डॉ. महेश परिमल
कुछ लोगों की आदत होती है कि हारे हुए घोड़ों पर दाँव लगाया जाए। इसे यदि दूसरे शब्दों में इस तरह से कहा जा सकता है कि जो कंपनियां घाटे में चल रही हों, उसे मुनाफा देने वाली कंपनी किस तरह से बनाया जाए। कुछ इस तरह की प्रवृत्ति के मालिक हैं प्रेम वत्स। इन्हें कनाडा का वॉरेन बफेट कहा जाता है। हमें गर्व होना चाहिए कि वत्स मूल रूप से भारतीय हैं,उनका जन्म हैदराबाद में हुआ था। वह भी आम भारतीयों की तरह एक सामान्य रूप से किसी अधिकारी के पद पर ही पहुंच पाते, यदि ट्रेन में सफर करते हुए एक सहयात्री की सलाह न मानी होती। तब उनकी उम्र 21 वर्ष थी। चेन्नई की आईआईटी से केमिकल इंजीनियर की डिग्री प्राप्त करने के बाद वे हताश हो गए थे। जैसी नौकरी वे चाहते थे, वैसी मिल नहीं रही थी। एक बार जब वे ट्रेन में चेन्नई से हैदराबाद जा रहे थे, तब उनसे एक यात्री ने पूछा कि क्या आपने नेपोलियन की ‘थिंकएंड ग्रो रिच’ ढ़ी है, तब प्रेम ने जवाब दिया कि नहीं, उन्होंने इस किताब को नहीं पढ़ा है। तब यात्री ने उनसे इस किताब को पढ़ने की सलाह दी। प्रेम वत्स कहते हैं कि इस एक किताब ने उनके जीवन मोड़ नया मोड़ ला दिया। किताब पढ़ने के बाद उन्हें सफलता का स्वाद चखना शुरू कर दिया। उन्हें खयाल आया कि उनकी दिलचस्पी बिजनेस एवं फाइनांस में है, पर वे बन गए हैं केमिकल इंजीनियर। तब उनके भाई कनाडा में थे। 1972 में वे भारत छोड़कर अपने भाई के पास कनाडा चले गए। कनाडा पहुंचकर उन्होंने जिस तरह से प्रगति की, उससे उन्हें वहां का वॉरने बफेट कहा जाने लगा। आखिर क्या है ऐसा प्रेम वत्स में, जो उन्हें भीड़ से अलग करता है।
ब्लेकबेरी जैसी डूबती कंपनी को खरीदने का निश्चय प्रेम वत्स ने किया है। यह पहली कंपनी नहीं है, जो डूब रही है और जिसे प्रेम वत्स ने खरीदा हो। इस तरह का पराक्रम वे पहले भी कर चुके हैं। ब्लेकबेरी उनके जीवन की सबसे बड़ी चुनौती है, जिसे वे निश्चित रूप से स्वीकार तो कर ही चुके हैं, साथ ही वे इससे यह बताने कीे कोशिश करेंगे कि वे असंभव को संभव बनाने में विश्वास रखते हैं। कनाडा पहुंचकर उन्होंने वहां की वेस्टर्न ओंटेरियो यूनिवर्सिटी से एमबीए किया। 1974 में उन्होंने कांफेडरेशन लाइफ नामक एक बीमा कंपनी में नौकरी के लिए आवेदन किया। इस नौकरी के लिए प्रेम वत्स के अलावा तीन और लोगों को भी बुलाया गया था। उन तीनों के न आने के कारण वह नौकरी उन्हें मिल गई। दस वर्ष तक वे कांफेडरेशन लाइफ कंपनी में पोर्टफोलियो मेनेजमेंट का कीमती अनुभव प्राप्त कर 1985 में उन्होंने हेम्बलिन वत्स इनवेस्टमेंट कौंसिल ’ नामक कंपनी शुरू की। इसके बाद उन्होंने अपने विचारों को अमलीजामा पहनाने का काम शुरू किया। यानी हारे हुए घोड़ो पर बाजी लगाने का काम। 1985 में उन्होंने मार्केल फाइनेंशियल नाम एक बीमार कंपनी को खरीद लिया। इस कंपनी पर नए सिरे से निवेश कर उसे पुनर्जीवित कर दिखाया। 1987 में इस कंपनी में कुछ बदलाव कर उसे नए नाम से स्थापित किया। उसका नाम रखा फेरफेक्स। आज की तारीख में यह कंपनी 31 अरब डॉलर की है। प्रेम वत्स के पास फेरफेक्स के दस प्रतिशत शेयर हैं। इनके शेयरों की कीमत पिछले दो दशकों से वार्षिक 21 प्रतिशत की वृद्धि देखने में आई है। प्रेम वत्स को कनाडा का वॉरेन बफेट इसीलि कहते हैं कि वे जिस कंपनी के शेयरों के भाव फंडामेंटल से कम होते, उसे वे खरीद लेते, ऐसा वॉरेन बफेट भी किया करते थे। बफेट की तरह इन्होंने भ अपनी कंपनी की बुनियाद इंश्योरेंस कंपनी के रूप में तैयार की। अब तक उन्होंने कई बीमार कंपनियों को खरीदकर उसे मुनाफा कमाने वाली कंपनी बना दिया है। 2008 तक फेरफेक्स कनाडा की सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनी बना दिया था।
घाटे में चल रही ब्लेकबेरी कंपनी को खरीदकर उसे मुनाफा कमाने वाली कंपनी बनाना प्रेम वत्स के जीवन की सबसे बड़ी चुनौती है। 2010 में ब्लेकबेरी के शेयरों के भाव 50 डॉलर थे, तब फेरफेक्स ने उनके शेयरों को खरीदने की शुरुआत की। आज फेरफेक्स के पास ब्लेकबेरी के दस प्रतिशत शेयर हैं। फेरफेक्स ने ब्लेकबेरी के शेयरों को 9 डॉलर के भाव से खरीदने का ऑफर दिया है। फेरफेक्स ने अब तक कंपनियों के पोर्टफोलियो में ही दिलचस्पी दिखाई है, लेकिन अब वह ब्लेकबेरी के संचालन की गहराई में उतरने की चाहत रखती है। आज ब्लेकबेरी भले ही घाटे में चल रही हो। किंतु उसका नाम है, उसकी ब्रांड वेल्यू जोरदार है। दुनिया में करीब 659 मोबाइल ऑपरेटर उसके लिए काम कर रहे हैं। उसकी सिक्योरिटी सिस्टम बेमिसाल है। उसके 7.6 करोड़ ग्राहक हैं। फाचरुन 500 कंपनियों के जो एक्जिक्यूटिव्स हैं, उसके 90 प्रतिशत ग्राहक ब्लेकबेरी का इस्तेमाल करते हैं। कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका की सरकार भी ब्लेकबेरी का ही इस्तेमाल करती है। उसके पास बेशुमार पेटेंट हें। इसमें नई ऑपरेटिंग सिस्टम का भी समावेश होता है। उसके पास 2.9 अरब डॉलर की राशि नकद है। इन सभी गणनाओं का गहराई से अध्ययन कर प्रेम वत्स ने इस कंपनी को खरीदने का निश्चय किया है।
इसके पहले प्रेम वत्स ने लाभ न कमाने वाली बीमा कंपनियों को ही खरीदते थे। अब उन्होंने मोबाइल कंपनियों के अलावा, गुड्स कंपनी, रेस्तरां चेन, वेडिंग गिफ्ट कंपनी और अखबार की कंपनियों को भी खरीदना शुरू कर दिया है हाल ही में उन्होंने भारत में फेरब्रिज केपिटल नामक कंपनी की स्थापना कर थॉमस फुड इंडिया का अधिकांश हिस्सा खरीद लिया है। अब उन्होंने मुश्किलभरे हालात में चल रही कंपनियों के शेयरों को भी खरीदना शुरू कर दिया है। ब्लेकबेरी जैसी डूबती कंपनी को 4.7 अरब डॉलर में खरीदने का साहस रखने वाले प्रेम वत्स को हारे हुए घोड़ों पर दांव लगाकर उसे जीताने का काफी शौक है। इस अच्छा खासा अनुभव भी रखते हैं वे। ब्लेकबेरी ने अभी एक पखवाड़े पहले ही यह घोषणा की थी कि उसे तीन महीने में एक अरब डॉलर का घाटा हुआ है। इससे उबरने के लिए उसे अपने 40 प्रतिशत कर्मचारियों की छंटनी करनी होगी। ्र40 प्रतिशत यानी साढ़े चार हजार कर्मचारी। एक नामी कंपनी के इतने सारे कर्मचारी एक साथ बेरोजगार हो जाएं, तो इसे एक विडम्बना ही कहा जाएगा। प्रेम वत्स ने जो चुनौती स्वीकारी है, ऐसा बहुत कम लोग कर पाते हैं। हमें गर्व होना चाहिए कि वे भारतीय हैं। जिन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा विदेश में मनवाया। जिस कंपनी का मोबाइल अमेरिकी राष्ट्रपति भी इस्तेमाल करते हो, जिस कंपनी का मोबाइल रखकर लोग स्वयं को भीड़ से अलग मानते हों, वही कंपनी आज दिवालियेपन के कगार पर है, उसे उबारने में लगे हैं भारतीय प्रेम वत्स। ऐसे लोगों की सहायता हालात भी करते हैं, ऐसा कहा जा सकता है।
डॉ. महेश परिमल
कुछ लोगों की आदत होती है कि हारे हुए घोड़ों पर दाँव लगाया जाए। इसे यदि दूसरे शब्दों में इस तरह से कहा जा सकता है कि जो कंपनियां घाटे में चल रही हों, उसे मुनाफा देने वाली कंपनी किस तरह से बनाया जाए। कुछ इस तरह की प्रवृत्ति के मालिक हैं प्रेम वत्स। इन्हें कनाडा का वॉरेन बफेट कहा जाता है। हमें गर्व होना चाहिए कि वत्स मूल रूप से भारतीय हैं,उनका जन्म हैदराबाद में हुआ था। वह भी आम भारतीयों की तरह एक सामान्य रूप से किसी अधिकारी के पद पर ही पहुंच पाते, यदि ट्रेन में सफर करते हुए एक सहयात्री की सलाह न मानी होती। तब उनकी उम्र 21 वर्ष थी। चेन्नई की आईआईटी से केमिकल इंजीनियर की डिग्री प्राप्त करने के बाद वे हताश हो गए थे। जैसी नौकरी वे चाहते थे, वैसी मिल नहीं रही थी। एक बार जब वे ट्रेन में चेन्नई से हैदराबाद जा रहे थे, तब उनसे एक यात्री ने पूछा कि क्या आपने नेपोलियन की ‘थिंकएंड ग्रो रिच’ ढ़ी है, तब प्रेम ने जवाब दिया कि नहीं, उन्होंने इस किताब को नहीं पढ़ा है। तब यात्री ने उनसे इस किताब को पढ़ने की सलाह दी। प्रेम वत्स कहते हैं कि इस एक किताब ने उनके जीवन मोड़ नया मोड़ ला दिया। किताब पढ़ने के बाद उन्हें सफलता का स्वाद चखना शुरू कर दिया। उन्हें खयाल आया कि उनकी दिलचस्पी बिजनेस एवं फाइनांस में है, पर वे बन गए हैं केमिकल इंजीनियर। तब उनके भाई कनाडा में थे। 1972 में वे भारत छोड़कर अपने भाई के पास कनाडा चले गए। कनाडा पहुंचकर उन्होंने जिस तरह से प्रगति की, उससे उन्हें वहां का वॉरने बफेट कहा जाने लगा। आखिर क्या है ऐसा प्रेम वत्स में, जो उन्हें भीड़ से अलग करता है।
ब्लेकबेरी जैसी डूबती कंपनी को खरीदने का निश्चय प्रेम वत्स ने किया है। यह पहली कंपनी नहीं है, जो डूब रही है और जिसे प्रेम वत्स ने खरीदा हो। इस तरह का पराक्रम वे पहले भी कर चुके हैं। ब्लेकबेरी उनके जीवन की सबसे बड़ी चुनौती है, जिसे वे निश्चित रूप से स्वीकार तो कर ही चुके हैं, साथ ही वे इससे यह बताने कीे कोशिश करेंगे कि वे असंभव को संभव बनाने में विश्वास रखते हैं। कनाडा पहुंचकर उन्होंने वहां की वेस्टर्न ओंटेरियो यूनिवर्सिटी से एमबीए किया। 1974 में उन्होंने कांफेडरेशन लाइफ नामक एक बीमा कंपनी में नौकरी के लिए आवेदन किया। इस नौकरी के लिए प्रेम वत्स के अलावा तीन और लोगों को भी बुलाया गया था। उन तीनों के न आने के कारण वह नौकरी उन्हें मिल गई। दस वर्ष तक वे कांफेडरेशन लाइफ कंपनी में पोर्टफोलियो मेनेजमेंट का कीमती अनुभव प्राप्त कर 1985 में उन्होंने हेम्बलिन वत्स इनवेस्टमेंट कौंसिल ’ नामक कंपनी शुरू की। इसके बाद उन्होंने अपने विचारों को अमलीजामा पहनाने का काम शुरू किया। यानी हारे हुए घोड़ो पर बाजी लगाने का काम। 1985 में उन्होंने मार्केल फाइनेंशियल नाम एक बीमार कंपनी को खरीद लिया। इस कंपनी पर नए सिरे से निवेश कर उसे पुनर्जीवित कर दिखाया। 1987 में इस कंपनी में कुछ बदलाव कर उसे नए नाम से स्थापित किया। उसका नाम रखा फेरफेक्स। आज की तारीख में यह कंपनी 31 अरब डॉलर की है। प्रेम वत्स के पास फेरफेक्स के दस प्रतिशत शेयर हैं। इनके शेयरों की कीमत पिछले दो दशकों से वार्षिक 21 प्रतिशत की वृद्धि देखने में आई है। प्रेम वत्स को कनाडा का वॉरेन बफेट इसीलि कहते हैं कि वे जिस कंपनी के शेयरों के भाव फंडामेंटल से कम होते, उसे वे खरीद लेते, ऐसा वॉरेन बफेट भी किया करते थे। बफेट की तरह इन्होंने भ अपनी कंपनी की बुनियाद इंश्योरेंस कंपनी के रूप में तैयार की। अब तक उन्होंने कई बीमार कंपनियों को खरीदकर उसे मुनाफा कमाने वाली कंपनी बना दिया है। 2008 तक फेरफेक्स कनाडा की सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनी बना दिया था।
घाटे में चल रही ब्लेकबेरी कंपनी को खरीदकर उसे मुनाफा कमाने वाली कंपनी बनाना प्रेम वत्स के जीवन की सबसे बड़ी चुनौती है। 2010 में ब्लेकबेरी के शेयरों के भाव 50 डॉलर थे, तब फेरफेक्स ने उनके शेयरों को खरीदने की शुरुआत की। आज फेरफेक्स के पास ब्लेकबेरी के दस प्रतिशत शेयर हैं। फेरफेक्स ने ब्लेकबेरी के शेयरों को 9 डॉलर के भाव से खरीदने का ऑफर दिया है। फेरफेक्स ने अब तक कंपनियों के पोर्टफोलियो में ही दिलचस्पी दिखाई है, लेकिन अब वह ब्लेकबेरी के संचालन की गहराई में उतरने की चाहत रखती है। आज ब्लेकबेरी भले ही घाटे में चल रही हो। किंतु उसका नाम है, उसकी ब्रांड वेल्यू जोरदार है। दुनिया में करीब 659 मोबाइल ऑपरेटर उसके लिए काम कर रहे हैं। उसकी सिक्योरिटी सिस्टम बेमिसाल है। उसके 7.6 करोड़ ग्राहक हैं। फाचरुन 500 कंपनियों के जो एक्जिक्यूटिव्स हैं, उसके 90 प्रतिशत ग्राहक ब्लेकबेरी का इस्तेमाल करते हैं। कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका की सरकार भी ब्लेकबेरी का ही इस्तेमाल करती है। उसके पास बेशुमार पेटेंट हें। इसमें नई ऑपरेटिंग सिस्टम का भी समावेश होता है। उसके पास 2.9 अरब डॉलर की राशि नकद है। इन सभी गणनाओं का गहराई से अध्ययन कर प्रेम वत्स ने इस कंपनी को खरीदने का निश्चय किया है।
इसके पहले प्रेम वत्स ने लाभ न कमाने वाली बीमा कंपनियों को ही खरीदते थे। अब उन्होंने मोबाइल कंपनियों के अलावा, गुड्स कंपनी, रेस्तरां चेन, वेडिंग गिफ्ट कंपनी और अखबार की कंपनियों को भी खरीदना शुरू कर दिया है हाल ही में उन्होंने भारत में फेरब्रिज केपिटल नामक कंपनी की स्थापना कर थॉमस फुड इंडिया का अधिकांश हिस्सा खरीद लिया है। अब उन्होंने मुश्किलभरे हालात में चल रही कंपनियों के शेयरों को भी खरीदना शुरू कर दिया है। ब्लेकबेरी जैसी डूबती कंपनी को 4.7 अरब डॉलर में खरीदने का साहस रखने वाले प्रेम वत्स को हारे हुए घोड़ों पर दांव लगाकर उसे जीताने का काफी शौक है। इस अच्छा खासा अनुभव भी रखते हैं वे। ब्लेकबेरी ने अभी एक पखवाड़े पहले ही यह घोषणा की थी कि उसे तीन महीने में एक अरब डॉलर का घाटा हुआ है। इससे उबरने के लिए उसे अपने 40 प्रतिशत कर्मचारियों की छंटनी करनी होगी। ्र40 प्रतिशत यानी साढ़े चार हजार कर्मचारी। एक नामी कंपनी के इतने सारे कर्मचारी एक साथ बेरोजगार हो जाएं, तो इसे एक विडम्बना ही कहा जाएगा। प्रेम वत्स ने जो चुनौती स्वीकारी है, ऐसा बहुत कम लोग कर पाते हैं। हमें गर्व होना चाहिए कि वे भारतीय हैं। जिन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा विदेश में मनवाया। जिस कंपनी का मोबाइल अमेरिकी राष्ट्रपति भी इस्तेमाल करते हो, जिस कंपनी का मोबाइल रखकर लोग स्वयं को भीड़ से अलग मानते हों, वही कंपनी आज दिवालियेपन के कगार पर है, उसे उबारने में लगे हैं भारतीय प्रेम वत्स। ऐसे लोगों की सहायता हालात भी करते हैं, ऐसा कहा जा सकता है।
डॉ. महेश परिमल
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