हिन्दी पखवाड़े का महत्व
पिछले 6 दशक में भारत सरकार के मंत्रालयों में अंग्रेजी ने अपना वर्चस्व जरूर बनाए रखा है। लेकिन विकास संबंधी योजना की सफलता में उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है, अगर राज्य सरकारें मुस्तैदी से केन्द्रीय योजना को हिन्दी या अपनी भाषाओं में न ढाले तो योजना फाईल के डोरों में बंधी रह जाती है।
डॉ. इंदिरा मिश्र
भारत को स्वतंत्र हुए 62 वर्ष हो गए और हिन्दी भाषा का पखवाड़ा मनाना जरूरी लगता है, क्योंकि भाषा एक अर्थ में मनुष्य की अस्मिता ही है। इस दृष्टि से हिन्दी के रूप में हमारी अस्मिता अब कितनी विकसित हुई, हिन्दी पखवाडे क़े बहाने अब यह देखना सुनना अच्छा लगता है।
हिन्दी मेरी मातृभाषा है। अपनी किसी चीज की, या आत्म-प्रशंसा करना बहुत सुसंस्कृत नहीं होता। फिर भी जब बात वस्तुनिष्ठ तथ्यों के आधार पर कहना हो तो, किसी को तो उसे कहना ही पडेग़ा अन्यथा उसका महत्व या संदर्भ स्पष्ट नहीं होगा।
हिन्दी पखवाड़ा सरकारी विभागों द्वारा मनाया जाता है, क्योंकि उन्हें ऊपर से निर्देश होते हैं, लेकिन हिन्दी के प्रचार की नीति पूरे भारत की अस्मिता से जुड़ी है। केवल यही भाषा पूरे भारत में एक संपर्क भाषा के रूप में चल सकती है, और यही नहीं, यह काफी अनुपात में चल भी रही है। जहां तक कुछ अहिन्दी माने जाने वाले प्रदेश जैसे पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र का संबंध है, यहां तो हिन्दी बोलने चालने में कोई दिक्कत ही नहीं है, परंतु दक्षिण के राज्य जैसे आन्ध्रप्रदेश व केरल के ग्रामीण इलाकों में भी उर्दू का चलन मुस्लिम समुदाय में होने के कारण हिन्दी समझने वालों की कोई कमी नहीं है।
पिछले 6 दशक में भारत सरकार के मंत्रालयों में अंग्रेजी ने अपना वर्चस्व जरूर बनाए रखा है। लेकिन विकास संबंधी योजना की सफलता में उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है, अगर राज्य सरकारें मुस्तैदी से केन्द्रीय योजना को हिन्दी या अपनी भाषाओं में न ढाले तो योजना फाईल के डोरों में बंधी रह जाती है। इसे मैंने खुद देखा है। ध्यान देने योग्य है कि प्रचार-प्रसार और शिक्षा के कई तंत्रों में जैसे कि दूरदर्शन, केन्द्रीय विद्यालय संगठन, नवोदय विद्यालय के पाठयक्रम एवं भारतीय सिनेमा ने हिन्दी की लोकप्रियता को अभूतपूर्व तरीके से बढ़ाया है।
प्रतिवर्ष अखिल भारतीय सेवा में सैकड़ों लोग प्रवेश करते है और वे अपनी मातृभाषा अथवा अंग्रेजी से अलग किसी दूसरी भाषा में काम करना सीखते हैं और हिन्दी उन्हें अक्सर स्वयमेव आ ही जाती है। उन्हें राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में भी हिन्दी सिखाई जाती है। इसी प्रकार बैंक व सार्वजनिक उपक्रमों में भी भारत के 45 करोड़ हिन्दी-उर्दू भाषी लोगों की उपस्थिति के कारण हिन्दी संपर्क भाषा बन गई है। केवल इसको औपचारिक चोला पहनाना बाकी है। हिन्दी युवाओं में लोकप्रिय है
देखा गया है कि उड़ीसा, बंगाल तथा तमिलनाडु में भी बच्चों को हिन्दी सीखने में रुचि होती है। केन्द्रीय विद्यालय संगठन के पाठयक्रमों में वे भाषा के रूप में हिन्दी को लेना काफी पसंद करते हैं, और इससे यह स्पष्ट होता है कि यही युवा वर्ग की भाषा है और भविष्य में इसका फैलाव और अधिक हो जायेगा। भारत सरकार के मंत्रलाय व संचालनालय तथा अधिकतर सार्वजनिक उपक्रमों के मुख्यालय हिन्दी भाषी प्रदेश दिल्ली में स्थित होने के कारण इसके कर्मियों को वहां जाना-आना पड़ता है। संपर्क भाषा के रूप में हिन्दी जन सामान्य से व्यवहार के लिए हिन्दी का उपयोग लाजिमी है दूसरे अब भारत सन् 1947 वाला भारत नहीं रह गया है। प्रतिदिन सैंकड़ों हवाई उड़ानें, टे्रनें तथा बसें भाषारूपी नदियों का जल इधर-उधर आप्लावित करती रहती हैं। इसमें एक संपर्क भाषा अपनाई जानी लाजिमी है अब इसे थोपने की आवश्यकता ही नहीं रह गई है।
अंतरराष्टय संपर्क के लिए अंग्रेजी
हिन्दी की तुलना अंग्रेजी से करते हुए एक को अच्छा और दूसरे को बुरा बताने का कोई लाभ या औचित्य नहीं है, किन्तु जहां हिन्दी हमारी सांस्कृतिक एकरूपता को आत्मसात कर लेती है, वहीं अंग्रेजी विदेशी ज्ञान, प्रौद्योगिकी, नए आविष्कार एवं विश्व के वित्तीय परिदृश्य को हमारे सामने उद्धाटित करती है। यह अखिल विश्व के राजनैतिक और शोध संबंधी परिदृश्य को हमें बताती है तथा भौगोलिक, ब्रह्माण्डीय घटनाओं को मानव-स्वास्थ्य, मानव-स्वभाव, मनोविज्ञान संबंधी शोध व मीमांसाओं के नतीजों को हमारे सामने लाती है। अत: अगर हम उससे मुंह मोडेंग़े तो हम विकास की दौड़ में पिछड़ जाएंगे।
हिन्दी की खूबियां
हमारी भाषा में एक से एक खूबियां हैं तभी इसकी लोकप्रियता की कोई सीमा नहीं रह गई है। मानव कंठ से निकलने वाले बहुत कम ऐसे स्वर हैं, जिन्हें हिन्दी मेें नहीं लिखा जा सकता, उदाहरण के लिए 'ज' और 'श' के बीच का स्वर, जिसे फे्रन्च 'मैं' के लिए उपयुक्त किया जाता है, अथवा 'ह' का ऐसा शब्द छाती से अधिक वायु दबाव के साथ निकलता है, जैसे मोहम्मद में 'ह' का उच्चारण। इसी प्रकार गुजराती में 'ब' शब्द का उच्चारण 'ब्ब' के रूप में किया जाता है, या 'ख' जैसे उच्चारण वाला शब्द जिसे अंग्रेजी के 'जे' अक्षर से लिखा जाता है। परंतु इसके अलावा मुझे तो इसमें ऐसा कोई शब्द नहीं लगता, जो नहीं लिखा जा सकता। इसमें उड़िया या बंगाली के समान कोई 'ऑ' या 'ओ' या 'श' या 'स' ध्वनि के प्रति कोई विशेष आग्रह भी नहीं है, न तमिल के समान 'फ' या 'भ' जैसे शब्दों का लोप है। बंगाली में हवा को 'हवुया' करके लिखना पड़ता है और अंग्रेजी में 'द' शब्द को प्रमाणित रूप से लिखने का कोई जरिया नही है। दया को डया भी पढ़ा जा सकता है, डाया भी तथा डाय भी! हिन्दी में ऐसा कोई भ्रम नहीं होता।
हिन्दी की लोकप्रियता तो मुझे 1960 में ही काफी अह्लादकारी लगी। मसूरी में 'लैण्डहोर बाजार' पर चलते हुए, मैंने देखा कि किसी भारतीय ने सड़क के ऊपरी सिरे से चले आ रहे, एक अंग्रेज से पूछा ''व्हाट इज द टाईम''। अंग्रेज ने अपनी हाथ घड़ी पर नजर डालकर कहा ''ढाई बजे हैं।'' अक्सर मसूरी के लाल टिब्बे पर हिन्दी स्कूल में अंग्रेज लोग साफ-साफ शब्दों में कौंवें के पानी पीने की कहानी को लिखते नजर आते थे। हम माने या माने हमारी हिन्दी सभी भाषाओं की बिन्दी है। हिन्दी के कुछ शब्द और मुहावरे तो लाजवाब हैं, जिन्हें सुनने पर ही दोहराने का मन करता है। जैसे 'वाह', 'अरे, मर गए!' 'होश में आओ,' 'यह हुई न बात,' 'ईंट का जवाब पत्थर से, वारे न्यारे, लो कर लो बात, चने के झाड़ पर चढ़ाना, जंगल में मोर नाचा किसने देखा, आदमी बन जाओ, इन्सानियत, धंधा, चौपट, तस्वीर, ताल, भजन, कीर्तन, नाक में दम, लेने के देने, बेमतलब' आदि। अपनी भाषा में बोलने से लोगों में एक तादात्म्य स्थापित हो जाता है। अगर हम दो भारतीय इटली या जर्मनी में मिले और अंग्रेजी में ही बात करना शुरू कर दें, तो अंग्रेज लोग आश्चर्य से हमारी मुंह की ओर देखेंगे। पूछेंगे, तुम्हारी अपनी कोई भाषा नहीं है? हम ऐसा क्यों कहेंगे, जबकि भारत के 45 करोड़ लोग हिन्दी भाषी है और शेष को हिन्दी पसन्द है।
प्रांतीय भाषाओं से कोई होड़ नहीं
यह बताना जरूरी है कि भारत में 45 करोड़ लोग हिन्दी, 8 करोड़ बंगाली, 6.5 करोड़ तमिल, 8 करोड़ तेलुगु, 5 करोड़ गुजराती, 7.5 करोड़ मराठी, 3.3 करोड़ उड़िया, 1.5 करोड़ असमिया, 40 लाख लोग कश्मीरी बोलते हैं। इन भाषाओं से हिन्दी की कोई होड़ नहीं है। भाषा तो किसी प्रांत की वैसी ही परिचायक है, जैसे किसी तरूणी के बालों का रंग उसका परिचायक होता है। हम तो यहां उस सुविधा और पहचान की बात कर रहे हैं, जो पूरे देश में एक संपर्क भाषा के होने से होती है। चूंकि अंग्रेजी केवल 2 प्रतिशत भारतीयों की भाषा है। अत: यह भारत में तो संपर्क भाषा कदापि नहीं हो सकती। बेशक, एक आम भारतीय के लिए अंग्रेजी बोल पाना, एक सुंदर स्वप् की तरह है, जो उसके अहम् को तुष्टि देता है। पर उसे तसल्ली अपनी भाषा में बोलकर ही मिलती है परंतु आज कई अहिन्दी भाषी लोगों के लिए हिन्दी फर्राटे से बोलना भी एक सुंदर स्वप् है। चूंकि इस भाषा में उसकी समूची संस्कृति झलकती है। उर्दू मिश्रित हिन्दी न केवल 45 करोड़ भारतीयों की भाषा है, बल्कि यह विशाल भारत के प्रभाव में आए, अनेक अन्य देशों के लोगोें की भी भाषा है, जैसे दुबई, दक्षिण यमन, पाकिस्तान, नेपाल, मॉरिशस, सुरीनाम, फिजी, ट्रिनीडाड। अमरीका में बसे 32 लाख लोगों में से आधों की यही भाषा होगी, ऐसा अनुमान है। भारतीय विदेश मंत्रालय हमारे विदेशों में बसे लोगों के लिए गगनांचल पत्रिका भी निकालता है।
हिन्दी का नवयुग
आज हिन्दी का वर्चस्व काफी बढ़ गया है। इन्डिया टुडे या आउटलुक पत्रिकाओं के हिन्दी और अंग्रेजी अंकों की तुलनात्मक बिक्री बतायेगी कि बाजार में हिन्दी की मांग कितनी तीव्र है। जहां तक अखबारों का सवाल है, अकेले रायपुर से 16 अखबार रोज निकलते है।
इनमें मात्र दो ही अंग्रेजी के है। शेष हिन्दी के हैं। हिन्दी साहित्य की कई वेबसाईट भी है। अब हमें हिन्दी के एक नवयुग का अभ्युदय समीप ही दिखाई देता है, जब संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्रवाईयों का भी स्थल पर हिन्दी में अनुवाद, सदस्यों को उपलब्ध होगा
मंगलवार, 1 सितंबर 2009
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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