गुरुवार, 31 दिसंबर 2015
स्वागत नववर्ष के स्वर्णिम सूरज
हम स्वागत करते हैं, नववर्ष के स्वर्णिम सूरज का और चाहते हैं कि वो हमें इस नववर्ष पर कुछ ऐसे उपहार दे, जो हमें सफलता के मार्ग तक पहुँचाए -
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बुधवार, 30 दिसंबर 2015
बाल कविता -
बाल कविताओं का अपना एक अलग संसार होता है। आइए, सैर करें इस अनोखे संसार की -
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बाल कविता

हास्य व्यंग्य - अहा !!! निकल गया
कभी-कभी पति का मौन पत्नी की परेशानी का कारण बन जाता है और जब सच सामने आता है, तो आश्चर्य के सिवा और कुछ नहीं होता। कैसे, ये आप खुद ही सुन लीजिए -
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हास्य व्यंग्य

कहानी - चुटकी भर सिंदूर
चुटकी भर सिंदूर नारी की शक्ति है,जिसके बल पर वह जीवन में आए लाखों तूफानों का मुकाबला कर सकती है। कुछ इसी तरह का संकेत भारती परिमल की इस मार्मिक कहानी में छिपा है -
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शनिवार, 26 दिसंबर 2015
चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी की कहानी - सुखमय जीवन
हिंदी जगत के प्रसिद्ध व्यंग्यकार, कथाकार तथा निबंधकार के रूप में अपनी अमिट पहचान बनानेवाले जनप्रिय लेखक चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी की अमर कहानियों में से ही एक है - सुखमय जीवन। सहज एवं सरल लेखनशैली का परिचय इस कहानी में मिलता है -
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कहानी - उसने कहा था
लेखक चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी की कालजयी कहानियों में से एक है - उसने कहा था। आम हिन्दी पाठक ही नहीं, विद्वानों का एक बड़ा वर्ग भी उन्हें अमर कहानी ‘उसने कहा था’ के रचनाकार के रूप में ही पहचानता है। उनके प्रबल प्रशंसक और प्रखर आलोचक भी अमूमन इसी कहानी को लेकर उलझते रहे हैं।
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गुरुवार, 24 दिसंबर 2015
एक मासूम का पत्र - सांताक्लास के नाम
सांताक्लास को एक देवदूत के रूप में जाना जाता है, जो हर मासूम को अपनी झोली में से उपहार देता है और उसके चेहरे पर मुस्कान लाता है। हर मासूम उसका बेताबी से इंतजार करता है। आज एक मासूम पत्र के माध्यम से अपने दिल की बात प्यारे सांता तक पहुँचा रहा है -
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सोमवार, 21 दिसंबर 2015
आमिर का डर सच साबित हो गया
डॉ. महेश परिमल
सहिष्णुता
की बात करना अच्छा लगता है, पर सहिष्णु बनना बहुत मुश्किल काम है। दुनिया
भर के लोग तमाम तरह के जुनून से ग्रस्त हैं। इसमें भारत के लोगों का भी
समावेश किया जा सकता है। किसी को धर्म का जुनून है, तो किसी को भाषा का।
भारत में मुस्लिमों पर मजहब का जुनूनी होने का आरोप लगाया जाता है, तो
हिंदू, जैन और ईसाई भी कम मजहब जुनूनी नहीं हैं। हर कोई इसी जुनूनियत से
बुरी तरह से ग्रस्त दिखाई दे रहा है। सभी को अपने धर्म पर गर्व होना ही
चाहिए, पर यह गर्वोक्ति कहां तक सार्थक है कि केवल मेरा धर्म ही सबसे महान
है, इसे ही अंगीकार किया जाए। दूसरी ओर असांप्रदायिककता वादियों के जुनून
में किसी धार्मिक मनुष्य को कुचलकर आगे बढ़ जाने की प्रवृत्ति भी देखी जा
रही है। पूंजीवादी अपनी विचारधारा में बहते हुए जितने अधिक जुनूनी होते
हैं, उससे अधिक तो साम्यवादी हातेे हैं। हमारे देश में नारीवादियों को भी
अपने अधिकार के लिए आक्रामक बनते देखा गया है। इस संदर्भ में जब आमिर खान
का यह बयान सामने आया कि मेरी पत्नी कहती है कि अब भारत में रहने लायक
हालात नहीं है। तो ऐसा कहकर आमिर ने देश की प्रजा की कसौटी को परखा है।
इसके बाद पूरे देश ही नहीं बल्कि सात समुंदर पार से भी जो प्रतिक्रियाएं
आईं, उसे देखकर लगता है कि उस कसौटी में हम सब विफल हो गए। आमिर के बयान पर
हमारी प्रतिक्रियाएं थी, वे ही असहिष्णु थी। ऐसे में हम कैसे कह सकते हैं
कि हम सहिष्णु हैं। आमिर की पत्नी किरण राव ने आज के भारत के हालात को
देखकर कहा था कि अब उन्हें इस देश में रहने से डर लग रहा है। यह बात
उन्होंने अपने कलाकार पति से की थी। अब आमिर इस बात को बिना विचारे जगजाहिर
कर दिया। पर बयान के बाद आई प्रतिक्रियाओं से जिस तरह का विरोध हो रहा है,
उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि आमिर खान या उनकी पत्नी का डर सच्चा साबित
हुआ।
हिंदूवादी पहले से ही आमिर खान का विरोध करते आ रहे हैं। उनकी प्रतिक्रिया
कुछ ऐसी थी कि यदि उन्हें भारत में डर लग रहा है, तो वे पाकिस्तान चले
जाएं। यदि वे पाकिस्तान जाना चाहें, तो उनके लिए टिकट की व्यवस्था भी की जा
सकती है। देश ने जिसे इतना सब कुछ दिया है, तो उसकी आलोचना करने की हिम्मत
आई कैसे तुममें? आखिर क्यों वेवकूफ हिंदू मुस्लिम कलाकारों के बारे में इस
तरह से कहने की आवश्यकता पड़ी? आमिर के चक्कर में इन हिंदूवादियों ने सलमान
और शाहरुख को भी लपेटे में ले लिया। इसके पहले आमिर की फिल्म ‘पीके’ में
धर्मभीरु लोगों पर कटाक्ष किया था, तब भी उनकी लोगों ने काफी खिल्ली उड़ाई
थी। तब भी आमिर खान के पोस्टर फाड़े और जलाए गए थे। उनकी यह दलील थी कि
आमिर खान ने इस्लाम के खिलाफ कटाक्ष क्यों नहीं किया? इस संदर्भ में जब
संगीतकार ए.आर. रहमान भी आमिर के साथ खड़े हो गए, तब लोगों को लगा कि इस
मामले में आमिर अकेले नहीं हैं। रहमान को भी मुस्लिम कट्टरपंथियों ने धमकी
दी थी। ईरान में बनी मोहम्मद पैगम्बर पर फिल्म में इस्लाम पर किसी तरह की
टिप्पणी नहीं की गई है और न ही मोहम्मद पैगम्बर का अपमान किया गया है। इसके
बाद भी केवल उस फिल्म में संगीत देने के एवज में मुम्बई की रजा अकादमी ने
रहमान का बहिष्कार करने की अपील की थी। आमिर ने हिंदू धर्मालंबियों का
गुस्सा देखने को मिला, उसी तरह रहमान को मुस्लिम धर्मालंबियों की नाराजगी
का शिकार होना पड़ा। ऐसे कई लोग हैं, जो विभिन्न धर्मों के लोगों के शिकार
होते ही रहते हैं। उनकी कोई खबर नहीं आती, पर ये सेलिब्रिटी हैं, इसलिए
इनके बारे में कुछ भी कहा जा सकता है। इनके बयान भी तुरंत सुर्खियां बन
जाते हैं।
आमिर भी भारत के 18 करोड़ मुस्लिमों की तरह देश का एक नागरिक है। उसे देश
में किसी भी प्रकार का डर लगता है, तो उसे कहने का अधिकार है। पर उसके कारण
उसे देशद्रोही करार देना न्यायोचित नहीं है। कानपुर की अदालत में मनोज
कुमार दीक्षित नामके वकील ने आमिर खान पर राजद्रोह के तहत मुकदमा चलाने की
अनुमति मांगकर हद ही कर दी। सेशन्स कोर्ट ने यह अपील पर तीन दिसम्बर को
सुनवाई करने के लिए कहा है। हमारी सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को शांत
करने के लिए असहिष्णु बन जाती है। इसके अलावा ब्रिटिश सरकार द्वारा तैयार
किए गए राजद्रोह के कानून का दुरुपयोग भी किया जा रहा है। इसी आधार पर आमिर
को परेशान करने की कोिशश की जा रही है। हमारे देश में ऐसा है कि जिस
व्यक्ति की चमड़ी को थोड़ा सा छिल दिया जाए, तो उसमें से असहिष्णुता के वाइरस
निकलने लगते हैं। दादरी में गाय के संभावित हत्यारे को शंका के आधार पर
जला दिया गया, तो मेंगलोर मंे गाय की रक्षा करने के लिए निकले हिंदू युवा
की हत्या कर दी गई। हमारा मीडिया हिंदुओं की असहिष्णुता को जितना अधिक
बढ़ाचढ़ाकर दिखाता है, उतना मुस्लिमों की असहिष्णुता को कभी नहीं बताता।
हमारे देश में असहिष्णुता बहुत बढ़ गई है, इसी आक्षेप के साथ अवार्ड वापस
करने वाले कितने जुनूनी बन गए हैं। उन्होेंने इस असहिष्णुता के प्रति
थोड़ी-सी भी सहिष्णुता दिखाई होती, तो छोटी सी बात इतनी अधिक तूल नहीं
पकड़ती। आमिर का विरोध करने वाले ही अब उनकी हिंदू पत्नी किरण राव को भी
चपेट में ले लिया है। वे अब किरण को यह सलाह देने लगे हैं कि यदि आमिर भारत
में ही रहकर तुम्हारी रक्षा नहीं करने में सक्षम नहीं हैं, तो देश छोड़ने
के बदले आमिर को ही छोड़ देना चाहिए। इस सलाह में हमें कहीं भी शालीनता
दिखाई नहीं देती, न ही नारी के प्रति अच्छे विचारों का प्रादुर्भाव होता
है। भारत की प्रजा असहिष्णु है, यह सच है, पर दुनिया के अन्य नागरिक भी
हमसे अधिक असहिष्णु हैं। इसलिए आमिर को यह समझ लेना चाहिए कि भारत छोड़कर वे
अन्य किसी देश में बस सकते हैं, ऐसा वे सोच भी नहीं सकते।
यह भी सच है कि आमिर अपने बयान पर अडिग रहते हुए यह भी कहा है कि भारत भी
मेरा देश है, मैं इस देश में रहकर गर्व का अनुभव करता हूँ। देश छोड़ने का
मेरा कोई इरादा नहीं है। पर एक सवाल आमिर से हर कोई पूछना चाहता है कि जब
वे अपनी फिल्म में हिंदू धर्म के पाखंड की पोल खोल रहे थे, तब उस फिल्म ने
आय के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। कुछ हद तक मुस्लिमों और ईसाई समाज में भी
हो रहे पाखंड पर भी कटाक्ष किया गया था, पर मुख्य रूप से कटाक्ष तो हिंदू
धर्म के पाखंडों को ही दर्शाया गया था। इसके बाद भी फिल्म सुपर-डुपर हिट
रही, क्योंकि अधिकांश दर्शक भी धार्मिक पाखंडों, ढोंग और अंधश्रद्धा के
खिलाफ पीके के सवालो को स्वीकार किया। इस मानसिकता में खुलापन नहीं है, तो
आखिर क्या है? तब किरण राव को भारत में रहने पर डर नहीं लगा? बस यही सवाल
है, जो आज हर भारतीय जानना चाहता है। हिंदू धर्म कितना सहिष्णु है, इस बात
का अंदाजा इस बात से साफ लग जाता है कि हमारे यहां लक्ष्मी पटाखे, गणेश छाप
बीड़ी भी मिल जाएंगी, पर हमारे विरोध कभी नहीं होता। पर ऐसा यदि दूसरे
धर्मों में हो, तो हंगामा हो जाएगा। यही देश है, जहाँ जीसस क्राइस्ट पर
बनने वाला धारावाहिक बीच में ही बंद कर दिया जाता है, इस्लाम के बारे में
आज तक किसी ने धारावाहिक से बताने की कोशिश भी नहीं की। संजय खान बजरंग बली
पर धारावाहिक बना सकते हैं, जो हिट भी साबित हो सकता है। टीपू सुल्तान पर
धारावाहिक बना सकते हैं, पर इस्लाम आखिर क्या है, यह बताने का साहस आज तक
जुटा नहीं पाए। तो आखिर सहिष्णु कौन है?
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच

शनिवार, 19 दिसंबर 2015
कविता - बढ़े चलो, बढ़े चलो - सोहनलाल द्विवेदी
सोहन लाल द्विवेदी (22 फ़रवरी 1906 - 1 मार्च 1988) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि हैं। ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के इस रचयिता को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया। महात्मा गांधी के दर्शन से प्रभावित होकर द्विवेदी जी ने बालोपयोगी रचनाएँ भी लिखीं। प्रस्तुत है उनकी एक प्रेरणादायक कविता -
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कविता,
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कहानी - अन्याय का विरोध - अंतोन चेखव
विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय कहानी लेखक अंतोन चेखव 19वीं शताब्दी के मध्य में ही विश्व के सर्वश्रेष्ठ कहानीकारों की अग्रिम पंक्ति में स्थान प्राप्त कर चुके थे। विश्व के सभी महान कथाकारों ने उनकी कहानी कला का लोहा माना है। सन् 1888 में उन्हें रूस का सर्वोच्च सम्मान 'पुश्किन पुरस्कार' प्राप्त हुआ। यहॉं उनकी एक सहज और सरल भावाभिव्यक्ति को कहानी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है -
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कहानी,
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गुरूभक्त एकलव्य की कथा
दृढ़ संकल्प के धनी एकलव्य की गुरूभक्ति से तो हम सभी परिचित हैं। इसी एकलव्य की संक्षिप्त कथा को यहॉं प्रस्तुत किया जा रहा है -
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कथा,
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शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015
ललित निबंध - उम्र पचपन याद आता है बचपन
डाॅ. महेश परिमल के इस निबंध में बचपन की शरारतों को पचपन के होने तक सहेजकर रखने का संदेश छिपा है। यह सच हे कि बचपन कभी लौटकर नहीं आता, पर उसकी यादें हमें कभी बूढ़ा नहीं होने देती। हम चाहें तो उम्र के हर पड़ाव पर इसे भरपूर जी सकते हैं और अपने बच्चों को भी इसे जीने की प्रेरणा दे सकते हैं -
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ललित निबंध

श्रीनिवास श्रीकांत की कविताऍं -
इन्होंने कविताओं के माध्यम से जीवन के अनेक भावों का सूक्ष्म मानचित्रीकरण किया है। इनके काव्य जगत का विस्तृत फलक मानवीय परिवेश से ब्रह़मांड के रहस्यों तक फैला है -
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गुरुवार, 17 दिसंबर 2015
सुब्रतो के बाद अब माल्या:समय बड़ा बलवान
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आज का सच

बुधवार, 16 दिसंबर 2015
सुबह के संयोग
डॉ. महेश परिमल
बहुत ही सुहानी होती है, सुबह की सैर। कभी देखी है आपने सुबह हाेने से पहले प्रकृति की तैयारी? कहते हैं प्रकृति अपना संतुलन बनाए रखती है। जो अपनी सेहत के प्रति सजग रहते हैं, उनकी सुबह तो बहुत ही फलदायी होती है। गर्मी के मौसम में सुबह निकलना कोई बड़ी बात नहीं है। ठंड की सुबह में निकलो, तो जाने। सच में ठंड की सुबह या कह ले अलसभोर में हमारे सामने बहुत कुछ ऐसा होता है, जिसे हमने पहले कभी महसूस ही नहीं किया होता है। उसे महसूस करना हो, तो सुबह से अच्छा कोई समय हो ही नहीं सकता। बात करते हैं सुबह से पहले की सुबह की। सूरज निकलने में अभी करीब डेढ़ घंटे हैं। आप अपनी रजाई से नाता तोड़ें, यह बहुत ही मुश्किल काम है। पर वह तो आपको करना ही होगा। यदि डॉक्टर ने सुबह की सैर के लिए कह दिया है, तो यह आपकी विवशता हो सकती है। पर नहीं, आप संकल्प ले लें कि सुबह उठना ही है, तब कोई व्यवधान उपस्थित नहीं होगा। कहते हैं कि जिसने सुबह की नींद त्याग दी, वह योगी होता है। सुबह की मीठी नींद के लिए लोग अपने बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण काम भी छोड़ देते हैं, पर जो नींद को छोड़ देते हैं, वे महान होते हैं। स्वयं को अच्छे रास्ते पर लाने यह एक छोटा-सा गुण है।
अलसभोर आप निकलें, तो पाएंगे कि कुछ बुजुर्गों की चहल-कदमी, मंद गति से दौड़ते युवा, बतियाती महिलाएं, इक्का-दुक्का वाहनों का गुजरना, रेल्वे या बस स्टेंड जाते लोग, दूध वाली वैन, कभी कोई भजन मंडली, दूर से मस्जिद से उठती अजान की आवाज, सड़क पर पसरे लावारिस पशु, कभी कोई कुत्ता, गाय-भैंस या फिर कोई अन्य उपेक्षित पशु। बायींंंंं तरफ पंक्तिवार आते मकान, जिसमें डॉ. शरद गुप्ता, इंजीनियर सिद्दिकी, सरदार करतार सिंह, मोहन मालवीय, जे.के.परमार, श्रीमती अंजू साहा आदि नाम तो याद हो ही जाते हैं। कभी आकाश की ओर नजर घुमा लो, तो चंद्रमा के साथ पंक्ति में शुक्र तारा दिखाई देता है। कभी-कभार कुछ पक्षी तेज आवाज से साथ ही करीब से गुजरते हैं। अभी तो चिड़ियों की आवाजें नहीं आ रही हैं, पर उनके होने का आभास होने लगा है। वापस लौटते हुए कभी किसी घर पर नजर डाल दी जाए, जहां लिखा होता है कि कुत्तों से सावधान। इन घरों के मालिक अपने डॉगी के साथ घूमने िनकलते हैं। आगे चलकर वे डॉगी को लिए हुए सड़क के एक किनारे हो जाते हैं, जहाँ उनका डॉगी ‘पोट्टी’ करता है। थोड़ी देर बाद वे डॉगी के साथ आगे बढ़ जाते हैं। अमेरिका के फिलाडेल्फिया शहर में मैंने देखा कि वहां भी डॉगी को लेकर लोग घूमने निकलते हैं, तो पूरी तैयारी के साथ निकलते हैं। इस बीच यदि डॉगी ने कहीं ‘पोट्टी’ कर दी, तो डॉगी का मालिक अपने हाथ पर प्लास्टिक के दस्ताने पहनता है, जमीन से पूरी ‘पोट्टी’ उठाता है, फिर उसी दस्ताने को कुछ इस तरह से हाथ से बाहर करता है कि ‘पोट्टी’ दस्ताने के भीतर और साफ हाथ बाहर हो जाता है। उसके बाद भी उस स्थान को और भी अच्छे से साफ कर आगे की डस्टबीन में डाल दिया जाता है। ये सारा काम डॉगी का मालिक या मालकिन ऐसे करते हैं, मानों वह उनका अपना ही काम हो। सफाई के प्रति संवेदना यहीं से जागती है। हमें वहां तक पहुंचने में काफी वक्त लगेगा।
चिड़ियों की चहचहाट के साथ सुबह अब आगे बढ़ चुकी है, अब तो स्कूल की बसें में दिखाई देने लगी है। अखबार बांटने वाले युवा भी दिखाई देने लगे हैं। जो तेजी से अपना काम कर रहे होते हैं, क्योंकि इन्हीं में से कुछ को स्कूल और कॉलेज जाना हाेता है। अब सड़क पर काफी लोग दिखने लगे हैं। जिसमें युवतियां भी शामिल हैं। ऐसे में तीन युवकों के साथ एक युवती भी दिखाई दे जाए, तो आश्चर्य होता है। वह इसलिए कि वे किसी कंपनी के द्वारा अपने उत्पाद को बेचने के उद्देश्य से लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण करते हैं। युवती इसलिए शामिल होती है कि सुबह सैर को निकली अन्य युवती को स्वास्थ्य परीक्षण कराने में किसी प्रकार की झिझक महसूस न हो। सोचता हूं कितने कठोर होते हैं कंपनी के नियम। ये सैर को नहीं निकले हैं, बल्कि अपने उत्पाद के प्रचार के लिए उन्होंने सुबह का समय चुना है। अब तो मंदिरों के घंटों की आवाजें भी आने लगी हैं। इस दौरान देखा गया कि सचमुच लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील हैं, क्योंकि सुबह की सैर को निकले बुजुर्गों या युवाओं को धूम्रपान करते नहीं देखा। शायद सेहत के सामने इसकी नहीं चलती। एक बात यह भी नोटिस की, किसी चेहरे पर खीझ नहीं होती। लोग इत्मीनान से चलते हुए आगे बढ़ते हैं। कुछ लोग मोबाइल से भजन सुनते हैं, तो कुछ लोग आधुनिक गीत। पर ये संगीत कभी कानफोड़ नहीं होता। मोबाइलधारी इसका विशेष खयाल रखते हैं, तब वे ईयरफोन का इस्तेमाल करते हैं। संगीत उन्हीं तक सीमित होता है।
सुबह के इन संयोगों के दर्शन केवल उन्हें ही होते हैं, जो सेहत के अलावा अपना अनुशासित जीवन जीना चाहते हैं। जो सुबह जल्दी उठते हैं, उनका दिन भी अच्छे से गुजरता है। सारे काम आराम से निपटते हैं। दोपहर नींद का हल्का और प्यारा सा झोंका भी आता है। जो केवल 15 या 20 मिनट में ही तरोताजा कर देता है। यह झोंका सुबह की मीठी नींद से भी प्यारा होता है। संकल्प के साथ शुरू हुई जीवन की यह सुबह हमें कई संदेश दे जाती है। तो आओ, इन संदेशों को जानने-समझने की एक छोटी-सी शुरुआत करते हैं, सुबह जल्दी उठकर, नींद से नाता तोड़कर, रजाई को एक और फेंककर। एक कोशिश...बस एक कोशिश.....
डॉ. महेश परिमल
बहुत ही सुहानी होती है, सुबह की सैर। कभी देखी है आपने सुबह हाेने से पहले प्रकृति की तैयारी? कहते हैं प्रकृति अपना संतुलन बनाए रखती है। जो अपनी सेहत के प्रति सजग रहते हैं, उनकी सुबह तो बहुत ही फलदायी होती है। गर्मी के मौसम में सुबह निकलना कोई बड़ी बात नहीं है। ठंड की सुबह में निकलो, तो जाने। सच में ठंड की सुबह या कह ले अलसभोर में हमारे सामने बहुत कुछ ऐसा होता है, जिसे हमने पहले कभी महसूस ही नहीं किया होता है। उसे महसूस करना हो, तो सुबह से अच्छा कोई समय हो ही नहीं सकता। बात करते हैं सुबह से पहले की सुबह की। सूरज निकलने में अभी करीब डेढ़ घंटे हैं। आप अपनी रजाई से नाता तोड़ें, यह बहुत ही मुश्किल काम है। पर वह तो आपको करना ही होगा। यदि डॉक्टर ने सुबह की सैर के लिए कह दिया है, तो यह आपकी विवशता हो सकती है। पर नहीं, आप संकल्प ले लें कि सुबह उठना ही है, तब कोई व्यवधान उपस्थित नहीं होगा। कहते हैं कि जिसने सुबह की नींद त्याग दी, वह योगी होता है। सुबह की मीठी नींद के लिए लोग अपने बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण काम भी छोड़ देते हैं, पर जो नींद को छोड़ देते हैं, वे महान होते हैं। स्वयं को अच्छे रास्ते पर लाने यह एक छोटा-सा गुण है।
अलसभोर आप निकलें, तो पाएंगे कि कुछ बुजुर्गों की चहल-कदमी, मंद गति से दौड़ते युवा, बतियाती महिलाएं, इक्का-दुक्का वाहनों का गुजरना, रेल्वे या बस स्टेंड जाते लोग, दूध वाली वैन, कभी कोई भजन मंडली, दूर से मस्जिद से उठती अजान की आवाज, सड़क पर पसरे लावारिस पशु, कभी कोई कुत्ता, गाय-भैंस या फिर कोई अन्य उपेक्षित पशु। बायींंंंं तरफ पंक्तिवार आते मकान, जिसमें डॉ. शरद गुप्ता, इंजीनियर सिद्दिकी, सरदार करतार सिंह, मोहन मालवीय, जे.के.परमार, श्रीमती अंजू साहा आदि नाम तो याद हो ही जाते हैं। कभी आकाश की ओर नजर घुमा लो, तो चंद्रमा के साथ पंक्ति में शुक्र तारा दिखाई देता है। कभी-कभार कुछ पक्षी तेज आवाज से साथ ही करीब से गुजरते हैं। अभी तो चिड़ियों की आवाजें नहीं आ रही हैं, पर उनके होने का आभास होने लगा है। वापस लौटते हुए कभी किसी घर पर नजर डाल दी जाए, जहां लिखा होता है कि कुत्तों से सावधान। इन घरों के मालिक अपने डॉगी के साथ घूमने िनकलते हैं। आगे चलकर वे डॉगी को लिए हुए सड़क के एक किनारे हो जाते हैं, जहाँ उनका डॉगी ‘पोट्टी’ करता है। थोड़ी देर बाद वे डॉगी के साथ आगे बढ़ जाते हैं। अमेरिका के फिलाडेल्फिया शहर में मैंने देखा कि वहां भी डॉगी को लेकर लोग घूमने निकलते हैं, तो पूरी तैयारी के साथ निकलते हैं। इस बीच यदि डॉगी ने कहीं ‘पोट्टी’ कर दी, तो डॉगी का मालिक अपने हाथ पर प्लास्टिक के दस्ताने पहनता है, जमीन से पूरी ‘पोट्टी’ उठाता है, फिर उसी दस्ताने को कुछ इस तरह से हाथ से बाहर करता है कि ‘पोट्टी’ दस्ताने के भीतर और साफ हाथ बाहर हो जाता है। उसके बाद भी उस स्थान को और भी अच्छे से साफ कर आगे की डस्टबीन में डाल दिया जाता है। ये सारा काम डॉगी का मालिक या मालकिन ऐसे करते हैं, मानों वह उनका अपना ही काम हो। सफाई के प्रति संवेदना यहीं से जागती है। हमें वहां तक पहुंचने में काफी वक्त लगेगा।
चिड़ियों की चहचहाट के साथ सुबह अब आगे बढ़ चुकी है, अब तो स्कूल की बसें में दिखाई देने लगी है। अखबार बांटने वाले युवा भी दिखाई देने लगे हैं। जो तेजी से अपना काम कर रहे होते हैं, क्योंकि इन्हीं में से कुछ को स्कूल और कॉलेज जाना हाेता है। अब सड़क पर काफी लोग दिखने लगे हैं। जिसमें युवतियां भी शामिल हैं। ऐसे में तीन युवकों के साथ एक युवती भी दिखाई दे जाए, तो आश्चर्य होता है। वह इसलिए कि वे किसी कंपनी के द्वारा अपने उत्पाद को बेचने के उद्देश्य से लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण करते हैं। युवती इसलिए शामिल होती है कि सुबह सैर को निकली अन्य युवती को स्वास्थ्य परीक्षण कराने में किसी प्रकार की झिझक महसूस न हो। सोचता हूं कितने कठोर होते हैं कंपनी के नियम। ये सैर को नहीं निकले हैं, बल्कि अपने उत्पाद के प्रचार के लिए उन्होंने सुबह का समय चुना है। अब तो मंदिरों के घंटों की आवाजें भी आने लगी हैं। इस दौरान देखा गया कि सचमुच लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील हैं, क्योंकि सुबह की सैर को निकले बुजुर्गों या युवाओं को धूम्रपान करते नहीं देखा। शायद सेहत के सामने इसकी नहीं चलती। एक बात यह भी नोटिस की, किसी चेहरे पर खीझ नहीं होती। लोग इत्मीनान से चलते हुए आगे बढ़ते हैं। कुछ लोग मोबाइल से भजन सुनते हैं, तो कुछ लोग आधुनिक गीत। पर ये संगीत कभी कानफोड़ नहीं होता। मोबाइलधारी इसका विशेष खयाल रखते हैं, तब वे ईयरफोन का इस्तेमाल करते हैं। संगीत उन्हीं तक सीमित होता है।
सुबह के इन संयोगों के दर्शन केवल उन्हें ही होते हैं, जो सेहत के अलावा अपना अनुशासित जीवन जीना चाहते हैं। जो सुबह जल्दी उठते हैं, उनका दिन भी अच्छे से गुजरता है। सारे काम आराम से निपटते हैं। दोपहर नींद का हल्का और प्यारा सा झोंका भी आता है। जो केवल 15 या 20 मिनट में ही तरोताजा कर देता है। यह झोंका सुबह की मीठी नींद से भी प्यारा होता है। संकल्प के साथ शुरू हुई जीवन की यह सुबह हमें कई संदेश दे जाती है। तो आओ, इन संदेशों को जानने-समझने की एक छोटी-सी शुरुआत करते हैं, सुबह जल्दी उठकर, नींद से नाता तोड़कर, रजाई को एक और फेंककर। एक कोशिश...बस एक कोशिश.....
डॉ. महेश परिमल
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ललित निबंध

गुरुवार, 3 दिसंबर 2015
ललित निबंध - लिखो पाती प्यार भरी
यह डॉ. महेश परिमल की ललित निबंधों की पहली किताब है। जिसे मध्यप्रदेश शासन द्वारा दुष्यंत कुमार स्मृति साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया है। प्रस्तुत निबंध किताब का पहला ललित निबंध है, जिसमें पत्रों की महिमा को बताने की एक कोशिश की गई है -
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ललित निबंध

बुधवार, 2 दिसंबर 2015
देश में शांति का माहौल
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अभिमत

महाभारत कथा भाग - 13
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कथा,
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महाभारत कथा भाग - 12
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महाभारत कथा भाग - 11
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महाभारत कथा भाग - 10
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महाभारत कथा भाग - 9
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महाभारत कथा भाग - 8
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महाभारत कथा भाग - 7
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महाभारत कथा भाग - 6
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महाभारत कथा भाग - 5
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महाभारत कथा भाग - 4
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महाभारत कथा भाग - 3
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कथा,
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महाभारत कथा भाग - 2
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महाभारत कथा भाग - 1
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मंगलवार, 1 दिसंबर 2015
राजेन्द्र निशेश की कुछ कविताऍं -
राजेन्द्र निशेश ने अपनी कविताओं में कोमल भावनाओं को उकेरा है। आप भी इन कविताओं का आनंद लीजिए -
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खिलखिलाती प्रकृति का अट्टहास
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