गुरुवार, 28 अक्तूबर 2021

ओटीटी प्लेटफार्म पर अंकुश की तैयारी

न दिनों कई फिल्में और वेब सीरीज ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज हो रही हैं। इससे सभी की कमाई हो रही है। पर हमारे समाज में अब तक जिसे गुप्त या गोपनीय माना जाता रहा है, उसे ही इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खुलकर दिखाया जा रहा है। ओटीटी प्लेटफार्म में रिलीज होने वाली फिल्में और वेब सीरीज में सेंसर की कैंची नहीं चल पाती, इसलिए अपशब्दों का खुलकर प्रयोग हो रहा है। दूसरी ओर हिंसा और अंतरंग संबंध को भी इस तरह से दिखाया जा रहा है कि हम उसे परिवार के साथ नहीं देख सकते। फिर भी देखने का जोखिम उठा रहे हैं। इन सब बातों को लेकर सरकार अब सचेत होने लगी है। उसने ओटीटी प्लेटफार्म की फिल्मों एवं वेब सीरीज पर कड़ी नजर रखते हुए उस पर अंकुश लगाने की तैयारी कर रही है। फलस्वरूप इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने डिजिटल पब्लिशर्स कंटेंट ग्रिवन्सिस काउंसिल बनाने की घोषणा की है।

सरकार के नए आईटी एक्ट का पालन करने के संबंध में सोशल मीडिया कंपनियों ने सहमति दर्शाई है। दूसरी ओर इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने ओवर द टॉप यानी ओटीटी प्लेटफार्म पर लगाम कसने के लिए डिजिटल पब्लिशर्स कंटेंट ग्रिवन्सिस काउंसिल की घोषणा की है। इस कदम के बाद फेसबुक, वाट्स एप, गूगल जैसी सोशल मीडिया कंपनियों के अलावा नेटफ्लिक्स, अमेजन, हॉटस्टार, प्राइम जैसे अनेक डिजिटल प्लेटफार्म पर सेंसरशिप लागू हो जाएगी। कुछ समय पहले ही केंद्र सरकार ने सभी डिजिटल प्लेटफार्म को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन करने की घोषणा की थी। पिछले कुछ बरसों से ओटीटी प्लेटफार्म को लेकर काफी विवाद हुए हैं। इसलिए सरकार ने इस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता समझी। वैसे भी भारत में इंटरनेट पर समाचार और करंट अफेयर्स, और मनोरंजन पर आधारित वेबसाइट्स और एप नए ही कहे जाएंगे। इन सेवाओं को शुरू हुए एक दशक भी नहीं हुए हैं। भारत की टॉकीजों में रिलीज होने वाली फिल्मों के लिए सेंसर बोर्ड, टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों के लिए ट्राई और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय है। न्यूज चैनलों के लिए न्यूज ब्राडकॉस्टर एसोसिएशन, एडवर्टाइजिंग के लिए एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल और अखबारों के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जैसी नियामक संस्थाएं हैं। परंतु अभी तक इंटरनेट पर आधारित इन दोनों क्षेत्रों पर किसी का सीधा नियंत्रण नहीं था। इसका पूरा फायदा अब तक उठाया जाता रहा है। इस दौरान बहुत से वेबसीरीज ऐसी आई, जिसमें राजनीतिक टिप्पणियां खुलकर की जाती रही हैं। अपशब्दों के साथ अंतरंगता के दृश्य भी खुलकर दिखाए जाते रहे। आईटी मंत्रालय इंटरनेट से संबंधित मामले का ध्यान रखती है। पर इसके पास वेबसाइट पर दिखाई जाने वाली सामग्री के मापदंड तय करने का अधिकार नहीं था। अब यदि सूचना-प्रसारण मंत्रालय इंटरनेट पर मनोरंजन परोसने वाले प्लेटफार्म तथा एप के लिए मापदंड तय करने की शुरुआत करता है, तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे, यह तय है।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक न्यूज चैनल के विवादास्पद कार्यक्रम के संबंध में सुनवाई चल रही थी, तब देश में मीडिया रेग्युलेशन को लेकर चर्चा होने लगी। कोर्ट में चर्चा के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि टीवी और प्रिंट मीडिया से पहले डिजिटल मीडिया पर नियंत्रण की आवश्यकता है। इस पर कोर्ट का कहना था कि डिजिटल मीडिया माध्यम पर प्रसारित होने वाली सामग्री का मूल्यांकन उपभोक्ता स्वयं ही कर देता है। इसलिए लोगों को भी यह आजादी होनी चाहिए कि वे क्या पढ़ना चाहते हैं या क्या देखना चाहते हैं।

वास्तव में समाज को प्रभावित करने वाले किसी भी मीडिया पर अंकुश तो होना ही चाहिए। ओटीटी प्लेटफार्म पर क्या परोसा जा रहा है, इसे भी ध्यान में रखना आवश्यक है। आज तो ओटीटी प्लेटफार्म, न्यूज पोर्टल्स और समाज के बीच उत्पादक और ग्राहक का संबंध हो गया है। आजकल हेडलाइंस ही इतनी आकर्षक बनाई जा रही है कि लोग क्लिक करने से बाज नहीं आते। बाद में सामग्री पढ़ने के बाद पता चलता है कि हेडलाइंन और कंटेंट के बीच कोई जुड़ाव है ही नहीं। उधर न्यूज चैनल भी टीआरपी के चक्कर में रसातल में जा रहे हैं। डिजिटल प्लेटफार्म भी विकृत सामग्री परोसने लगे हैं। अधिक से अधिक क्लिक प्राप्त करने के चक्कर में अधकचरी सामग्री परोसी जा रही है। किसी सेलिब्रिटी या नेता का कद बढ़ाने या घटाने के लिए, किसी की छवि चमकदार या धूमिल करने के लिए इसका भरपूर उपयोग किया जा रहा है। इस समय खबरों का प्रामाणिक होना एक समस्या है। पहले जब सूचना के स्रोत काफी कम थे, लोग अखबार या टीवी से ही खबरें प्राप्त करते थे। आज हर हाथ में स्मार्ट फोन आ गया है, इसलिए फालतू की खबरें भी तेजी से भागने लगी हैं। लोग इसकी सत्यता की जांच के बिना ही फारवर्ड करने लगे हैं। कुछ ही समय में ही एक बुरी खबर सच की तरह सामने आ जाती है। जिसका कोई आधार ही नहीं होता। आज झूठी, मनगढ़ंत, भ्रम पैदा करने वाली, बेबुनियाद अफवाहें, चरित्रहनन और द्वैर द्वेष फैलाने वाली सूचनाओं का बोलबाला है। इसका सशक्त माध्यम यही डिजिटल प्लेटफार्म है। आधुनिक टेक्नालॉजी, सस्ते डेटा पैकेज और स्मार्ट फोन ने पूरी दुनिया को मुट्‌ठी में कैद कर लिया है। इस कारण यह आज एक बड़ी ताकत के रूप में उभरा है। इसीलिए इस पर अंकुश की बात उठने लगी है।

इंटरनेट एक ऐसा प्लेटफार्म है, जिस पर नियंत्रण की बात करना सरल है, परंतु उस पर अमल करना उतना ही मुश्किल है। इंटरनेट को किसी भी देश की सीमा रोक नहीं सकती, क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन इसके रास्ते में अवरोध होता है। इस पर नियंत्रण एक बहुत बड़ी चुनौती है। सत्य बाहर आए, ऐसा लोग चाहते हैं। परंतु किसी भी मामले को तोड़-मरोड़कर प्रसारित करने से पूरा मामला ही उलझ जाता है। लोगों की विचारधारा को बदलने का प्रयास किया जाता है। इस कारण बुरे विचार हावी होने लगते हैं। अनेक मामलों में आभासी वास्तविकताओं को दर्शाया जाता है। इससे लोग सच्चाई से दूर होने लगते हैं। आधे सच को पूरे सच की तरह पेश किया जाता है। यह भयावह स्थिति है, जो समाज के लिए खतरनाक साबित होगी। इंटरनेट पर परोसे जाने वाली सामग्री अब तक किसी भी नियामक संस्था की नजर से दूर है। इसलिए वह आजाद है। ऐसे प्लेटफार्म पर ऐसी-ऐसी बातें सामने लाई जा रहीं हैं, जिससे कई बार सरकार भी सांसत में आ गई है। इसलिए कई लोगों का मानना है कि सरकार इंटरनेट पर अंकुश लगाए।

हकीकत यह भी है कि सिनेमा और टीवी कार्यक्रमों पर अनावश्यक रूप से कैंची चलाने की प्रवृत्ति से तंग आकर अनेक फिल्म निर्माता-निर्देशकों ने ओटीटी प्लेटफार्म पर अपनी फिल्में और धारावाहिक प्रसारित करना मुनासिब समझा। समाचार चैनलों पर पर्याप्त आजादी न मिलने के कारण कई पत्रकारों ने स्वतंत्र रूप से इंटरनेट माध्यमों पर अपने विचारों को व्यक्त करना शुरू कर दिया है। अब समस्या यह है कि सरकार ने इंटरनेट की सामग्री पर नजर रखना शुरू कर दिया, तो विविध कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोटने की आशंका भी पैदा जा जाएगी। अनैतिकता पर अंकुश लगाने का काम ईमानदारी से हो, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है। पर यदि गलत मंशा के साथ इस पर अंकुश लगाया जाता है, तो इससे समाज में गलत संदेश जाएगा। इसे देखते हुए कुछ लोगों का मानना है कि इस पर अंकुश लगाने के बजाए इसे लोगों पर ही छोड़ दिया जाए। इंटरनेट को किसी भी देश की सीमा बांध नहीं सकती, इसलिए सरकार के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। अब देखना है कि सरकार इस दिशा में कौन-से कदम उठाती है?

डॉ. महेश परिमल


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