शुक्रवार, 27 जून 2014

शुरू हो गई मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा

डॉ. महेश परिमल
केंद्र सरकार ने रेल्वे का किराया बढ़ाकर अच्छे दिन की शुरुआत कर दी है। इसका चारों तरफ से विरोध हो रहा है। चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने पिछली सरकार की नाकामियों पर खुलकर प्रहार करते थे। उन्होंने महंगाई को लेकर कांग्रेस गठबंधन सरकार की खूब आलोचना की। लेकिन अब उसी महंगाई की लगाम थामने में उनके पसीने छूट रहे हैं। महंगाई बढ़ाने वाले कारक भी तेजी से सक्रिय हो गए हैं। एक तरफ ईराक युद्ध, दूसरी तरफ कमजोर मानसून और तीसरी तरफ जमाखोरी, इस सबसे निपटने में सरकार की हालत खराब हो जाएगी, यह तय है। प्रधानमं9ी नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से कड़वे घूंट की बात की थी, उससे यही लगता था कि केवल महंगाई को छोड़कर अन्य कड़वे  घूंट मंजूर है। पर सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही डीजल की कीमतों में वृद्धि कर सरकार ने अपनी मंशा जाहिर कर दी। अब रेल किराए में वृद्धि कर एकबारगी आम जनता की कमर ही तोड़ दी। ऐसा भी नहीं है कि किराया बढ़ जाने से यात्री सुविधाओं में बढ़ोत्तरी हो जाएगी। आज भी लोगों को रिजर्वेशन नहीं मिल रहा है। ट्रेनों में भीड़ बेकाबू होने लगी है। साधारण दर्जे की हालत बहुत ही खराब है। दुर्घनाएँ और ट्रेनों की लेट-लतीफी तो आम बात है। इन सबको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सरकार ने वादों की जो झड़ी चुनाव पूर्व लगाई थी, उसे पूरा कर पाने में वह पूरी तरह से विफल साबित हुई है।
इस समय प्याज सबसे बड़ी खलनायक साबित हो रही है। सरकार जमाखोरों पर कार्रवाई नहीं कर पा रही है। केवल सख्त कदम उठाने की चेतावनी ही दे रही है। सरकार बदल गई, पर जमाखोर नहीं बदल पाए। इसी प्याज ने कई बार पूरे देश को रुलाया है। इस बार भी वह रुलाने की तैयारी में है। बाजार ने यह आशंका प्रकट की है कि इस बार प्याज के दाम सौ रुपए किलो तक पहुंच जाएंगे। इस आशंका के तहत जमाखोर सक्रिय हो गए। गोदामों में अगले अगले आठ महीनों तक का स्टाक जमा कर लिया गया है। देख जाए तो कांग्रेस के हारने में यही महंगाई की सबसे बड़ा काकरण रही है। अब यही कारण मोदी सरकार के सामने चुनौती बनकर खड़ा है। भोजन में प्याज का उपयोग हर तरह से होता है। इस गर्मी में सलाद के रूप में प्याज का होना अतिआवश्यक है। देश में जिन स्थानों में प्याज का उत्पादन होता है, वहां इस बार बारिश की देरी ने उत्पादन को प्रभावित किया है। जो किसान प्याज बोना चाहते हैं, वे इसलिए परेशान है कि इस बार प्याज के बीज की कीमतें चार गुना बढ़ गई हैं। ऐसा भी नहीं है कि देश में प्याज का उत्पादन कम होता है। बम्फर उत्पादन के कारण कई बार प्याज सड़कों पर फेंक दी गई हैं। सरकार भी बहुत बड़ी जमाखोर है। उसने भी प्याज का बहुत बड़ा स्टॉक जमा कर रखा है। एक समय इसी प्याज का दाम दो से तीन रुपए किलो था, पर अब यह बीस रुपए किलो मिल रही है। सरकार यदि सख्ती दिखाते हुए कोल्ड स्टोरेज पर छापा मारे, तो काफी मात्रा में प्याज का स्टॉक बाजार में आ जाएगा। पर सरकार ऐसा क्यों नहीं कर पा रही है, यह आश्चर्य का विषय है। इसके पहले की सरकारें भी प्याज के दामों में अंकुश रखने में नाकाम साबित हुई हैं।
यदि आलू की बात करें, तो इसका स्टॉक अपेक्षाकृत कम है। फरवरी में हुई बारिश उसके उत्पादन को प्रभावित किया है। व्यापारियों का मानना है कि यदि आलू का निर्यात रोक दिया जाए, तो भी इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा। आलू भी प्याज की तरह ही बार-बार इस्तेमाल में लाई जाने वाली सब्जी ही है। मध्यम वर्ग और श्रमजीवी वर्ग के लिए आलू-प्याज बहुत ही आवश्यक वस्तु है। अब धीरे-धीरे ये दोनों ही चीजें थाली से अदृश्य हो रही हैं, इसी के साथ मोदी सरकार की अगिAपरीक्षा शुरू हो गई है।
आजकल अंतरराष्ट्रीय मामलों के कारण आवश्यक जिंसों के दाम बढ़ने लगे हैं। ईराक युद्ध के कारण पेट्रोल केी कीमतें बढ़ेंगी, इससे अन्य कई चीजों के दाम बढ़ना लाजिमी है। किसी भी तरह से महंगाई पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता। अब देखना यह है कि सरकार आखिर क्या करती है, जिससे महंगाई पर काबू पाया जा सके। भारत में बढ़ती महंगाई का संबंध आधुनिक पद्धति के विकास के साथ है। अर्थतंत्र का विकास होता है, तब नागरिकों के हाथ में पहले से अधिक धनराशि होती है। इस धनराशि से वह आवश्यक जिंसों और ऐश्वर्यशाली चीजों की खरीदी करता है। जिस तेजी से लोगों की आवक में तेजी से इजाफा होता है, उस तेजी से उत्पादन में वृद्धि नहीं हो पाती। इसलिए कीमतें बढ़ती हैं। इस प्रक्रिया में मुश्किल यह है कि समाज का जो शक्तिशाली वर्ग होता है, उसके हाथ में अधिक धन आता है। यह वर्ग अपना खर्च बढ़ा देता है। महंगाई बढ़ने का एक कारण यह भी है। इसलिए कमजोर वर्ग को महंगाई बढ़ने का अधिक असर होता है। मुद्रास्फीति बढ़ती है, तो रिजर्व बैंक ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी करती है। इससे बाजार में निवेश का प्रवाह कम होता है। इस वजह से विकास की दर धीमी हो ेजाती है। फिर जब विकास दर धीमी हो जाती है, तो रिजर्व बैंक ब्याज दर घटाती है। इन दोनों कारणों से बाजार में अधिक निवेश होता है और महंगाई बढ़ जाती है। यदि विकास दर और महंगाई के बीच संतुलन रखने में ही सरकार की कसौटी मानी जाती है।
उद्योगपति रिजर्व बैंक के सामने यह मांग रखते हैं कि ब्याज दरों में कमी की जाती रहे, तो कम ब्याज से कर्ज लेकर वे अपने धंधे को बढ़ा सकें। इससे उनके उद्योग का विकास होगा। मध्यम वर्ग यह मांग करता है कि ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी की जाती रहे, ताकि उन्हें उनके फिक्स्ड डिपॉजिट पर अधिक ब्याज मिले। जब ब्याज दर बढ़ती है, तब मुद्रास्फीति में कमी आती है और महंगाई भी कम होती है। इससे आम आदमी राहत अनुभव करता है। पर इससे उद्योगपतियों को नुकसान ही होता है।
अब यदि सरकार अपनी इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए आम जीवन से जुड़ी तमाम वस्तुओं के भाव को नियंत्रित करना चाहती है, तो उसे वायदा बाजार पर तुरंत प्रतिबंध होगा। यदि आवश्यक वस्तुओं से कोल्ड स्टोरेज भर गए हैं, तो वहां की बिजली काट देनी चाहिए, ताकि माल बाहर आ सके। यदि कठोर होना है, तो जमाखोरों पर होना होगा। कहा गया है कि अगले आठ महीनों तक प्याज की आपूर्ति हो सके, इतनी प्याज कोल्ड स्टोरेज में जमा है, यदि यह प्याज बाहर आ जाती है, तो उसकी खपत होने तक प्याज की नई फसल आ जाएगी और प्याज के दाम नियंत्रित हो जाएंगे, इसके लिए सरकार को सख्त होना होगा। अब सरकार बजट की तैयारी कर रही है। बजट में भी कई चीजों के दाम बढ़ेंगे ही, इसके लिए भी उसे जनता को तैयार करना होगा। डीजल, रेल्वे और माल भाड़े में वृद्धि के बाद यदि बजट से राहत मिलती है, तो यह दुख कम हो सकता है। इसके लिए सरकार के पास अभी थोड़ा सा समय है, इसके रहते यदि वह जनता को कुछ राहत दे सकती है, तो लोगों को यह विश्वास करना आसान होगा कि भाजपा को वोट देकर उनसे गलती नहीं हुई। अब गेंद सरकार के पाले पर है, देखना है कि वह क्या करती है, जिससे जनता को राहत मिले।
डॉ. महेश परिमल

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