महानायक या कहें बिग बी ने पान मसाले ब्रांड के एक विज्ञापन से खुद को अलग कर लिया है। इस प्रचार के लिए उन्हें जो राशि मिली थी, उसे भी उन्होंने वापस कर दिया है। उस विज्ञापन के कारण उन्हें काफी आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ा था। उनके कार्यालय से इस आशय की जानकारी दी गई है कि जब अमिताभ बच्चन इस ब्रांड से जुड़े, तो उन्हें पता नहीं था कि यह विज्ञापन प्रतिबंधित उत्पाद से संबंधित है। यह जानकारी इस तरह से प्रस्तुत की गई, मानो बिग बी देशभक्ति दिखाते हुए बहुत बड़ा बलिदान कर रहे हों। उन्होंने कोई बलिदान नहीं किया है, देर से ही सही, उन्हें यह आभास हुआ है कि प्रतिबंधित चीजों को बेचने के लिए उनका इस्तेमाल हुआ है। इस तरह से बहुराष्ट्रीय कंपनियां कई लोगों की प्रतिभा का इस्तेमाल करती आई है। यह सिलसिला बरसों से जारी है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। दो दशक पहले भी अमिताभ बच्चन का एक बयान सामने आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने बरसों तक पेप्सी के ब्रांड एम्बेसेडर के रूप में काम किया। बाद में उन्हें यह समझ में आया कि जिसका वे विज्ञापन कर रहे हैं, उसमें जहर की मात्रा है। इसलिए उन्होंने उसका प्रचार करना बंद कर दिया। यह ब्रह्मज्ञान उन्हें एक मासूम बच्ची के कहने पर आया। उनके इस बयान से कोला ड्रिंक्स का उत्पादन करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियां हड़बड़ा गई। लोग तो यह भी कहने लगे थे कि अमिताभ को अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनने में इतना वक्त कैसे लग गया? उल्लेखनीय है कि जयपुर में जब एक मासूम ने अमिताभ से यह कहा था कि हमारी टीचर कहती हैं कि पेप्सी में जहर होता है, तो फिर आप उसका प्रचार क्यों करते हैं? यह किस्सा 2001 का है, पर अमिताभ बच्चन ने 2005 तक पेप्सी का प्रचार किया। आखिर ऐसी कौन-सी मजबूरी थी कि उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनने में चार साल लगा दिए? संभव है कि वे कांट्रेक्ट से बंधे हों। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है। उन्हें यह जानने में काफी वक्त लग गया कि वे जिसका विज्ञापन कर रहे हैं, वह प्रतिबंधित उत्पाद में आता है। समझ में नहीं आता कि इतने हितैषियों के बीच घिरे होने के बाद भी उन्हें सच्चाई से वाकिफ कराने वाला कोई नहीं है।
भारतीय वैज्ञानिक, प्रखर वक्ता और आजादी बचाओ आंदोलन के संस्थापक और भारत के विभिन्न भागों में कई दशकों से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ जन जागरण अभियान चलाने वाले स्व. राजीव दीक्षित ने अपने एक बयान में यह दावा किया था कि अमिताभ बच्चन को कोलाइटीस होने का मुख्य कारण उनकी कोला ड्रिंक्स पीने की आदत है। स्वयं अमिताभ ने उन्हें पत्र लिखकर बताया था कि उनकी आंतों के रोग का कारण भी यही था कि वे बहुत अधिक मात्रा में कोला ड्रिंक्स लेते थे। इसी कारण उन्हें कोलाइटिस हुआ है। अमिताभ ने उन्हें यह भी बताया था कि वे पेप्सी के साथ जुड़े हैं, इसे वे सार्वजनिक नहीं करना चाहते। अब उनके आलोचक यही कह रहे हैं कि उन्होंने जानबूझकर बरसों तक नागरिकों को जहर पीने के लिए प्रेरित किया। अमिताभ स्वयं कहते हैं कि उन्हें अभिषेक ने यह सलाह दी थी कि किसी भी कंपनी का ब्रांड बनने और उसके उत्पाद का प्रचार करने के पहले इसकी जांच करना जरुरी है कि उसका उपयोग स्वास्थ्य के लिए कितना उपयोगी और कितना हानिकारक है।
इसके पहले पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुली भी काफी ट्रोल हुए थे। वे अडानी की कंपनी फॉर्च्यून राइस ब्रान कुकिंग आयल के ब्रांड एम्बसेडर रहने के दौरान जब उन्हें दिल का दौरा पड़ा, उसके बाद तेल कंपनी के विज्ञापन का मजाक उड़ाया जाने लगा। लोगों का यही विचार था कि जो दिल की सेहत का प्रचार कर रहा है, उसका दिल भला इतना कमजोर कैसे हो सकता है? यहां तक कि पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद ने भी गांगुली के स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ ब्रैंड के विज्ञापन पर टिप्पणी करते हुए ट्विटर पर लिखा- "दादा, आप जल्द स्वस्थ हों। ईश्वर की कृपा बनी रहे। हमेशा जांचे-परखे उत्पादों का ही विज्ञापन करें। खुद जागरूक और सावधान रहें। ईश्वर की कृपा बनी रहे।" बाद में भले ही कंपनी ने उस विज्ञापन के प्रदर्शन पर रोक लगा दी है। पर सवाल यह उठता है कि हमारे सेलिब्रिटी जिस उत्पाद का विज्ञापन कर रहे हैं, क्या वे स्वयं ही उसका उपयोग करते हैं?
सेलिब्रिटी द्वारा किए जा रहे विज्ञापन पर इसके पहले भी सवाल उठाए गए हैं। एक दशक पहले हेल्थ सप्लीमेंट के सेग्मेंट में सबसे बड़ा मार्केट शेयर रखने वाले रिवाइटल ब्रैंड को नुकसान उठाना पड़ा था, जब उसके पहले ब्रैंड एम्बेसेडर क्रिकेटर युवराज सिंह को कैंसर होने पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। उनके स्थान पर तुरंत सलमान खान को लिया गया। फिर 2016 में ब्रैंड में बदलाव करते हुए "फिट एंड एक्टिव" टैग के साथ सलमान के स्थान पर महेंद्र सिंह धोनी को लाया गया। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि धोनी जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले थे, साथ ही काफी सक्रिय भी। दूसरी ओर धोनी सलमान से ज्यादा युवा थे। मज़ेदार बात यह है कि अधिकांश कंपनियां अपने उत्पाद को बताने के लिए या तो फिल्मी हस्तियों का या फिर क्रिकेटर्स के चेहरों को सामने लाती हैं। ये ही लोग आज की युवा पीढ़ी को लुभाते हैं, आकर्षित करते हैं। एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या ये सेलिब्रिटी उन उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं, जिसका वे विज्ञापन करते हैं?
इस तरह से देखा जाए तो केवल धन की खातिर हमारे आदर्श हमारे लिए जहर परोसने का काम कर हमारे स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। ये यह भी नहीं सोचते कि इस तरह से वे भारत के भविष्य की सेहत को बिगाड़ने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यदि कुछ लोग बिना धन के इस दिशा में जागरूकता फैलाने का काम करें, तो लोग उसे भी नोटिस में लेंगे। संभव है उपभोक्ता जाग जाए और देश का भविष्य संवरने लगे।
डॉ. महेश परिमल
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