भारतीय सिनेमा जगत में अपनी नृत्य शैली और दिलकश अदाओं से दर्शकों को दीवाना बनाने वाली न जाने कितनी अभिनेत्रियां हुई, लेकिन चालीस के दशक में एक ऐसी अभिनेत्री भी हुई जिसे डांसिग क्वीन कहा जाता था और आज के सिने प्रेमी शायद उससे अपरिचित होंगे। लेकिन उस समय शोहरत की बुलँदियां छूने वाली उस अभिनेत्नी का नाम कुक्कु था। कुक्कू मूल नाम कुक्के मोरे का जन्म वर्ष 1928 में हुआ था। चालीस के दशक में कुक्कू ने फिल्म .लैला मजनू. के जरिए फिल्म इंडस्ट्री में कदम रख दिया। इस फिल्म में उन्हें समूह नृत्य में नृत्य करने का मौका मिला। वर्ष 1945 में प्रदíशत फिल्म .मन की जीत. में उन्हें एक बार फिर से नृत्य करने का मौका मिला। इस फिल्म में उन पर फिल्माया यह गीत .मेरे जोवन का देखा उभार. श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। वर्ष 1946 में कुक्कू को बतौर अभिनेत्नी फिल्म .अरब का सौदागर. और वर्ष 198७ में फिल्म .सोना चांदी. में काम करने का अवसर मिला। लेकिन दुर्भाग्य से दोनोँ ही फिल्में टिकट खिड़की पर असफल साबित हुई, हालांकि कुक्कू पर फिल्माए गीत दर्शकों के बीच काफी पसंद किए गए। वर्ष 1948 में कुक्कू को महबूब खान की फिल्म अनोखी अदा में भी काम करने का अवसर मिला। फिल्म की सफलता के बाद कुक्कू बतौर डांसर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाबी हो गई।
वर्ष 1989 में कुक्कू को निर्माता निर्देशक राजकपूर के बैनर तले बनी फिल्म .बरसात. में काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में मुकेश की आवाज में उन पर फिल्माया यह गीत पतली कमर है तिरछी नजर है उन दिनों श्रोताओं के बीच क्रेज बन गया था और आज भी श्रोताओं के बीच शिद्दत के साथ याद किया जाता है। वर्ष 1951 में कुक्कू को एक बार फिर से राजकपूर की फिल्म .आवारा. में काम करने का अवसर मिला। यूं तो फिल्म आवारा के सभी गीत लोकप्रिय हुए लेकिन कुक्कू पर फिल्माया यह गीत .एक दो तीन आजा मौसम है रंगीन. आज भी श्रोताओं को झूमने को विवश कर देता है। वर्ष 1958 में किशोर शाहू की बहुचíचत फिल्म .मयूर पंख में गीत.संगीत के विविध प्रसंग इस्तेमाल किए गए थे, लेकिन इस फिल्म में कुक्कू के गीत को शामिल किया गया। इसी तरह फिल्म आन में भी कुक्कू पर एक नृत्य ऐसा फिल्माया गया जिसमें केवल संगीत का इस्तेमाल किया गया था बावजूद इसके कुक्कू ने अपनी नृत्य शैली से दर्शकों को रोमांचित कर दिया। वर्ष 1952 में महबूब खान निíमत इस फिल्म की खास बात यह थी कि यह ¨हदुस्तान में बनी पहली टेक्नीकलर फिल्म थी और इसे काफी खर्च के साथ वृहत पैमाने पर बनाया गया था। दिलीप कुमार प्रेमनाथ और नादिरा की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह भी है कि भारत में बनी यह पहली फिल्म थी जो पूरे विश्व में एक साथ प्रदíशत की गई।
पचास के दशक में कुक्कू की लोकप्रियता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उन दिनों जब फिल्म बनने के बाद उसकी पहली झलक वितरक को दिखाई जाती तो वह कहते फिल्म में कुक्कू कहां है बाद में फिल्म में कुक्कू को शामिल किया जाता और उस पर एक या दो गीत अवश्य फिल्माए जाते। कुक्कू को नए डिजाइन की फैशेनबल चप्पल पहनने का शौक था। जब कभी वह फिल्म स्टूडियो में डिजानइनर चप्पलंे या जूते पहनकर आती तो देखने वाले उन्हें देखते रह जाते। माना जाता है कि कुक्कू के पास विभिन्न डिजाइन वाले लगभग 5000 जोड़ी चप्पलें थी। मशहूर नृत्यांगना हेलन को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिए कुक्कू ने अहम भूमिका निभाई। कुक्कू की सिफारिश की वजह से हेलन को शबिस्तान और फिर आवारा .1951. फिल्मों में नर्तकों के समूह में काम करने का करने का मौका मिला। वर्ष 1985 से वर्ष 1965 तक कुक्कू ने फिल्म इंडस्ट्री पर एकछत्न राज किया। उन्होंने आजीवन विवाह नही किया। नितांत अकेले रहने वाली कुक्कू को इस दौरान कैंसर जैसी जटिल बीमारी का शिकार हो गर्द अपने अपने गम को भुलाने के लिए शराब का सेवन करने लगी। फिल्म इंडस्ट्री में लगभग दो दशक तक अपनी नृत्य शैली से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाली कुक्कू 30 सितंबर 1981 को इस दुनिया को अलविदा कह गई। कुक्कू ने अपने दो दशक लंबे सिने करियर में कई फिल्मों में काम किया। उनके करियर की उल्लेखनीय फिल्मों में कुछ है .विद्या,शबनम, पतंगा, पारस, अंदाज, हमारी बेटी, खिलाड़ी, आरजू, बावरेनैन, शबिस्तान, हलचल, मिस्टर एंड मिसेज 55, यहूदी, फागुन, चलती का नाम गाड़ी, गैंबलर, मुझे जीने दो आदि।
बुधवार, 13 अक्तूबर 2010
हिंदी सिनेमा गत की पहली डांसिग क्वीन थी कुक्कू
लेबल:
जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
अन्जानी जानकारी।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा यह जानकारी पढ़कर.
जवाब देंहटाएं