डॉ. महेश परिमल
कहा जाता है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। आज पाकिस्तान जिस तरह से चीन की तरफ लगातार बढ़ रहा है, दोस्ती का हाथ पसार रहा है और चीन से करोड़ों की आर्थिक सहायता ले रहा है, उससे तो यही लगता है कि समय रहते पाकिस्तान अमेरिका का साथ छोड़ सकता है। पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ जरदारी हर तीसरे महीने चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। 1962 के युद्ध के बाद चीन ने अभी तक भारत से ऐसा कोई समझौता नहीं किया है, जिसे उपलब्धि कहा जाए। दोनों देशों के नेता कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में मिलते रहे हैं, परस्पर शुभकामनाएँ भी दी हैं, पर ऐसा कोई आधार तय नहीं कर पाए हैं, जिससे संबंध मजबूत बनें।
आज चीन को सबसे अधिक आवश्यकता है बिजली की। पाकिस्तान ने अमेरिकी सहायता से अपने देश में जो पॉवर प्लांट तैयार किए हैं, उससे वह चीन को काफी मात्रा में बिजली दे रहा है। इसके बदले में चीन भी पाकिस्तान को भरपूर कर रहा है। दोनों देशों के बीच मित्रता समय के साथ-साथ प्रगाढ़ होती जा रही है। वियेतनाम में अपने मुँह की खाने के बाद भी अमेरिका आज विश्वफलक में भारत से अधिक चीन को ही महत्व देता है। यही हालत विश्व के अन्य देश भी भारत से अधिक चीन को महत्व देते हैं। इसमें ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं। ऑस्ट्रेलिया के भूतपूर्व प्रधानमंत्री बॉब हॉक जब तक सत्ता में रहे, तब तक 88 बार चीन की यात्रा की। ऑस्ट्रेलिया यह अच्छी तरह से जानता है कि पाकिस्तान में जरदारी जैसे कमजोर नेता अधिक समय तक देश को सुरक्षित नहीं रख सकते। ऐसे कमजोर नेताओं के बदले यदि वहाँ सैन्य शासन हो जाए, तो बेहतर। इसलिए चीन से अधिक खतरनाक है पाकिस्तान की डाँवाडोल स्थिति। वह तो अमेरिका को भी यही सलाह देता है कि चीन की आर्थिक प्रगति को अनदेखा न करे। उसे दोस्त के रूप में देखा जाए, दुश्मन के रूप में नहीं। इसके अलावा विश्व के धनाढच्य लोगों में अपना नाम शुमार करने वाले बिल गेट्स भी अमेरिका को यही सलाह देते हैं कि चीन से अच्छा व्यवहार करें। उन्होंने भी चीन की यात्रा भारत की अपेक्षा अधिक ही की है।
अभी कुछ दिनों पहले ही पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ जरदारी अपने पुत्र बिलावल और पुत्री के साथ चीन की यात्रा पर थे। वहॉं जाकर उन्होंने बहुत कुछ कहा, पर यह कहना नहीं भूले कि संभव है 100 दिनों के भीतर वे एक बार फिर चीन पहुँचे। वे बार-बार चीन आना चाहेंगे। जरदारी के साथ आजाद कश्मीर के तथाकथित प्रधानमंत्री चौधरी अब्दुल भी उनके साथ थे। परोक्ष रूप से वे भारत और अमेरिका को यह बताना चाहते हैं कि आपका दुश्मन मेरे लंबे समय का मित्र है। अपनी मित्रता को दृढ़ करने के लिए पाकिस्तान ने अपनी धरती पर चीन के लिए बिजली घर की स्थापना की है। जाहिर है इससे उत्पन्न बिजली चीन ही जाएगी। चीन के पास आज सबसे अधिक कमी बिजली की है, जो पाकिस्तान के माध्यम से उसे मिल रही है। इसके बदले में चीन पािकस्तान की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। हाल ही में उसने पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता में काफी इजाफा किया है। उधर अमेरिका ने अपने हित के लिए पाकिस्तान को जो आर्थिक मदद की, उसका पूरा लाभ चीन को ही मिल रहा है। चीन के लिए एक तरह से पाकिस्तान ने हर तरह की सहायता का वचन ही दे दिया है।
आसिफ जरदारी सातवीं बार चीन पहुँचे, तब चीन ने उनका भारी स्वागत किया। कहीं भी यह नहीं लगा कि पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। वह आज जो अमेरिका के लिए कर रहा है, संभव है भविष्य में चीन के लिए भी कर सकता है। पर चीन का स्वार्थ अभी पाकिस्तान से जुड़ा हुआ है, इसलिए चीन ऐसा सोच भी नहीं सकता। चीन के भावी नेता के रूप में जेओ का नाम चर्चा में है। उन्होंने ही जरदारी के साथ उपप्रधानमंत्री ली आंग को लगा रखा था। इसके चीन ने पाकिस्तान को 20 अरब डॉलर की सहायता देने का वचन दिया था, पर इस यात्रा के बाद यह रकम दोगुनी कर दी गई। एक तरफ पूरा यूरोप आर्थिक मंदी से जूझ रहा है, तो दूसरी तरफ चीन कई एशियाई देशों को आर्थिक और वाणिज्य सहायता कर रहा है।
चीन की इस कार्रवाई से यह होगा कि यूरोप एवं अन्य एशियाई देशों से उसके वाणिज्यिक संबंधों को गति मिलेगी। भविष्य में चीन करांची में अपना बंदरगाह स्थापित करेगा, यह निश्चित है। तब तक वह पाकिस्तान को पूरी तरह से लाचार और नाकारा कर ही देगा। बंदरगाह स्थापित होने के बाद अरब महासागर में उसका रुतबा बढ़ेगा ही। अपनी कुशल राजनीति के बल पर चीन अमेरिका और पािकस्तान के बीच दरार डालने का काम कर रहा है, जो भविष्य में साफ दिखाई देने लगेगा। इसके लिए चीन सारी सीमाएँ पार भी कर सकता है।
सवाल यह उठता है कि क्या पाकिस्तान अपनी राजनैतिक स्थिरता को दाँव पर लगाकर चीन की सहायता करता रहेगा? अभी के हालात तो यह कहते हैं कि चीन की सारी कोशिशें नाकाम हो सकती हैं। पाकिस्तान को अमेरिका से दूर करना बहुत मुश्किल है। पाकिस्तान भी चालाक है। वह दोनों देशों की विवशताओं को समझता है। वह अमेरिका और चीन दोनों को ही अपने खेल खेलने का मौका दे रहा है। यह भी कहा जा सकता है कि दोनों ही देश पाकिस्तान के हाथों खेल रहे हैं। सीधी सी बात है भारत का दुश्मन चीन है और चीन पाकिस्तान का दोस्त है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, यह तो अपनी नीति में चाणक्य भी कह चुके हैं। आज दो हजार वर्ष बाद भी यह नीति हमारे सामने ही दिखाई दे रही है।
डॉ. महेश परिमल
गुरुवार, 29 सितंबर 2011
चीन की ओर पाकिस्तान झुकाव का मतलब?
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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