1932 में जेआरडी टाटा ने जिस एयर इंडिया को शुरू किया था, वह एक बार फिर टाटा समूह के हाथ में आ गई है। इस बीच यह कंपनी जब तक यह सरकार के अधीन रही, विवादास्पद ही रही। कंपनी 40 हजार करोड़ के कर्ज के बोझ के नीचे दब गई। हारकर सरकार ने इससे अपने हाथ खींच लिए। अब सरकार को यह आरोप झेलना होगा कि उसने एयर इंडिया को बेच दिया। अपने बचाव के लिए सरकार को इस आरोप का जवाब तैयार रखना होगा। गृहमंत्री ने घोषणा की थी कि श्राद्ध पक्ष के बाद एयर इंडिया के नए मालिक के नाम की घोषणा होगी, पर मीडिया ने श्राद्ध पक्ष के इस अवरोध को पार कर यह घोषणा कर ही दी कि एयर इंडिया की घर वापसी हो रही है। अब सरकार को यह राहत है कि घर के जेवरात घर में ही रह गए। इज्जत नीलाम होने से बच गई।
हमारे देश में टाटा विश्वास का दूसरा नाम है। हाल ही में एक सर्वेक्षण हुआ, जिसमें यह पाया गया कि विश्वासपात्र ब्रांड पर टाटा सबसे ऊपर है। दूसरा क्रम रिलायंस का है। एयर इंडिया को खरीदने की लाइन में रिलायंस और अडानी कभी शामिल नहीं हुए। आखिर 40 हजार करोड़ के कर्ज वाली कंपनी का घाटा पूरा करने के लिए 15 सल लग जाएंगे, उसके बाद ही यह लाभ देने वाली कंपनी बनेगी। टाटा को एयर लाइंस देने के लिए सरकार ने यह चाल चली कि किसी भी हालत में यह कंपनी किसी विदेशी कंपनी के हाथ में न पहुंचे। इसलिए इसके नियम-कायदे ही ऐसे तैयार किए गए, जिसमें विदेशी कंपनी इसे लेने में दिलचस्पी ही न दिखाए। इसके पहले आरएसएस के सर्वेसर्वा मोहन भागवत का वह बयान भी सामने आ गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि एयर इंडिया का मालिक भारत का ही होना चाहिए। यह कंपनी किसी विदेशी हाथ में न जाने पाए। इसलिए स्पाइस जेट ने एयर इंडिया को खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी। उसने भी टेंडर भरा था, पर इसे तो टाटा के हाथ लगना ही था, सो यह कंपनी टाटा के हाथ में आ गई। अब केवल औपचारिक घोषणा होना बाकी है।
देश की पहली एयर लाइंस बनाने का श्रेय टाटा को ही जाता है। 1932 में जेआरडी टाटा ने एयर लाइंस शुरू की थी, यह कंपनी स्थापना के बाद से ही मुनाफा कमाने वाली कंपनी रही। 1946 में इसका नाम बदलकर एयर इंडिया किया गया। जेआरडी टाटा देश के पहले कामर्शियल पायलेट थे। 10 फरवरी 1929 को उन्हें इसका लायसेंस मिला था। 1943 में सरकार ने इस कंपनी को अपने अधीन कर लिया। सरकार के अधीन होने के बाद भी टाटा इसके अध्यक्ष पद पर रहे। एयर इंडिया का लोगो महाराज कंपनी की पहचान बन गया। कुछ सालों बाद यूनियनों के कारण एयर लाइंस घाटे के ट्रेक में चलने लगी। आज इस कंपनी पर 40 हजार करोड़ का कर्ज है।
यह सच है कि घाटे में चल रही और कर्ज में डूबी यूनिट को कोई भी लेना नहीं चाहता। इस समय टेलिकॉम कंपनी वोडाफोन-आइडिया का साथ देने वाला कोई नहीं है। सरकार इसे राहत का पैकेज दे रही है, इसके बाद भी उसे थामने वाला कोई सामने नहीं आ रहा है। एयर इंडिया की घर वापसी से सरकार के सिर से एक बोझ कम हो जाएगा। इसे संभालने के लिए सरकार को खासी मशक्कत करनी पड़ रही थी। कंपनी के कर्मचारियों को वेतन की व्यवस्था करना और रिटायर कर्मचारयों के परिवार वालों को लगातार स्वास्थ्य सुविधाएं देना सरकार के ही जिम्मे था। इसलिए सरकार ने सूझबूझ का परिचय देते हुए टेंडर का ड्राफ्ट ही ऐसा तैयार किया कि कोई भी विदेशी कंपनी इसमें शामिल न होने पाए। केवल स्पाइस जेट को ही इसमें शामिल किया गया, जो केवल एक औपचारिकता मात्र ही थी। इस तरह से सरकार एक तीर से कई निशाने साधने में कामयाब रही।
अब सरकार को विपक्ष के इस आरोप का जवाब तलाशना होगा कि उसने एयर इंडिया को बेच दिया। सरकार कह सकती है, पर इसे हर कोई जानता है कि शरीर के सड़े हुए अंग को अलग करना ही उचित है। 2021 के अब केवल तीन महीने ही शेष हैं। इस बीच सरकार को बहुत कुछ ऐसा करना है, जिससे साख बची रहे, आरोपों का जवाब भी दे दिया जाए और डिसइंवेस्टमेंट की प्रक्रिया में तेजी लाई जाए।
डॉ. महेश परिमल
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