शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

100 करोड़ वैक्सीनेशन, विश्व में भारत की प्रशंसा



सबेरा संकेत राजनांदगाँव में प्रकाशित आलेख





100 करोड़ वैक्सीनेशन, विश्व में भारत की प्रशंसा

यह देश के लिए गौरव के पल हैं कि हमारे देश के 100 करोड़ नागरिकों को वैक्सीन के डोज लग गए हैं। देश के इस वैक्सीनेशन अभियान की पूरे विश्व में प्रशंसा हो रही है। इस मामले में अभी हम केवल चीन से पीछे हैं, वहां दो अरब लोगों को टीका लग चुका है। बाकी कई देश तो हमसे काफी पीछे हैं। यही नहीं, अमेरिका से भी हम वैक्सीनेशन के मामले में बहुत आगे हैं। इस दौरान हमने कई चुनौतियों के पर्वतों को पार किया। इसे दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान माना जा रहा है।

देश की विशाल जनसंख्या को देखते हुए टीकाकरण अभियान एक बहुत बड़ी चुनौती थी। परंतु हमने उस मुकाम को प्राप्त कर ही लिया। देशवासी पहले की तरह सामान्य जीवन जी सकें, इसके लिए अभी भी चुनौतियों के कई पर्वतों को पार करना शेष है। कोरोना महामारी के चलते देश में 21 अक्टूबर 2021 का दिन ऐतिहासिक माना जाएगा। इस दिन देश ने वैक्सीन के डोज का आंकड़ा 100 करोड़ को पार कर गया। हमारे देश में सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत 15 जनवरी 2021 से हुई। इसके लिए देश में 3000 सेंटर स्थापित किए गए। सबसे पहले चरण में स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन के कर्मचारियों को वैक्सीन के डोज दिए गए। इस अभियान के पहले ही दिन करीब दो लाख लोगों को वैक्सीन के डोज दिए गए। इसके बाद पहली अप्रैल से 60 साल से अधिक उम्र के लोगों को वैक्सीन के डोज देने का कार्यक्रम चलाया गया। इसके बाद मई से 18 साल से अधिक आयु के लोगों को वैक्सीन के डोज देने का कार्यक्रम चलाया गया।

इस अभियान के शुरु होते ही लोगों में आशंका और घबराहट का माहौल देखा गया। लोग वैक्सीन लेने में आनाकानी करने लगे थे। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में हालत बहुत ही खराब थी। जानकारी के अभाव में लोगों में वैक्सीन के प्रति डर पैछा हो गया था। सरकारी मशीनरी के माध्यम से पहले तो लोगों का डर दूर किया गया। वैक्सीन के प्रति जागृति लाने में सरकारी तंत्र को काफी मशक्कत का सामना करना पड़ा।

इस दौरान एक वर्ष से भी कम समय में वैक्सीन तैयार करने का भी रिकॉर्ड बना। आमतौर पर एक वैक्सीन को बनाने में करीब 10 वर्ष लगते हैं, पर हमारे देश में इसे बनाने में केवल दस महीने ही लगे। इस तरह से कोरोना के लिए दुनिया में हमारे देश में ही सबसे तेजी से विकसित हुई वैक्सीन तैयार हुई। कोरोना के लिए वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल है। इस प्रक्रिया में धैर्य का होना अतिआवश्यक है। वैक्सीन बनाने वाली कंपनी को अलग-अलग स्तर पर मंजूरी लेनी होती है, जिसमें कई महीने लग जाते हैं। एक वैक्सीन को तैयार होने में 3-4 साल लग जाते हैं। परंतु कोरोना ने जिस तरह से पूरे विश्व में तबाही मचाई थी, उसे देखते हुए देश में वैक्सीन की खोज करने के काम में तेजी लाई गई। भारत में शुरुआत में जिस दो वैक्सीन को मंजूरी मिली, उसमें से कोवीशील्ड वैक्सीन के ट्रायल में ही तीन-चार सोपान थे। दूसरी ओर को वैक्सीन के तीसरे चरण में ही इसके अच्छे परिणाम सामने आने लगे। भारत में एक साथ दो वैक्सीन को मंजूरी मिलने के बाद हम उन देशों में शामिल हो गए, जहां विज्ञान ने काफी प्रगति की है।

इसके पहले इस तरह की किसी वैक्सीन के लिए हमें पश्चिमी देशों का मुंह ताकना पड़ता था। इसके बाद भी कई सालों बाद हमें वह वैक्सीन प्राप्त होती थी। पर कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बनने वाली वैक्सीन के मामले में हम जल्द ही इतने सक्षम हो गए कि वैक्सीन दूसरे देशों को देने की पंक्ति में शामिल हो गए। कई देशों ने हमारी वैक्सीन को सराहा। इधर हमने भी देश के कोने-कोने में वैक्सीन पहुंचाने का भगीरथ प्रयास किया। यह भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, जिसे हमारे देश के लोगों ने अपना काम समझकर किया और सफलता प्राप्त की। समृद्ध जनसंख्या वाले देश में वैक्सीन के डोज को गांव-गांव पहुंचाने के अलावा लोगों को उसके लिए प्रेरित करना एक मुश्किल काम था, जिसे स्वास्थ्यकर्मियों ने पूरी शिद्दत के साथ अंजाम दिया।

सामान्य रूप से देश में एक साल में 5 से 6 करोड़ लोगों को वैक्सीन दी जाती है। इसमें भी आधे तो बच्चे होते हैं, शेष महिलाएं होती हैं। विशेषकर गर्भवती महिलाओं को वैक्सीन के डोज देने का यह पहला प्रसंग है। शुरुआत के चार महीनों में 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन के डोज लगाने की योजना थी। दूसरी चुनौती फ्रंटलाइन वॉरियर्स के एक-एक व्यक्ति को वैक्सीन के डोज देने की थी। इस दौरान कोरोना के दोनों डोज आवश्यक थे। दो डोज लेने के बाद ही मानव शरीर कोरोना के खिलाफ कम्युनिटी विकसित करता है। ऐसे में हर व्यक्ति को वैक्सीन के दोनों डोज मिले, यह सुनिश्चित किया जाना भी आवश्यक था। तीसरी चुनौती यह थी कि कम से कम समय में अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीन दी जाए। इसके लिए वैक्सीन का निर्माण, फिर उत्पादन और फिर उसे सुदूर क्षेत्रों तक पहुंचाना भी काफी मुश्किलभरा काम था। इसके अलावा 65 से 70 देश भी हमसे वैक्सीन की मांग कर रहे थे। उन्हें भी संतुष्ट करना हमारे लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। देखते ही देखते हमारे देश ने इन चुनौतियों का सामना कर लिया। इसके साथ ही हम उन देशों में शामिल हो गए, जो आत्मनिर्भर हैं। इस काम में हमारे वैज्ञानिकों की महत्वपू्र्ण भूमिका रही।

देश का यही प्रयास था कि वैक्सीन के माध्यम से कोरोना के खिलाफ हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति पैदा करना। ताकि हम सब सामान्य जीवन जी सकें। इसमें हम सफल रहे। यह भी एक शुभ संकेत है कि कोरोना से स्वस्थ होने वालों का प्रतिशत 98 रहा। दूसरी ओर संक्रमितों की संख्या दो लाख से कम रही है। हमारा लक्ष्य तब पूरा होगा, जब हमारे देश के सभी युवाओं को वैक्सीन के दोनों डोज लग जाएं। वैक्सीन के दो डोज के बीच के अंतर को भी हमने एक चुनौती के रूप में लिया, जिसमें हम सफल रहे। 100 करोड़ लोगों को वैक्सीन के डोज देने का गौरव हमने प्राप्त कर लिया। इसके लिए सरकार और टीकाकरण अभियान के साथ जुड़े सभी योद्धा बधाई के पात्र हैं। शुरुआत में 20 करोड़ डोज देने में 131 दन लगे। 80 करोड़ से 100 करोड़ तक पहुंचने में केवल 31 दिन लगे। इसके बाद भी पूरी तरह से दोनों डोज की वैक्सीन देने का भगीरथ कार्य अभी भी बाकी है। जिसे समय रहते पूरा कर लिया जाएगा, यह विश्वास है।

डॉ. महेश परिमल

 

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