क्यों हिन्दी पर शर्म
बचा रहे इस देह में, स्वाभिमान का अंश।
रखो बचाकर इसलिए, निज भाषा का वंश॥
कथा, कहानी, लोरियां, थपकी, लाड़-दुलार।
अपनी भाषा के सिवा, और कहां ये प्यार॥
निज भाषा, निज देश पर, रहा जिन्हे अभिमान।
गाये हरदम वक्त ने, उनके ही जयगान॥
हिन्दी से जिनको मिला, पद-पैसा-सम्मान।
हिन्दी उनके वास्ते, मस्ती का सामान॥
सम्मेलन, संगोष्ठियां, पुरस्कार, पदनाम।
हिन्दी के हिस्से यही, धोखे, दर्द तमाम॥
हिन्दी की उंगली पकड़, जो पहुंचे दरबार।
हिंदी के 'पर' नोचते, बनकर वे सरकार॥
अंग्रेजी पर गर्व क्यों, क्यों हिन्दी पर शर्म।
सोचो इसके मायने, सोचो इसका मर्म॥
दफ्तर से दरबार तक, खून सभी का सर्द।
'जय' किससे जाकर कहे, हिन्दी अपना दर्द॥
[जय चक्रवर्ती]
सोमवार, 14 सितंबर 2009
क्यों हिन्दी पर शर्म
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हिंदी दिवस विशेष
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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निज भाषा, निज देश पर, रहा जिन्हे अभिमान।
जवाब देंहटाएंगाये हरदम वक्त ने, उनके ही जयगान॥
बहुत सुंदर रचना .. ब्लाग जगत में आज हिन्दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्छा लग रहा है .. हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!
अरे भाई, शर्म तो उन्हें हिन्दी बोलने पर आएगी जो अपनी माता को पहचानने से इनकार करते हैं। अच्छी रचना है। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना .
जवाब देंहटाएंआप को हिदी दिवस पर हार्दीक शुभकामनाऍ।
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