गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

बहुत-कुछ कह देगी अमरीश पुरी की आत्मकथा


भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर खलनायकों में से एक स्व अमरीश पुरी १९५क् के दशक में हीरो बनने का सपना लेकर मुंबई आए थे, पर निराश होकर रंगमंच की दुनिया में चले गए। उनके नाटकों को देखने के लिए स्व. इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे लोग आते थे। पद्म विभूषण रंगकर्मी अब्राहम अल्काजी से १९६१ में हुई ऐतिहासिक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और वे बाद में भारतीय रंगमंच के प्रख्यात कलाकार बन गए। उसके बाद बेहतर आजीविका के लिए फिल्मों की दुनिया में फिर आए और गब्बर के बाद दूसरे सबसे सफल खलनायक चरित्न , मोगैम्बो, के रूप में लोकप्रिय हुए। उनके बडे भाई मदनपुरी फिल्मों में स्थापित कलाकार थे, पर उन्होंने अमरीशपुरी को साफ साफ कह दिया था कि वह आगे बढ़ाने में मदद नहीं करेंगे, बल्कि उन्हें खुद अपनी किस्मत और प्रतिभा से बालीवुड में जगह बनानी होगी। अमरीशपुरी ने कला और व्यवसायिक फिल्में दोनों में सफलता के कीíतमान कायम किए तथा ३१६ फिल्मों में भूमिका निभाई।
अमरीशपुरी की आत्मकथा ‘जीवन एक रंगमंच ’ उनके निधन के पांच वर्ष बाद हिन्दी में अनूदित होकर विश्व पुस्तक मेले में आई जिसका लोकार्पण चíचत अभिनेता इरफान ने किया। स्व. अमरीशपुरी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, मदन भाई, मदनपुरी, की चेतावनी कि फिल्मों में काम करने का अवसर मिलना उतना आसान नहीं, जितना प्रतीत होता है, को ध्यान में रखकर मैने अभिनय की अपनी इच्छा को त्याग दिया।, मेरे भाग्य ने मुझे प्रेरित किया ओर मैं ऐसे लोगों के संपर्क में आया जिनसे नियति ने मुझे मिलवाना था। यह वर्ष १९६१ अक्टूबर माह का था और एम पी मेघनानी नायक मेरे सहकर्मी भारतीय रंगमंच के पर्याय अब्राहम अल्काजी से मेरा ऐतिहासिक परिचय करवाने में सहायक बने। दिसंबर १९६१ में उन्होंने मुझे अंधायुग में धृतराष्ट्र की भूमिका दी। वाण्ी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित आत्मकथा के अनुसार १९७३ में प्रधानमंत्नी इंदिरा गांधी गिरीश कनार्ड के नाटक हयवदन देखनी आई थी। उनके पास सिर्फ ४क् मिनट का समय था, पर वह इतना प्रभावित हुई कि नाटक पूरा खत्म होने के बाद ही गई और अगले दिन उन्होंने हमें नाश्ते पर आमंत्नित किया। १९९क् में तो दो तीन बार प्रधानमंत्नी अटल बिहारी वाजपेयी हमारे नाटक देखने आए थे। अमरीशपुरी पहली बार फिल्म में १९७क् में देवानंद की प्रेम पुजारी में आए, फिर रेशमा और शेरा में, लेकिन उन्हें पहचान मिली श्याम वेनेगल की १९७५ में बनी फिल्म निशांत से, लेकिन वह शुरू में कला फिल्मों के अभिनेता बने रहे। उसके बाद वह व्यावसायिक फिल्मों में आए। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है, समानांतर फिल्मों से व्यावसायिक फिल्मों में आने से मेरे भीतर के अभिनेता ने बहुत कुछ खो दिया। मैं तो यहां तक कहता हूं कि कला फिल्में अभिनय के विद्यालय है तो व्यावसायिक फिल्में धन जुटाती है। ये फिल्में मेरी दाल-रोटी हैं, आजीविका हैं। आत्मकथा के अनुसार अमरीशपुरी प्राण के प्रशंसक थे और १९४क् से ही उनकी फिल्में देखते थे। उनके जीवन पर बडे भाई मदनपुरी का भी प्रभाव रहा, पर उन्होंने उनकी नकल नहीं की। जब मिस इंडिया बनी तो मोगैम्बे के रूप में वह गब्बर की तरह मशहूर हुए। यह चरित्न १९५३ में बनी अंग्रेजी फिल्म मोगेम्बो से लिया गया जो हिटलर के चरित्न को ध्यान में रखकर बनाया गया था। अमरीशपुरी अपनी सफलता की कुंजी के लिए प्रेमनाथ को जीवन भर याद करते रहे। उन्होंने लिखा है, एक बार मुझे प्रेमनाथ ने कहा था, सदा तीन , पी, यानी पाटिन्स , धैर्य, प्रेसीवान्स , ²ढ प्रतिज्ञा और प्रेसिस्हेन्स हठ, को याद रखो और उसका अनुसरण करो। उनकी यह सलाह मेरे मन मस्तिष्क को अंकित हो गई और मैं जब तब इसे याद करता हूं। आत्मकथा में अमरीशपुरी ने पुराने कलाकारों की समर्पण भावना पर विस्तार से लिखा है और इस पर चिंता व्यक्त की है कि आज सिनेमा बहुत अधिक व्यापार उन्मुख हो गया है। आत्मकथा में पृथ्वीराज कपूर, सहगल, नरगिस, अशोक कुमार, मीना कुमारी, वहीदा रहमान, नूतन को भी आदर से याद किया गया है तथा सत्यदेव दुबे को अपना गुरु बताया गया है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. निसंदेह अमरीश पूरी जी हिंदी सिनेमा के महान अभिनेता थे. मौका मिलने पर इसे अवश्य पढ़ा जायेगा

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  2. निसंदेह अमरीश पूरी जी हिंदी सिनेमा के महान अभिनेता थे.
    09993885559 kanhaiya patniha

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