डॉ. महेश परिमल
हमारे बुजुर्ग कह गए हैं कि पानी को घी की तरह इस्तेमाल करना चाहिए। पर आज यह सीख ताक पर रख दी गई है। अब तो पानी का इतना अधिक दुरुपयोग होने लगा है कि पूछो ही मत। इसे देखते हुए यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि 21 वीं सदी पानी की तंगी के लिए जानी जाएगी। आज पानी का सबसे अधिक दुरुपयोग शहरियों एवं कारखानों में किया जा रहा है। मुम्बई एवं दिल्ली जैसे शहरों की महानगरपालिकाओं नागरिकों को 24 घंटे पानी देने का की योजना बना रही हैं। इस समय मुम्बई के नागरिकों को औसतन 5 घंटे पानी दिया जा रहा है। उनकी रोज की खपत 240 लीटर प्रति व्यक्ति है। दिल्ली के नागरिकों को हर रोज चार घंटे पानी दिया जा रहा है। वहां प्रति व्यक्ति पानी की खपत 223 लीटर है। दूसरी ओर गांवों के लोग प्रतिदिन केवल 40 लीटर पानी का इस्तेमाल करते हैं। इसे देखते हुए यदि शहरीजनों को 24 घंटे पानी दिए जाने की योजना बनाई जा रही है, तो निश्चित रूप से पानी का अपव्यय और अधिक होगा।
हमारे देश में कहावत थी कि पानी को घी की तरह इस्तेमाल करना चाहिए। वैसे हमारे जीवन की व्यवस्था ही इस तरह से आयोजित की गई थी कि प्राकृतिक रूप से पानी सबको मिले। पहले किसी के घर में पानी के लिए नल नहीं होते थे। पानी के लिए तालाब या जलाशय ही एकमात्र साधन होते थे। पानी लेने के लिए घर से दूर जाना पड़ता था। इसलिए घर में जितना पानी आता, उसी से काम चलाना पड़ता था। गटर सिस्टम का नामोनिशान न था। इस कारण घर में जितना पानी इस्तेमाल होता, वह एक टंकी में जमा हो जाता था। दिन में दो या तीन बार उस टंकी का पानी घर की जमीन पर डाल दिया जाता था। यह वॉटर मैनेजमेंट का अच्छा तरीका था। जो जितना अधिक पानी इस्तेमाल करना चाहता, उसे उतना अधिक पानी जलाशय या तालाब से लाना होता था और उसे उलीचना भी पड़ता था। इसलिए उतना ही पानी लाया जाता, जितनी आवश्यकता होती थी। यह वॉटर मैंनेजमेंट की श्रेष्ठ पद्धति थी। आज हालात बदल गए हैं। अब पानी के लिए सरकारी उपक्रमों के भरोसे रहना पड़ता है। दूसरी ओर धरती की छाती पर इतने अधिक छेद हो गए हैं और उससे इतना अधिक पानी निकाला जा रहा है कि पानी 50 से100 मीटर तक गहराई में चला गया है। प्रति व्यक्ति पानी का इस्तेमाल बढ़ गया है। अब घर के वाहन धोने में ही रोज लाखों गैलन पानी बरबाद हो रहा है। आज हमारे देश में 70 प्रतिशत पानी खेती के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। शहरों एवं एद्योगों के लिए शेष्ज्ञ 30 प्रतिशत पानी का उपयोग होता है। दिनों दिन शहरों एवं उद्योगों की आवश्यकता बढ़ रही है। इसके लिए गांवों और कृषि के लिए सुरक्षित पानी की कटौती की जा रही है। इसके लिए जलस्रोतों पर आधिपत्य किया जा रहा है। नई दिल्ली से 300 किलोमीटर दूर हिमाचल के टिहरी बांध में से पीने का पानी लिया जा रहा है। मुम्बई की अपर वैतरणा योजना के लिए करीब 3 लाख वृक्षों का संहार करने की तैयारी चल रही है।
हमारी सरकार शहरी मतदाताओं को खुश करने के लिए उन्हें 24 घंटे पानी की सुविधा का ढिंढोरा पीट रही है। तो दूसरी तरफ किसानों को खुश करने के लिए उन्हें मुफ्त में बिजली दे रही है। इसलिए किसान भी अपने पंप 24 घंटे चला रहे हैं। फलस्वरूप भूगर्भ जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है। हमारे देश में इस समय करीब दो करोड़ कुएं एवं पाताल कुएं हैं, आश्चर्य इस बात का है कि ये सभी निजी सम्पत्ति में आती हैं। कोकाकोला जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी एवं अन्य उद्योग अपने पाताल कुएं से पानी का लगातार दोहन कर रहे हैं। यही हालात रहे तो पाताल कुओं एवं वॉटर पंप पर प्रतिबंध लगाना पड़ सकता है। तभी हालात सुधर सकते हैं। पानी के उपयोग पर आज शहरीजनों की हालत परजीवी जंतुओं की तरह है। पहले वे पानी प्राप्त करने के लिए गांवों की नदियों एवं तालाबों पर आक्रमण करते हैं, बांध तैयार करते हैं और जंगलों का संहार करते हैं। फिर इस्तेमाल किया हुआ गंदा पानी फिर नदियों में मिला दिया जाता है। इस कारण निचली जगहों पर रहने वालों को प्रदूषित पानी मिलता है। इसका समाधान यही है कि शहरीजनों को गांवों का पानी न दिया जाए और गटर का एक बूंद पानी भी नदी या समुद्र में न जाए, इसका पुख्ता इंतजाम किया जाए। इसी तरह शहरीजनों को वर्षाजल को सहेजने के लिए टंकियों का प्रयोग करना चाहिए। गंदे पानी को गटर में डालने के बजाए उसके शुद्धिकरण पर अधिक जोर दे।
भारत के शहरों में पानी की माँग लगातार बढ़ रही है। उधर ग्रामीण इलाकों में भी किसानों की मांग में भी लगातार इजाफा होते जा रहा है। इसका कारण यही है कि किसान अब गन्ना, मूंगफल्ली, तम्बाखू आदि की फसल लेने लगे हैं। ये फसलें नगदी मानी जाती हैं, किंतु इस फसलों के लिए पानी का इस्तेमाल 50 से सौ गुना तक अधिक होता है। इस कारण ग्रामीण और शहरीजनों के बीच पानी के लिए संघर्ष भी लगातार बढ़ रहा है। भविष्य मे यह स्थिति विकराल रूप धारण कर लेगी, इसमें कोई दो मत नहीं। आज उद्योगों में पानी की खपत और दुरुपयोग लगातार बढ़ रहा है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। गुजरात सरकार ने कच्छ जैसे पानी की कमी वाले क्षेत्र में पूंजी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योगों की स्थापना करने की छूट दी गई है। ये उद्योग जमीन से रोज लाखों गैलन पानी निकाल रहे हैं। इस कारण किसानों के जलस्रोत सूखते जा रहे हैं। देश में अभी तक भू गर्भ जल के इस्तेमाल पर अभी तक कोई ठोस नीति न बन पाने के कारण इस दिशा में धरती की छाती से पानी का लगातार शोषण हो रहा है। उद्योगों को कहने वाला कोई नहीं है। इन सारी बातों को देखते हुए यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि इक्कीसवी सदी पानी की तंगी के लिए जानी जाएगी।
डॉ. महेश परिमल
हमारे बुजुर्ग कह गए हैं कि पानी को घी की तरह इस्तेमाल करना चाहिए। पर आज यह सीख ताक पर रख दी गई है। अब तो पानी का इतना अधिक दुरुपयोग होने लगा है कि पूछो ही मत। इसे देखते हुए यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि 21 वीं सदी पानी की तंगी के लिए जानी जाएगी। आज पानी का सबसे अधिक दुरुपयोग शहरियों एवं कारखानों में किया जा रहा है। मुम्बई एवं दिल्ली जैसे शहरों की महानगरपालिकाओं नागरिकों को 24 घंटे पानी देने का की योजना बना रही हैं। इस समय मुम्बई के नागरिकों को औसतन 5 घंटे पानी दिया जा रहा है। उनकी रोज की खपत 240 लीटर प्रति व्यक्ति है। दिल्ली के नागरिकों को हर रोज चार घंटे पानी दिया जा रहा है। वहां प्रति व्यक्ति पानी की खपत 223 लीटर है। दूसरी ओर गांवों के लोग प्रतिदिन केवल 40 लीटर पानी का इस्तेमाल करते हैं। इसे देखते हुए यदि शहरीजनों को 24 घंटे पानी दिए जाने की योजना बनाई जा रही है, तो निश्चित रूप से पानी का अपव्यय और अधिक होगा।
हमारे देश में कहावत थी कि पानी को घी की तरह इस्तेमाल करना चाहिए। वैसे हमारे जीवन की व्यवस्था ही इस तरह से आयोजित की गई थी कि प्राकृतिक रूप से पानी सबको मिले। पहले किसी के घर में पानी के लिए नल नहीं होते थे। पानी के लिए तालाब या जलाशय ही एकमात्र साधन होते थे। पानी लेने के लिए घर से दूर जाना पड़ता था। इसलिए घर में जितना पानी आता, उसी से काम चलाना पड़ता था। गटर सिस्टम का नामोनिशान न था। इस कारण घर में जितना पानी इस्तेमाल होता, वह एक टंकी में जमा हो जाता था। दिन में दो या तीन बार उस टंकी का पानी घर की जमीन पर डाल दिया जाता था। यह वॉटर मैनेजमेंट का अच्छा तरीका था। जो जितना अधिक पानी इस्तेमाल करना चाहता, उसे उतना अधिक पानी जलाशय या तालाब से लाना होता था और उसे उलीचना भी पड़ता था। इसलिए उतना ही पानी लाया जाता, जितनी आवश्यकता होती थी। यह वॉटर मैंनेजमेंट की श्रेष्ठ पद्धति थी। आज हालात बदल गए हैं। अब पानी के लिए सरकारी उपक्रमों के भरोसे रहना पड़ता है। दूसरी ओर धरती की छाती पर इतने अधिक छेद हो गए हैं और उससे इतना अधिक पानी निकाला जा रहा है कि पानी 50 से100 मीटर तक गहराई में चला गया है। प्रति व्यक्ति पानी का इस्तेमाल बढ़ गया है। अब घर के वाहन धोने में ही रोज लाखों गैलन पानी बरबाद हो रहा है। आज हमारे देश में 70 प्रतिशत पानी खेती के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। शहरों एवं एद्योगों के लिए शेष्ज्ञ 30 प्रतिशत पानी का उपयोग होता है। दिनों दिन शहरों एवं उद्योगों की आवश्यकता बढ़ रही है। इसके लिए गांवों और कृषि के लिए सुरक्षित पानी की कटौती की जा रही है। इसके लिए जलस्रोतों पर आधिपत्य किया जा रहा है। नई दिल्ली से 300 किलोमीटर दूर हिमाचल के टिहरी बांध में से पीने का पानी लिया जा रहा है। मुम्बई की अपर वैतरणा योजना के लिए करीब 3 लाख वृक्षों का संहार करने की तैयारी चल रही है।
हमारी सरकार शहरी मतदाताओं को खुश करने के लिए उन्हें 24 घंटे पानी की सुविधा का ढिंढोरा पीट रही है। तो दूसरी तरफ किसानों को खुश करने के लिए उन्हें मुफ्त में बिजली दे रही है। इसलिए किसान भी अपने पंप 24 घंटे चला रहे हैं। फलस्वरूप भूगर्भ जल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है। हमारे देश में इस समय करीब दो करोड़ कुएं एवं पाताल कुएं हैं, आश्चर्य इस बात का है कि ये सभी निजी सम्पत्ति में आती हैं। कोकाकोला जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी एवं अन्य उद्योग अपने पाताल कुएं से पानी का लगातार दोहन कर रहे हैं। यही हालात रहे तो पाताल कुओं एवं वॉटर पंप पर प्रतिबंध लगाना पड़ सकता है। तभी हालात सुधर सकते हैं। पानी के उपयोग पर आज शहरीजनों की हालत परजीवी जंतुओं की तरह है। पहले वे पानी प्राप्त करने के लिए गांवों की नदियों एवं तालाबों पर आक्रमण करते हैं, बांध तैयार करते हैं और जंगलों का संहार करते हैं। फिर इस्तेमाल किया हुआ गंदा पानी फिर नदियों में मिला दिया जाता है। इस कारण निचली जगहों पर रहने वालों को प्रदूषित पानी मिलता है। इसका समाधान यही है कि शहरीजनों को गांवों का पानी न दिया जाए और गटर का एक बूंद पानी भी नदी या समुद्र में न जाए, इसका पुख्ता इंतजाम किया जाए। इसी तरह शहरीजनों को वर्षाजल को सहेजने के लिए टंकियों का प्रयोग करना चाहिए। गंदे पानी को गटर में डालने के बजाए उसके शुद्धिकरण पर अधिक जोर दे।
भारत के शहरों में पानी की माँग लगातार बढ़ रही है। उधर ग्रामीण इलाकों में भी किसानों की मांग में भी लगातार इजाफा होते जा रहा है। इसका कारण यही है कि किसान अब गन्ना, मूंगफल्ली, तम्बाखू आदि की फसल लेने लगे हैं। ये फसलें नगदी मानी जाती हैं, किंतु इस फसलों के लिए पानी का इस्तेमाल 50 से सौ गुना तक अधिक होता है। इस कारण ग्रामीण और शहरीजनों के बीच पानी के लिए संघर्ष भी लगातार बढ़ रहा है। भविष्य मे यह स्थिति विकराल रूप धारण कर लेगी, इसमें कोई दो मत नहीं। आज उद्योगों में पानी की खपत और दुरुपयोग लगातार बढ़ रहा है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। गुजरात सरकार ने कच्छ जैसे पानी की कमी वाले क्षेत्र में पूंजी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योगों की स्थापना करने की छूट दी गई है। ये उद्योग जमीन से रोज लाखों गैलन पानी निकाल रहे हैं। इस कारण किसानों के जलस्रोत सूखते जा रहे हैं। देश में अभी तक भू गर्भ जल के इस्तेमाल पर अभी तक कोई ठोस नीति न बन पाने के कारण इस दिशा में धरती की छाती से पानी का लगातार शोषण हो रहा है। उद्योगों को कहने वाला कोई नहीं है। इन सारी बातों को देखते हुए यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि इक्कीसवी सदी पानी की तंगी के लिए जानी जाएगी।
डॉ. महेश परिमल
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