बुधवार, 20 अप्रैल 2022

दूर करनी होगी पेड़ों की थकान

वायु प्रदूषण से अकाल मौतें चिंतनीय


कहा गया है कि वायु को शुद्ध करने में पेड़ महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पर लगता है कि अब हमारे देश के ही नहीं, बल्कि विदेशों के पेड़ भी थकने लगे हैं। वे हमें जो प्राणवायु दे रहे हैं, उसमें वह बात नहीं रही। हमारा पर्यावरण लगातार बिगड़ रहा है। हम कुछ कर नहीं पा रहे हैं। शोध बताते हैं कि वायु प्रदूषण से जो लोग मौत के शिकार हुए हैं, वे समय से पहले मौत के आगोश में समा गए हैं। समय से पहले हुई मौत को अकाल मौत कहा जाता है। हमारे देश में रोज ही कई लोगों की अकाल मौतें होती हैं। इसमें कई कारण तो निजी हैं। पर वायु प्रदूषण से होने वाली मौत के लिए मौत का शिकार व्यक्ति अकेला ही जिम्मेदार नहीं है। एक पूरी पीढ़ी ही इसके लिए जिम्मेदार मानी जा सकती है। इस देश में जिस दिन पेड़ों की संख्या इंसानों की संख्या से दोगुनी हो जाएगी, उस दिन से वायु प्रदूषण का नामो-निशान नहीं होगा।  

हाल ही में एक शोध से पता चला है कि वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के आंकड़ों में बेतहाशा इजाफा हुआ है। शोध में देश के मुम्बई, बैंगलोर, कोलकाता, हैदराबाद, चैन्नई, सूरत, पुणे और अहमदाबाद को शामिल किया गया। इन शहरों में वायु प्रदूषण से करीब एक लाख लोगों की मौत हुई है। यह जानकारी चौंकाने वाली है। सरकार की तमाम कोशिशें इन आंकड़ों के आगे लाचार नजर आती हैं। पर्यावरणविद् लम्बे समय से सरकारों को आगाह कर रहे हैं कि इस दिशा में ठोस कदम उठाएं जाएं, पर उनकी कोई सुन ही नहीं रहा है। बर्मिघम विश्वविद्यालय और यूसीएल के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि तेजी से बढ़ते उष्णकटिबंधीय शहरों में 14 वर्षो में लगभग 1,80,000 परिहार्य मौतें वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ने के कारण हुई।

साइंस एडवांस में 8 अप्रैल को प्रकाशित, अध्ययन से वायु गुणवत्ता में तेजी से गिरावट और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक वायु प्रदूषकों के शहरी जोखिम में वृद्धि का पता चलता है। शोधकर्ताओं ने हवा की गुणवत्ता में इस तेजी से गिरावट के लिए उभरते उद्योगों और आवासीय स्रोतों- जैसे सड़क यातायात, कचरा जलाने और लकड़ी का कोयला और ईंधन लकड़ी के व्यापक उपयोग को जिम्मेदार ठहराया। बर्मिघम विश्वविद्यालय में यूसीएल भूगोल के छात्र कर्ण वोहरा   ने बताया कि भूमि निकासी और कृषि अपशिष्ट निपटान के लिए बायोमास के खुले में जलने के कारण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का अत्यधिक प्रभुत्व रहा है।

शोध के अनुसार, वायु प्रदूषण के संपर्क में आने पर समय से पहले मरने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि दक्षिण एशिया के शहरों में सबसे अधिक है, विशेष रूप से बांग्लादेश में ढाका में कुल 24 हजार लोग और मुंबई, बैंगलोर, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, सूरत, पुणे और अहमदाबाद जैसे भारतीय शहरों में कुल एक लाख लोग अकाल मौत के शिकार हुए हैं। देश के 125 प्रदूषित शहरों में मेरठ शहर का भी नाम आया। रविवार 10 अप्रैल  को एयर क्वालिटी इंडेक्स बढ़कर 364 पर पहुंच गया। जो यह बताता है कि हालात बहुत ही खराब हैं। लगातार खराब होती हवा के कारण लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है। 

हाल ही में किए गए अध्ययनों से कोविड-19 से होने वाली मौतों और वायु प्रदूषण के बीच संबंध का पता चला है। शोधकर्ताओं के अनुसार वैश्विक स्तर पर कोविड-19 से होने वाली 15 प्रतिशत मौतों का संबंध लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से है। इस डैटा में विशेषज्ञों ने वायु में सूक्ष्म कणों की उपग्रह से प्राप्त जानकारी के साथ पृथ्वी पर उपस्थित प्रदूषण निगरानी नेटवर्क का डैटा शामिल किया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कोविड-19 से होने वाली मौतों के पीछे वायु प्रदूषण का योगदान किस हद तक है। डैटा के आधार पर विशेषज्ञों का अनुमान है कि पूर्वी एशिया, जहां हानिकारक प्रदूषण का स्तर सबसे अधिक है, में कोविड-19 से होने वाली 27 प्रतिशत मौतों का दोष वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर हुए असर को दिया जा सकता है। यह असर युरोप और उत्तरी अमेरिका में क्रमश: 19 और 17 प्रतिशत पाया गया। एक अनुमान है कि कोरोनावायरस से होने वाली कुल मौतों में से यू.के. में 6100 और अमेरिका में 40,000 मौतों के लिए वायु प्रदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। 

कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि अब पूरे विश्व में वायु को शुद्ध करने का महाभियान चलाने का समय आ गया है। इस कार्य में बिना किसी भेदभाव के सभी देशों को एकजुट होना होगा। आपसी कटुता को दूर रखकर वायु प्रदूषण को दूर करने के सामूहिक प्रयास करने होंगे। यह सच है कि भविष्य भले ही ऑक्सीजन सिलेंडर रखकर चलने का हो, पर ऐसी नौबत आने ही क्यों दी जाए। भावी पीढ़ी को यह बताना होगा कि थके पेड़ों को नई ऊर्जा वही दे सकती है। जिस तरह से घर में बुजुर्गों की उपेक्षा हो रही है, ठीक उसी तरह हमारे आसपास के पेड़ों की भी उपेक्षा हो रही है। पेड़ों को अपना साथी मानने का समय आ गया है। उन्हें अब घर का प्रमुख सदस्य मान लेना होगा, क्योंकि भविष्य अंधकारमय है। इस अंधेरे को दूर करने में पेड़ अपना अमूल्य योगदान दे सकते हैं।

डॉ. महेश परिमल


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