सोमवार, 8 फ़रवरी 2010
ओबामा का डर, हमारे लिए गर्व
डॉ. महेश परिमल
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा भारतीय युवा शक्ति से डरने लगे हैं। यह हमारे लिए गर्व की बात है। पिछले दस वर्षो में जिस तेजी से भारतीय युवा शक्ति सामने आई है, उससे देश का गौरव बढ़ा है। आज इस युवा शक्ति के चर्चे सात समुंदर पार जाकर लोगों को दहला रहे हैं। अमेरिका को इस बात का डर है कि कहंीं उसकी दादागिरी खत्म न हो जाए। स्थिति फड़फड़ाने की नहीं बल्कि बढ़ती छाटपटाहट की है। उनका इस तरह से डरना एक विकासशील देश के लिए गर्व की बात है।
कुछ वर्ष पूर्व अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश ने कहा था कि अमेरिकियों पढ़ो, नहीं तो भारतीय तुम्हें खा जाएँगे। कुछ इसी तरह की बोली ओबामा की भी थी। हाल ही में उन्होंने इसे नए रूप में पेश किया है। स्टेट ऑफ द यूनियन को पहली बार संबोधित करते हुए बराक ओबामा ने चीन, भारत और जर्मनी की विकास की गति की काफी प्रशंसा की। इन देशों की विकास दर से अपने देशवासियों को सचेत करते हुए उन्होंने कहा कि अब हमारी स्पर्धा में केवल चीन ही नहीं, बल्कि भारत और जर्मनी भी है। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि एक महाशक्ति ने हमें हमारी ताकत से अवगत कराया है। ओबामा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उन्हीं अमेरिकी कंपनियों को सब्सिडी का लाभ दिया जाएगा जो अमेरिकियों को रोजगार देगी। इस लाभ से अंशत: उन कंपनियों को वंचित कर दिया जाएगा जो दूसरे देशों में रोजगार के अवसर को बढ़ाते हैं। यह निश्चित ही ओबामा की अदूरदर्शिता और प्रतिद्वंद्विता को उजागर करता है। इसीलिए अमेरिका ने कई कंपनियों को दी जाने वाली राहत पर अंकुश लगाया है। इससे निश्चित रूप से भारत को असर होगा। पर भारत जिस सधे कदमों से अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि भारत अमेरिका की इस बाधा को भी दूर कर लेगा।
आज ओबामा चारों तरफ से घिर गए हैं। राष्ट्रपति पद सँभाले हुए उन्हें एक वर्ष हो गए हैं, उन्होंने जो वचन अमेरिका निवासियों को दिए थे, वे पूरे नहीं हो पाए हैं। आर्थिक, राजनीतिक और विदेश नीति की समस्याओं का भी अंत नहीं आया है। उनकी लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से नीचे जा रहा है। अमेरिका में बेरोजगारी दूर नहीं हो पाई है। विश्व आर्थिक मंदी से बाहर निकलने के लिए उन्होंने जो प्रयास किेए थे, वे पूरी तरह से फलीभूत नहीं हो पाए हैं। अब उनमें वह ताकत नहीं रही कि वे अमेरिका का उद्धार करने के लिए एक दशक की राह देखें। एक दशक में चीन और भारत कहाँ से कहाँ पहुँच जाएँगे। अपने ६९ मिनट के भाषण में ओबामा ने भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह थी कि भले ही आउटसोर्सिग करने वाली अमेरिकी कंपनियों पर उसका नियंत्रण हो, पर हमारे देश के युवाओं के लिए सबसे बड़ी बात उच्च शिक्षा की है। ओबामा कहते हैं ‘‘अमेरिका विश्व की महासत्ता के रूप में दूसरे क्रम में आ जाए, यह हम नहीं चाहते। यदि अमेरिका परिश्रम नहीं करेगा, तो भारत और चीन उसे ओवरटेक करते हुए आगे निकल जाएँगे, क्योंकि ये दोनों देश गणित और विज्ञान को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं।’’ इसके पहले भी उन्होंने अमेरिकी युवाओं से कहा था कि यदि नहीं पढ़ोगे, तो भारत के युवा आगे आकर यहाँ की नौकरियों पर कब्जा कर लेंगे। ओबामा की इस चिंता में यह साफ झलकता है कि अमेरिकी युवा आजकल काफी आलसी हो गए हैं। महासत्ता होने के मद ने उन्हें मस्त कर दिया है। भारत की युवा पीढ़ी के लिए यह एक सुनहरा अवसर है कि वह आगे आकर अमेरिकियों को यह बता दे कि उनमें भी दम है। अमेरिका पर मानसिक रूप से दबाव बनाने का भी यह एक बेहतर मौका है। यही मौका है, जब हम अमेरिका को मानसिक रूप से हरा सकते हैं।
शस्त्रों के इस सौदागर को हम भले ही शस्त्रों से नहीं जीत सकते हांे, पर बुद्धि से हम उसे अवश्य पराजित कर सकते हैं। अभी अमेरिका को यह डर है कि उसकी महासत्ता पर किसी तरह की आँच न आने पाए। अभी वह अपनी सारी ताकत अपनी महासत्ता बने रहने के लिए लगा रहा है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि उसके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, जिससे वह बहुत ही कम समय में अपने देश के युवाओं को तेजस्वी बना सके। इसलिए यही मौका है, जब हम उस पर मानसिक दबाव बना सकते हैं।
भारत के पास अगले कुछ वर्षो में विश्व के सबसे अधिक युवा होंगे, यही युवाशक्ति ओबामा को डराने के लिए पर्याप्त है। हमारे लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि एक महासत्ता ने हमारे अस्तित्व को स्वीकारा है। यदि ओबामा भारतीय युवाशक्ति की प्रतिभा को समझ कर अपने देश के हित में कोई कदम उठा रहे हैं, तो प्रतिभा को नकारने की उनकी यह एक राजनैतिक चाल है। हमें इसका मुँहतोड़ जवाब देना ही होगा। वैसे भी ओबामा ने अभी तक भारत को लाभ पहुँचाने वाली किसी नीति की घोषणा तो की ही नहीं है। हाँ अपने सलाहाकरों में भले ही भारतीय मूल के लोगों को लिया है। इससे वे भारतीय संस्कृति, भारतीय परंपरा और भारतीय राजनीति को बेहतर समझ रहे हैं। शायद इसीलिए वे भारतीय युवाशक्ति से डरने लगे हैं। यही समय है कि उनके इस डर का पूरा-पूरा लाभ उठाया जाए। तभी भारत एक सशक्त देश बन पाएगा।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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