डॉ. महेश परिमल
आपने कभी सोचा है कि सरकारी दफ्तर का बाबू आपसे इतना अकड़ और रुआब से बात क्यों करता है? शोधकर्ताओं ने इसका राज खोला है। अध्ययन के अनुसार, जिन लोगों का ओहदा उन्हें प्रदत्त अधिकार के हिसाब से छोटा होता है, वे अक्सर लोगों के लिए समस्याएं पैदा करने वाली गतिविधियों में लगे रहते हैं। यानी मौका मिलते ही लोगों को नीचा दिखाने जैसी हरकत करने से बाज नहीं आते हैं। धीरे-धीरे यह बात उनकी आदत में शामिल हो जाती है और वे भ्रष्ट होने लगते हैं। देश में भ्रष्टाचार सचमुच बढ़ गया है, तभी तो प्रधानमंत्री को कहना पड़ा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएँगे। भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं जाएगा। अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री का यह कहना सचमुच यह बताता है कि देश में भ्रष्टाचारियों की संख्या बढ़ गई है। वैसे देखा जाए, तो भ्रष्टाचार हमारी देन है ही नहीं, इसलिए देश के नेता इससे निपटने में अक्षम साबित हो रहे हैं। यह तो अंगरेजों से हमें विरासत में मिली है। आज यदि देश की जनता अपना सही काम करवाने के लिए भी रिश्वत का सहारा लेती है, तो उसके पीछे बेशुमार अधिकार के स्वामी देश के सरकारी अधिकारी, कर्मचारी और नेता हैं। एक रिश्वत न देने वाले आम आदमी को परेशान करने के लिए इनके पास इतने अधिकार हैं कि वह अपने सही काम को कराने के लिए लाख एड़ियाँ रगड़ ले, उसका काम कभी नहीं होगा। इस दौरान वह कई नियम-कायदों से बँधा होगा, लेकिन रिश्वत देते ही वह सारे कायदों से मुक्त हो जाता है। यह देश की विडम्बना है।
हमारे देश में भ्रष्टाचार कितना फैल चुका है, यह जानने के लिए किसी सर्वेक्षण की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए तो अमेरिका की गेलप नामक कंसल्टंसी फर्म की रिपोर्ट ही पर्याप्त है। इसने भारत में फैले भ्रष्टाचार के मामले पर एक सर्वेक्षण किया, जिसमें देश के विभिन्न शहरों के करीब 6 हजार लोगों से बात की। 47 प्रतिशत लोगों ने माना कि देश में भ्रष्टाचार एक महामारी की तरह फैल गया है। यह स्थिति पिछले 5-10 वर्ष पहले से अधिक गंभीर है। अन्य 27 प्रतिशत लोगों ने भ्रष्टाचार को एक गंभीर समस्या निरुपित किया। इन लोगों का मानना था कि 5 साल पहले भी यही स्थिति थी। हाल ही में अन्ना हजारे के आंदोलन को जिस तरह से लोगों ने अपना नैतिक समर्थन दिया, उससे यह स्पष्ट हे कि देश का आम आदमी इस भ्रष्टाचार से आजिज आ चुका है। देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के लिए अब वह उथल-पुथल के मूड में दिखाई दे रहा है।
इस सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि देश के 78 प्रतिशत लोग यह मानते हैं कि भ्रष्टाचार सरकारी तंत्र में अधिक फैला हुआ है। 71 प्रतिशत लोग यह मानते हैं कि देश के उद्योगपति भी भ्रष्टाचार के लिए जवाबदार हैं। हाल ही में टाइम मैगजीन ने जो सर्वे किया, उसमें 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में लिप्त ए. राजा को विश्व को दूसरा सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी माना है। इसके पहले जो कॉमनवेल्थ गेम का घोटाला सामने आया, उससे देश के नागरिकों की सहिष्णुता को एक तरह से खत्म ही कर दिया। टेलिकॉम घोटाले ने उस पर अपनी मुहर ही लगा दी। भारतीय जनता यह मानती है कि भ्रष्टाचार के लिए सबसे बड़ा कारण सरकारतंत्र है। गेलप के सर्वेक्षण के मुताबिक भ्रष्टाचारियों को दंड देने में सरकार पूरी तरह से विफल साबित हुई है। इन भ्रष्टाचारियों से सबसे अधिक परेशान बेरोजगार युवा हैं। 21 प्रतिशत नागरिकों ने स्वीकार किया कि वे अपने काम को करवाने के लिए रिश्वत का सहारा लेते हैं।
भारत में भ्रष्टाचार, ये विषय आजकल लोगों में विशेषरूप से लोकप्रिय हो गया है। ब्र्ंे डाट इन नामक वेबसाइट द्वारा भारत में भ्रष्टाचार विषय पर एक रोचक तथ्य जारी किया है। उसके अनुसार भारत में सरकारी तंत्र की रग-रग में भ्रष्टाचार व्याप्त है। नागरिकों को जिन्हें रिश्वत देनी पड़ती है, उनमें 91 प्रतिशत सरकारी अधिकारी हैं। इसमें भी 33 प्रतिशत केंद्रीय कर्मचारी हैं। 30 प्रतिशत पुलिस अधिकारी और 15 प्रतिशत राज्य के कर्मचारी हैं। दस प्रतिशत नगरपालिक, नगरनिगम या ग्राम पंचायत के कर्मचारी हैं। भारतीय प्रजा के माथे पर तीन प्रकार की गुलामी लिखी हुई है। पहली गुलामी केंद्र सरकार की, जिसमें आयकर, आबकारी, कस्टम आदि विभाग आते हैं। दूसरी गुलामी राज्य सरकार की है, जिसके हाथ में बिक्रीकर, शिक्षा, स्वास्थ्य और पुलिस विभाग आते हैं। तीसरी गुलामी स्थानीय संस्थाओं की है। जिसके पास पानी, गटर, जमीन, मकान, सम्पत्ति कर आदि दस्तावेज बनाने के अधिकार हैं। इस तीन प्रकार की संस्थाओं को इतने अधिक अधिकार प्रदान किए गए हैं कि वे प्रजा को कायदा-कानून बताकर इतना अधिक डरा देते हैं कि न चाहते हुए भी प्रजा को रिश्वत देनी ही पड़ती है। इस तरह की खुली लूट हमें अंगरेजों द्वारा विरासत में मिली हुई है। आज इनके पास जो अधिकार हैं, वे वास्तव में अंगरेजों ने प्रजा को लूटने के लिए दिए गए थे। कानून का डर बताकर आम जनता को परेशान करने की यह प्रवृत्ति अंगरेजों से शुरू होकर आज उनके चाटुकारों तक पहुँच गई है, जो किसी न किसी तरह जनता को लूट रहे हैं। देश को आजादी मिलने के बाद इस तरह के कानूनों को रद्द करने के बजाए इसे और अधिक पल्लवित किया गया। उसके बाद तो यह कानून और अधिक धारदार हो गए। भारतीय दंड संहिता के अनुसार पुलिस को इतने अधिक अधिकार दे दिए गए कि एक साधारण सा सिपाही भी किसी आम आदमी को कानून का डर दिखाकर उससे रिश्वत की माँग कर सकता है। आज प्रजा जिन्हें रिश्वत देती है, उसमें 30 प्रतिशत पुलिस विभाग के कर्मचारी ही हैं।
ट्रेक डॉट इन के सर्वेक्षण के अनुसार देश के लोग सरकारी तंत्र को जो रिश्वत दते हैं, उसमें 77 प्रतिशत रिश्वत तो अपने सही काम को करवाने के लिए देते हैं। यानी सरकारी कर्मचारियों को जिस काम के लिए सरकार वेतन देती है, उसी काम को करने के लिए ये कर्मचारी लोगों से रिश्वत लेते हैं। यदि इन्हें रिश्वत न दी जाए, तो आम जनता के काम ताक पर रख दिए जाते हैं। इससे जनता को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। समझ में नहीं आता कि इन कर्मचारियों को इतने अधिकार आखिर क्यों दे दिए गए हैं? यदि कोई काम नहीं हो पाताऔर जनता को नुकसान उठाना पड़ता है, तब इन्हें सजा क्यों नहीं होती? प्रजा के पास इनके खिलाफ अदालत जाने के सिवाय दूसरा विकल्प नहीं है। आज अदालतों की जो हालत है, उसे देखकर नहीं लगता कि आम आदमी को सही समय पर न्याय मिल पाएगा? यही कारण है कि आज सरकारी कर्मचारी निरंकुश हो गए हैं। सर्वेक्षण के अनुसार प्रजा जो रिश्वत देती है, वह रकम काफी बड़ी नहीं होती, छोटे-छोटे काम की छोटी-छोटी राशि। देश के 14 प्रतिशत नागरिक करीब ढाई लाख रुपए सरकारी कर्मचारियों को हर महीने बतौर रिश्वत देते हैं। जिस अधिकारी के पास जितने अधिक अधिकार होते हैं, उसे उतनी अधिक रिश्वत मिलती है। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला इसीलिए हो पाया कि ए. राजा के पास इतने अधिक अधिकार थे कि वह जिसे चाहे जितनी अधिक रिश्वत लेकर उन्हें उपकृत कर सकता था। इसलिए यह धंधा खूब फला और फूला। यह सब सत्ता के केंद्रीयकरण के कारण ही संभव हो पाया।
भ्रष्टाचार का मूल स्रोत हमारे द्वारा सरकार को दिया जाने वाले अरबों रुपए के तमाम टैक्स हैं। जनता ईमानदारी के साथ टैक्स चुकाती है, वही राशि कर्मचारियों के मन में लालच पैछा करती है। देश के रग-रग में बसे इस भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए एक नई आजादी की आवश्यकता है। गांधीजी ने जिस तरह असहयोग आंदोलन चलाया था, उसी तरह यदि जनता कोई ऐसा उपाय करे, जिससे सरकार परेशान हो जाए, तो निश्चित रूप से इस देश को एक नई दिशा मिल सकती है। पर इसके लिए जिस नेतृत्व की आवश्यकता है, वह ईमानदारी नेता हमारे बीच नहीं है। कई अन्ना हजारे मिलकर ही यह काम कर सकते हैं। अधिकारियों को मिलने वाले असीमित अधिकारों पर अंकुश लगाया जाए, शायद तभी देश भ्रष्टाचारमुक्त हो पाए और ईमानदारी के एक नए सूरज का स्वागत करने के लिए यह पीढ़ी तैयार रहे।
डॉ. महेश परिमल
शनिवार, 24 सितंबर 2011
असीमित अधिकार ही हैं भ्रष्टाचार का मूल कारण
लेबल:
अभिमत
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
धन को सर्वोपरि स्वीकार कर लेना ही भ्रष्टाचार को उर्वरा बना रहा है।
जवाब देंहटाएं