गुरुवार, 10 अप्रैल 2008

कैदियों का आरामगाह याने भारतीय जेल


डॉ महेश परिमल
गुजरात में हुए फर्जी मुठभेड़ के आरोपी और पूर्व डीआईजी वंजारा और उसके साथियों को साबरमती जेल मे शाही सुविधाए मिल रही हैं। वे अपने परिवार के साथ घर का भोजन कर रहे हैं। उन्हें बढ़िया बिस्तर दिया गया है, मोबाइल फोन की सुविधाा तो वैसे भी हर छोटे से छोटे कैदी का प्राप्त है। आश्चर्य इस बात का है कि इसका खुलासा होने के बाद भी जेल प्रबंधान का कहना है कि ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है।
पर यह बात सामान्य आदमी के भी गले नहीं उतर रही है। ये सब तो हो ही रहा है, पर मधयप्रदेश की एक घटना ने जेल में व्याप्त कड़क और चुस्त व्यवस्था की पोल ही खोल कर रख दिया है। कैदियों के कब्जे में छह घंटे रही शहडोल जेल!यह खबर वाकई चौंकाने वाली है।खबर पढ़ने पर ही पता चला कि ऐसा दूसरी बार हुआ है। इधार कैदी जेल के अंदर उत्पात मचाते रहे और उधार प्रशासन जेल केबाहर कैदियों के शांत होने की आस में मूकदर्शक बना रहा। प्रशासन सोच रहा था कि किसी कैदी का हृदय पसीजे और वह दरवाजा खोल दे, ताकि पुलिस अंदर जाकर उन कैदियों पर काबू पा सके। वैसे यह सभी जानते हैं कि जेल में किस तरह के कानून चलते हैं।सरकार के तमाम कानून केवल ज़ेल की चहारदीवारी तक ही होते हैं, जेल के अंदर तो उनकी चलती है, जो रुतबेदार होते हैं। ये रुतबेदार कैदी भी हो सकते हैं और अफसर भी। हमारी भारतीय जेल तो साधाारण कैदियों को भी असाधाारण बनाने में सहायक होती हैं। पहले लोग जेल जाना गर्व समझते थे,क्योंकि वे किसी अपराधा के कारण नहीं,बल्कि देश को आजाद कराने के नाम पर जाते थे। लेकिन अब वैसी स्थिति नहीं रही। अब तो चुनाव के लिए टिकट उसे ही मिलती है, जो जेल यात्राए कर चुका हो। सच कहा जाए तो 1894 में ऍगरेजों के बनाए हुए कानून ही अभी तक चल रहे हैं। इसमें कोई खास बदलाव नहीं आया है। आजकल भ्रष्टाचार के कथित आरोपों से नेता, अधिाकारी भी जेल की हवा खाने लगे हैं,लेकिन इनके लिए जेलतो किसी जलसाघर से कम नहीं है।ये लोग वहॉ आराम फरमाने के लिए जाने लगे हैं। हाल ही में जेलों में व्याप्त अव्यवस्थाओं के कई मामले सामने आए हैं।
अहमदाबाद की साबरमती जेल में मुलाकाती के रूप में एक पत्रकार अपने कैमरे वाले मोबाइल के साथ वहॉ तक जा पहुचा जहॉ तक कोई भी मुलाकाती नहीं पहुच पाता है। उसे वहॉ तक पहुॅचने में किसी तरह की परेशानी नहीं हुई।न तो वहॉ मुलाकातियों की किसी प्रकार की जॉच हो रही थी और न ही वहॉ किसी तरह का कैमरा लगा था।आश्चर्य की बात यह है कि जेल में मोबाइल फोन के लिए लगा जामर भी बंद था, इससे हुआ यह किउस पत्रकार ने जेल ही में अपने मित्र से बात भी कर ली। इसी तरह आगरा की जेल के डीआईजी ने मेरठ की जेल में छापा मारा, तो वहॉ काफी मारा-मारी हुई। इस घटना में 6 पुलिस अधिाकारी और 4 कैदी घायल हुए। यह कार्रवाई इसलिए की गई थी कि मेरठ की उक्त जेल में अनधिाकृत और प्रतिबंधिात चीजों की भरमार थी।इन्हीं चीजों को जब्त करने के लिए छापा मारा गया। इस घटना के बाद डीआईजी ने बताया कि जेल में यदि किसी तरह की अनधिाकृत या प्रतिबंधिात चीजें पहुॅचती हैं, तो उस काम में जेल से जुड़े लोगों की पूरी सहभागिता होती है। कैदी भी इस तरह की हरकत तब तक नहीं कर सकते, जब कि उन्हें जेल के ही उच्च अधिाकारियों का वरदहस्त प्राप्त न हो।मेरठ जेल में व्याप्त अराजकता की सूचना हमें गृह मंत्रालय से ही प्राप्त हो गई थी। उन्होंने बताया कि जेल में हम पर सैकड़ों कैदियों के दल ने लाठियों और पत्थरों से हमला किया गया। हम सब डर गए थे,क्योंकि हमें घेर लिया गया था।

हम सब बहुत ही मुश्किल से बच पाए।इस कार्रवाई में कई कैदियों के पास से मोबाइल फोन जैसी प्रतिबंधिात वस्तुए बरामदकी गई।डीआईजी ने अपने अनुभव बॉटते हुए बताया कि मेरठ के जेल सुपरिटेंडेंट पर यह आरोप है कि उन्होंने कैदियों को हम पर हमला करने के लिए उकसाया था, ताकि हमें जेल से प्रतिबंधिात वस्तुएॅ प्राप्त न हो सके। उधार इस मामले में मेरठ जेल के सुपरिटेंडेंट ने डीआईजी पर यह आरोप लगाया है कि उन्होंने हमसे रिश्वत माँगी। वैसे भी भारतीय जेलों की अव्यवस्था सर्वविदित है। मेरठ जेल की ही बात ले लें, वहॉ कुछ मुख्य सिगरेटें 20रुपए नग बेची जाती हैं।मनपसंद स्वादिष्ट भोजन 500 रुपए थाली, लोकल कॉल के लिए 20 रुपए और एसटीडी के लिए 100 रुपए लिए जाते हैं। इस जेल की क्षमता 700 कैदियों की है, किंतु यहॉ अभी तीन गुना अधिाक याने 1850 कैदी बंद हैं।यह तो हुई साधाारण कैदियों की बात, पर इसी जेल में महल जैसी सुविधााएॅ प्राप्त करने वाले नेता भी बंद हैं। उत्तर प्रदेश के एक ऐसे नेता भी यहीं के मेहमान हैं,जो एक हत्या के मामले में सजायाता हैं। इन्होंने अपने ही एक साथी की शादी की वर्षगॉठ मनाने के लिए जेल के अंदर ही एक शानदार पार्टी का आयोजन किया। इस बात की जानकारी जब मीडियाको हुई, तो उक्त नेता ने बड़े ही शांत होकर कहा कि कोई भी जन्म से अपराधा नहीं होता, हालात उसे अपराधा बनने के लिए विवश करते हैं। कैदी भी इंसान हैं, जब वे अपनों के बीच रहकर खुशियॉ मनाना चाहते हैं, तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता। ये वही नेता हैं, जिन्होंने हाल ही में एक चुनावी सभा को जेल के भीतर से ही अपने मोबाइल के माधयम से संबोधिात किया था।अभी इस मामले की जॉच चल रही है। देश की जेलों में सैकड़ों ऐसे कैदी हैं, जिन्हें वहॉ ऐशो आराम की सारी सुविधााएॅ मुहैया हैं। इन जेलों से कैदियों के भागने की परंपराएॅ जारी हैं। इन जेलों से कैदी अगर भागते हैं, तो इसके पीछे केवल सॉठगॉठ ही नहीं,बल्कि बेशुमार धान की ताकत भी लगी होती है। अभी तक हमारे देश में एक भी जेल ऐसी नहीं है, जहॉ क्षमता के अनुसार ही कैदी हैं। सभी जेलें कैदियों से लबालब हैं।सुधाार की दिशा में नित नए प्रयोग करने वाली तिहाड़ जेल की क्षमता 4000 कैदियों की है, किंतु वहॉ अभी 12 हजार कैदी ठॅुसे पड़े हैं। आजादी के बाद भी अभी तक यह नियम नहीं बन पाया है कि किस तरह की जेल में किेतने कैदियों को रखा जाए। एक बार हमारे गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने अचानक ही जेल जाने का कार्यक्रम बनाया। वहॉ नशे में घुम एक कैदी ने उन्हें शराब ऑफर की, तब वे वहॉ की अव्यवस्था देखकर स्तब्धा रह गए। इस घटना के बाद सरकार ने जेल के दो अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया।पर इससे क्या होता है।वे अधिाकारी तो कुछ महीनों बाद फिर अपनी डयूटी पर लौटकर उसी तरह का काम करने लगते हैं। सन् 1980 में श्रीमती इंदिरा गॉधाी ने जेलों में अव्यवस्थाओं को दूर करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। 1983 में जब वे स्वयं एक राजनैतिक कैदी के रूप में तिहाड़ जेल पहॅुची, तो उन्हें अनुभव हुआ कि जेलों में किस तरह की अव्यवस्थाएॅ होती हैं। जेल व्यवस्था राज्य सरकार का मामला होने के बाद भी इंदिरा गॉधाी ने राष्टीय जेल की समीक्षा के लिए न्यायाधाीश ए एन मुल्ला के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था।न्यायाधाीश मुल्ला नेकई सुझाव दिए, पर आज तक उसमें से कितने सुझावों को अमल में लाया गया,इसकी जानकारी किसी को नहीं है। तिहाड़ जेल के बारे में एक और जानकारी यह है कि प्रसिध्द ठग चार्ल्स शोभराज वहॉ बंद था, तब वहॉ के कई अधिाकारी उसके पुराने मित्र थे, कुछ तो सहपाठी भी थे।इसीलिए वह जेल से ही बिना किसी संकोचके नशीले पदार्थों की हेराफेरी का रैकेट चला रहा था। जब यह जानकारी बाहर आई, तो सभी चौंक गए।पर इस दिशा में सुधाार के नाम पर कुछ नहीं हुआ।
अंत में भारतीय जेलों के बारे में एक और आश्चर्यजनक बात यह है कि देश भर की जेलों में कुल 3 लाख 4 हजार 983 कैदियों में से सवा दो लाख याने 74 प्रतिशत विचाराधाीन कैदियों की सुनवाई तक नहीं हो पाई है। इनमें से कई तो निधर्ाारित सजा से अधिाक समय गुजार चुके हैं, पर इनके बारे में कोई फैसला नहीं हो पाया है। जेलों से क्षमता से 31 गुना अधिाक कैदियों से जेलें पूरम्पूर हैं, इन कैदियों की सुनवाई की तुरंत आवश्यकता है, पर इसे समझे कौन?यह एक गंभीर समस्या है,जिस पर धयान देने की महती आवश्यकता है।
डॉ महेश परिमल

2 टिप्‍पणियां:

  1. जिस जमाने की बात परिमल जी आप कर रहे हैं, उस जमाने में भी कुछ लोगों को खास सुविधाएं मिला करती थीं. जिनके लिए जेल जाना देश के लिए गौरव की बात थी उनमें से ज्यादातर बचे नहीं और जो बचे उनमें से अधिकतर दाने-दाने को मोहताज रहे. मलाई काटने का सौभाग्य केवल उनको और उनकी ही संतानों को मिल रहा है जो सिर्फ़ अपने लिए जेल गए. और यकीन मानिए उन्हें उस जमाने में भी कोई कष्ट नहीं था. कोड़े सिर्फ़ उनको खाने पड़ते थे जो देश पर मरने की बेवकूफी कर रहे थे. इनके विपरीत ऐसे लोग थे जो अपने लिए देश पर मिटने का नाटक कर रहे थे. वे आज मौज मार रहे हैं और वही जेलों के क़ानून तय कर रहे हैं. जाहिर है, जेलों में जो हैं उनमें अधिकतर उनके समानधर्मा हैं. उनको कोई असुविधा हो यह हमारे कर्णधार कैसे बर्दाश्त करेंगे?

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