मंगलवार, 2 नवंबर 2021

निंदिया बैरन भई....




जनसत्ता में एक नवम्बर 21 को प्रकाशित



दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 06 दिसम्बर 21 को प्रकाशित




 कोई मुझे गहरी नींद दे दे....

दुनिया में हर चीज का आदान-प्रदान हो सकता है। हम खुशियों को बांट सकते हैं, दु:ख को बांट सकते हैं, सुख को बांट सकते हैं। पर नींद ही एक ऐसी परोक्ष चीज है, जिसे हम कभी बांट नहीं सकते। इंसान भले ही दूसरों को मौत की नींद सुला सकता है, पर वास्तविक नींद कभी नहीं दे सकता। यह सच है कि सुविधाओं के बीच नींद नहीं आती। नींद तो असुविधाओं के बीच ही गहरी होती है। नींद एक ऐसा अहसास है, जिसमें कोई बंधन नहीं होता। यह कोई सम्पत्ति भी नहीं है, जिसे जमा करके रखा जाए। आज के जमाने में जिसे अच्छी नींद आती है, उससे अधिक अमीर और सुखी कोई नहीं। जो जागी आंखों से पूरी रात निकाल देते हैं, उन्हें फुटपाथ पर बेसुध सोये हुए लोगों को देखकर ईर्ष्या हो सकती है, पर कुछ किया नहीं जा सकता।

कुछ लोग तमाम सुविधाओं के बीच भी सो नहीं पाते, तो कुछ हाथ को तकिया बनाकर जमीन पर ही सो जाते हैं। कुछ लोग करवटें बदल-बदलकर कर थक जाते हैं, फिर भी नींद नहीं आती, तो कुछ लोग बिस्तर पर जाने के तुरंत बाद सो भी जाते हैं। यह सच है कि नींद बाजार में नहीं मिलती। कई बार अधिक मेहनत करने के बाद भी नींद नहीं आती। झपकी को नींद की छोटी बहन माना जा सकता है। दोपहर के भोजन के बाद हल्की-सी झपकी भी कई घंटों की गहरी नींद की तरह होती है। जिन्हें अच्छी नींद आती है, वे किस्मत वाले होते हैं। दवाओं के सहारे सोने वाले बदकिस्मत होते हैं। अच्छी नींद के बाद शरीर की कई व्याधियों का खात्मा होता है।

नींद का मस्तिष्क से सीधा-सा संबंध है। गहरी नींद का स्वामी वही होता है, जो वीतरागी होता है। जन्म लेने के बाद बच्चा पूरी तरह से निर्दोष होता है, इसलिए 18 घंटे तक सो लेता है। जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती जाती है,वह गलतियों और बुरे विचारों से घिरने लगता है, तब उसके हिस्से की नींद उसे नहीं मिलती। जिसने कभी किसी का बुरा नहीं किया, उसके घोड़े तो पूरी तरह से बिक चुके होते हैं अर्थात वह भरपूर नींद का अधिकारी होता है। नींद का सीधा संबंध हमारी दिनचर्या से है। दिन भर अच्छा सोचो, अच्छा करो, किसी का भी बुरा न करो, किसी को बुरा न कहो, तो उसे रात में बहुत अच्छी नींद आएगी। पर आजकल ऐसा कौन कर पाता है, इसलिए वह अच्छी और भरपूर नींद से वंचित होता है।

नींद न आना कोई बीमारी नहीं है। यह हमारी मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है कि हमें कैसी नींद आ रही है। एक भरपूर नींद के लिए कुछ चुकाना नहीं पड़ता। बस निर्दोष होना होता है। पर निर्दोष होना ही मुश्किल है। अच्छी नींद के लिए बहुत जरूरी है, बिस्तर पर अपने अच्छे विचारों को लेकर जाया जाए। अपने तनाव को कमरे के बाहर ही रख दें, तो बेहतर। तनाव का नींद से 36 का आंकड़ा है। जहां तनाव है, वहां नींद गायब होगी। जहां अच्छी नींद है, वहां तनाव ठहर ही नहीं सकता। एक बार किसी अनजाने को कुछ देकर देखो, आप पाएंगे कि उस दिन आपको अन्य दिनों की अपेक्षा अच्छी नींद आएगी। कुछ पाने की खुशी अच्छी नींद दे या न दे पाए, पर यह सच है कि कुछ देकर हम अच्छी नींद पा ही सकते हैं। देना नींद का पहला सबक है। यह देना भले ही अच्छे विचार का ही क्यों न हो। अच्छी और गहरी सोच भी भरपूर नींद में सहायक सिद्ध होती है। किसी को एक हल्की से मुस्कान देकर भी अच्छी नींद की प्राप्ति हो सकती है। नींद शारीरिक से अधिक मानसिक स्थिति को नियंत्रित करती है। कहा गया है ना मन चंगा तो कठौती में गंगा। मन की स्थिति स्थिर है, तो यह अच्छी और भरपूर नींद के लिए बहुत ही ज्यादा उपयोगी है।

हम नींद को खरीद नहीं सकते, पर उसे लाने के लिए मेडिकल स्टोर्स से गोलियां ले सकते हैं। वह भी डॉक्टर के कहने पर। इसके बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि गोलियां लेने के बाद आपको नींद आएगी। नहीं भी आ सकती। आएगी, तो वह शरीर को आराम नहीं देगी, बल्कि दूसरी व्याधियों के लिए आपको तैयार कर देगी। आप चाहकर भी अच्छी नींद नहीं ले पाएंगे। बचपन में सुनी लोरियां यदि सोने के दौरान गुनगुनाएं, तो संभव है आपको नींद आ जाए, क्योंकि बचपन के आंगन में विचरने से हमारा बचपन भी लौट आता है। फिर बचपन में नींद के लिए कभी कोई समय निश्चित नहीं होता था। कई बार ऐसा होता है कि झोपड़ियों में खर्राटे गूंजते हैं और महल रात भर जागते रहते हैं। इसकी वजह जानते हैं आप? वजह सिर्फ यही कि झोपड़ियों के लोग अपने और परिवार के बीच प्यार से रहते हैं। छोटे से घर में एक परिवार शांति से रह लेता है। पर महलों, अट्‌टालिकाओं के हर कमरे में तनाव का वास होता है, वहां भीतर जाने के लिए प्यार तरसता रहता है। प्यार को वहां जाने की अनुमति नहीं मिलती। इसलिए वहां सन्नाटा चीखता है, वहां के लोग नींद की गोलियां खाकर भी चैन से नहीं सो पाते। 

प्राकृतिक रूप से नींद से बोझिल आंखें केवल बच्चों की ही होती हैं, क्योंकि ये निर्दोष होती है। अच्छी नींद के बाद जब आंखें खुलती है, तब उससे प्यार टपकता है। यह प्यार आंसू के रूप में भी हो सकता है। इसलिए हमारे आसपास कई निर्दोष आंखें होती हैं, हमें उसे पहचानने की कोशिश करनी होती है। ये आंखें या तो बच्चों की होती हैं, या फिर बुजुर्गों की। युवाओं की आंखों में निर्दोष होने का भाव कम ही नजर आता है। इसलिए जब कभी अच्छी नींद की ख्वाहिश हो, तो दिन में कुछ अच्छे काम कर ही लो, फिर पास में किसी बच्चे को अपने पास सुला लो, उसकी निर्दोष आंखों को देखते-देखते आपको अच्छी नींद आ ही जाएगी। यह एक छोटा-सा प्रयोग है, इसे एक बार...बस एक बार आजमा कर देखो, आप भरपूर नींद के स्वामी होंगे।

डॉ. महेश परिमल


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