डॉ. महेश परिमल
देश के प्रधानमंत्री की जब चारों तरफ से आलोचना हो रही है। लेखक, बुद्धिजीवी, कलाकार और विपक्ष के नेता आदि सभी उन्हें खुले आम चुनौती दे रहे हों, अपना विरोध प्रकट कर रहे हों, तो ऐसे में यह सोचा जाना भी मूर्खता होगी कि कोई पराया उनकी प्रशंसा भी करेगा। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा उस अशांत क्षेत्र से की गई है, जो हमेशा दर्शनीय तो रहा है, पर किसी विस्फोटक से कम नहीं। यह क्षेत्र है घाटी, जी हां कश्मीर की घाटी से, वहां के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रधानमंत्री की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। इससे ऐसा लग रहा है कि भयंकर दावानल से घिरे व्यक्ति को ठंडी हवाओं के झोंके मिल रहे हों। सहिष्णुता के मामले पर आज आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू है, ऐसे में घाटी से आई ठंडी हवा राहत दे गई। किसी ने तो सोचा कि वे कुछ अच्छा भी कर रहे हैं। मुफ्ती के बयान से न केवल मोदी बल्कि अन्य लोग भी चौंक गए। सचमुच यह भारतीय राजनीति के इतिहास की बहुत बड़ी घटना है, जब किसी ने संकट में घिरे व्यक्ति की इस तरह से तारीफ की। जम्मू-कश्मीर में भाजपा के सहयोगी और पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व को लेकर एक बड़ी टिप्पणी की है. उन्होंने कहा कि वे इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं कि नरेंद्र मोदी सांप्रदायिक व्यक्ति हैं। दादरी घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सबका साथ सबका विकास की बात करते हैं, अत: उन्हें थोड़ा समय दिया जाना चाहिए। मुफ्ती मोहम्मद ने उक्त बातें एक अंग्रेजी अखबार को दिये इंटरव्यू में कही. ्उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी जल्दी ही भाजपा नेताओं द्वारा दिये जा रहे विवादित बयानों पर रोक लगा देंगे। गोमांस पर हुए विवाद के लिए भी उन्होंने नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार मानने से इनकार कर दिया.उन्होंने कहा कि हमारे प्रदेश में गोहत्या पर प्रतिबंध है, इसलिए इस मुद्दे को तूल देना बेमानी है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अक्सर उनके विपक्षी यह आरोप लगाते रहे हैं कि वे सांप्रदायिक हैं और उन्हें अल्पसंख्यकों के दुख-दर्द से कोई लेना-देना नहीं है।
जो केवल विरोध करते हैं, उनके बारे में यह कहा जा सकता है कि उनका और कोई काम ही नहीं है, वे केवल विरोध करना ही जानते हैं। कुछ लोग केवल उनका साथ देते हैं, ताकि लोग यह न समझें कि उन्हें विरोध करना नहीं आता। कुछ लोग केवल मौन रहते हैं, वे जानते हैं कि केवल विरोध करने से ही कुछ नहीं होता, विरोध के लिए ठोस मुद्दा होना जरूरी है। देश के बुद्धिजीवी, साहित्यकारों के अलावा राम जेठमलानी और अरुण शौरी प्रधानमंत्री की कार्यशैली की निंदा कर रहे हैं। जेठमलानी को अब कोई गंभीरता से नहीं लेता। अरुण शौरीे की कुंठा केवल उन्हें मंत्रीपद न मिलने की वजह से बढ़ गई है, यह स्पष्ट हो गया है। उस बयान के बाद उनकी हालत यह हो गई है कि अब उनसे भाजपा का कोई नेता नहीं मिलता। एकदम अलग-थलग हो गए हैं, वे इन दिना। इनके अलावा जब प्रधानमंत्री पर चारों तरफ से प्रहार हो रहे हों, तब उनके पार्टी के लोगों को उनका बचाव करना पड़ रहा है, ऐसीे स्थिति में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने प्रधानमंत्री की प्रशंसा कर उन्हें चौंका दिया है। पिछले दिनों सामने आए उनके बयानों ने और किसी को राहत दी हो या नहीं, पर स्वयं प्रधानमंत्री को इससे राहत मिली है, यह कहा जा सकता है। यह इसलिए भी आश्चर्यजनक है कि उनकी तरफ से इस तरह के बयान की कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। प्रधानमंत्री का बचाव करने वालों की भीड़ में एक भी मुस्लिम चेहरा नहीं था। सभी मुस्लिम नेताओं के निशाने पर केवल नरेंद्र मोदी ही हैं। इसलिए प्रधानमंत्री खेमे को आश्चर्य हो रहा है। जबकि अभी कुछ दिनों पहले ही कश्मीर विधानसभा में भाजपा के एक नेता द्वारा विपक्ष के नेता को थप्पड़ मारने की घटना हो चुकी है।
मोदी द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को दिए गए वचनों को अमल में लाने का समय अब समाप्त हो चुका है। इसके बाद महंगाई के लगातार बढ़ने से लोग त्रस्त हो गए हैं। एक तरफ महंगाई की चीख-पुकार और दूसरी तरफ बीफ पर लोगों के विवादास्पद बयान। इस आशय के बयान जब भी किसी ने जारी किए हैं, उन बयानों ने विवाद तो पैदा किया ही है, इसके अलावा लोगों में कटुता भी पैदा की है। केवल पुरस्कार और सम्मान वापस कर देने से ही विरोध व्यक्त हो जाता हो, तो यह बहुत बड़ी बात नहीं होती। जो इस तरह से विरोध कर रहे हैं, उनके पास विरोध करने का कोई तय माद्दा ही नहीं है। वे इस बात का ख्ुलासा ही नहीं कर पा रहे हैं कि पुरस्कार-सम्मान वापस कर देने मात्र से क्या कुछ लोग बीफ खाना बंद कर देंगे। यह प्रधानमंत्री इस आशय की अपील भी करें, तो क्या उसका उन लोगों पर कोई असर भी होगा? ये सब लोग मिलकर केवल प्रधानमंत्री को बदनाम करना चाहते हैं। इस देश में ऐसी बहुत सी घटनाएँ हुई हैं, जब इन बुद्धिजीवियों को अपनी सक्रियता का अहसास दिलाना था। उस समय वे सभी खामोश थे, जो आज बुरी तरह से चीख रहे हैं। यही लोग जब अभिनेत्री विद्या बालन के पास जाकर उससे पुरस्कार वापसी की मांग करने लगे, तो विद्याबालन ने बहुत ही सादगी के साथ उन्हें यह कहते हुए विदा कर दिया कि मुुझे मिला सम्मान देश का सम्मान है। यह किसी व्यक्ति विशेष के कहने पर नहीं मिला है, देश में शौचालय बनाने और उसका उपयोग करने का जो अभियान चला, उसका मैं हिस्सा बनी, लोग जागरूक हुए, तो सरकार ने मुझे सम्मानित किया। यह सम्मान मेरा नहीं, देश का सम्मान है, जो मुझे सामाजिक कार्यों को देखते हुए दिया गया है। मैं इस सम्मान का वापस नहीं करने वाली। दादरी कांड जैसी घटनाएं तो इस देश में पहले भी हुई हैं, तब तो इतना अधिक बवाल नहीं हुआ। इस समय ही ऐसा क्यों किया जा रहा है? इसका जवाब उनके पास नहीं था, इसलिए वे लौट आए। विद्याबालन ने ऐसे लोगों को एक नई राह दिखाई है। पर जिनकी मानसिकता संकीर्ण हो, वे ऐसी राह पर कभी नहीं चलना चाहेंगे। विद्याबालन का सवाल आज भी वहीं के वहीं है, उसका जवाब कोई देने को तैयार नहीं है, न तो ये बुद्धिजीवी और न ही विपक्ष का कोई नेता।
कांग्रेस अपना विश्वास लगातार खो रही है। अब उसे अपनी अस्मिता का खयाल आने लगा है। अपनी सक्रियता को वह इस तरह से विरोध कर बताना चाहती है। सरकार के हर फैसले का विरोध करना उसने अपना एक सूत्रीय अभियान बना लिया है। समय-समय पर प्रधानमंत्री उनका जवाब देते रहते हैं, पर वह अपनी आदतों से बाज नहीं आ रही है। केवल कुछ लोगों के हाथ की कठपुतली बनी कांग्रेस आज अपना खोया हुआ विश्वास प्राप्त करना चाहती है, उसके पास विरोध के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। लेकिन वह भूल रही है कि एक समय ऐसा भी आया था, जब जनता ने ही कांग्रेस को उखाड़ फेंका था। जनता ही सर्वशक्तिमान है, उसके पास केवल वोट देने का अधिकार है, इस प्रजातंत्र में वही सबसे बड़ा हथियार है। लोग कांग्रेस के घोटालों से आजिज आ चुके थे, इसलिए उन्होंने भाजपा के हाथों में देश की बागडोर सौंपी। यदि भाजपा ने भी वही किया, तो वह इसे भी उखाड़ फेंकने में संकोच नहीं करेगी। आज राज्यसभा में भाजपा का बहुमत न होने के कारण कई बिल अटक गए हैं। भविष्य में यदि कांग्रेस के हाथ में देश की बागडोर आती है, तो तय है कि राज्यसभा में भाजपा का बहुमत हो जाए, वह भी उस समय वही करेगी, जो आज कांग्रेस कर रही है, तो शायद उसे समझ में आ जाएगा कि केवल विरोध के लिए विरोध करना किसी भी दृष्टि से तर्कसंगत नहीं है।
जिस घाटी में 70 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी हो, वहां के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री की तारीफ की, तो यह निश्चित रूप से राहत देने वाली खबर है। प्रशंसा तो सभी की होती है। पर वास्तव में जब उसे प्रशंसा की आवश्यकता होती है, तब नहीं मिलती, तो अखरता है, पर जब विपत्तियों से घिरे व्यक्ति को कोई ऐसा व्यक्ति सहारा दे, जिससे कोई अपेक्षा ही नहीं रखी गई थी, तो ऐसा लगता है कि किसी ने उनके लिए अच्छा सोचा।
डॉ. महेश परिमल
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