मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

इस बार मिठाई सबसे ज्यादा जेब काटेगी

डॉ. महेश परिमल
त्योहार का मौसम शुरू हो गया है। लोगों ने खरीदारी करनी शुरू कर दी है। लेकिन महंगाई का असर हर तरफ देखा जा रहा है। सरकार इस मोर्चे पर बुरी तरह से विफल हो चुकी है। वह न तो महंगाई पर अंकुश रख पाई है और न ही घोटालों पर। अब तो यह हालत है कि राबर्ट वाड्रा के मामले में कांग्रेस के सभी नेता दामाद को बचाने में लग गए। किसी ने यह मांग नहीं की कि यदि ऐसा है,तो इसकी जांच होनी चाहिए। यह मामला यदि किसी आम आदमी का होता, तो उस पर आय से अधिक सम्पत्ति रखने का मामला तो बन ही जाता। संभव है जांच के आदेश भी हो जाते। पर आम आदमी की क्या बिसात, जो इस महंगाई से बच पाए। सरकारी आंकड़ों पर जरा भी विश्वास नहीं किया जा सकता। जो बाजार जाते ही नहीं, उन्हें क्या पता कि कौन सी जरुरत की चीज कितनी महंगी हो गई है। आज बाजार में आवश्यक वस्तुओं की कीमत आसमान छू रही हैं।
दिवाली पर आपकी जेब सबसे ज्यादा मिठाई काटेगी, क्योंकि चीनी पिछले साल के मुकाबले 20 प्रतिशती महंगी है। चीनी विRेता कंपनी एसएनबी एंटरप्राइजेज के मालिक सुधीर भालोटिया ने बताया कि दिल्ली में त्योहारी मांग के कारण चार-पांच दिन में ही चीनी 100 रुपए चढ़कर 3,800 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गई है। दिवाली तक इसमें 50 रुपए प्रति क्विंटल की तेजी और आ सकती है।
मेवे भी डॉलर की मजबूती से उछल रहे हैं।  मेवों का आयात महंगा हो रहा है। इसलिए बादाम 40 रुपए महंगा होकर 470 से 550 रुपए और काजू भी इतना ही उछलकर 560 से 800 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा है। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई 10 माह के उच्चतम स्तर पर पहुंचते हुए 7.81 प्रतिशत हो गई है। इस ऊंची महंगाई दर का कारण सितम्बर माह में गेहूं, मोटा अनाज, दलहन, तिलहन, शक्कर, सब्जी और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी होना बताया गया है। 24-27 सितम्बर के बीच ‘ग्लोबल रिसर्च इप्सोस’ द्वारा ‘मूड ऑफ द नेशन’ सर्वे किया गया था। उसके मुताबिक 78 प्रतिशत से अधिक लोगों ने यह माना कि इस बार त्योहारों पर बढ़ती महंगाई की वजह से वे बहुत संभलकर खर्च करेंगे। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने वर्ष 2012-13 की मैRो इकोनॉमिक एंड मानिटरी डेवलपमेंट रिपोर्ट में कहा है कि भारत में अन्य विकासशील देशों की तुलना में खाद्य महंगाई दर दोगुनी है और अर्थव्यवस्था में अभी महंगाई बढ़ने की प्रवृत्ति मौजूद है।
वस्तुत: इस समय देश में महंगाई आंतरिक कारणों के साथ-साथ वैश्विक कारणों से भी प्रभावित हो रही है। दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थ के बढ़ते हुए दाम भारत में भी पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ा रहे हैं। दुनिया में खाद्यान्न उत्पादन में भारी कमी देश में भी खाद्य महंगाई को बढ़ाने का एक प्रमुख कारण है। अमेरिका में भयावह सूखे के कारण खाद्यान्न आयातक देशों के द्वारा अनाज की बड़े पैमाने पर अग्रिम खरीद की जा रही है। अमेरिका के 48 राज्यों के 60 प्रतिशत इलाकों में सूखा पड़ चुका है। वर्ष 1956 के बाद का यह अमेरिका का सबसे बड़ा सूखा है। चीन भी सूखे को लेकर चिंतित है क्योंकि चार वर्ष पहले उसे जिस खाद्यान्न आयात के कारण खाद्य महंगाई का सामना करना पड़ा था, उसी तरह उसे अब ज्यादा खाद्यान्न का आयात करना पड़ रहा है। रूस में भी खाद्यान्न उत्पादन की स्थिति ठीक नहीं है।
ऑस्ट्रेलिया और यूRेन भी कम बारिश के कारण खाद्यान्न संकट का सामना कर रहे हैं। हालांकि खाद्यान्न की बढ़ती कीमत में अमेरिका और अन्य विकसित देशों के बायो-फ्यूल का भी हाथ है। स्थिति यह है कि दुनिया में खाद्यान्न की महंगाई ठीक उसी तरह नजर आ रही है, जैसी 2008 के वैश्विक खाद्यान्न संकट के समय थी। वस्तुत: हमारे देश में पिछले दो-तीन वषरे में महंगाई धीरे-धीरे बढ़ती रही है। अब अर्थव्यवस्था की यह स्थिति है कि महंगाई दर ऊंची है, ब्याज दर भी ऊंची है; साथ ही विकास दर में भी गिरावट है। ऐसे में अब केवल आरबीआई के मौद्रिक कदमों से महंगाई का मामला सुलझने वाला नहीं है। महंगाई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। चूंकि अब देश में आर्थिक सुधारों का दूसरा दौर शुरू हो गया है और इसके कारण विभिन्न सब्सिडियां कम होने से लोगों को महंगाई का अहसास और अधिक होगा। ऐसे में जहां सरकार के द्वारा महंगाई नियंत्रण के सारे प्रयास जरूरी होंगे, वहीं लोगों को भी महंगाई से निबटने के लिए व्यक्तिगत प्रयास करने होंगे। हम खाद्यान्न की बढ़ती हुई महंगाई की चुनौती का मुकाबला करने के लिए दक्षिण कोरिया से सबक ले सकते हैं।  मौजूदा वर्ष में कुछ महीने पहले दक्षिण कोरिया भी कमोबेश महंगाई की भारत जैसी ही समस्या का सामना कर रहा था। वह बढ़ते मूल्यों के साथ ऊंची ब्याज दर और मंदी से जूझ रहा था। इस स्थिति से निपटने और महंगाई पर नियंत्रण के ठोस उपायों को बताने हेतु दक्षिण कोरिया के नॉलेज इकोनामी मंत्रालय ने एक कार्यबल गठित किया था। इस कार्यबल ने पाया कि कुछ बड़े कारोबारियों ने गैस स्टेशनों के साथ सौदे करके ईधन की खुदरा कीमतों को वास्तविक कीमत से कहीं ऊपर कर दिया था। इसी तरह कई और कारोबारियों ने जरूरत की वस्तुओं की आपूर्ति में गतिरोध डालकर उनकी कीमतें बढ़ा दी थी।
कार्यबल की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने कड़े नियमों और कठोर कार्रवाइयों से आपूर्ति क्षेत्र के गतिरोधों को तत्काल दूर कर दिया। परिणाम यह हुआ कि दक्षिण कोरिया में अब खाद्यान्न कीमतों पर नियंत्रण दिखाई दे रहा है। इतना ही नहीं, दक्षिण कोरिया में सितम्बर 2012 में महंगाई दर दो प्रतिशत के इर्द-गिर्द ही रही है। निश्चित रूप से इस समय भारत में खाद्यान्न के पर्याप्त उत्पादन के बाद भी महंगाई की जो स्थिति है उसके लिए काफी हद तक आपूर्ति क्षेत्र की समस्याएं जिम्मेदार हैं। खाद्यान्न की थोक व फुटकर कीमतों में अंतर पहले की तुलना में बढ़ा है, स्टॉकिस्ट व सटोरिए बाजार पर हावी हैं। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि खाद्यान्न उत्पादक और उपभोक्ताओं के बीच मध्यस्थ भारी मुनाफा लेते हुए मूल्य वृद्धि का कारण बने हुए हैं। सार्वजनिक वितरण पण्राली (पीडीएस) कारगर भूमिका नहीं निभा पा रही है। ऐसे में सरकार को खाद्यान्न की कीमतों को नियंत्रित करने, मध्यस्थों के मुनाफे को कम करने तथा आपूर्ति बढ़ाने के परिप्रेक्ष्य में दक्षिण कोरिया की तरह कड़े कदम उठाने चाहिए। सरकार को खुले बाजार में खाद्यान्न की सप्लाई बढ़ा देनी चाहिए। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आवंटित किए जाने वाले अनाज का वितरण लाभार्थियों तक सुनिश्चित किया जाना चाहिए। अब दाल, खाद्य तेल और चीनी की भंडारण सीमा तय की जानी चाहिए। चूंकि स्टॉक लिमिट का अधिकार राज्य सरकारों के पास है, इसलिए राज्यों को महंगाई थामने में केंद्र की मदद करनी चाहिए।
चूंकि कृषि जिंसों के वायदा बाजार में सटोरिए पूरी तरह सRिय हैं, इसलिए कृषि जिंसों के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध जरूरी है। इस समय उड़द, अरहर व चावल के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध है, लेकिन गेहूं, चीनी, सोया तेल, सरसों बीज, सोयाबीन आदि कृषि जिंसों का वायदा खुला हुआ है। अत: इन आवश्यक कृषि जिंसों के वायदा कारोबार पर रोक लगाई जानी चाहिए। कृषि जिंसों की कीमतें बढ़ने से संबंधित अधिकांश अध्ययन रिपोर्ट्स में यह निष्कर्ष उभरकर आ रहा है कि भारत में जबसे कृषि जिंसों का वायदा व्यापार शुरू किया गया है, तभी से खाद्यान्नों की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
यह उल्लेखनीय है कि पेट्रोलियम पदार्थ की कीमतों से भारत ही नहीं अमेरिका व दुनिया के दूसरे विकसित देश भी प्रभावित हो रहे हैं। इन देशों के लोग पेट्रोल, डीजल व गैस की महंगाई से बचने के लिए साइकिलों का उपयोग बढ़ा रहे हैं। न्यूयॉर्क शहर में एक योजना बन रही है, जिसके तहत शहर में 15 हजार साइकिलें उपलब्ध कराई जाएंगी। जिन्हें कोई भी किराए पर लेकर इस्तेमाल कर सकेगा। यूरोप और चीन में भी पेट्रोल और डीजल की मूल्यवृद्धि से बचाव के लिए लोग खूब साइकिलिंग कर रहे हैं। हम भारत में भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों से राहत हेतु कम दूरी के लिए साइकिल के उपयोग को प्रोत्साहन दे सकते हैं। अधिक दूरी के लिए सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इससे लोगों को परिवहन संबंधी खर्च में कमी का लाभ मिल सकेगा। गौरतलब है कि दुनिया के अधिकांश विकसित और विकासशील देशों में सार्वजनिक परिवहन पण्राली से लोग बड़ी संख्या में लाभान्वित हो रहे हैं और अर्थव्यवस्था को भी लाभ हो रहा है। उदाहरण के लिए जापान की राजधानी टोकियो में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था प्रतिदिन 80 लाख लोगों को लाभान्वित करती है। इसी तरह दुनिया के कई चमकीले शहरों जैसे लंदन, सिंगापुर, सिडनी आदि में सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था इतनी अच्छी हो चुकी है कि लोग कार्यालय आने-जाने में सार्वजनिक परिवहन का ही उपयोग करते हैं। हमें देश के सभी शहरों में कारगर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की आवश्यकता है। देश में करीब पांच हजार शहरों में कारगर सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था लोगों के आवागमन खर्च को कम कर सकती है। नि:संदेह ऐसे कदमों से देश में करोड़ों लोगों को मूल्यवृद्धि की पीड़ा से राहत दिलाई जा सकेगी।
डॉ. महेश परिमल

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