मंगलवार, 29 मई 2012
बीमार डॉक्टरों का क्या है इलाज
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उपहारों ने बिगाड़ दी डॉक्टरों की सेहत
हरिभूमि में आज प्रकाशित मेरा आलेख
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शुक्रवार, 25 मई 2012
इनसे अपेक्षा ही बेकार
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गुरुवार, 24 मई 2012
सच होने लगी है ‘फ्री इकॉनामी’ की अवधारणा
डॉ. महेश परिमल
भला कोई सोच सकता है कि बिना धन के जीवन संभव है? ‘फ्री इकानॉमी’ की अवधारणा आज की परिस्थितियों में संभव नहीं है। इस अवधारणा को गलत सिद्ध करने की एक कोशिश हुई है। हम गर्व से कह सकते हैं कि इसके तार भारत से जुड़े हुए हैं। आयरलैंड के मार्क बोयल ने इस तरह का प्रयास कर अब तक 5 हजार लोगों को जोड़ लिया है। बोयल को इसकी प्रेरणा रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ देखकर मिली। आज हम सब एक ऐसे समाज में जी रहे हैं, जहाँ धन का ही महत्व है। धन से ही रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था संभव है। बिना धन के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। विश्व में मुद्रा के रूप में सिक्के और नोट का चलन है। यही मुद्रा ही अमीर-गरीब के बीच की खाई को चौड़ा कर रही है। यदि विश्व में धन नहीं होता, तो कोई अमीर नहीं होता और न ही कोई गरीब। पूरे विश्व में इतनी प्राकृतिक संपदा है जिससे हर मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। इसके बाद भी एक तरफ लोग भूखे मर रहे हैं और दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं, जो ऐश्वर्यशाली जीवन जी रहे हैं। इसके मूल में है धन आधारित समाज है।
याद करें अपना बचपन, जब माँ को हम देखते कि वह कुछ वस्तुू देकर किसी से अपनी आवश्यकताओं की चीज ले लेती थीं। हमारे देश के गाँवों में आज भी वस्तु विनिमय की प्रथा प्रचलित है। किसान अपनी फसल का एक भाग देकर अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेता है। गाँव के हर तबके को वह अपनी फसल देता, बदले में वह उनकी सेवाएँ लेता। इसमें धन की कोई भूमिका नहीं है। सब कुछ अपनी योग्यता पर निर्भर है। आप सामने वाले के लिए क्या कर सकते हैं, ताकि वह आपकी सेवा कर सके। सेवा के बदले सेवा। यही मूल मंत्र है फ्री इकॉनामी की अवधारणा का। यूरापे में करीब 5 हजार लोग आज इस तरह का जीवन जी रहे हैं। इनके जीवन में धन का कोई महत्व नहीं है। आयरलैंड में जन्मे मार्क बोयल एक डॉट कॉम कंपनी में काम करता था। वह धन के पीछे पागल था। वह मानता था कि जिसके पास धन है, वह दुनिया की सारी खुशियाँ खरीद सकता है। एक दिन उसने रिचर्ड एटनबरो की फिल्म ‘गांधी’ देखी। इससे उनके विचारों में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिला। उन्होंने सोचा कि एक फकीर की तरह जीवन जीने वाले गांधीजी ने किस तरह से अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बोयल ने गांधी जी का आर्थिक दर्शनशास्त्र और खादी को लेकर चलाए गए उनके अभियानों पर उनके कई आलेख पढ़े। इससे उन्होंने ठान लिया कि वे अब बिना धन के जीवन गुजारेंगे।
इस समय ब्रिटेन में ‘फ्री इकॉनामी’ नामक अभियान चल रहा है। इस अभियान में जुड़ने वाले अपने साथ किसी भी प्रकार का धन नहीं रखते। फिर भी वे अपने जीवन की सारी जरुरतों को पूरा कर रहे हैं। इससे जुड़े लोग खुद के पास जो चीजें हैं, उसकी सेवा देकर वे अन्य चीजें प्राप्त करते हैं। ये सब अपनी कला बेचते हैं। इसके बदले में वे जीवन की आवश्यक वस्तुएँ प्राप्त करते हैं। इसके लिए वे किसी भी प्रकार का धन का लेन-देन नहीं करते। जैसे किसी किसान को अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए वह शिक्षक को अनाज देता है। शिक्षक अपनी विद्या के बदले में अनाज प्राप्त करता है। इस तरह से वे सब आपसी विनिमय से अपनी सेवाएँ देकर दूसरे साथियों से सेवाएँ प्राप्त करते हैें। लंदन में रहने वाले मार्क बोयल को जीवन में धन के कारण होने वाले अपराधों के कारण धन से घृणा हो गई। इसके बाद वे ‘फ्री इकॉनामी’ में शामिल हो गए। इसके बाद उसने संकल्प किया कि वे ब्रिस्टल से पोरबंदर तक 9000 मील का सफर बिना धन खर्च किए करेंगे। 2008 में उसने अपने इस संकल्प को अमलीजामा भी पहना दिया। अपने सिद्धांत के अनुसार उसने अपनी जेब में एक पैसा भी नहीं रखा और निकल पड़े अपने सफर पर। उनके पास केवल कुछ कपड़े, बेंड एड, एक चाकू ही था। उनके पास कोई क्रेडिट कार्ड और न ही कोई पोस्ट ट्रावेल चेक था। 30 जनवरी 2008 को उसने अपनी यात्रा शुरू की। रास्ते में जो भी मिलता, तो उसका कोई न कोई काम कर देते। कभी किसी के खेत में, कभी बागीचे में वे लोगों के साथ काम करते, इससे उन्हें भोजन मिल जाता। जहाँ जगह मिली, वहीं रात गुजार ली। इस तरह से वे इंगलैंड से फ्रांस तक पहुँच गए। यह सब दौलतमंदों को नहीं भाया। वे उन्हें तंग करने लगे। उन्होंने कुछ ऐसी व्यवस्था की कि मार्क को कई दिनों तक खाना-पीना नहीं मिला। उन्हें फुटपाथ पर रात गुजारने के लिए विवश होना पड़ा। हारकर वे इंगलैंड वापस आ गए और वहीं रहने लगे। उनका संकल्प कायम है।
मार्क का जन्म यदि भारत में हुआ होता, तो वह किसी गाँव में पूरा जीवन बिना धन के गुजार सकते थे। हमारे देश में आज भी न जाने कितने गाँव ऐसे हैं, जहाँ रहने के लिए धन की आवश्यकता कतई नहीं है। आपमें हुनर है, तो आप पूरी शिद्दत के साथ वहाँ रह सकते हैं। गाँव में आज भी एक ब्राह्मण चार घरों से आटा माँगकर रोटी बना लेता है। यजमानी करते हुए उसे दो जोड़ी कपड़े भी मिल जाते हैं, जो साल भर चलते हैं। जिस मकान में वह रहता है, वह भले ही किराए से हो, पर उसका किराया नहीं लिया जाता। यही नहीं जब कभी मकान की मरम्मत करनी हो, तो आस-पड़ोस के लोग उसकी सहायता के लिए आ जाते हैं। बढ़ई यदि किसी किसान का काम करता है, तो उसे अनाज मिल जाता है। इस तरह के गाँव आज भी हमारे देश में देखने को मिल ही जाएँगे। ‘फ्री इकानामी’ अभियान की शुरुआत अमेरिका में हुई थी। इस अभियान से जुड़ने वाले यह मानते हैं कि दुनिया में गरीबी, बेकारी, कुपोषण, भुखमरी, शोषण आदि जितनी भी समस्याएँ हैं, उसके मूल में केश, क्रेडिट और प्रोफिट है। इस अभियान से जुड़े लोग यह संकल्प करते हैं कि वे कभी भी अपने पास किसी तरह का धन नहीं रखेंगे। वे अपनी कला, जमीन, अथवा श्रम के बदले में विनिमय प्रणाली से जीवन की आवश्यक वस्तुएं प्राप्त करेंगे। धन के बिना समाज का सबसे बड़ा लाभ यह है कि जिस व्यक्ति को जितनी आवश्यकता होती है, वह उतना ही प्राप्त करता है। बैंक में धन संग्रह की कोई सीमा नहीं होती, पर घर में अनाज और वस्त्र रखने की एक सीमा होती है। इसलिए चीजों का सही आवंटन होता है और लोगों को अपनी आवश्यकताओं की चीज मिलती रहती है। ‘फ्री इकानामी’ से जुड़े लोग अपनी वेबसाइट भी चलाते हैं। इस वेबसाइट में अभी कुल 5085 सदस्य हैं। इनके पास 1035 कलाएँ हैं। साथ ही 22289 उपकरण हैं। इसकी सेवा देने के लिए वे सभी तत्पर हैं। इनका एक नियम है कि किसी भी काम को करने पर धन की माँग न करना। पर काम के बदले काम या माल की अदला-बदली कर देना, यही उनका मुख्य उद्देश्य है। अपनी वेबसाइट पर वे किसी प्रकार की तस्वीर नहीं डालते। उनका मानना है कि इंसान की सही पहचान उसके दिखावे से नहीं, बल्कि उसकी कला से होती है। इस वेबसाइट पर कोई भी व्यक्ति एक व्यक्ति को तीन बार से अधिक ई मेल नहीं कर सकता। मेल के बाद सभी सदस्य जीवन में परस्पर मिलते हैं और अपने संबंध मजबूत करते हैं। इसके संचालक मानते हैं कि इसीलिए हमने वेबसाइट पर चेट रूम की सुविधा नहीं देते। लोग इंटरनेट पर नहीं, बल्कि बगीचे में काम करते हुए एक-दूसरे के साथ मिलते-जुलते हैं। इससे उनके संबंध मजबूत और धनिष्ठ होते हैं।
अमेरिका और इंगलैंड में एक डॉलर भी खर्च किए बिना जीवन व्यतीत करना आसान नहीं है। ‘फ्री इकानामी’ के सदस्य जब किसी आवश्यक वस्तु को प्राप्त करने के लिए अपनी सेवा देने को तैयार होते हैं, तो कई बार उन्हें भिखारी भी मान लिया जाता है। जो समाज केवल धन पर ही आधारित है, उस समाज में बिना धन के जीवन बिताने वालों पर कोई आसानी से विश्वास भी नहीं करता। कोई सदस्य अपने पड़ोसी की छत पर बगीचा बनाने का प्रस्ताव देता है, तो पड़ोसी को विश्वास नहीं होता, उसे डर लगता है। कहीं यह मेरी छत पर अपना कब्जा तो नहीं कर लेगा? आज हम धन देकर अपना काम करवाने के इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि कोई बिना धन के उनका काम कर देगा, तो उस पर विश्वास नहीं करते। बदले में वह धन तो लेगा नहीं, तो हमसे क्या अपेक्षा रखेगा? यही डर उन्हें खा जाता है। हमारे देश में हजारों वर्षो से साधू-संन्यासी की परंपरा चली आ रही है। ये संन्यासी देश के किसी भी भाग में जाते रहते हैं। न तो इन्हें अपने भोजन की ¨चता होती है और न ही आवास की। हम रास्ते में कई बार जैन साधू-साध्वियों को देखते हैं। वे भी अपने पास किसी तरह का धन नहीं रखते। फिर भी वे अपने समाज में सम्मान प्राप्त करते हैं। उन्हें भोजन भी मिल जाता है और आवास की सुविधा भी प्राप्त हो जाती है। उनकी सेवा करके लोग स्वयं को धन्य मानते हैं। यह भी एक प्रकार का विनिमय ही है। साधू-संतों से समाज में सदाचार और सद्विचार का प्रसार होता है। यह भी समाज की एक बड़ी सेवा ही है। दस सेवा के बदले समाज उनके जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। मार्क को जो समस्याएं फ्रांस में आई, वह निश्चित रूप से भारत में नहीं आती। हमारे देश अतिथियों के स्वागत के लिए हमेशा आतुर रहता है। ‘फ्री इकानामी’ का अर्थ यही है कि बिना किसी परिग्रह का समाज। जिस दिन हमारे देश के अमीर अपना परिग्रह छोड़ देंगे, उस दिन से पूरी दुनिया में कोई गरीब नहीं रहेगा।
डॉ. महेश परिमल

बुधवार, 23 मई 2012
यूपीए से उम्मीदें बाकी, हर मोर्चे पर मिली मात
आज दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण और हरिभूमि के संपादकीय पेज पर प्रकाशित मेरा आलेख
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सियासत

मंगलवार, 22 मई 2012
नजरअंदाज कैसे करे, इस पहली बगावत को
डॉ. महेश परिमल
लद्दाख में चीन सीमा के करीब फायरिंग रेंज में सेना के अधिकारियों और जवानों के बीच संघर्ष से रक्षामंत्री ए. के. एंटनी नाखुश हैं। उन्होंने सेना से इस सिलसिले में तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने को कहा है। इस घटना पर शुरुआती जांच रिपोर्ट को लेकर रक्षामंत्री ने नाराजगी जताई है। यह रिपोर्ट शुRवार शाम रक्षा मंत्रालय को दी गई। सेना ने पूरे घटनाRम को अधिकारियों और जवानों के बीच की छोटी सी झड़प बताया। मगर, इस बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी। इस रिपोर्ट से नाखुश रक्षामंत्री ने मामले की विस्तृत जांच रिपोर्ट तलब की है। सेना के अधिकारियों को यह छोटी सी झड़प लग सकती है, पर इसकी गहराई में जाएं, तो कई सुराख नजर आएंगे। वैसे इन दिनों रक्षा सौदों में लगातार हुए भ्रष्टाचार की खबरों के कारण सेना पर राजनीति की पकड़ ढीली पड़ गई है। इस कारण सेना में अनुशासनहीनता लगातार बढ़ रही है। जिसे अभी चिंगारी माना जा रहा है, भविष्य में वही चिंगारी भड़क सकती है।
दस मई को सेना के अधिकारियों एवं जवानों के बीच मुठभेड़ हुई। जो सेना में लगातार हो रही लापरवाही का ही एक नतीजा है। आज से ठीक 155 वर्ष पहले भी दस मई 1957 को अंग्रेजों के खिलाफ पहली बगावत हुई थी। इसे पहले स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है। इसके बाद आंदोलन का जो सिलसिला शुरू हुआ, जिससे भारत में स्थापित इस्ट इंडिया कंपनी के राज का खात्मा हो गया। इसके बाद 10 मई 2012 को एक बार फिर भारतीय सैनिकों में बगावत के स्वर सुनाई पड़े। स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना में हुई इस बगावत को पहली बगावत कहा जा सकता है। यह बगावत सरकार के खिलाफ या देश के खिलाफ नहीं थी, यह बगावत थी सेना के उच्च अधिकारियों के खिलाफ जवानों की। इस बगावत ने पूरी दिल्ली को हिलाकर रख दिया। इस बगावत पर भले ही काबू पा लिया गया हो, पर इसकी गहराई में जाने की आवश्यकता है। रक्षा सौदों में हुए भ्रष्टाचार के कारण सेना के जवानों में वैसे भी मनोबल की कमी आ गई है। ऐसे में सेना के उच्च अधिकारियों द्वारा अनुशासनहीनता दिखाई गई, जिससे जवान भड़क उठे। भारतीय प्रजातंत्र के लिए इसे अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता। वैसे भी भारतीय सैन्य दल हमेशा झूठे कारणों से सुर्खियों में आ जाता है। पहले भारत के सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह की उम्र को लेकर विवाद हुआ, इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने परदा डाल दिया। इसके बाद सेनाध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र लीक हो गया। जिसमें भारतीय सेना के पास दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए आवश्यक शस्त्र सामग्री का अभाव बताया गया। इसी के चलते यह बात भी सामने आई कि हरियाणा की सेना की बटालियन बिना पूर्व सूचना के दिल्ली की तरफ कूच कर गई थी। इस कारण भी रक्षा मंत्रालय में हड़कम्प मच गया था। बाद में यह स्पष्टीकरण दिया गया कि ये रुटीन परेड का एक हिस्सा था। भले ही इसकी सूचना रक्षा मंत्रालय को भी देना मुनासिब नहीं समझा गया। इसके बाद सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह ने यह रहस्योद्घाटन किया कि सेना द्वारा टेट्रा ट्रक की खरीदी के लिए उन्हें 14 करोड़ रुपए रिश्वत देने का ऑफर था। इस मामले की जाँच सीबीआई कर रही है। इन परिस्थितियों में सेना भले ही छोटी-छोटी बगावत करे, पर इससे सेना में जारी अनुशासनहीनता की एक झलक मिल ही जाती है।
लद्दाख की फायरिंग रेंज में तैनात किए गए 226 फील्ड रेजीमेंट के करीब 500 जवानों ने पिछले दिनों अपने ही अधिकारियों के खिलाफ बगावत की थी। इसके पहले सेना के जवानों द्वारा इस तरह से बगावत की हो, इसके प्रमाण नहीं मिलते। 226 फील्ड रेजीमेंट के जवान-अधिकारी फायरिंग प्रेक्टिस के लिए लद्दाख के काबरुक क्षेत्र के भीतरी इलाकों में गए थे। उनके रहने के लिए तम्बुओं की व्यवस्था की गई थी। सेना का यह नियम है कि सेना की इस तरह की कोई गतिविधि यदि जारी हो, तो अधिकारी अपनी पत्नियों को नहीं ले जा सकते। पर इस मामले में वहाँ सेना के 5 अफसरों की पत्नियां भी गई हुई थीं। इन महिलाओं को भी तम्बुओं में ही रखा गया था। यह एक गंभीर अनुशासनहीनता है। इससे यह स्पष्ट है कि ऐसा काफी समय से होता आ रहा था। दस मई को एक ओर जब फायरिंग की प्रेक्टिस चल रही थी, तो दूसरी तरफ एक मेजर की पत्नी तम्बू में कपड़े बदल रही थी, तभी सेना में ही काम करने वाला एक नाई सुमन घोष वहाँ पहुँच गया। कहा जाता है कि उसने मेजर की पत्नी से छेड़छाड़ करने की कोशिश की। मेजर की पत्नी द्वारा शोर करने से यह नाई भाग गया था। जब मेजर को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने किसी तरह से उक्त नाई को खोज निकाला। उसके बाद उसकी खूब पिटाई की गई। मेजर के इस काम में दूसरे अन्य अधिकारी भी शामिल हो गए। सेना के जवानों ने उक्त नाई को बचाने की कोशिश की गई, तो अधिकारियों ने इसका विरोध किया। बुरी तरह से घायल नाई को अधिकारियों ने सेना के अस्पताल ले जाने भी नहीं दिया गया। अंतत: कमांडिंग आफिसर कदम के हस्तक्षेप के बाद नाई को गंभीर हालत में सेना के अस्पताल में भर्ती किया गया। यहाँ भी अनुशासनहीनता दिखाई देती है। सेना का कोई जवान यदि इस तरह की हरकत करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनहीनता का आरोप लगता है और उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है। पर जवान से मारपीट करने की छूट किसी भी हालत में नहीं दी जाती।
मेजर की पत्नी से कथित रूप से छेड़छाड़ करने वाले नाई की पिटाई और उसके बाद उसे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराने की खबर जब रेजीमेंट में फैेल गई, तब जवानों में उत्तेजना फैल गई। फिर यह अफवाह भी उड़ गई कि इलाज के दौरान सुमन घोष की मौत हो गई, तो जवानों के धर्य की सीमा टूट गई और उन्होंने अधिकारियों की मैस में जाकर पहले तो वहाँ तोड़फोड की, फिर अधिकारियों की पिटाई कर दी। इसकी जानकारी जब रेजीमेंट के कर्नल कदम को हुई, तो उन्होंने तुरंत ही मेस में जाकर जवानों को समझाने की कोशिश की। अभी यह बातचीत चल ही रही थी कि एक पत्थर कर्नल कदम के माथे पर लगा। बस फिर क्या था, अधिकारियों और जवानों के बीच हाथापाई शुरू हो गई। इस दौरान मेस में आग लगा दी गई। जवान चूंकि संख्या में अधिक थे, इसलिए अधिकारियों ने भाग कर पास के तम्बुओं में शरण ली। जो अधिकारी भाग नहीं पाए, वे आवेश में आकर जवानों की हत्या के लिए तैयार हो गए। कई अधिकारियों ने अपनी पत्नी की ओट में आकर अपनी जान बचाई। जवानों ने अधिकारियों की पत्नियों से भी मारपीट की। इस बीच यह भी अफवाह उड़ी कि सेना के जवानों ने शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया है। दूसरे दिन तक स्थिति नियंत्रण में आ गई। सेना के वरिष्ठ अधिकारी घटनास्थल पर पहुँच गए थे। सेना की इस छोटी सी बगावत से चौंक उठे सेना के उच्च अधिकारी और रक्षा मंत्रालय के उच्च अधिकारियों में विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है। अब क्या किया जाए? इधर आत्ममंथन का दौर जारी है, उधर 226 फील्ड रेजीमेट को इसके पहले संभालने वाले कर्नल योगी शेरोन को इस कैम्प में भेजा गया है। उनके बारे में यह कहा जाता है कि उनका व्यवहार सैनिकों के प्रति सकारात्मक रहा है। सैनिकों में इस तरह की अनुशासनहीनता आखिर कैसे आई, इसकी जांच के आदेश दे दिए गए हैं। इस मामले में जो अधिकारी दोषी पाए जाएंगे, उनका कोर्ट मार्शल होने की भी पूरी संभावना है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि 226 फील्ड रेजीमेंट के खिलाफ इसके पहले भी अनुशासनहीनता की शिकायत की जा चुकी है। इस शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया था। इस बगावत का यह भी एक कारण हो सकता है।
शांतिप्रिय और अनुशासित माने जाने वाले भारतीय सेना में हाल ही में अनेक विवाद और घोटाले सामने आए हैं। महाराष्ट्र के आदर्श घोटाले में सेना के कई भूतपूर्व अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जाँच चल रही है। सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह का जिस तरह से अपमान किया गया, उससे भी जवानों में नेताओं के प्रति रोष फैल गया है। यही नहीं समय-समय पर नेताओं द्वारा सेना पर कटाक्ष किए जाते रहे हैं। खास बात यह है कि सेना की अच्छाइयों की उतनी चर्चा नहीं होती, जितनी उनके विवादों की। इसलिए जवानों का मनोबल टूटना लाजिमी है। केंद्र सरकार द्वारा भी ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिससे जवानों का हौसला बढ़े। आखिर घर-परिवार से दूर होकर ये ेजवान देश की सेवा ही तो कर रहे हैं। इनके बलिदानों का लेखा-जोखा आखिर कौन रखेगा?
डॉ. महेश परिमल
लद्दाख में चीन सीमा के करीब फायरिंग रेंज में सेना के अधिकारियों और जवानों के बीच संघर्ष से रक्षामंत्री ए. के. एंटनी नाखुश हैं। उन्होंने सेना से इस सिलसिले में तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने को कहा है। इस घटना पर शुरुआती जांच रिपोर्ट को लेकर रक्षामंत्री ने नाराजगी जताई है। यह रिपोर्ट शुRवार शाम रक्षा मंत्रालय को दी गई। सेना ने पूरे घटनाRम को अधिकारियों और जवानों के बीच की छोटी सी झड़प बताया। मगर, इस बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी। इस रिपोर्ट से नाखुश रक्षामंत्री ने मामले की विस्तृत जांच रिपोर्ट तलब की है। सेना के अधिकारियों को यह छोटी सी झड़प लग सकती है, पर इसकी गहराई में जाएं, तो कई सुराख नजर आएंगे। वैसे इन दिनों रक्षा सौदों में लगातार हुए भ्रष्टाचार की खबरों के कारण सेना पर राजनीति की पकड़ ढीली पड़ गई है। इस कारण सेना में अनुशासनहीनता लगातार बढ़ रही है। जिसे अभी चिंगारी माना जा रहा है, भविष्य में वही चिंगारी भड़क सकती है।
दस मई को सेना के अधिकारियों एवं जवानों के बीच मुठभेड़ हुई। जो सेना में लगातार हो रही लापरवाही का ही एक नतीजा है। आज से ठीक 155 वर्ष पहले भी दस मई 1957 को अंग्रेजों के खिलाफ पहली बगावत हुई थी। इसे पहले स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है। इसके बाद आंदोलन का जो सिलसिला शुरू हुआ, जिससे भारत में स्थापित इस्ट इंडिया कंपनी के राज का खात्मा हो गया। इसके बाद 10 मई 2012 को एक बार फिर भारतीय सैनिकों में बगावत के स्वर सुनाई पड़े। स्वतंत्रता के बाद भारतीय सेना में हुई इस बगावत को पहली बगावत कहा जा सकता है। यह बगावत सरकार के खिलाफ या देश के खिलाफ नहीं थी, यह बगावत थी सेना के उच्च अधिकारियों के खिलाफ जवानों की। इस बगावत ने पूरी दिल्ली को हिलाकर रख दिया। इस बगावत पर भले ही काबू पा लिया गया हो, पर इसकी गहराई में जाने की आवश्यकता है। रक्षा सौदों में हुए भ्रष्टाचार के कारण सेना के जवानों में वैसे भी मनोबल की कमी आ गई है। ऐसे में सेना के उच्च अधिकारियों द्वारा अनुशासनहीनता दिखाई गई, जिससे जवान भड़क उठे। भारतीय प्रजातंत्र के लिए इसे अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता। वैसे भी भारतीय सैन्य दल हमेशा झूठे कारणों से सुर्खियों में आ जाता है। पहले भारत के सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह की उम्र को लेकर विवाद हुआ, इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने परदा डाल दिया। इसके बाद सेनाध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र लीक हो गया। जिसमें भारतीय सेना के पास दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए आवश्यक शस्त्र सामग्री का अभाव बताया गया। इसी के चलते यह बात भी सामने आई कि हरियाणा की सेना की बटालियन बिना पूर्व सूचना के दिल्ली की तरफ कूच कर गई थी। इस कारण भी रक्षा मंत्रालय में हड़कम्प मच गया था। बाद में यह स्पष्टीकरण दिया गया कि ये रुटीन परेड का एक हिस्सा था। भले ही इसकी सूचना रक्षा मंत्रालय को भी देना मुनासिब नहीं समझा गया। इसके बाद सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह ने यह रहस्योद्घाटन किया कि सेना द्वारा टेट्रा ट्रक की खरीदी के लिए उन्हें 14 करोड़ रुपए रिश्वत देने का ऑफर था। इस मामले की जाँच सीबीआई कर रही है। इन परिस्थितियों में सेना भले ही छोटी-छोटी बगावत करे, पर इससे सेना में जारी अनुशासनहीनता की एक झलक मिल ही जाती है।
लद्दाख की फायरिंग रेंज में तैनात किए गए 226 फील्ड रेजीमेंट के करीब 500 जवानों ने पिछले दिनों अपने ही अधिकारियों के खिलाफ बगावत की थी। इसके पहले सेना के जवानों द्वारा इस तरह से बगावत की हो, इसके प्रमाण नहीं मिलते। 226 फील्ड रेजीमेंट के जवान-अधिकारी फायरिंग प्रेक्टिस के लिए लद्दाख के काबरुक क्षेत्र के भीतरी इलाकों में गए थे। उनके रहने के लिए तम्बुओं की व्यवस्था की गई थी। सेना का यह नियम है कि सेना की इस तरह की कोई गतिविधि यदि जारी हो, तो अधिकारी अपनी पत्नियों को नहीं ले जा सकते। पर इस मामले में वहाँ सेना के 5 अफसरों की पत्नियां भी गई हुई थीं। इन महिलाओं को भी तम्बुओं में ही रखा गया था। यह एक गंभीर अनुशासनहीनता है। इससे यह स्पष्ट है कि ऐसा काफी समय से होता आ रहा था। दस मई को एक ओर जब फायरिंग की प्रेक्टिस चल रही थी, तो दूसरी तरफ एक मेजर की पत्नी तम्बू में कपड़े बदल रही थी, तभी सेना में ही काम करने वाला एक नाई सुमन घोष वहाँ पहुँच गया। कहा जाता है कि उसने मेजर की पत्नी से छेड़छाड़ करने की कोशिश की। मेजर की पत्नी द्वारा शोर करने से यह नाई भाग गया था। जब मेजर को इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने किसी तरह से उक्त नाई को खोज निकाला। उसके बाद उसकी खूब पिटाई की गई। मेजर के इस काम में दूसरे अन्य अधिकारी भी शामिल हो गए। सेना के जवानों ने उक्त नाई को बचाने की कोशिश की गई, तो अधिकारियों ने इसका विरोध किया। बुरी तरह से घायल नाई को अधिकारियों ने सेना के अस्पताल ले जाने भी नहीं दिया गया। अंतत: कमांडिंग आफिसर कदम के हस्तक्षेप के बाद नाई को गंभीर हालत में सेना के अस्पताल में भर्ती किया गया। यहाँ भी अनुशासनहीनता दिखाई देती है। सेना का कोई जवान यदि इस तरह की हरकत करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनहीनता का आरोप लगता है और उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाती है। पर जवान से मारपीट करने की छूट किसी भी हालत में नहीं दी जाती।
मेजर की पत्नी से कथित रूप से छेड़छाड़ करने वाले नाई की पिटाई और उसके बाद उसे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराने की खबर जब रेजीमेंट में फैेल गई, तब जवानों में उत्तेजना फैल गई। फिर यह अफवाह भी उड़ गई कि इलाज के दौरान सुमन घोष की मौत हो गई, तो जवानों के धर्य की सीमा टूट गई और उन्होंने अधिकारियों की मैस में जाकर पहले तो वहाँ तोड़फोड की, फिर अधिकारियों की पिटाई कर दी। इसकी जानकारी जब रेजीमेंट के कर्नल कदम को हुई, तो उन्होंने तुरंत ही मेस में जाकर जवानों को समझाने की कोशिश की। अभी यह बातचीत चल ही रही थी कि एक पत्थर कर्नल कदम के माथे पर लगा। बस फिर क्या था, अधिकारियों और जवानों के बीच हाथापाई शुरू हो गई। इस दौरान मेस में आग लगा दी गई। जवान चूंकि संख्या में अधिक थे, इसलिए अधिकारियों ने भाग कर पास के तम्बुओं में शरण ली। जो अधिकारी भाग नहीं पाए, वे आवेश में आकर जवानों की हत्या के लिए तैयार हो गए। कई अधिकारियों ने अपनी पत्नी की ओट में आकर अपनी जान बचाई। जवानों ने अधिकारियों की पत्नियों से भी मारपीट की। इस बीच यह भी अफवाह उड़ी कि सेना के जवानों ने शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया है। दूसरे दिन तक स्थिति नियंत्रण में आ गई। सेना के वरिष्ठ अधिकारी घटनास्थल पर पहुँच गए थे। सेना की इस छोटी सी बगावत से चौंक उठे सेना के उच्च अधिकारी और रक्षा मंत्रालय के उच्च अधिकारियों में विचार-विमर्श का दौर शुरू हो गया है। अब क्या किया जाए? इधर आत्ममंथन का दौर जारी है, उधर 226 फील्ड रेजीमेट को इसके पहले संभालने वाले कर्नल योगी शेरोन को इस कैम्प में भेजा गया है। उनके बारे में यह कहा जाता है कि उनका व्यवहार सैनिकों के प्रति सकारात्मक रहा है। सैनिकों में इस तरह की अनुशासनहीनता आखिर कैसे आई, इसकी जांच के आदेश दे दिए गए हैं। इस मामले में जो अधिकारी दोषी पाए जाएंगे, उनका कोर्ट मार्शल होने की भी पूरी संभावना है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि 226 फील्ड रेजीमेंट के खिलाफ इसके पहले भी अनुशासनहीनता की शिकायत की जा चुकी है। इस शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया था। इस बगावत का यह भी एक कारण हो सकता है।
शांतिप्रिय और अनुशासित माने जाने वाले भारतीय सेना में हाल ही में अनेक विवाद और घोटाले सामने आए हैं। महाराष्ट्र के आदर्श घोटाले में सेना के कई भूतपूर्व अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई जाँच चल रही है। सेनाध्यक्ष वी.के. सिंह का जिस तरह से अपमान किया गया, उससे भी जवानों में नेताओं के प्रति रोष फैल गया है। यही नहीं समय-समय पर नेताओं द्वारा सेना पर कटाक्ष किए जाते रहे हैं। खास बात यह है कि सेना की अच्छाइयों की उतनी चर्चा नहीं होती, जितनी उनके विवादों की। इसलिए जवानों का मनोबल टूटना लाजिमी है। केंद्र सरकार द्वारा भी ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिससे जवानों का हौसला बढ़े। आखिर घर-परिवार से दूर होकर ये ेजवान देश की सेवा ही तो कर रहे हैं। इनके बलिदानों का लेखा-जोखा आखिर कौन रखेगा?
डॉ. महेश परिमल
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सोमवार, 21 मई 2012
शाहरुख कानून से ऊपर तो नहीं....
डॉ. महेश परिमल
इन दिनों अभिनेता शाहरुख चर्चा में हैं। जब से आईपीएल शुरू हुआ है, तब से न जाने क्यों वे स्वयं को कानून से ऊपर मानने लगे हैं। एक ओर यही शाहरुख अमेरिका में इमिग्रेशन विभाग द्वारा किए गए अपमान को आसानी से पचा जाते हैं, वही दूसरी ओर वे देश के कानून को तोड़ने में भी संकोच नहीं करते। आखिर इसका कारण क्या है? जब हमारे देश का संविधान तैयार किया गया, तब सभी को कानून की दृष्टि से समान माना गया है। पर वास्तव में ऐसा नहीं है। आज भी कई लोगों के लिए कानून हाथ का खिलौना मात्र है, तो कई लोगों को पूरी जिंदगी घुट-घुटकर जीने के लिए विवश करता है। राज्य सभा में अब तक न जाने कितने लोगों ने शपथ ली गई होगी, पर रेखा ने जब शपथ ली, तब कैमरा पूरे समय तक उन्हीं पर फोकस रहा। इसके पहले इस तरह से किसी भी सदस्य को तरजीह नहीं मिली। शाहरुख खान ने दो दशक तक फिल्मी दुनिया में बेताज बादशाह के रूप में राज किया है। अब नए सितारे आगे आने लगे हैं। इस कारण बालीवुड का यह बादशाह उलझन में है। वह असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हो गए हैं। इस कारण उसे बार-बार गुस्सा आ रहा है। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे 24/7 लाइव टीवी के जमाने में जी रहे हैं। उनकी छोटी-सी भी हरकत या भूल मीडिया के लिए कई घंटों की खुराक बन सकता है। जिस मीडिया ने शाहरुख को बनाया है, वही उसे खत्म भी कर सकता है। अतएव उन्हें 24/7 से सावधान रहना चहिए और अपने व्यवहार को नियंत्रण में करना होगा।
आजकल विवाद शाहरुख का पीछा नहीं कर रहा है, बल्कि शाहरुख ही विवादों को आमंत्रण दे रहे हैं। बुधवार की रात को वानखेड़े स्टेडियम में जो कुछ हुआ, वह उनके द्वारा परिश्रम से तैयार की गई इमेज के बिलकुल ही अलग था। देखा जाए तो शाहरुख खान के दो रूप हैं। एक है परफेक्ट एंटरटेइटर, परफेक्ट हसबेंड, परफेक्ट पेरेंट और परफेक्ट देशभक्त है। जो देश के कानून का पूरी गंभीरता के साथ पालन करता है। उनका दूसरा रूप है एक घमंडी, असुरक्षा की भावना से ग्रस्त, धूम्रपान के शौकीन इंसान हैं। वे इंसान की सभी कमजोरियों से भरे हुए हैं। शाहरुख खान के करोड़ों प्रशंसक उनके पहले रूप से परिचित हैं, इसलिए उन्हें पूजते हैं। पर जब उन्हें असली शाहरुख खान के दर्शन हो जाते हैं, तो वे हताश हो जाते हैं। शाहरुख खान अपनी सेलिब्रिटी स्टेटस के आवेश में देश के कानून की परवाह नहीं करते। इसका उदाहरण जयपुर में ही पिछले महीने आयोजित आईपीएल के मैच के दौरान ही मिल गया था। राजस्थान में सन् 2000 से ही यह कानून लागू है कि वहाँ सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर पाबंदी है। इस नियम को जानते हुए भी उन्होंने मैच के दौरान स्टेडियम में बिंदास होकर धूम्रपान किया। उन्हें ऐसा करते हुए उनके करोड़ों प्रशंसकों ने देखा भी। उन्हें मालूम था कि वे टीवी के कैमरे में कैद हो सकते हैं, परंतु उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। उनकी इस हरकत को देखकर नाराज हुए वकील नेमसिंह ने जयपुर की अदालत का दरवाजा खटखटाया। इस आधार पर शाहरुख खान को अदालत में हाजिर होने का समंस भेजा गया। कुछ समय पहले ही शाहरुख अमेरिका के प्रवास पर थे। वहाँ उन्हें येल विश्वविद्यालय में भाषण करना था। उन्हें विश्वविद्यालय ने ही बुलाया था। अमेरिका पहुंचकर हवाई अड्डे पर इमिग्रेशन विभाग के अधिकारियों ने उन्हें पूछताछ के नाम पर दो घंटे तक रोके रखा। उस समय उन्होंने थोड़ा सा भी विरोध नहीं किया। अधिकािरयों के सारे नखरों को वे सहन करते रहे। उसके बाद वे येल विश्वविद्यालय पहुंचे। वहाँ उन्होंने अपने भाषण में इमिग्रेशन अधिकािरयों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब भी मेरे भीतर घमंड भर जाता है, तो मैं अमेरिका चला आता हूं, क्योंकि यहां आकर मेरा घमंड इमिग्रेशन के अधिकारी उतार देते हैं। यहां शाहरुख अमेरिका के कड़े कानून का आदर करते हैं, पर भारत के कानून की परवाह नहीं करते। यह हमें वानखेड़ेक में हुई घटना से समझ में आ जाता है।
शाहरुख खन की तरह अधिकांश फिल्मी सितारे स्वयं को कानून से ऊपर ही मानते हैं। सलमान खान ‘हम साथ-साथ हैं’की शूटिंग करने राजस्थान गए थे, वहाँ केवल मौज-मस्ती की खातिर उन्होंने काले हिरण का शिकार किया। राजस्थान में वन्य प्राणियों के लिए अपनी जान दाँव पर लगाने वाले विश्नोई समुदाय के लोगों ने उस पर मुकदमा ठोंक दिया। जो अभी तक चल रहा है। इसी तरह एक बार बांदरा की सड़क पर लापरवाही पूर्ण तरीके से कार चलाते हुए फुटपाथ पर सोए कई लोगों को कुचल दिया था। ये मामला भी अभी चल रहा है। सैफ अली खान द्वारा होटल में किए गए अभद्र व्यवहार का मामला भी अभी ताजा ही है। जब वे करीना और कई मित्रों के साथ एक आलीशान होटल गए थे। वहाँ वे जोर-शोर से बातचीत कर रहे थे। इससे वहाँ भोजन करने आए कई लोगों को बुरा लगा। उनकी शांति में खलल पड़ने लगा। इस दौरान होटल के मैनेजर ने उन्हें शांत कराया। कुछ समय बाद फिर वही शोर-गुल शुरू हो गया। ऐसे में एक व्यक्ति ने अपनी जगह बदलने की गुजारिश मैनेजर से की। सैफ को यह नागवार गुजरा। उन्होंने उक्त ग्राहक के वृद्ध पिता की पिटाई कर दी। मामला पुलिस स्टेशन पहुँच गया। तब घबराए हुए सैफ ने माफी मांगकर समाधान किया। सैफ ही नहीं, सभी सितारे यह मानते हैंकि वे सार्वजनिक स्थलों पर लोग उनकी सभी हरकतों को झेल लेंगे। शाहरुख और फराह खान के बची अनेक वर्षो से गाढ़ी मित्रता थी। फराह खान के पति शिरीष कुंदर को यह पसंद नहीं था। इस कारण फराह ने शाहरुख से अपनी दोस्ती छोड़ दी। ऐसा शाहरुख सोचते थे। इसलिए शिरीष कुंदर के प्रति वे कटुता रखते थे। यह कटुता खुन्नस में उस वक्त बदल गई, जब एक पार्टी में वे शराब पीकर कुंदर से भिड़ गए। शाहरुख ने कुंदर की खूब पिटाई कर दी। उस समय वहाँ पत्रकार भी थे, इसलिए मामले ने तूल पकड़ लिया। दूसरे दिन अखबारों और टीवी में इस घटना को हाईलाइट किया गया, तब शाहरुख को लगा कि उनसे गलती हो गई है। बस फिर क्या था, उन्होंने कुंदर से माफी मांग ली। जब भी शाहरुख अपने असली स्वभाव में आ जाते हैं, तब वे विवादों में उलझ जाते हैं और मारपीट करने लगते हैं। पर जैसे ही उन्हें यह खयाल आता है कि वे एक सेलिब्रिटी भी हें, तो वे माफी मांग लेते हैं। उनके माफी माँगने के पीछे का कारण यह है कि यदि मीडिया में उनकी छवि को थोड़ा सा भी नुकसान होता है, तो करोड़ों का नुकसान हो सकता है। शाहरुख इमामी, हुंडई और डीश टीवी जैसे ब्रांडो के एम्बेसेडर हैं। इन कंपनियों से उन्हें हर वर्ष सा से आठ करोड़ रुपए मिलते हैं। इस सभी ब्रांड में शाहरुख खान एक संवेदनशील, इंटेलिजेंट और भारतीय संविधान का सम्मान करने वाला बताया गया है। यदि उनके सार्वजनिक जीवन में इस तरह की घटनाएं होती हैं, तो उनकी इमेज बिगड़ सकती है। अब यह लोगों को समझ में आने लगा है कि शाहरुख का स्वभाव लगातार चिड़चिड़ा होता जा रहा है। वे छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होने लगे हैं। वे अपने आप को कानून से ऊपर मानने लगे हैं। सभा-समारोहों में उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए, ये उन्हें शायद नहीं पता। यदि शाहरुख इसी तरह अपनी इमेज बिगाड़ते रहें, तो ब्रांड एम्बेसेडर की कमाई से वंचित हो सकते हैं।
भारत के युवा किसका सम्मान सबसे अधिक करते हैं, इस पर ब्रांड इक्विटी नामक मैगजीन ने एक सर्वे किया। जिससे पता चलता है कि यूथ आइकोन के रूप में सचिन तेंदुलकर और सलमान खान के बाद शाहरुख खान को पसंद करते हैं। हाल ही में एक सर्वेक्षण से यह पता चलता है कि सचिन, सहवाग और धोनी को आईपीएल में बेशुमार काला धन मिला है। सलमान खान अपने क्रुद्ध व्यवहार, लापरवाही पूर्ण तरीके से वाहन चालन और कानून को तोड़ने की आदत के कारण खबरों की सुर्खियां बनते रहे हैं। एक समय ऐसा भी था, जब लोग सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह और खुदीराम बोस को अपना आदर्श मानते थे। अब लोग सलमान और शाहरुख की पूजा करने लगे हैं। इसका कारण यह है कि आज के युवा फिल्मी सितारों की रील लाइफ से इतने अधिक प्रभावित होने लगे हैं कि उनकी रियल लाइफ की सच्चई को स्वीकारने को तैयार ही नहीं हैं। शाहरुख खान के प्रशंसक यह दलील कर सकते हैं कि देश में लाखों लोग सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीते हैं, सिगरेट पीते हैं, तो उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। मीडिया वाले उसी के पीछे क्यों पड़े रहते हैं? इसका कारण यही है कि हमारे देश में फिल्मी कलाकार एक अलग ही स्थान रखते हैं। करोड़ो युवा उनकी नकल कर स्वयं को गौरवशाली समझते हैं। उनकी लाइफ स्टाइल से करोड़ों लोगों का जीवन प्रभावित हो सकता है। इस कारण उन्हें यह विशेषाधिकार मिल जाता है, इससे उनकी जवाबदारी भी बढ़ जाती है। यदि उनका व्यवहार अभद्र हुआ, तो युवा उनकी इस आदत को भी अपने जीवन में शुमार कर लेंगे। इसलिए सेलिब्रिटी का असभ्य व्यवहार कई लोगों को इसके लिए प्रेरित करता है। शाहरुख के इसी व्यवहार के कारण यदि वानखेड़े स्टेडियम में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो इसकी प्रशंसा ही करनी होगी। सेलिब्रिटी यह समझ लें कि उनका जीवन केवल उन्हीं का जीवन नहीं है। वे प्रेरणा होते हैं, वे देश की शान होते हैं, उनका व्यवहार बच्चों को संस्कार देने के काम आता है। इसलिए वे निजी जीवन में भी शालीनता बरतें, तो उनके बच्चों ही नहीं देश के मासूमों में भी एक नई ऊर्जा का संचार करने में सहायक सिद्ध होगा।
डॉ. महेश परिमल
इन दिनों अभिनेता शाहरुख चर्चा में हैं। जब से आईपीएल शुरू हुआ है, तब से न जाने क्यों वे स्वयं को कानून से ऊपर मानने लगे हैं। एक ओर यही शाहरुख अमेरिका में इमिग्रेशन विभाग द्वारा किए गए अपमान को आसानी से पचा जाते हैं, वही दूसरी ओर वे देश के कानून को तोड़ने में भी संकोच नहीं करते। आखिर इसका कारण क्या है? जब हमारे देश का संविधान तैयार किया गया, तब सभी को कानून की दृष्टि से समान माना गया है। पर वास्तव में ऐसा नहीं है। आज भी कई लोगों के लिए कानून हाथ का खिलौना मात्र है, तो कई लोगों को पूरी जिंदगी घुट-घुटकर जीने के लिए विवश करता है। राज्य सभा में अब तक न जाने कितने लोगों ने शपथ ली गई होगी, पर रेखा ने जब शपथ ली, तब कैमरा पूरे समय तक उन्हीं पर फोकस रहा। इसके पहले इस तरह से किसी भी सदस्य को तरजीह नहीं मिली। शाहरुख खान ने दो दशक तक फिल्मी दुनिया में बेताज बादशाह के रूप में राज किया है। अब नए सितारे आगे आने लगे हैं। इस कारण बालीवुड का यह बादशाह उलझन में है। वह असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हो गए हैं। इस कारण उसे बार-बार गुस्सा आ रहा है। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वे 24/7 लाइव टीवी के जमाने में जी रहे हैं। उनकी छोटी-सी भी हरकत या भूल मीडिया के लिए कई घंटों की खुराक बन सकता है। जिस मीडिया ने शाहरुख को बनाया है, वही उसे खत्म भी कर सकता है। अतएव उन्हें 24/7 से सावधान रहना चहिए और अपने व्यवहार को नियंत्रण में करना होगा।
आजकल विवाद शाहरुख का पीछा नहीं कर रहा है, बल्कि शाहरुख ही विवादों को आमंत्रण दे रहे हैं। बुधवार की रात को वानखेड़े स्टेडियम में जो कुछ हुआ, वह उनके द्वारा परिश्रम से तैयार की गई इमेज के बिलकुल ही अलग था। देखा जाए तो शाहरुख खान के दो रूप हैं। एक है परफेक्ट एंटरटेइटर, परफेक्ट हसबेंड, परफेक्ट पेरेंट और परफेक्ट देशभक्त है। जो देश के कानून का पूरी गंभीरता के साथ पालन करता है। उनका दूसरा रूप है एक घमंडी, असुरक्षा की भावना से ग्रस्त, धूम्रपान के शौकीन इंसान हैं। वे इंसान की सभी कमजोरियों से भरे हुए हैं। शाहरुख खान के करोड़ों प्रशंसक उनके पहले रूप से परिचित हैं, इसलिए उन्हें पूजते हैं। पर जब उन्हें असली शाहरुख खान के दर्शन हो जाते हैं, तो वे हताश हो जाते हैं। शाहरुख खान अपनी सेलिब्रिटी स्टेटस के आवेश में देश के कानून की परवाह नहीं करते। इसका उदाहरण जयपुर में ही पिछले महीने आयोजित आईपीएल के मैच के दौरान ही मिल गया था। राजस्थान में सन् 2000 से ही यह कानून लागू है कि वहाँ सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर पाबंदी है। इस नियम को जानते हुए भी उन्होंने मैच के दौरान स्टेडियम में बिंदास होकर धूम्रपान किया। उन्हें ऐसा करते हुए उनके करोड़ों प्रशंसकों ने देखा भी। उन्हें मालूम था कि वे टीवी के कैमरे में कैद हो सकते हैं, परंतु उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। उनकी इस हरकत को देखकर नाराज हुए वकील नेमसिंह ने जयपुर की अदालत का दरवाजा खटखटाया। इस आधार पर शाहरुख खान को अदालत में हाजिर होने का समंस भेजा गया। कुछ समय पहले ही शाहरुख अमेरिका के प्रवास पर थे। वहाँ उन्हें येल विश्वविद्यालय में भाषण करना था। उन्हें विश्वविद्यालय ने ही बुलाया था। अमेरिका पहुंचकर हवाई अड्डे पर इमिग्रेशन विभाग के अधिकारियों ने उन्हें पूछताछ के नाम पर दो घंटे तक रोके रखा। उस समय उन्होंने थोड़ा सा भी विरोध नहीं किया। अधिकािरयों के सारे नखरों को वे सहन करते रहे। उसके बाद वे येल विश्वविद्यालय पहुंचे। वहाँ उन्होंने अपने भाषण में इमिग्रेशन अधिकािरयों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब भी मेरे भीतर घमंड भर जाता है, तो मैं अमेरिका चला आता हूं, क्योंकि यहां आकर मेरा घमंड इमिग्रेशन के अधिकारी उतार देते हैं। यहां शाहरुख अमेरिका के कड़े कानून का आदर करते हैं, पर भारत के कानून की परवाह नहीं करते। यह हमें वानखेड़ेक में हुई घटना से समझ में आ जाता है।
शाहरुख खन की तरह अधिकांश फिल्मी सितारे स्वयं को कानून से ऊपर ही मानते हैं। सलमान खान ‘हम साथ-साथ हैं’की शूटिंग करने राजस्थान गए थे, वहाँ केवल मौज-मस्ती की खातिर उन्होंने काले हिरण का शिकार किया। राजस्थान में वन्य प्राणियों के लिए अपनी जान दाँव पर लगाने वाले विश्नोई समुदाय के लोगों ने उस पर मुकदमा ठोंक दिया। जो अभी तक चल रहा है। इसी तरह एक बार बांदरा की सड़क पर लापरवाही पूर्ण तरीके से कार चलाते हुए फुटपाथ पर सोए कई लोगों को कुचल दिया था। ये मामला भी अभी चल रहा है। सैफ अली खान द्वारा होटल में किए गए अभद्र व्यवहार का मामला भी अभी ताजा ही है। जब वे करीना और कई मित्रों के साथ एक आलीशान होटल गए थे। वहाँ वे जोर-शोर से बातचीत कर रहे थे। इससे वहाँ भोजन करने आए कई लोगों को बुरा लगा। उनकी शांति में खलल पड़ने लगा। इस दौरान होटल के मैनेजर ने उन्हें शांत कराया। कुछ समय बाद फिर वही शोर-गुल शुरू हो गया। ऐसे में एक व्यक्ति ने अपनी जगह बदलने की गुजारिश मैनेजर से की। सैफ को यह नागवार गुजरा। उन्होंने उक्त ग्राहक के वृद्ध पिता की पिटाई कर दी। मामला पुलिस स्टेशन पहुँच गया। तब घबराए हुए सैफ ने माफी मांगकर समाधान किया। सैफ ही नहीं, सभी सितारे यह मानते हैंकि वे सार्वजनिक स्थलों पर लोग उनकी सभी हरकतों को झेल लेंगे। शाहरुख और फराह खान के बची अनेक वर्षो से गाढ़ी मित्रता थी। फराह खान के पति शिरीष कुंदर को यह पसंद नहीं था। इस कारण फराह ने शाहरुख से अपनी दोस्ती छोड़ दी। ऐसा शाहरुख सोचते थे। इसलिए शिरीष कुंदर के प्रति वे कटुता रखते थे। यह कटुता खुन्नस में उस वक्त बदल गई, जब एक पार्टी में वे शराब पीकर कुंदर से भिड़ गए। शाहरुख ने कुंदर की खूब पिटाई कर दी। उस समय वहाँ पत्रकार भी थे, इसलिए मामले ने तूल पकड़ लिया। दूसरे दिन अखबारों और टीवी में इस घटना को हाईलाइट किया गया, तब शाहरुख को लगा कि उनसे गलती हो गई है। बस फिर क्या था, उन्होंने कुंदर से माफी मांग ली। जब भी शाहरुख अपने असली स्वभाव में आ जाते हैं, तब वे विवादों में उलझ जाते हैं और मारपीट करने लगते हैं। पर जैसे ही उन्हें यह खयाल आता है कि वे एक सेलिब्रिटी भी हें, तो वे माफी मांग लेते हैं। उनके माफी माँगने के पीछे का कारण यह है कि यदि मीडिया में उनकी छवि को थोड़ा सा भी नुकसान होता है, तो करोड़ों का नुकसान हो सकता है। शाहरुख इमामी, हुंडई और डीश टीवी जैसे ब्रांडो के एम्बेसेडर हैं। इन कंपनियों से उन्हें हर वर्ष सा से आठ करोड़ रुपए मिलते हैं। इस सभी ब्रांड में शाहरुख खान एक संवेदनशील, इंटेलिजेंट और भारतीय संविधान का सम्मान करने वाला बताया गया है। यदि उनके सार्वजनिक जीवन में इस तरह की घटनाएं होती हैं, तो उनकी इमेज बिगड़ सकती है। अब यह लोगों को समझ में आने लगा है कि शाहरुख का स्वभाव लगातार चिड़चिड़ा होता जा रहा है। वे छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होने लगे हैं। वे अपने आप को कानून से ऊपर मानने लगे हैं। सभा-समारोहों में उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए, ये उन्हें शायद नहीं पता। यदि शाहरुख इसी तरह अपनी इमेज बिगाड़ते रहें, तो ब्रांड एम्बेसेडर की कमाई से वंचित हो सकते हैं।
भारत के युवा किसका सम्मान सबसे अधिक करते हैं, इस पर ब्रांड इक्विटी नामक मैगजीन ने एक सर्वे किया। जिससे पता चलता है कि यूथ आइकोन के रूप में सचिन तेंदुलकर और सलमान खान के बाद शाहरुख खान को पसंद करते हैं। हाल ही में एक सर्वेक्षण से यह पता चलता है कि सचिन, सहवाग और धोनी को आईपीएल में बेशुमार काला धन मिला है। सलमान खान अपने क्रुद्ध व्यवहार, लापरवाही पूर्ण तरीके से वाहन चालन और कानून को तोड़ने की आदत के कारण खबरों की सुर्खियां बनते रहे हैं। एक समय ऐसा भी था, जब लोग सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह और खुदीराम बोस को अपना आदर्श मानते थे। अब लोग सलमान और शाहरुख की पूजा करने लगे हैं। इसका कारण यह है कि आज के युवा फिल्मी सितारों की रील लाइफ से इतने अधिक प्रभावित होने लगे हैं कि उनकी रियल लाइफ की सच्चई को स्वीकारने को तैयार ही नहीं हैं। शाहरुख खान के प्रशंसक यह दलील कर सकते हैं कि देश में लाखों लोग सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीते हैं, सिगरेट पीते हैं, तो उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। मीडिया वाले उसी के पीछे क्यों पड़े रहते हैं? इसका कारण यही है कि हमारे देश में फिल्मी कलाकार एक अलग ही स्थान रखते हैं। करोड़ो युवा उनकी नकल कर स्वयं को गौरवशाली समझते हैं। उनकी लाइफ स्टाइल से करोड़ों लोगों का जीवन प्रभावित हो सकता है। इस कारण उन्हें यह विशेषाधिकार मिल जाता है, इससे उनकी जवाबदारी भी बढ़ जाती है। यदि उनका व्यवहार अभद्र हुआ, तो युवा उनकी इस आदत को भी अपने जीवन में शुमार कर लेंगे। इसलिए सेलिब्रिटी का असभ्य व्यवहार कई लोगों को इसके लिए प्रेरित करता है। शाहरुख के इसी व्यवहार के कारण यदि वानखेड़े स्टेडियम में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो इसकी प्रशंसा ही करनी होगी। सेलिब्रिटी यह समझ लें कि उनका जीवन केवल उन्हीं का जीवन नहीं है। वे प्रेरणा होते हैं, वे देश की शान होते हैं, उनका व्यवहार बच्चों को संस्कार देने के काम आता है। इसलिए वे निजी जीवन में भी शालीनता बरतें, तो उनके बच्चों ही नहीं देश के मासूमों में भी एक नई ऊर्जा का संचार करने में सहायक सिद्ध होगा।
डॉ. महेश परिमल
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अभिमत

शनिवार, 19 मई 2012
विलीनीकरण ने ही एयर लाइंस के घाटे को बढ़ाया
डॉ. महेश परिमल
एयर इंडिया ऐसी संस्था है, जिसके यात्रियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। उसका किराया भी बढ़ रहा है। पर उसी के साथ-साथ उसका घाटा भी बढ़ता जा रहा है। अज्ञानी कालिदास की वह घटना याद आती है, जिसमें वे पेड़ की जिस शाखा पर बैठे थे, उसी को काट रहे थे। आज इंडियन एयरलाइंस की हालत वैसी ही हो गई है। उसके कर्मचारी हड़ताल कर शायद यही बताना चाहते हैं कि उनसे बड़ा को मूर्ख नहीं है। वैसे इसके पीछे केंद्र सरकार ही है। वह जानबूझकर इस कंपनी को बंद कर विदेशी हाथों में देना चाहती है। जानकारों का कहना है कि पाँच वर्ष पूर्व जब से एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस का विलीनीकरण हुआ है, तब से यह कंपनी पूरी तरह से घाटे मे ंचल रही है। अब तक इस कंपनी को 45 हजार करोड़ का घाटा हुआ है। विलीनीकरण के बाद से ही तमाम समस्याएं शुरू हो गई हैं। पहले यह कहा गया था कि दोनों कंपनियां घाटे में चल रही हैं, दोनों में स्पर्धा भी तगड़ी है। यदि दोनों का मिला दिया जाए, तो स्पर्धा खत्म हो जाएगी और घाटा भी नहीं होगा। पर यह विचार थोथा निकला। अब नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह ने भी यह स्वीकार कर लिया है कि दोनों का विलीनीकरण ही कंपनी को इस हालत में पहुंचाया है। वैसे दोनों ही कंपनियों के कर्मचारियों के बीच वैमनस्यता भी इसका एक कारण है।
इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया का विलीनीकरण हुआ, तब यह माना जा रहा था कि दोनों मिलकर दुनिया के बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ स्पर्धा करेंगी, जिसका लाभ कंपनी को मिलेगा। उस समय यह भी दलील की गई थी कि दोनों कंपनियां मिलकर अत्याधुनिक विमान खरीदेंगी, तो कंपनी विश्व की सबसे बड़ी एयरलाइंस कंपनी बनकर अन्य कंपनियों के साथ बेहतर प्रतिस्पर्धा कर पाएगी। केंद्र सरकार ने इस दलील को उसकी फेस वेल्यू के आधार पर स्वीकार कर ली। उसके बाद 100 अत्याधुनिक विमान खरीदने के लिए कंपनी को अरबों रुपए की सहायता भी की। इस मामले में कुछ राजनेताओं ने अपने हाथ गर्म किए, ऐसा कहा जा रहा है। यही कारण है कि इस कंपनी से कर्मचारियों को कम किंतु नेताओं को अधिक उपकृत किया गया है। यही कारण है कि कंपनी बहुत ही जल्दी बीमार हो गई और घाटा देने लगी। सन् 2007 में जब से दोनों कंपनियों का विलीनीकरण हुआ, तब से कंपनी का घाटा बढ़ता ही रहा है। सन 2008 में 2225 करोड़ रुपए, 2009 में 7189 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। आखिर ये घाटा क्यों हुआ, यह जानने के बजाए इस कंपनी ने नेताओं को अपने स्वार्थ की पूर्ति का पूरा मौका दिया गया। इसमें अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैँ। जब 2010 में एयर इंडिया को 5550 करोड़ रुपए का घाटा हुआ, तब यह कहा गया कि यह घाटा अंतरराष्ट्रीय बाजार में ईंधन की बढ़ती कीमतों के कारण हुआ। इसके बाद 2011 में यह घाटा बढ़कर 6885 और 2012 में दस हजार करोड़ रुपए हो गया, तब भी ऐसी कोई हलचल नहीं हुई, जिससे यह समझा जाए कि बढ़ते घाटे से सरकार चिंतित है। सरकार ने इस बीमारी का इलाज तो खोजा नहीं, पर कंपनी को 30 हजार करोड़ रुपए की और आर्थिक मदद करने की घोषणा कर दी।
2007 में जब दोनों कंपनियों का विलीनीकरण हुआ, तब भी दोनों के कर्मचारियों के वेतन में पक्षपात किया गया। विलीनीकरण के बाद भी कर्मचारियों को कभी एक कंपनी का माना ही नहीं गया। विशेषकर पायलटों के साथ खूब भेदभाव किया गया। विलीनीकरण के पहले जहां एक तरफ इंडियन एयरलाइंस के पायलट का वेतन 3 लाख रुपए था, तो दूसरी तरफ एयर इंडिया के पायलट का वेतन था 8 लाख रुपए। विलीनीकरण के बाद भूतपूर्व इंडियन एयरलाइंस के पायलटों के वेतन में अचानक उछाल आया, यह बात एयर इंडिया के पायलटों को हजम नहीं हुई, अतएव उन्होंने इसका जमकर विरोध किया। इन हालता में यह निर्णय लिया गया कि कोई केप्टन यदि दस वर्ष में किसी कारण कमांडर के पद पर नहीं पहुंच पाता, तो भी उसे कमांडर का वेतन दिया जाए। इसके बाद भी एयर इंडिया के पायलट दस नई मांगों को लेकर हड़ताल पर चले गए। इसके पूर्व भी एयर इंडिया के पायलटों की कई ऐसी मांगों को भी स्वीकार कर लिया गया है, जो असंवैधानिक थीं। इसके बावजीू एयर इंडिया ने जिन पायलटों को अत्याधुनिक विमान उड़ाने के प्रशिक्षण पर विशेष पेकेज दिया जाता है, उनकी सभी मांगें मान ली जाती हैं। उसके बाद भी पायलट दुनिया के किसी भी कोने में हों, अचानक विमान उड़ाने के लिए मना कर देते हैं और हड़ताल पर चले जाते हें। इन पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाती। इन्हीं कारणों से कंपनी का घाटा बढ़ता जा रहा है।
एयर इंडिया के बजाए कोई निजी एयर लाइंस को इतना अधिक घाटा हुआ होता, तो वह कब की बंद हो गई होती। उनके सभी कर्मचारी बेरोजगार हो गए होते। इंडियन एयरलाइंस की मालिक केंद्र सरकार है। सरकार उसे आर्थिक मदद का इंजेक्शन दे-देकर जिंदा रखना चाहती है। सरकार की इस आर्थिक मदद से कर्मचारी अपना पोषण कर रहे हैं। यदि एयर इंडिया का संचालन व्यापारी की तरह किया जाए, तो उसके कर्मचारी जमीन पर आ जाएंगे, यह तय है। अब भले ही अजित सिंह यह कहते रहे कि विलीनीकरण सरकार की भारी भूल थी, पर इससे कोई फायदा होने वाला नहीं है। सरकार यदि कंपनी का भला चाहती है, तो उसे कंपनी पर ताला लगा देना चाहिए, ताकि पायलटों की हड़ताल से होने वाला घाटा और कंपनी की साख को बचाया जा सके। वैसे देखा जाए, तो सरकार ने बार-बार आर्थिक सहायता कर कंपनी को कंगाल ही बनाया है। यदि इस दिशा में सख्ती से कार्रवाई की जाती, तो न तो पायलट इतने गैरजिम्मेदार होते और न ही हड़ताल के कारण लोगों को परेशानी होती।
डॉ. महेश परिमल

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शुक्रवार, 18 मई 2012
मर्दानगी पर खतरा
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आज का सच

गुरुवार, 17 मई 2012
सुविचारों के आसपास बिखरा जिंदगी का सच
दैनिक भास्कर के संपादकीय पेज पर प्रकाशित मेरा आलेख
http://10.51.82.15/epapermain.aspx?edcode=120&eddate=5/17/2012%2012:00:00%20AM&querypage=8
http://10.51.82.15/epapermain.aspx?edcode=120&eddate=5/17/2012%2012:00:00%20AM&querypage=8
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जिंदगी

मंगलवार, 15 मई 2012
नेताओं की जरूरत बनता हेलीकाप्टर
डॉ. महेश परिमल
हेलीकाप्टर दुर्घटना में झारखंड के मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा गंभीर रूप से घायल हो गए। पायलट की सूझबूझ से मुख्यमंत्री की जान बच गई। हर बार की तरह घटना की जाँच के आदेश दे दिए गए हैं। हेलीकाप्टर आज नेताओं की जरूरत बन गया है। जितनी अधिक जरूरत, उतना ही खतरा। देश में अब तक हुए न जाने कितने हादसे हुए। इन हादसों में हमें कई नेताओं को खो दिया है। अरुणाचल के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाय.एस.आर्. रेड्डी, पूर्व लोकसभा अघ्यक्ष जीएमसी बालयोगी की मौत हेलीकाप्टर दुर्घटना से ही हुई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री माधव राव सिंधिया की मौत एक विमान दुर्घटना में हुई। संजय गांधी की मौत ग्लाइडर दुर्घटना में हुई। इसके अलावा कई नेता हेलीकाप्टर दुर्घटना में बाल-बाल बचे भी हैं।
हाल ही में हुए 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव में हेलीकाप्टरों का खुलकर इस्तेमाल किया गया। वैसे भी अब हमारे देश में हेलीकाप्टर का उपयोग दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। चुनाव में इसका विशेष रूप से इस्तेमाल होता है। नेताओं के अलावा अब कापरेरेट क्षेत्र के लोग भी अब इसका इस्तेमाल करने में नहीं हिचकते। देश भर में अभी 280 हेलीकाप्टर हैं। देश में पहला हेलीकाप्टर 1953 में उड़ा था। एक हेलीकाप्टर की कीमत 60 से 75 करोड़ रुपए होती है। इस बार आम चुनाव में करीब 100 हेलीकाप्टरों का इस्तेमाल किया गया। जिसमें रोज एक करोड़ रुपए का ईधन का इस्तेमाल हुआ। दो दशक पहले तक हेलीकाप्टर केवल रक्षा मंत्रालय के पास ही हुआ करते थे। धीरे-धीरे देश की आर्थिक प्रगति होती गई, इससे लोगों को जल्दी आने जाने के लिए हेलीकाप्टर की आवश्यकता पड़ने लगी। इसमें बड़ीर कंपनियों के अरबपति मालिक भी शामिल हैं। जिनके पास अपने निजी हेलीकाप्टर हैं। अभी देश में भले ही 280 हेलीकाप्टर हो, पर 2017 तक देश में कुल हेलीकाप्टर की संख्या बढ़कर 350 तक पहुँच जाएगी। इस दृष्टि से हमारे देश में हेलीकाप्टरों की संख्या काफी कम है, क्योंकि अभी ब्राजील के पास 700 और अमेरिका के पास 11 हजार हेलीकाप्टर हैं।
भारत में इटली की अगस्ता वेस्टलैंड ने पिछले 6 वर्षो में 50 हेलीकाप्टर बेचे हैं। एक समय था, जब हेलीकाप्टरों का इस्तेमाल बाढ़ में फँसे लोगों को बचाने, जंगलों में आग बुझाने और खेतों में दवा छिड़कने के लिए किया जाता था। सेना में इसका सबसे अधिक इस्तेमाल एम्बुलेंस के रूप में किया जाता है। पहले सारे हेलीकाप्टर एक तरह के हुआ करते थे, पर अब इसमें भी वेरायटी आने लगी है। जिस तरह से कार का डेकोरेशन किया जाता है, ठीक उसी तरह हेलीकाप्टर के मालिक अपने हिसाब से इसकी बैठक व्यवस्था रखने लगे हैं। हमारे देश में अभी 20 एयर एम्बुलेंस हैं। पिछले वर्ष ही आयोजित फामरूला वन रेस में भी एयर एम्बुलेंस देखने को मिले थे। हेलीकाप्टर की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह मकान की छत पर भी उतर सकता है। 25 वर्गफीट जगह लैंड करने के लिए पर्याप्त होती है। देश के करोड़पति लोग अब अपने बंगलों में विशेष रूप से हेलीपेड बनवाने लगे हैं, ताकि घर से ही बाहर जाया जा सके। जब हम हेलीकाप्टर की सुविधाओं की बात कर रहे हैं, तो उसके दुष्परिणाम भी हमें ही भुगतने होते हैं। हेलीकाप्टर दुर्घटना में हमने देश के कुछ नेताओं को खोया है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाय.एस. राजशेखर रेड्डी और अरुणाचल के मुख्यमंत्री दोरजी खंडू पिछले साल हेलीकाप्टर दुर्घटना में ही मारे गए। देश में इन दोनों नेताओं की कमी आज भी खलती है। अक्सर हेलीकाप्टर दुर्घटना खराब मौसम के कारण होती है। इंजन फेल होने के कारण हेलीकाप्टर कम ही दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं। अभी हमारे देश में एयर टैक्सी के लिए प्रयास जारी हैं। विश्व में पहली एयर टैक्सी के मालिक केनेडियन भारतीय हैं। यह भी एक संयोग है कि वे गुजराती हैं। एयर टैक्सी हेलीकाप्टर के सामने चुनौती बन सकते हैं। इस पर शोध जारी हैं, अभी यह पहले स्तर पर है। एयर टैक्सी के लिए हेलीपेड से भी कम स्थान की आवश्यकता होती है।
एक तरफ हमारा देश दिनों-दिन समृद्ध होता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर एक तबका ऐसा भी है, जिसे एक समय का भरपेट भोजन भी नहीं मिल पा रहा है। अमीरीन्गरीबी के बीच खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। किसी के पास साइकिल तक नहीं है, तो एक वर्ग ऐसा भी है, जो विमान और हेलीकाप्टर भी खरीद सकता है। यहाँ आकर ही भारत और इंडिया के बीच की खाई साफ दिखाई देने लगती है। इस बार चुनाव में हम सबने देखा कि हमारे नेताओं ने किस तरह से हेलीकाप्टर का इस्तेमाल चुनावी सभाओं को संबोधित करने के लिए किया। इससे उन्हें क्या लाभ हुआ, ये तो वही जानें, पर सच तो यह है कि उन्होंने अपने समय की बचत करने के लिए उड़ान भरी। कई नताओं ने इसका इस्तेमाल अपना राजनैतिक कद बढ़ाने के लिए किया। कुछ समय बाद ये हमारे नेताओं की जरुरत बन जाएगा, इसमें कोई शक नहीं। हेलीकाप्टर पर सवार उस नेता की स्थिति बड़ी दयनीय होती है, जब वह उस पर सवार होकर बाढ़ग्रस्त लोगों को देखता है। भूख से पीड़ित चीखते-चिल्लाते लोगों को वह बैठा-बठा देख तो सकता है, पर कुछ कर नहीं सकता। संवेदना से दूर होकर संवेदनशील बनना शायद इसे ही कहते हैं।
अब तक के हादसे
30 अप्रैल, 2011 को अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू की चार अन्य लोगों के साथ मृत्यु हो गई जब उनका हेलीकाप्टर खराब मौसम में तवांग की पहाड़ी में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस हादसे में दो पायलटों की भी मौत हो गयी थी, जो पवन हंस का एक एकल इंजन श्वह्वroष्oश्चह्लद्गr क्च उड़ा रहे थे।
सितम्बर 2009 में वाईएसआर रेड्डी के हेलिकॉप्टर एक घने जंगल में दुर्घटनाग्रस्त हो गया जब वह एक विकास योजना शुरू करने के लिए चित्तूर जिले में एक गांव में जा रहे थे।
दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की मौत ग्लाइडर उड़ाते वक्त 1980 में दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डे पर हो गई थी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री माधवराव सिंधिया एक विमान दुर्घटना में 30 सितम्बर, 2001 को मारे गये थे जब वह एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करने कानपुर जा रहे थे। उनके साथ सफर कर रहे छह लोग भी इस हादसे में मारे गये थे।
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के नेता जीएमसी. बालयोगी का एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में 3 मार्च, 2002 में आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले में निधन हो गया।
अप्रैल 2012 में शिवराज के हेलिकॉप्टर का दरवाजा खुला रह गया, बड़ा हादसा टला।
2011 में बीजेपी नेता राजनाथ सिंह और मुख्तार अब्बास नकवी बाल-बाल बचे, हेलिकॉप्टर खराब।
मार्च, 2005 में यूपी के सहारनपुर में हरियाणा के दो तत्कालीन मंत्रियों ओ पी जिंदल और सुरेंद्र सिंह की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत।
2004 में गुजरात में कांग्रेस नेता अहमद पटेल, पृथ्वीराज चव्हाण और कुमारी शैलजा का हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त, बड़ा हादसा टला।
2001 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का हेलिकॉप्टर चुरू में दुर्घटनाग्रस्त, बाल-बाल बचे।
डॉ. महेश परिमल
हेलीकाप्टर दुर्घटना में झारखंड के मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा गंभीर रूप से घायल हो गए। पायलट की सूझबूझ से मुख्यमंत्री की जान बच गई। हर बार की तरह घटना की जाँच के आदेश दे दिए गए हैं। हेलीकाप्टर आज नेताओं की जरूरत बन गया है। जितनी अधिक जरूरत, उतना ही खतरा। देश में अब तक हुए न जाने कितने हादसे हुए। इन हादसों में हमें कई नेताओं को खो दिया है। अरुणाचल के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाय.एस.आर्. रेड्डी, पूर्व लोकसभा अघ्यक्ष जीएमसी बालयोगी की मौत हेलीकाप्टर दुर्घटना से ही हुई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री माधव राव सिंधिया की मौत एक विमान दुर्घटना में हुई। संजय गांधी की मौत ग्लाइडर दुर्घटना में हुई। इसके अलावा कई नेता हेलीकाप्टर दुर्घटना में बाल-बाल बचे भी हैं।
हाल ही में हुए 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव में हेलीकाप्टरों का खुलकर इस्तेमाल किया गया। वैसे भी अब हमारे देश में हेलीकाप्टर का उपयोग दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। चुनाव में इसका विशेष रूप से इस्तेमाल होता है। नेताओं के अलावा अब कापरेरेट क्षेत्र के लोग भी अब इसका इस्तेमाल करने में नहीं हिचकते। देश भर में अभी 280 हेलीकाप्टर हैं। देश में पहला हेलीकाप्टर 1953 में उड़ा था। एक हेलीकाप्टर की कीमत 60 से 75 करोड़ रुपए होती है। इस बार आम चुनाव में करीब 100 हेलीकाप्टरों का इस्तेमाल किया गया। जिसमें रोज एक करोड़ रुपए का ईधन का इस्तेमाल हुआ। दो दशक पहले तक हेलीकाप्टर केवल रक्षा मंत्रालय के पास ही हुआ करते थे। धीरे-धीरे देश की आर्थिक प्रगति होती गई, इससे लोगों को जल्दी आने जाने के लिए हेलीकाप्टर की आवश्यकता पड़ने लगी। इसमें बड़ीर कंपनियों के अरबपति मालिक भी शामिल हैं। जिनके पास अपने निजी हेलीकाप्टर हैं। अभी देश में भले ही 280 हेलीकाप्टर हो, पर 2017 तक देश में कुल हेलीकाप्टर की संख्या बढ़कर 350 तक पहुँच जाएगी। इस दृष्टि से हमारे देश में हेलीकाप्टरों की संख्या काफी कम है, क्योंकि अभी ब्राजील के पास 700 और अमेरिका के पास 11 हजार हेलीकाप्टर हैं।
भारत में इटली की अगस्ता वेस्टलैंड ने पिछले 6 वर्षो में 50 हेलीकाप्टर बेचे हैं। एक समय था, जब हेलीकाप्टरों का इस्तेमाल बाढ़ में फँसे लोगों को बचाने, जंगलों में आग बुझाने और खेतों में दवा छिड़कने के लिए किया जाता था। सेना में इसका सबसे अधिक इस्तेमाल एम्बुलेंस के रूप में किया जाता है। पहले सारे हेलीकाप्टर एक तरह के हुआ करते थे, पर अब इसमें भी वेरायटी आने लगी है। जिस तरह से कार का डेकोरेशन किया जाता है, ठीक उसी तरह हेलीकाप्टर के मालिक अपने हिसाब से इसकी बैठक व्यवस्था रखने लगे हैं। हमारे देश में अभी 20 एयर एम्बुलेंस हैं। पिछले वर्ष ही आयोजित फामरूला वन रेस में भी एयर एम्बुलेंस देखने को मिले थे। हेलीकाप्टर की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह मकान की छत पर भी उतर सकता है। 25 वर्गफीट जगह लैंड करने के लिए पर्याप्त होती है। देश के करोड़पति लोग अब अपने बंगलों में विशेष रूप से हेलीपेड बनवाने लगे हैं, ताकि घर से ही बाहर जाया जा सके। जब हम हेलीकाप्टर की सुविधाओं की बात कर रहे हैं, तो उसके दुष्परिणाम भी हमें ही भुगतने होते हैं। हेलीकाप्टर दुर्घटना में हमने देश के कुछ नेताओं को खोया है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाय.एस. राजशेखर रेड्डी और अरुणाचल के मुख्यमंत्री दोरजी खंडू पिछले साल हेलीकाप्टर दुर्घटना में ही मारे गए। देश में इन दोनों नेताओं की कमी आज भी खलती है। अक्सर हेलीकाप्टर दुर्घटना खराब मौसम के कारण होती है। इंजन फेल होने के कारण हेलीकाप्टर कम ही दुर्घटनाग्रस्त हुए हैं। अभी हमारे देश में एयर टैक्सी के लिए प्रयास जारी हैं। विश्व में पहली एयर टैक्सी के मालिक केनेडियन भारतीय हैं। यह भी एक संयोग है कि वे गुजराती हैं। एयर टैक्सी हेलीकाप्टर के सामने चुनौती बन सकते हैं। इस पर शोध जारी हैं, अभी यह पहले स्तर पर है। एयर टैक्सी के लिए हेलीपेड से भी कम स्थान की आवश्यकता होती है।
एक तरफ हमारा देश दिनों-दिन समृद्ध होता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर एक तबका ऐसा भी है, जिसे एक समय का भरपेट भोजन भी नहीं मिल पा रहा है। अमीरीन्गरीबी के बीच खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है। किसी के पास साइकिल तक नहीं है, तो एक वर्ग ऐसा भी है, जो विमान और हेलीकाप्टर भी खरीद सकता है। यहाँ आकर ही भारत और इंडिया के बीच की खाई साफ दिखाई देने लगती है। इस बार चुनाव में हम सबने देखा कि हमारे नेताओं ने किस तरह से हेलीकाप्टर का इस्तेमाल चुनावी सभाओं को संबोधित करने के लिए किया। इससे उन्हें क्या लाभ हुआ, ये तो वही जानें, पर सच तो यह है कि उन्होंने अपने समय की बचत करने के लिए उड़ान भरी। कई नताओं ने इसका इस्तेमाल अपना राजनैतिक कद बढ़ाने के लिए किया। कुछ समय बाद ये हमारे नेताओं की जरुरत बन जाएगा, इसमें कोई शक नहीं। हेलीकाप्टर पर सवार उस नेता की स्थिति बड़ी दयनीय होती है, जब वह उस पर सवार होकर बाढ़ग्रस्त लोगों को देखता है। भूख से पीड़ित चीखते-चिल्लाते लोगों को वह बैठा-बठा देख तो सकता है, पर कुछ कर नहीं सकता। संवेदना से दूर होकर संवेदनशील बनना शायद इसे ही कहते हैं।
अब तक के हादसे
30 अप्रैल, 2011 को अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू की चार अन्य लोगों के साथ मृत्यु हो गई जब उनका हेलीकाप्टर खराब मौसम में तवांग की पहाड़ी में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस हादसे में दो पायलटों की भी मौत हो गयी थी, जो पवन हंस का एक एकल इंजन श्वह्वroष्oश्चह्लद्गr क्च उड़ा रहे थे।
सितम्बर 2009 में वाईएसआर रेड्डी के हेलिकॉप्टर एक घने जंगल में दुर्घटनाग्रस्त हो गया जब वह एक विकास योजना शुरू करने के लिए चित्तूर जिले में एक गांव में जा रहे थे।
दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की मौत ग्लाइडर उड़ाते वक्त 1980 में दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डे पर हो गई थी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री माधवराव सिंधिया एक विमान दुर्घटना में 30 सितम्बर, 2001 को मारे गये थे जब वह एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करने कानपुर जा रहे थे। उनके साथ सफर कर रहे छह लोग भी इस हादसे में मारे गये थे।
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के नेता जीएमसी. बालयोगी का एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में 3 मार्च, 2002 में आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले में निधन हो गया।
अप्रैल 2012 में शिवराज के हेलिकॉप्टर का दरवाजा खुला रह गया, बड़ा हादसा टला।
2011 में बीजेपी नेता राजनाथ सिंह और मुख्तार अब्बास नकवी बाल-बाल बचे, हेलिकॉप्टर खराब।
मार्च, 2005 में यूपी के सहारनपुर में हरियाणा के दो तत्कालीन मंत्रियों ओ पी जिंदल और सुरेंद्र सिंह की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत।
2004 में गुजरात में कांग्रेस नेता अहमद पटेल, पृथ्वीराज चव्हाण और कुमारी शैलजा का हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त, बड़ा हादसा टला।
2001 में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का हेलिकॉप्टर चुरू में दुर्घटनाग्रस्त, बाल-बाल बचे।
डॉ. महेश परिमल
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गुरुवार, 10 मई 2012
हज सब्सिडी पर सवाल
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सोमवार, 7 मई 2012
खतरे में बॉलीवुड की विरासत
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मंगलवार, 1 मई 2012
कब आऍंगे मेहनतकश नन्हे हाथों के दिन ?
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