने की कोई बात ही नहीं थी। पर जब भी कोई शिप दूरस्थ क्षेत्रों की यात्रा पर होता है, तो नकद राशि तो होती ही है। अन्य कई सामान भी होते ही है। इसके बाद उन्होंने नकद राशि और जो उन्हें अच्छा लगा, लूटकर कुछ ही देर में वहां से चले गए। अब सुनील को समझ में आ गया कि वे सभी नाइजीरियन गेंग के सदस्य थे। समुद्री लूटपाट के लिए सोमालिया जितना ही नाइजीरिया भी कुख्यात है।
समुद्री परिवहन का यह नियम है कि जब समुद्र में कोई घटना या दुर्घटना होती है, तो जो सबसे करीब का देश है,वहां रिपोर्ट लिखाई जाती है। उस समय शिप टोगो देश से 45 नोटिकल मील दूर था। कैप्टन सुनील ने शिप टोगो की तरफ घुमा दिया। शिप जब टोगो पहुंचा, तो वहां उन्होंने इस लूटपाट की रिपोर्ट लिखवाई। यहां एक दूसरी घटना ने जन्म लिया। टोगो प्रशासन ने उन्हें समुद्री डाकुओं की मदद करने के आरोप में दो अन्य साथियों सहित गिरफ्तार कर लिया। सभी को जेल भेज दिया गया। जेल में उन्हें अपराधियों के साथ रखा गया। बहुत मुश्किल से उन्हें फोन करने दिया गया। सुनील ने मलाड में स्थित अपने घर पर पत्नी अदिती को फोन पर बताया कि वे अपने दो साथियों समेत टोगो की जेल में बंद हैं। हमें गलत तरीके से जेल में बंद कर दिया गया है। तब से अदिती ने पति की रिहाई के प्रयास शुरू कर दिए। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह से भी मुलाकात की। पर टोगो सरकार से किसी तरह की बातचीत नहीं हो पाई। इस बीच 11 माह का विवान बीमार पड़ गया। उसे सप्टेसीमिया हो गया था। इलाज में कोई कमी नहीं रखी गई। आखिर 2 दिसम्बर को उसकी मौत हो गई। तब हारकर अदिती ने यह जिद पकड़ी कि जब तक विवान के पिता नहीं आते, तब तक विवान का अंतिम संस्कार नहीं होगा। कई लोगों ने इसे भावनात्मक ब्लेकमेल कहा, पर इस बार अदिती ने तय कर लिया था कि विवान का अंतिम संस्कार उसके पिता ही करेंगे। एक तरह से यह एक मां का अल्टीमेटम था, देश की सरकार के लिए। तब सरकार जागी। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने टोगो के विदेश मंत्री से बात की। सरकार ने भी टोगो के राष्ट्रपति ग्नेसिंग्बे से अनुरोध किा कि मानवता के नाते सुनील को रिहा कर दें। ताकि वे अपने बेटे का अंतिम संस्कार कर सकें। आखिर टोगो सरकार झुकी। 19 दिसम्बर को सुनील को टोगो की जेल से रिहा कर दिया।
सुनीलजेम्स की घटना से ऐसा कहा जा सकता है कि उसे केवल इसलिए कैद किया गया, ताकि शिप कंपनी से और अधिक राशि हड़पी जा सके। असली बात क्या है, यह तो किसी को भी नहीं मालूम। पर बात जब बेटे की मौत और अंतिम संस्कार की आती है, तो सुनील को माफ किया जा सकता है। आरोप तो अदिती पर भी लगे हैं कि उसने सरकार के साथ इमोशनली ब्लेकमेल किया है। पर इसे भी तो समझना चाहिए कि एक लाचार नारी इसके सिवाय और कर भी क्या सकती थी? मासूम बेटे की मौत और पति सात समुंदर पार एक देश की जेल में बंद है, तो वह लाचार क्या करे? जेम्स ने अपने बेटे का चेहरा अंतिम बार देख लिया, इसके पहली जब अंतिम बार उसे देखा था, तो वह हंसता-खेलता बच्च था। आज उनका बेटा विवान इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए रुखसत कर गया है। इसके लिए अदिती की संवेदनाओं के अलावा उनकी मेहनत भी है, जिन्होंने अदिती की सहायता की। साथ ही टोगो के मंत्रियों-अधिकारियों को भी नहीं भूलना चाहिए, भले ही वे अनपढ़ हों, गरीब हों, जंगली हो, पर उन्होंने सुनील को रिहा कर यह बता दिया कि उनका भी दिल है, जो धड़कता है।
वैसे कुछ आफ्रिकी देशों के बारे में यह कहा जाता है कि वहां कानून-व्यवस्था जैसी कोई चीज ही नहीं है। सरकार भी कई बार विवश हो जाती है। टोगो देश की प्रशंसा तो नहीं की जा सकती। घाना के करीब स्थित इस देश में गरीबी, बेकारी, और भुखमरी से त्रस्त है। लोग अशिक्षित हैं। 56785 वर्ग किलोमीटर में फैले इस देश की जनसंख्या हमारे देश के एक महानगर से भी कम है। गरीबी और भुखमरी के कारण यहां के निवासियों की औसत आयु भी कम है। पुरुषों की औसत 56 और महिलाओं की 59 वर्ष।
डॉ. महेश परिमल
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