डॉ. महेश परिमल
अब तक लोग पुणे को एजुकेशनल हब, बेंगलुरु को आई टी हब कहते नहीं अघाते थे, लेकिन अब हरियाणा को रेप हब कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। बलात्कार का मनोविज्ञान कहता है कि युवतियाँ जींस और टी शर्ट पहनतीं हैं, इसलिए बलात्कार की घटनाएं बढ़ रहीं हैं। यह दलील नारीवादियों को अस्वीकार्य है। सवाल यह उठता है कि देश में अगर ओम प्रकाश चौटाला जैसे नेता हों, जो यह कहते हों कि लड़कियों की शादी 15 वर्ष से पहले कर दी जानी चाहिए। तो ऐसे बयान देने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं होते। क्या भूतपूर्व मुख्यमंत्री को यह नहीं पता कि इस देश में बाल विवाह पर प्रतिबंध है। भड़काऊ बयान देने वालों पर सख्ती न होने के कारण ही इस तरह के बयान बार-बार सामने आ रहे हैं। फिर हरियाणा में दलित युवतियों के साथ ही अनाचार हो रहे हैं, तो फिर क्या वे इतनी सक्षम हैं कि जींस-टी शर्ट पहनें? एक ही महीने में 15 से अधिक अनाचार की खबरों से हरियाणा की कांग्रेस सरकार हड़बड़ा गई है। इसी सरकार को बचाने के लिए ही कांग्रेसाध्यक्ष सोनिया गांधी ने अनाचार का भोग बनी दलित महिलाओं से भेंट की। वहां जाकर उन्होंने यही बयान दिया कि अनाचार केवल हरियाणा में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में हो रहे हैं।
इस गंभीर मामले पर केवल बयानबाजी ही हो रही है। समस्या की गहराई में जाने की फुरसत किसी के पास नहीं है। कोई इसे राजनीति का रंग दे रहा है, तो कोई इसे मानवीय समस्या बता रहा है। वास्तव में यह समस्या असमान आर्थिक विकास के कारण सामने आई है। दिल्ली से लगे हरियाणा सरकार एक तरफ तो उद्योगपतियों और बिल्डरों को तमाम सुविधाएं दे रही है। इसलिए समाज में धनाढ्य वर्ग उभरकर सामने आ रहा है। इसके अलावा कई किसानों ने अपनी जमीन उद्योगपतियों को बेचकर काफी सम्पत्ति अर्जित की है। इस वर्ग के युवाओं में निरंकुशता देखी जा रही है। यह वर्ग अपने रसूख का बेजा इस्तेमाल कर अपराधों में शामिल हो रहे हैं। दूसरी तरफ ऐसे गरीब किसान और भूमिहीन मजदूर भी हैं, जो इस समय पूरी तरह से कंगाल हो गए हैं। इन्हीं दलितों और गरीबों की कन्याओं और महिलाओं को उच्च वर्ग के युवाओं द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है। इनके पास धन-सम्पत्ति क अलावा ऊंची राजनीतिक पहुंच होने के कारण दलितों की फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बारे में कहा जाता है कि वे दलितों पर हो रहे अत्याचारों पर रोक लगाने की दिशा में गंभीर नहीं हैं। उनके साथियों को भी यही लग रहा है कि वे कानून अपने हाथ में लेने वाली खाप पंचायतों को लेकर एक अलग ही विचार रखते हैं। इसलिए सोनिया गांधी ने अपने भाषण में खाप पंचायतों को जमकर लताड़ा था। हरियाणा में स्थिति यह है कि खाप पंचायतों के सहयोग के बिना कोई भी दल सत्ता में नहीं आ सकता। इसे शायद कांग्रेसाध्यक्ष नहीं समझ पा रही हैं।
हमारे देश में खाप पंचायतों की स्थापना का इतिहास काफी पुराना है। ये ग्राम पंचायतें अपने आप में एक स्वतंत्र सत्ता थी। आजादी के बाद जब गांधीजी ने ग्राम सुराज की कल्पना की, तो उसके केंद्र में यही ग्राम पंचायतें ही थीं। पंचायती पद्धति के इस स्वराज्य के बदले में हमारे यहां अंग्रेज पद्धति का संसदीय शासन आया। इस प्रणाली में सत्ता के सारे अधिकार केंद्र और राज्य में होती है। हरियाणा की खाप पंचायतें उसी प्राचीन परंपरा की निशानी हैं। पर आधुनिक काल में ये पहले से अधिक निरंकुश हो गई हैं। इनके फैसले आजकल विवादास्पद होने लगे हैं। इस समय हरियाणा में जिस तरह से अनाचार के मामलों में वृद्धि हो रही है, उस पर खाप पंचायतों के अपने विचार हैं। वे इस पर अंकुश लगाने के लिए सुझाव देती हैं। उनका कहना है कि आजकल युवतियां जींस-टी शर्ट जैसे कामोत्तेजक कपड़े पहनती हैं, इसलिए पुरुषों का ध्यान उन पर जाता है। उनके अनुसार युवतियों के हाथ में मोबाइल आने से प्रेम प्रकरणों में भी काफी वृद्धि हुई है। इसके अलावा फिल्में एवं धारावाहिकों में जिस तरह से खुले सेक्स की बात की जाती है, उसके कारण भी अनाचार की घटनाएं हो रही हैं। अनाचार पर अंकुश लगाना है, तो बेटियों की शादी 15 साल की उम्र में ही कर दी जाए। खाप पंचायतें सरकार से मांग कर रही हैं कि लड़कियों की शादी की उम्र 18 से कम कर 15 कर दी जाए। खाप पंचायतों की इस मांग को मानने में सरकार किसी भी तरह से तैयार नहीं है। लेकिन अब सरकार के इस दिशा में गंभीरता से सोचना ही होगा। समाजशास्त्री ही नहीं, अब चिकित्सक भी मानने लगे हैं कि आज की कन्याएँ समय से पहले ही परिपक्व होने लगी है। एक तो फास्ट फूड दूसरे आकाशीय माध्यम से होने वाली ज्ञान वर्षा यानी टीवी और कंप्यूटर से लोगों के ज्ञान में तेजी से वृद्धि हो रही है। लड़कियां छोटी उम्र में ही बहुत कुछ समझने लगती हैं। इसके अलावा विजातीय आकर्षक भी उनमें समय से पहले आ रहा है। टीवी-कंप्यूटर के माध्यम से वे अपने शरीर के अवयवों के बारे में अच्छी तरह से समझने लगी हैं। इसके अलावा हम उम्र से बातचीत में भी वे काफी कुछ समझने लगी हैं। इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि लड़की की उम्र कम है, इसलिए वह परिपक्व नहीं हुई है। छोटी उम्र में ही मासिक स्राव ही इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सबसे बड़ी बात यह है कि जब सरकार ही 16 वर्ष की कन्या से यौन संबंध बनाने के लिए हां कहती है, तो फिर उस उम्र में शादी के लिए इंकार क्यों कर रही है?
हाल ही में हरियाणा में 100 शक्तिशाली खाप पंचायतों की महापरिषद का आयोजन हुआ था। इसमें स्त्री भ्रूण हत्या के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया था। अब तक खाप पंचायतों की बुराई करने वाला मीडिया इस खबर से अनजान रहा। यदि जानकारी होगी भी तो इसे अधिक प्रचारित नहीं किया गया। सरकार पहले खाप पंचायतों की ताकत को समझे, उसकी बुराई करना छोड़ दे। उसकी ताकत का इस्तेमाल यदि सकारात्मक रूप से लिया जाए, तो संभव है हम सब इस खाप पंचायत को सम्मान की दृष्टि से देखें। खाप पंचायत द्वारा जो प्रस्ताव पारित किया गया है, उसका असर बहुत ही जल्द दिखाई भी देगा।
खाप पंचायतों का गलत स्वरूप ही समाज के सामने लाया गया है। हमें इसके फैसले पर गौर करना होगा। इसमें बुजुर्ग लोग ही मुखिया होते हैं। वे अपने अनुभव के आधार पर निर्णय लेते हैं। उनके नकारात्मक निर्णय तुरंत ही मीडिया में छा जाते हैं, लेकिन समाज को बदलने वाले, मान्यताओं को झुठलाने वाले, परंपरा से हटकर लिए गए फैसले मीडिया में नहीं आते। इसलिए अब समय है कि पहले हरियाणा को समझा जाए, उसकी बदलती तासीर को समझा जाए, फिर खाप पंचायतों को समझने की कोशिश की जाए। अनाचार से बड़ा अपराध है, अनाचार के लिए माहौल बनाना। ये माहौल इस समय हरियाणा में बन रहा है। अब सभी जगह बनेगा या बन रहा है। सरकार यह कोशिश करे कि ऐसा माहौल ही न बन पाए। नारी की अस्मिता को समझने की कोशिश की जाए। नारी विहीन समाज की कल्पना करके बताया जाए कि बिना नारी के समाज कैसा कुरूप होगा। इसके बाद कानून को खिलौना न बनने दिया जाए। आज रसूखदारों के लिए कानून खरीदना आम बात हो गई है। अनाचारियों को जो सजा होती है, उसे खूब प्रचारित किया जाए, तो लोगों में कानून का खौप हो। जब तक लोग कानून से डरना नहीं सीखेंगे, तब तक अनाचार ही क्यों अन्य बड़े अपराध भी होते ही रहेंगे।
डॉ. महेश परिमल
अब तक लोग पुणे को एजुकेशनल हब, बेंगलुरु को आई टी हब कहते नहीं अघाते थे, लेकिन अब हरियाणा को रेप हब कहा जाए, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। बलात्कार का मनोविज्ञान कहता है कि युवतियाँ जींस और टी शर्ट पहनतीं हैं, इसलिए बलात्कार की घटनाएं बढ़ रहीं हैं। यह दलील नारीवादियों को अस्वीकार्य है। सवाल यह उठता है कि देश में अगर ओम प्रकाश चौटाला जैसे नेता हों, जो यह कहते हों कि लड़कियों की शादी 15 वर्ष से पहले कर दी जानी चाहिए। तो ऐसे बयान देने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं होते। क्या भूतपूर्व मुख्यमंत्री को यह नहीं पता कि इस देश में बाल विवाह पर प्रतिबंध है। भड़काऊ बयान देने वालों पर सख्ती न होने के कारण ही इस तरह के बयान बार-बार सामने आ रहे हैं। फिर हरियाणा में दलित युवतियों के साथ ही अनाचार हो रहे हैं, तो फिर क्या वे इतनी सक्षम हैं कि जींस-टी शर्ट पहनें? एक ही महीने में 15 से अधिक अनाचार की खबरों से हरियाणा की कांग्रेस सरकार हड़बड़ा गई है। इसी सरकार को बचाने के लिए ही कांग्रेसाध्यक्ष सोनिया गांधी ने अनाचार का भोग बनी दलित महिलाओं से भेंट की। वहां जाकर उन्होंने यही बयान दिया कि अनाचार केवल हरियाणा में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में हो रहे हैं।
इस गंभीर मामले पर केवल बयानबाजी ही हो रही है। समस्या की गहराई में जाने की फुरसत किसी के पास नहीं है। कोई इसे राजनीति का रंग दे रहा है, तो कोई इसे मानवीय समस्या बता रहा है। वास्तव में यह समस्या असमान आर्थिक विकास के कारण सामने आई है। दिल्ली से लगे हरियाणा सरकार एक तरफ तो उद्योगपतियों और बिल्डरों को तमाम सुविधाएं दे रही है। इसलिए समाज में धनाढ्य वर्ग उभरकर सामने आ रहा है। इसके अलावा कई किसानों ने अपनी जमीन उद्योगपतियों को बेचकर काफी सम्पत्ति अर्जित की है। इस वर्ग के युवाओं में निरंकुशता देखी जा रही है। यह वर्ग अपने रसूख का बेजा इस्तेमाल कर अपराधों में शामिल हो रहे हैं। दूसरी तरफ ऐसे गरीब किसान और भूमिहीन मजदूर भी हैं, जो इस समय पूरी तरह से कंगाल हो गए हैं। इन्हीं दलितों और गरीबों की कन्याओं और महिलाओं को उच्च वर्ग के युवाओं द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है। इनके पास धन-सम्पत्ति क अलावा ऊंची राजनीतिक पहुंच होने के कारण दलितों की फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बारे में कहा जाता है कि वे दलितों पर हो रहे अत्याचारों पर रोक लगाने की दिशा में गंभीर नहीं हैं। उनके साथियों को भी यही लग रहा है कि वे कानून अपने हाथ में लेने वाली खाप पंचायतों को लेकर एक अलग ही विचार रखते हैं। इसलिए सोनिया गांधी ने अपने भाषण में खाप पंचायतों को जमकर लताड़ा था। हरियाणा में स्थिति यह है कि खाप पंचायतों के सहयोग के बिना कोई भी दल सत्ता में नहीं आ सकता। इसे शायद कांग्रेसाध्यक्ष नहीं समझ पा रही हैं।
हमारे देश में खाप पंचायतों की स्थापना का इतिहास काफी पुराना है। ये ग्राम पंचायतें अपने आप में एक स्वतंत्र सत्ता थी। आजादी के बाद जब गांधीजी ने ग्राम सुराज की कल्पना की, तो उसके केंद्र में यही ग्राम पंचायतें ही थीं। पंचायती पद्धति के इस स्वराज्य के बदले में हमारे यहां अंग्रेज पद्धति का संसदीय शासन आया। इस प्रणाली में सत्ता के सारे अधिकार केंद्र और राज्य में होती है। हरियाणा की खाप पंचायतें उसी प्राचीन परंपरा की निशानी हैं। पर आधुनिक काल में ये पहले से अधिक निरंकुश हो गई हैं। इनके फैसले आजकल विवादास्पद होने लगे हैं। इस समय हरियाणा में जिस तरह से अनाचार के मामलों में वृद्धि हो रही है, उस पर खाप पंचायतों के अपने विचार हैं। वे इस पर अंकुश लगाने के लिए सुझाव देती हैं। उनका कहना है कि आजकल युवतियां जींस-टी शर्ट जैसे कामोत्तेजक कपड़े पहनती हैं, इसलिए पुरुषों का ध्यान उन पर जाता है। उनके अनुसार युवतियों के हाथ में मोबाइल आने से प्रेम प्रकरणों में भी काफी वृद्धि हुई है। इसके अलावा फिल्में एवं धारावाहिकों में जिस तरह से खुले सेक्स की बात की जाती है, उसके कारण भी अनाचार की घटनाएं हो रही हैं। अनाचार पर अंकुश लगाना है, तो बेटियों की शादी 15 साल की उम्र में ही कर दी जाए। खाप पंचायतें सरकार से मांग कर रही हैं कि लड़कियों की शादी की उम्र 18 से कम कर 15 कर दी जाए। खाप पंचायतों की इस मांग को मानने में सरकार किसी भी तरह से तैयार नहीं है। लेकिन अब सरकार के इस दिशा में गंभीरता से सोचना ही होगा। समाजशास्त्री ही नहीं, अब चिकित्सक भी मानने लगे हैं कि आज की कन्याएँ समय से पहले ही परिपक्व होने लगी है। एक तो फास्ट फूड दूसरे आकाशीय माध्यम से होने वाली ज्ञान वर्षा यानी टीवी और कंप्यूटर से लोगों के ज्ञान में तेजी से वृद्धि हो रही है। लड़कियां छोटी उम्र में ही बहुत कुछ समझने लगती हैं। इसके अलावा विजातीय आकर्षक भी उनमें समय से पहले आ रहा है। टीवी-कंप्यूटर के माध्यम से वे अपने शरीर के अवयवों के बारे में अच्छी तरह से समझने लगी हैं। इसके अलावा हम उम्र से बातचीत में भी वे काफी कुछ समझने लगी हैं। इसलिए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि लड़की की उम्र कम है, इसलिए वह परिपक्व नहीं हुई है। छोटी उम्र में ही मासिक स्राव ही इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सबसे बड़ी बात यह है कि जब सरकार ही 16 वर्ष की कन्या से यौन संबंध बनाने के लिए हां कहती है, तो फिर उस उम्र में शादी के लिए इंकार क्यों कर रही है?
हाल ही में हरियाणा में 100 शक्तिशाली खाप पंचायतों की महापरिषद का आयोजन हुआ था। इसमें स्त्री भ्रूण हत्या के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया था। अब तक खाप पंचायतों की बुराई करने वाला मीडिया इस खबर से अनजान रहा। यदि जानकारी होगी भी तो इसे अधिक प्रचारित नहीं किया गया। सरकार पहले खाप पंचायतों की ताकत को समझे, उसकी बुराई करना छोड़ दे। उसकी ताकत का इस्तेमाल यदि सकारात्मक रूप से लिया जाए, तो संभव है हम सब इस खाप पंचायत को सम्मान की दृष्टि से देखें। खाप पंचायत द्वारा जो प्रस्ताव पारित किया गया है, उसका असर बहुत ही जल्द दिखाई भी देगा।
खाप पंचायतों का गलत स्वरूप ही समाज के सामने लाया गया है। हमें इसके फैसले पर गौर करना होगा। इसमें बुजुर्ग लोग ही मुखिया होते हैं। वे अपने अनुभव के आधार पर निर्णय लेते हैं। उनके नकारात्मक निर्णय तुरंत ही मीडिया में छा जाते हैं, लेकिन समाज को बदलने वाले, मान्यताओं को झुठलाने वाले, परंपरा से हटकर लिए गए फैसले मीडिया में नहीं आते। इसलिए अब समय है कि पहले हरियाणा को समझा जाए, उसकी बदलती तासीर को समझा जाए, फिर खाप पंचायतों को समझने की कोशिश की जाए। अनाचार से बड़ा अपराध है, अनाचार के लिए माहौल बनाना। ये माहौल इस समय हरियाणा में बन रहा है। अब सभी जगह बनेगा या बन रहा है। सरकार यह कोशिश करे कि ऐसा माहौल ही न बन पाए। नारी की अस्मिता को समझने की कोशिश की जाए। नारी विहीन समाज की कल्पना करके बताया जाए कि बिना नारी के समाज कैसा कुरूप होगा। इसके बाद कानून को खिलौना न बनने दिया जाए। आज रसूखदारों के लिए कानून खरीदना आम बात हो गई है। अनाचारियों को जो सजा होती है, उसे खूब प्रचारित किया जाए, तो लोगों में कानून का खौप हो। जब तक लोग कानून से डरना नहीं सीखेंगे, तब तक अनाचार ही क्यों अन्य बड़े अपराध भी होते ही रहेंगे।
डॉ. महेश परिमल