डॉ. महेश परिमल
हमारे देश में पहली बार अमेरिका विरोधी सुर देखने में आया है। अमेरिका में भारतीय राजनयिक के साथ जो कुछ हुआ, उससे हमारे देश के कर्णधारों की आंख जरा देर से खुली। सबसे पहले तो यह देखा जाना आवश्यक है कि क्या वास्तव में जैसा मीडिया में आ रहा है, देवयानी के साथ वैसा ही हुआ है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अन्य देशों के राजनयिकों को भारत पांच सितारा सुविधाएं देता है, वहीं विदेशों में भारतीय राजनयिकों की स्थिति क्या है, इस पर कभी किसी ने सोचा है। अगर देवयानी ने अपने वीजा में गलत जानकारी दी है, तो उस बात को स्वीकार कर लेना चाहिए। भारत तब क्यों नहीं जागा, जब हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को अमेरिका में अपमानित होना पड़ा था? इसके पहले जार्ज फर्नाण्डीस भी अपमानित हो चुके हैं। अमेरिका ने इस तरह की हरकतें पहले भी कई बार की है। हर बार वह माफी मांगकर बच निकलता है। इस बार भी माफी मांगने का नाटक किया गया है। इस बार अमेरिका के प्रति भारत का रवैया उचित है। पर अमेरिका इस बात को अच्छी तरह से जानता है कि भारत में उसकी इस हरकत को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा।
अमेरिका को अच्छी तरह से मालूम है कि जब देश के प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित उम्मीदवार नरेंद्र गांधी को अमेरिका का वीजा नहीं दिया गया, तो कई दलों ने इसकी प्रशंसा की थी। इसका आशय यही हुआ कि भारत में अमेरिका के खिलाफ लामबंदी हो सकती है, इसे अमेरिका ने अभी तक नहीं समझा है। वह हमारी इसी कटुता का लाभ उठाता रहा है। इसी के चलते अभी तीन दिन पहले ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल से मिलने से इंकार कर दिया। इस तरह से उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय मामले पर अपना विरोध दर्ज की। इसका कहीं कोई रिस्पांस मिला हो, ऐसा नहीं दिखता। पर अमेरिका की बार-बार की जाने वाली मनमानी पर अंकुश लगाना आवश्यक था। भारत ने जो भी कदम उठाया, वह सराहनीय है। विश्व की महासत्ता बनकर अमेरिका शिष्टाचार को भी भूलता जा रहा है। उसकी दादागिरी पर रोक लगाना जरूरी था। अब समय आ गया है कि व्यूहात्मक रूप से उसका सामना किया जाए। अपना विरोध दर्ज कर भारत ने इतना तो दर्शा ही दिया है कि भारतीय राजनयिकों को पूरा सम्मान मिलना चाहिए। जब तक भारत ने अपना विरोध दर्ज नहीं किया था, तब तक अमेरिका अपनी मनमानी करता रहा। जब भारत में नियुक्त राजनयिकों को पांच सितारा सुविधाएं देना बंद कर दिया गया, तब अमेरिका को लगा कि कुछ गलत हो गया है। अमेरिका में देवयानी को हथकड़ी पहनाकर जेल पहुंचाया गया और वहां अपराधियों के बीच रखा गया। उसके बाद ही उसे जमानत मिली। ऐसे व्यवहार का साहस अमेरिका को कहां से मिला, इसका उत्तर यही है कि यह हमारी कमजोर विदेश नीति के कारण ही है। हमने अमेरिका को सदैव अपना ‘आका’ माना और उसकी जी-हुजूरी की। इसलिए अमेरिका ऐसा करने में सफल रहा।
हमारा देश भले ही विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हो, पर यहां कई मतभेद हैं। भारत में प्रजातांत्रिक तरीके से चुनाव जीतने वाले किसी नेता को अमेरिकी वीजा न मिले, तो कई लोग खुश भी होते हैं, यही नही तालियां भी बजाते हैं। तालियों की इसी आवाजों से अमेरिका समझ जाता है कि यह देश मूर्खो से भरा पड़ा है। कई बार तो अमेरिका आगे बढ़कर भारत की विदेशी नीतियों से छेड़छाड़ करता आया है, पर हमें इसका कोई भी असर नहीं होता। दूसरी तरफ भारत की विदेश नीति हमेशा ढुल-मुल रही है। कभी इसमें सख्ती नहीं देखी गई। देवयानी की गिरफ्तारी के एक सप्ताह पहले ही अमेरिका ने एक भारतीय दम्पति पर यह आरोप लगाया कि वे भारत से काम करने के लिए जिन्हें लाते हैं, उनसे दस से बारह घंटे काम लिया जाता है। यही नहीं उन्हें वेतन भी कम दिया जाता है। न्यूयार्क के केनटुकी स्थति फास्टफूड का रेस्तरा चलाने वाले इस दम्पति अमृत पटेल और दक्षा पटेल की धरपकड़ की गई थी। डेढ़ साल पहले ही भारतीय दूतावास के एक अधिकारी जो मेरीलैंड में रहते थे। तब उनके पड़ोस में रहने वाली एक महिला ने उन पर छेड़छाड़ क आरोप लगाया। तब वहां भारतीय राजदूर केरूप में निरुपमा राय थी। श्रीमती राव ने उन्हें घर भी जाने नहीं दिया, क्योंकि उन्हें मालूम था कि घर पहुंचते ही उनकी धरपकड़ हो जाएगी, इसलिए उन्हें सीधे एयरपोर्ट भेजकर उन्हें भारत भेज दिया, बाद में उनका सामान भेजा गया। इस मामले को दबा दिया गया था। बाद में इस अधिकारी को अन्य देशों में पोस्टिंग हुई, जहां उन्होंने बेहतर काम किया। कुछ समय बाद पता चला कि वह अधिकारी निर्दोष थे। उन पर आरोप लगाने वाली महिला ने अपने स्वार्थ के कारण उन पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। वह महिला इसके पहले भी इस तरह के आरोप कई लोगों पर लगा चुकी थी।
अमेरिका में अभी 15 दिन पहले ही उपवास आंदोलन शुरू हुआ था। अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा उन अनशनकारियों से मिलने पहुंचे थे। अमेरिका में रहने वाले भारतीय अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं। पिछले एक वर्ष से इमीग्रेशन कानून संशोधन बिल की चर्चा चल रही है। इस कारण अमेरिका में असंवैधानिक रूप से रह रहे डेढ़ करोड़ लोग वहां सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। असंवैधानिक रूप से रहने वाले ये सभी वहां कानूनी रूप से रह सकते थे, इसकी पूरी संभावना थी। अमेरिका के सभी राज्यों में इस तरह का आंदोलन चलाकर सरकार पर दबाव बढ़ाया गया। पहले चरण में बिल पारित होने की तैयारी में था, तभी ओबामा के सलाहकारों ने मामला बिगाड़ दिया। गैरकानूनी रूप से रहने वालों को कानूनी हक देने का वादा ओबामा ने चुनाव के दौरान किया था। इसके बाद भी वे अपने वादे से मुकर गए। इस समय जो देवयानी खोब्रागड़े के साथ हुआ है, वैसा यदि भारत में किसी अमेरिकी राजनयिक के साथ होता, तो क्या उसे हथकड़ी पहनाकर जेल भेजा जाता? पाकिस्तान ने ऐसा करके अपनी ताकत बताई थी, बाद में उसने अमेरिका से माफी भी मांग ली। उदारवाद के चलते भातर की कमजोर विदेश नीति के चलते अमेरिका बार-बार ऐसा कर रहा है। देवयानी के साथ जो कुछ हुआ, वैसा ही यहां भी हो, तो अमेरिका कुछ संभलेगा। अभी भारत ने जो कदम उठाए हैं, वह विरोध के स्वर को ठंडा करने के लिए उठाया है। बाद में हालात फिर वही ढाक के तीन पात की तरह हो जाएंगे।
डॉ. महेश परिमल
हमारे देश में पहली बार अमेरिका विरोधी सुर देखने में आया है। अमेरिका में भारतीय राजनयिक के साथ जो कुछ हुआ, उससे हमारे देश के कर्णधारों की आंख जरा देर से खुली। सबसे पहले तो यह देखा जाना आवश्यक है कि क्या वास्तव में जैसा मीडिया में आ रहा है, देवयानी के साथ वैसा ही हुआ है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि अन्य देशों के राजनयिकों को भारत पांच सितारा सुविधाएं देता है, वहीं विदेशों में भारतीय राजनयिकों की स्थिति क्या है, इस पर कभी किसी ने सोचा है। अगर देवयानी ने अपने वीजा में गलत जानकारी दी है, तो उस बात को स्वीकार कर लेना चाहिए। भारत तब क्यों नहीं जागा, जब हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को अमेरिका में अपमानित होना पड़ा था? इसके पहले जार्ज फर्नाण्डीस भी अपमानित हो चुके हैं। अमेरिका ने इस तरह की हरकतें पहले भी कई बार की है। हर बार वह माफी मांगकर बच निकलता है। इस बार भी माफी मांगने का नाटक किया गया है। इस बार अमेरिका के प्रति भारत का रवैया उचित है। पर अमेरिका इस बात को अच्छी तरह से जानता है कि भारत में उसकी इस हरकत को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा।
अमेरिका को अच्छी तरह से मालूम है कि जब देश के प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित उम्मीदवार नरेंद्र गांधी को अमेरिका का वीजा नहीं दिया गया, तो कई दलों ने इसकी प्रशंसा की थी। इसका आशय यही हुआ कि भारत में अमेरिका के खिलाफ लामबंदी हो सकती है, इसे अमेरिका ने अभी तक नहीं समझा है। वह हमारी इसी कटुता का लाभ उठाता रहा है। इसी के चलते अभी तीन दिन पहले ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल से मिलने से इंकार कर दिया। इस तरह से उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय मामले पर अपना विरोध दर्ज की। इसका कहीं कोई रिस्पांस मिला हो, ऐसा नहीं दिखता। पर अमेरिका की बार-बार की जाने वाली मनमानी पर अंकुश लगाना आवश्यक था। भारत ने जो भी कदम उठाया, वह सराहनीय है। विश्व की महासत्ता बनकर अमेरिका शिष्टाचार को भी भूलता जा रहा है। उसकी दादागिरी पर रोक लगाना जरूरी था। अब समय आ गया है कि व्यूहात्मक रूप से उसका सामना किया जाए। अपना विरोध दर्ज कर भारत ने इतना तो दर्शा ही दिया है कि भारतीय राजनयिकों को पूरा सम्मान मिलना चाहिए। जब तक भारत ने अपना विरोध दर्ज नहीं किया था, तब तक अमेरिका अपनी मनमानी करता रहा। जब भारत में नियुक्त राजनयिकों को पांच सितारा सुविधाएं देना बंद कर दिया गया, तब अमेरिका को लगा कि कुछ गलत हो गया है। अमेरिका में देवयानी को हथकड़ी पहनाकर जेल पहुंचाया गया और वहां अपराधियों के बीच रखा गया। उसके बाद ही उसे जमानत मिली। ऐसे व्यवहार का साहस अमेरिका को कहां से मिला, इसका उत्तर यही है कि यह हमारी कमजोर विदेश नीति के कारण ही है। हमने अमेरिका को सदैव अपना ‘आका’ माना और उसकी जी-हुजूरी की। इसलिए अमेरिका ऐसा करने में सफल रहा।
हमारा देश भले ही विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हो, पर यहां कई मतभेद हैं। भारत में प्रजातांत्रिक तरीके से चुनाव जीतने वाले किसी नेता को अमेरिकी वीजा न मिले, तो कई लोग खुश भी होते हैं, यही नही तालियां भी बजाते हैं। तालियों की इसी आवाजों से अमेरिका समझ जाता है कि यह देश मूर्खो से भरा पड़ा है। कई बार तो अमेरिका आगे बढ़कर भारत की विदेशी नीतियों से छेड़छाड़ करता आया है, पर हमें इसका कोई भी असर नहीं होता। दूसरी तरफ भारत की विदेश नीति हमेशा ढुल-मुल रही है। कभी इसमें सख्ती नहीं देखी गई। देवयानी की गिरफ्तारी के एक सप्ताह पहले ही अमेरिका ने एक भारतीय दम्पति पर यह आरोप लगाया कि वे भारत से काम करने के लिए जिन्हें लाते हैं, उनसे दस से बारह घंटे काम लिया जाता है। यही नहीं उन्हें वेतन भी कम दिया जाता है। न्यूयार्क के केनटुकी स्थति फास्टफूड का रेस्तरा चलाने वाले इस दम्पति अमृत पटेल और दक्षा पटेल की धरपकड़ की गई थी। डेढ़ साल पहले ही भारतीय दूतावास के एक अधिकारी जो मेरीलैंड में रहते थे। तब उनके पड़ोस में रहने वाली एक महिला ने उन पर छेड़छाड़ क आरोप लगाया। तब वहां भारतीय राजदूर केरूप में निरुपमा राय थी। श्रीमती राव ने उन्हें घर भी जाने नहीं दिया, क्योंकि उन्हें मालूम था कि घर पहुंचते ही उनकी धरपकड़ हो जाएगी, इसलिए उन्हें सीधे एयरपोर्ट भेजकर उन्हें भारत भेज दिया, बाद में उनका सामान भेजा गया। इस मामले को दबा दिया गया था। बाद में इस अधिकारी को अन्य देशों में पोस्टिंग हुई, जहां उन्होंने बेहतर काम किया। कुछ समय बाद पता चला कि वह अधिकारी निर्दोष थे। उन पर आरोप लगाने वाली महिला ने अपने स्वार्थ के कारण उन पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया था। वह महिला इसके पहले भी इस तरह के आरोप कई लोगों पर लगा चुकी थी।
अमेरिका में अभी 15 दिन पहले ही उपवास आंदोलन शुरू हुआ था। अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा उन अनशनकारियों से मिलने पहुंचे थे। अमेरिका में रहने वाले भारतीय अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं। पिछले एक वर्ष से इमीग्रेशन कानून संशोधन बिल की चर्चा चल रही है। इस कारण अमेरिका में असंवैधानिक रूप से रह रहे डेढ़ करोड़ लोग वहां सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। असंवैधानिक रूप से रहने वाले ये सभी वहां कानूनी रूप से रह सकते थे, इसकी पूरी संभावना थी। अमेरिका के सभी राज्यों में इस तरह का आंदोलन चलाकर सरकार पर दबाव बढ़ाया गया। पहले चरण में बिल पारित होने की तैयारी में था, तभी ओबामा के सलाहकारों ने मामला बिगाड़ दिया। गैरकानूनी रूप से रहने वालों को कानूनी हक देने का वादा ओबामा ने चुनाव के दौरान किया था। इसके बाद भी वे अपने वादे से मुकर गए। इस समय जो देवयानी खोब्रागड़े के साथ हुआ है, वैसा यदि भारत में किसी अमेरिकी राजनयिक के साथ होता, तो क्या उसे हथकड़ी पहनाकर जेल भेजा जाता? पाकिस्तान ने ऐसा करके अपनी ताकत बताई थी, बाद में उसने अमेरिका से माफी भी मांग ली। उदारवाद के चलते भातर की कमजोर विदेश नीति के चलते अमेरिका बार-बार ऐसा कर रहा है। देवयानी के साथ जो कुछ हुआ, वैसा ही यहां भी हो, तो अमेरिका कुछ संभलेगा। अभी भारत ने जो कदम उठाए हैं, वह विरोध के स्वर को ठंडा करने के लिए उठाया है। बाद में हालात फिर वही ढाक के तीन पात की तरह हो जाएंगे।
डॉ. महेश परिमल
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