
प्लास्टिक के दुष्प्रभावों को देखते हुए कई राज्य सरकारों ने पालीबेग के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है लेकिन कई उद्योग इसके स्थान पर अपने उत्पादों के लिए प्लास्टिक पाउच का इस्तेमाल करने लगे हैें. जिससे समस्या खत्म होने के स्थान पर गंभीर होती जा रही है। बच्चों और बडों के लगभग सभी उत्पाद प्लास्टिक पाउच की पै¨कग में उपलब्ध हैं। देखा जाए तो हमारी दिनचर्या प्लास्टिक से शुर होकर प्लास्टिक पर ही खत्म हो रही है। कम्पनियां दूध, ब्रेड, चाय, बिस्कुट आदि की पैेकें¨जग के लिए प्लास्टिक पाउच का धडल्ले से इस्तेमाल कर रही हैं।
खाद्य पदार्र्थो आदि की प्लास्टिक पाउच पैके¨जग मौजूदा पालिथीन कानून का मजाक उठाती दिखाई दे रही हैं। कंपनियों और उद्योगों को प्लास्टिक पाउच पै¨कग की छूट मिली हुई है । शायद इसीलिए आम आदमी इस कानून का पालन नहीं कर पा रहा है। हालत यह है कि बच्चों के उत्पादों की पैके¨जग में १क् या १५ ग्राम सामान के लिए चार से पांच सौ ग्राम के पाउच का इस्तेमाल किया जाता है । इससे समस्या और विकट होती जा रही है। देखा जाए तो बच्चों के लिए खाद्य उत्पाद बनाने वाली कंपनियां और गुटका तथा तंबाकू उद्योग प्लास्टिक पाउच का सबसे अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि कंपनियां पहल करके अपने उत्पादों की पैके¨जग को पूरी तरह प्लास्टिक मुक्त बनाएं. लेकिन लगता है कि कंपनियों के लिए इस संदर्भ में कानून नहीं है। इसकी वजह से वे विकल्पों का इस्तेमाल नहीं कर पा रही हैं। प्लास्टिक् पाउच के विकल्प के तौर पर तंबाकू उत्पादक एल्यूमीनियम पेपर और सिगरेट की पैके¨जग जैसे पेपर बाक्स का इस्तेमाल कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने २क् माइक्रोन से अधिक मोटी पालिथीन के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया है और इसके तहत नवीन पालिथीन इकाइयों के लिए प्रदूषण नियंत्नण समिति में पंजीकरण कराना अनिवार्य कर दिया है। उसने इसके लिए कुछ मापदंड भी निर्धारित किए हैं लेकिन प्लास्टिक पाउच को इससे बाहर रखा गया है. जो सबसे अधिक प्रयोग में लाया जा रहा है। आमतौर पर देखा गया कि प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल को लेकर हमारी लापरवाही ही समस्या का कारण बनती है। मसलन स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें। नाले.नालियों तथा सीवर के जाम का प्रमुख कारण पालिथीन पाउच हैं। इतना सब कुछ जान.जानवरों के लिए भी घातक हैं। जानवर इनमें रखकर फेंके गए खाद्य पदार्थो के साथ पालिथीन भी निगल जाते हैं जो उनकी मौत का करण भी बन जाती है। पालिथीन के अत्यधिक प्रयोग ने पर्यावरण प्रभावित किया है जबकि इसके इस्तेमाल पर पर्यावरण संरक्षण कानून १९८६ के तहत दंड का प्रावधान भी है। यहां देखा जाये तो दोष सरकारी नीतियों का भी है, जिसकी वजह से आम जनता के साथ व्यापारी भी परेशान है। पालीबैग का विकल्प न उपलब्ध करा पाने से समस्या जस की तस बनी हुई है। जूट के बैग. कपड़ा मिलों द्वारा निकलने वाले कपडे के कट पीस से बने थैले. कागज के लिफाफे, एलुमिनियम पेपर और पेपर बाक्स का उपयोग करके पालिथहन के इस्तेमाल को रोका जा सकता है।
पालिथीन पर प्रतिबंध के बावजूद भी इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। बहाना है. वैकल्पिक साधन का। जबकि गत वैकल्पिक साधन भी उपलब्ध हैं पर यह अपेक्षाकृत कम टिकाऊ हैं और अधिक महंगे पडते हैं। रही प्लास्टिक कचरे के निबटाने की समस्या के लिए सरकार को रि साइक¨लग प्लास्टिक को सड़कों के निर्माण में प्रयोग करना लाजमी बनाया जाना चाहिए जिससे इसका निदान संभव हो सकते है। कानून को सख्ती से अमल में लाकर पाउच पै¨कग को प्रतिबंधित किया जाना नितांत आवश्यक हो गया है ।इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कडी कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके लिए नगर निगम को आगे आने की आवश्यकता है। एक अनुमान के अनुसार एक ाहर में प्रतिदिन लगभग ३क् टन प्लास्टिक कचरे के रप में आता है। प्लास्टिक कचरे के निबटान की समस्या के लिए सरकार को रि साइ¨क¨लग प्लास्टिक को सड़कों के निर्माण में प्रयोग करना लाजमी बनाया जाना चाहिए। रही विकल्प की बात तो कुछ चीजों की पैक¨जग के लिए एलुमिनियम पेपर, एलुमिनियम बाक्स और मक्का से तैयार प्राकृतिक प्लास्टिक के पालिथीन भी जल्द ही बाजार में आने वाली है. जो जल्द ही नष्ट हो सकते है और परिणाम को नुकसान भी नहीं पहुंचाते हैं। सरकार की सुस्ती के कारण ही प्लास्टिक बैग पर पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद इसका प्रयोग बदस्तूर जारी है। प्लास्टिक बैग के संदर्भ में न्यायालय और सरकार के फैसले को अच्छा तो सभी बताते हैं, पर उस पर अमल नहीं करना चाहते। क्योंकि इसके लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मनुष्य की मानसिकता है जब तक हो सके चुनौती से बचा जाए, केवल संकट के समय ही चुनौतियों का सामना किया जाए।
chintan ke liye majboor karata lekh .
जवाब देंहटाएंसरकार कुछ सख्ती दिखाए तो कुछ उम्मीद हो...लेकिन कुछ हो गा इस की संबावना कम ही है.....आपने बढ़िया पोस्ट लिखी ...धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंचिंतनीय मुद्दा है ये !!
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