बुधवार, 5 जनवरी 2011
प्रजा को परेशान करने की सुपारी
डॉ. महेश परिमल
लगता है मनमोहन सिंह सरकार ने प्रजा को परेशान करने की सुपारी ले ली है। अभी पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि की बात लोग भूले ही नहीं हैं कि अब रसोई गैस महँगा करने की घोषणा कर दी गई है। घर का बजट बुरी तरह से लड़खड़ा गया है। बढ़ती महँगाई के हिसाब से आय नहीं बढ़ पाई है। आवश्यक जिंसों के दामों में लगातार वृद्धि होती ही जा रही है। आम आदमी की जीना ही मुश्किल हो गया है। चुनाव के समय वोट लेने के लिए आम आदमी को सर्वोपरि मानने वाली सरकार सत्तारुढ़ होते ही आम आदमी से कोसों दूर हो जाती है। चुनाव के समय ही केंद्र में रहने वाला आम आदमी चुनाव के बाद हाशिए पर आ जाता है। प्याज के दाम जब सर चढ़कर बोलने लगे, तब सरकार को होश आया और निर्यात पर पाबंदी लगा दी। कितने शर्म की बात है कि जिस प्याज को हमने पाकिस्तान को सस्ते दामों में बेचा, उसी प्याज को अब महँगे दामों में उसी से फिर खरीद रहे हैं। क्या यही है सरकार की दूरदर्शिता।
इस बार रसोई गैस की कीमतों में 50 से 100 रुपए की वृद्धि की गई है। शायद सरकार की तरफ से यह आम आदमी को क्रिसमस और नए साल का तोहफा है। कुछ ही दिनों में डीजल के दाम भी बढ़ने ही हैं। जब से यूपीए सरकार आई है, महँगाई बेलगाम हुई है। कांग्रेस पर व्यापारियों की सरकार होने का आरोप हमेशा से लगाया जाता रहा है, यह तो इसी से पता चलता है कि वह महँगाई बढ़ाते समय केवल व्यापारियों को ही ध्यान में रखती है। बाकी आम आदमी की परेशानियों से उसका कोई लेना-देना नहीं होता। पेट्रोलियम पदार्थो के दाम बढ़ाते समय सरकार हमेशा यह दलील देती है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रूड के भाव बढ़ रहे हैं। इसके अलावा आयल कंपनियों का घाटा कम करना भी उसी की जिम्मेदारी है। चाहे कुछ भी हो जाए, आयल कंपनियों का घाटा नहीं बढ़ना चाहिए। आज तक आयल कंपनियों के घाटे के संबंध में कोई पारदर्शी नीति तैयार नहीं की गई है। कितने सालों से यह खेल चल रहा है। जब भी पेट्रोलियम पदार्थो के दाम बढ़ते हैं, आयल कंपनियों का घाटा सामने आ जाता है। पर आयल कंपनियों का घाटा कैसे कम होता है और कैसे बढ़ता है, यह हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री भी नहीं समझा सकते। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ाने के पहले यह नहीं सोचा जाता कि क्या इसका बोझ आम जनता सहन कर पाएगी? आयल कंपनियों के खर्च कम करने, पेट्रोलियम मंत्रालय के खर्च कम करने की दिशा में कभी कोई कदम नहीं उठाया जाता। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दामों मंे भले ही वृद्धि होती रहे, पर इसका मतलब यह तो नहीं हो जाता कि आम आदमी पर ही बोझ डाल दिया जाए।
केंद्रीय डच्यूटी कम करने की कभी ईमानदार कोशिश नहीं की गई। आम जनता को राहत मिले, ऐसी किसी योजना केंद्र सरकार चला रही है, यह कोई नहीं जानता। सरकार दाम बढ़ाकर हमेशा किसी ने किसी बहाने से छटक जाती है। हमेशा से यही होता रहा है। आखिर सरकार की भी तो कोई जवाबदारी है या नहीं? हर बार उसके पास कोई न कोई बहाना होता ही है। सरकार बहानों से नहीं कल्याणकारी कामों से चलती है।
भ्रष्ट नेता सरकार को अरबों रुपए का चूना लगा देते हैं। निर्माण कार्य के नाम पर भी करोड़ों के वारे-न्यारे हो जाते हैं। पर आम आदमी आज भी भूखे के कगार पर बैठा है। कर्ज से डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार को इसकी कोई चिंता ही नहीं है। उसे तो अपने दामन के दाग बचाने से ही फुरसत नहीं। आखिर बेईमानी के दाग इतनी जल्दी धुलने वाले नहीं। ये जिद्दी दाग है। सरकार अपने को साफ-शफ्फाक बताने की कितनी भी कोशिशें कर ले, पर स्वयं को व्यापारीपरस्त होने से इंकार नहीं कर सकती। भ्रष्टाचार के दलदल में फँसे इस देश को ईमानदारी ही बचा सकती है। ऐसी ईमानदारी यूपीए सरकार में दिखाई नहीं देती। स्वयं को औरों से ईमानदार बताकर उसने वोट तो बटोर लिए, इस वोट से सरकार भी बना ली, पर आम आदमी को परेशान कर आखिर कितने समय तक टिक पाएगी। जनता को जवाब देने के लिए कभी न कभी तो उसे सामने आना ही होगा। तब शायद सरकार के पास इसका कोई जवाब न हो।
साल-दर-साल सरकार के हिस्से कुछ न कुछ ऐसा आता है, जिससे उसकी फजीहत होती है। कभी भ्रष्टाचार को लेकर, कभी चुनावों में धांधली कर, कभी सांसदों की खरीद-फरोख्त को लेकर, कभी महँगाई बढ़ाकर, कभी आम नागरिकों के विरोध में बयान देकर। आखिर आम नागरिक कब तक सहन करेंगे, ऐसी सरकार को?
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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@प्रजा को परेशान करने की सुपारी
जवाब देंहटाएंबस थोड़ा इंतजार कीजिए जल्दी ही ये सब पान लगाते हुए ठेले पर मिलेंगे।
इनकी सुपारी का प्रजा ही माकूल जवाब देगी।
मोहनी के असर बैगा (प्रजा) मेरन नई चलय।