शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

प्रथम नागरिक के भवन से निकलती ऊर्जा



डॉ. महेश परिमल
कुछ माह पहले ही जब राष्ट्रपति भवन का बिजली बिल लाखों रुपए में आया, तब सभी चौंक गए। चौंकना स्वाभाविक था। आखिर यह मामला देश के प्रथम नागरिक से जुड़ा था। इस घटना के साथ सकारात्मक बात यह हुई कि राष्ट्रपति भवन ने यह ठान लिया कि अब देश के प्रथम नागरिक के निवास से एक ऐसा संदेश पूरे देश में जाएगा, जिससे लोग ऊर्जा के अपव्यव के प्रति सचेत होकर सारी ऊर्जा देश के विकास में लगाएँ। अन्य विभागों के सहयोग से राष्ट्रपति भवन में पूर्व राष्ट्रपति द्वारा की गई अनुशंसाओं को ध्यान में रखते हुए सौर ऊर्जा की दिशा में आवश्यक कदम उठाए गए। आज पूरा राष्ट्रपति भवन सौर ऊर्जा की रोशनी से जगमगा रहा है। यह गौरव की बात है।
बिजली हमारे जीवन के लिए एक ऐसी ऊर्जा है, जिसका होना अतिआवश्यक है। इसके बिना तो अब जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। बिजली की आपूर्ति और खपत में आज बहुत बड़ा फासला है। जिसे पाटना बहरहाल संभव नहीं है। बिजली न केवल जीवनस्तर के लिए बल्कि अब खेती के लिए भी अतिआवश्यक है। ऐसे में बिजली की बचत करना ही सबसे बड़ा धर्म माना जाएगा। यदि बचत की यह छोटी सी किरण यदि देश के प्रथम नागरिक के भवन से निकले, तो इसे सबसे बड़ी ऊर्जा कहा जाएगा। जीे हाँ, यह अच्छी खबर है कि 340 कमरों का भवन अब पूरी तरह से सौर ऊर्जा से चलेगा। यानी पूरे राष्ट्रपति भवन को बिजली सौर ऊर्जा से मिलेगी। इस तरह से हर महीने करीब एक करोड़ रुपए की बचत होगी।
पिछले वर्ष प.बंगाल के राज्यपाल राजमोहन गांधी ने बिजली की बचत करने के उद्देश्य से राजभवन की सारी बिजली शाम सात बजे के बाद बंद कर देते थे। उनकी इस आदत से वामपंथी उनका मजाक उड़ाया करते थे। यह भी कोई बचत हुई? वामपंथियों ने राज्यपाल को नाटकबाज कहा। उनकी बचत की प्रवृत्ति की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। आज जब कमजोर मानसून के चलते राष्ट्रपति भवन से यह संदेश जा रहा है कि बिजली की बचत की जाए, तो सभी बिजली संकट को स्वीकार रहे हैं और बिजली बचत के लिए संकल्प ले रहे हैं।
बिजली उत्पादन को लेकर हमारा देश अभी भी पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं हुआ है। यह सच है कि हमें किसी अन्य देश से बिजली उधार लेने की आवश्यकता नहीं पड़ी, पर हमें जितनी बिजली चाहिए, उतनी बिजली नहीं मिल पा रही है। 1800 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करने वाले 5 प्लांट 2014 से काम करने लगेंगे। बिजली की कमी क्या होती है, इसे इस बार गर्मी में दिल्ली और मुंबई के लोग समझ गए हैं। इस बार मानसून कमजोर रहा, इसलिए बिजली उत्पादन भी निश्चित रूप से प्रभावित होगा ही। पवन चक्की से प्राप्त बिजली हमारे लिए काफी महँगी साबित होती है। यदि सौर ऊर्जा से बिजली प्राप्त करने की कोशिश की जाए, तो वह हमें काफी सस्ती पड़ेगी। इस दिशा में यह शुरू के खर्च को सहन कर लिया जाए, तो भविष्य में मिलने वाली बिजली हमें करीब-करीब मुफ्त ही पड़ेगी।

विश्व में भारत का राष्ट्रपति भवन सबसे बड़ा है। 340 कमरों और 600 स्टाफ रह सकें, ऐसा यह भवन एक हजार वर्गफीट जमीन पर फैला है। इसे पूरी तरह से एक ग्रीन हाउस में तब्दील करने का बीड़ा उठाया गया है। मजे की बात यह है कि ऐसा रेसीडेंट कम ऑफिस संकुल विश्व में यह पहला है, जिसे कार्बन के्रडिट्स के लिए क्लीन डवलपमेंट मेकेनिजम और पर्यावरण मेनेजमेंट के लिए आईएसओ 1400 के लिए आवेदन किया है।
रीन्यूएबल एनर्जी मंत्रालय ने इस काम के लिए 3.2 करोड़ रुपए प्रस्तावित किए हैं। यह राशि केवल तीन साल में ही वसूल हो जाएगी। इस तरह से अब पूरा राष्ट्रपति भवन सौर ऊर्जा से चलने लगेगा। इसमें बिजली से चलने वाला शायद ही कोई प्रणाली दिखाई दे।
यह तो हुई बिजली की बात, एक और भी मजेदार बात यह है कि अब राष्ट्रपति भवन से निकलने वाले कचरे से खाद बनाने का संकल्प राष्ट्रपति भवन के स्टाफ की महिलाओं ने लिया है। इस खाद से सब्जियाँ ऊगाई जाएँगी। यही नहीं, जिस कचरे को जलाया जा सकता है, उसे म्युनिसिपल वालों को सौंप दिया जाता है। राष्ट्रपति भवन के लिए छोटी से छोटी वस्तु के लिए रि यूज का फार्मूला अपनाया जाता है।
वैसे भी राष्ट्रपति भवन को अपनी हरियाली के नाम से जाना जाता है। एक समय वहीं डॉ. श्ंाकर दयाल शर्मा ने भूत भगाने के लिए हवन कराया था। भवन में ही हवन कुंड की व्यवस्था की गई थी। डॉ. अब्दुल कलाम के आने के बाद सब कुछ बेहतर से बेहतर हो गया। अब प्रतिभा पाटिल ने तो राष्ट्रपति भवन में हमेशा हरियाली रहे, इसके लिए कदम उठा रहीं हैं। राष्अ्रपति भवन को ग्रीन हाउस में तब्दील करने के प्रोजेक्ट में 14 सरकारी संस्थाअें का भी समावेश होता है। अब इस ग्रीन हाउस में रहने वाले 600 परिवार ग्रीन इफेक्ट के लिए एलर्ट हैं।
आज मंत्रालयों और मंत्रियों के घर की हालत पर गौर किया जाए, जहाँ हमेशा एसी चलते रहते हैं। बिजली का दुरुपयोग हो रहा है। बिजली बचाने की तमाम घोषणाएँ केवल कागजों तक ही सीमित रहती हैं। बिजली के दुरुपयोग का ध्यान तब आता है, जब बिजली चली जाती है। हमारे देश में जिस तरह से बिजली का दुरुपयोग हो रहा है, उससे यही लगता है कि यदि हम बिजली की बचत करना सीख जाएँ, तो संभव है इस दिशा में काम कुछ किया जा सकता है। अब राष्ट्रपति भवन से यह संदेश जा रहा है कि इतना बड़ा भवन जब सौर ऊर्जा से चल सकता है, तो फिर साधारण मंत्रालय भी तो चल सकते हैं। बिजली का कम से कम उपयोग करना ही बचत की दिशा में पहला कदम है। हम यही कदम नहीं उठा रहे हैं। यदि राष्ट्रपति भवन का अनुशरण अन्य राजभवन एवं सरकारी कार्यालयों में हो, तो हम काफी बिजली बचा सकते हैं। जिस काम के लिए डॉ. अब्दुल कलाम से योजना बनाई, उसे प्रतिभा पाटिल ने आगे बढ़ाया, इसी का परिणाम है कि आज राष्ट्रपति भवन ग्रीन हाउस में तब्दील हो गया है।
डॉ. महेश परिमल

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