डॉ. महेश परिमल
प्रकाश प्रदूषण, भला यह भी कोई बात हुई। अब तक तो हमने ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण आदि सुना था, अब यह प्रकाश प्रदूषण क्या बला है? आज जिस तेजी से हमारे बीच प्रकाश प्रदूषण फैल रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। पर हमारा ध्यान इस दिशा में कभी गया ही नहीं। जिस तरह से पृथ्वी पर जीवसृष्टि और वनस्पति के लिए प्रकाश का महत्व है, उतना ही महत्व अंधेरे का है। पर अंधेरा है कहाँ? सोडियम, मर्करी आदि जैसी तेज लाइटों के कारण आज वन्य जीवों का जीना दूभर हो गया है। जहाँ जाओ, वहाँ तेज रोशनी का उजाला, आखिर कई काम ऐसे होते हैं, जिसे अंधेरे में ही होने चाहिए। पर ऐसा होता नहीं है। इस प्रकाश प्रदूषण से आज पक्षी जगत, पशु जगत बुरी तरह से हलाकान है। वे सब चीख-चीखकर कह रहे हैं हमें हमारे अंधेर वापस दिला दो, हम जीना चाहते हैं। हमें हमारी रातें वापव कर दो, नहीं चाहिए हमें ये आँखें चौंधियाने वाली रोशनी। हम अंधेरे में ही भले।
पिछले साल जुलाई में कनाडा के एडमोंटन में सोसायटी फॉर कंजर्वेशन बायोलॉजी की एक बैठक प्रकाश प्रदूषण को लेकर हुई। इस बैठक में कई देशों के प्रतिनिधि शामिल थे। सभी ने एक राय से यह कहा कि अब समय आ गया है कि वन्यजीवों को उनकी रातें वापस की जाए। आजकल हो यह रहा है कि अमावस्या की काली रातें भी अब प्रकाशमय होने लगी हैं। शहरों, राजमार्गो, पर्यटन स्थलों, चौराहे आदि अब जगमगाने लगे हैं। जंगलों से होकर गुजरने वाली सड़कें भी भले सुनसान रहे, पर रोशनी से जगमगाती अवश्य हैं। इस दौरान इस हिस्सों में रहने वाले जीव-जंतु, वनस्पति आदि का जीवनचक्र प्रभावित होने लगा है। अब तो शहरों में भी तारों भरी अंधेरी रात दिखने को नहीं मिलती। हम तेज रोशनी के इतने अधिक आदी हो चुके हैं कि अंधेरी रातें हमें काट खाने को दौड़ती हैं। ऐसे में अमेरिका के उटार के ‘ओवाकोमब्रीज’को ‘डार्कस्काय पार्क’ नाम दिया गया है। यह नाम इंटरनेशनल डार्कस्काय ऐसोसिएशन ने दिया है। डार्कस्काय पार्क यानी अंधेरे आकाश का बगीचा। वहाँ अभी भी तारों भरी अंधेरी रात देखने को मिलती है। निशाचर प्राणियों के लिए यह एक वरदान है कि उनके हिस्से अंधेरी रातें हैं। इंसान अपना अधिकांश काम दिन में करता है, इसलिए उसे रोशनी पंसद है। पर वनस्पतियों और निशाचरों के लिए अंधेरे का काफी महत्व है। रात में उजाला होने से कई लाभ हो सकते हैं, पर हानियाँ भी कई हैं। इसे ही कहते हैं प्रकाश प्रदूषण। इससे इंसान तो ठीक, पर निशाचर अपनी कई क्रियाएँ जैसे प्रजनन, स्थानांतरण, बच्चों को खिलाना जैसे काम नहीं कर पा रहे हैं। तेज रोशनी हमारे भीतर इस तरह से बस गई है कि ये रोशनी दूसरे अन्य प्राणियों के लिए कितना विध्वंसक असर कर रही है, इसका अंदाजा शायद हमें नहीं है। संसार में कई जीव ऐसे हैं, जो अपने कई काम अंधेरे में ही करते हैं। आपको मालूम है कछुए की तरह चलने वाला एक दरियाई प्राणी है। उसके अंडों से निकलने वाले ताजा बच्चे चाँदनी में समुद्र तट पर जाने के बजाए तेज रोशनी वाले रिसोर्ट की तरफ आकर्षित होने लगे हैं। यही हाल पक्षियों का है, वे भी इस रोशनी से आकर्षित होते हैं, लेकिन बिजली के तारों में उलझकर अपने प्राण गँवाते हैं।
जंगलों का लगातार होता नाश, बढ़ता शहरीकरण, दूर-दूर आबादी ही आबादी, ऐसे में निशाचर प्राणियों की वंशवृद्धि, व्यवहार कैसे संयमित हो पाएगा? प्रकाश प्रदूषण ने उनके जीवन मंे खलल पैदा कर दिया है। कनाडा में हुई उक्त बैठक में यह तय किया गया कि अब जब भी रोशनी स्थापित करने की बात हो, तो वन्य जीवों की तरफ भी ध्यान दिया जाए, ताकि उनका जीवन सुचारू रूप से चलता रहे। इस बैठक की अध्यक्षता करने वाले ट्रेविस बोंगकोर ने आवेशपूर्ण शब्दों में कहा कि तेज रोशनी के कारण कई पक्षी अपना रास्ता बदलने लगे हैं। सोडियम लैप की पीली रोशनी में कई चमगादड़ अपना रास्ता भटक गए, बाद में पता चला कि इसमें से अधिकांश गर्भवती थीं। बोंगकोर इंग्लैंड यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ केलिफोर्निया में प्रोफेसर हैं। कई प्रजाति के पक्षी रात में भी प्रवास करते हैं, जगमगाते टॉवरों, इमारतों के कारण वे भ्रमित हो जाते हैं। उन्हें भ्रांति हो जाती है, वे उस जगमगाते टॉवरों, इमारतों के चारों ओर चक्कर लगाने लगते हैं। कई बार इससे टकराकर अपने प्राण गवाँ देते हैं। एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि अमेरिका के लोरिडा स्थित एक टीवी टॉवर के पिछले 25 वर्षो के सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि 189 जाति के 42 हजार से अधिक पक्षी मौत के घाट उतर गए।
अमेरिका के न्यूयार्कसिटी की फ्रोर्धान यूनिवर्सिटी की सूचना के अनुसार अब शहरी पर्यावरण पक्षियों के रास्तों की जानकारी लेने के लिए माइक्रोफोन और राडार का उपयोग किया जाता है। शोध से यह बात सामने आई कि अधिकांश पक्षी अपना रास्ता अधिक शांत और गहरी काली रात में ही तय करते हैं। लेकिन जगमगाती रोशनी के कारण ये भटकने लगे हैं, इन्हें दिशा ज्ञान नहीं रहता, तब ये विचित्र आवाजें करने लगते हैं, जिसका आशय यही होता है कि ये तेज रोशनी के कारण ये भटक गए हैं। शोध में यह बात भी सामने आई है कि एलआईडी लाइट को छोड़कर शेष सभी लाइटें वन्य प्राणियों के लिए हानिकारक होती हैं। हमने भी देखा होगा कि ऊँची-ऊँची इमारतों के आसपास पक्षियों के शव बिखरे पड़े होते हैं। जहाँ भी तेज लाइटें होती है, ऐसे स्थानों पर इस तरह के हादसे आम हैं। समुद्र किनारे आने वाले पक्षियों की स्थिति पर अध्ययन होने लगा है। कई रोशनी कुछ प्राणियों के लिए लाभदायक होती हैं, तो कुछ के लिए हानिकारक। इसलिए यदि रात की रोशनी को कुछ हल्का कर दिया जाए, तो निशाचरों के लिए आसानी होगी।
यह तो तय है कि तेज रोशनी इंसानों को भी विचलित कर देती है। फिर पशु-पक्षियों की क्या बिसात? लेकिन इसके बिना आज मानव जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इंसानों के लिए आजकल रात-दिन समान होने लगे हैं। कई लोग रात ड्यूटी ही पसंद करते हैं। बरसों से उन्हें दिन ड़्यूटी मिली ही नहीं, ऐसे मंे उनका जीवन चक्र गड़बड़ा जाता है। यही हाल पशु-पक्षियों का है, वन्य प्राणियों की हालत तो और भी खराब है। वन रहे नहीं, आबादी का दबाव चारों ओर से बढ़ रहा है। ऐसे में कहाँ जाएँ? अभयारण्यों में वह माहौल नहीं मिल पाता, वहाँ भी रोशनी का साम्राज्य है। इसलिए अब चारों तरफ से यही आवाजें आने लगीं हैं कि हमें हमारी रातें वापस कर दो, हमें अंधेरा चाहिए, हम जीना चाहते हैं, हमें इस तेज रोशनी से मुक्ति दो!
डॉ. महेश परिमल
प्रकाश प्रदूषण, भला यह भी कोई बात हुई। अब तक तो हमने ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण आदि सुना था, अब यह प्रकाश प्रदूषण क्या बला है? आज जिस तेजी से हमारे बीच प्रकाश प्रदूषण फैल रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। पर हमारा ध्यान इस दिशा में कभी गया ही नहीं। जिस तरह से पृथ्वी पर जीवसृष्टि और वनस्पति के लिए प्रकाश का महत्व है, उतना ही महत्व अंधेरे का है। पर अंधेरा है कहाँ? सोडियम, मर्करी आदि जैसी तेज लाइटों के कारण आज वन्य जीवों का जीना दूभर हो गया है। जहाँ जाओ, वहाँ तेज रोशनी का उजाला, आखिर कई काम ऐसे होते हैं, जिसे अंधेरे में ही होने चाहिए। पर ऐसा होता नहीं है। इस प्रकाश प्रदूषण से आज पक्षी जगत, पशु जगत बुरी तरह से हलाकान है। वे सब चीख-चीखकर कह रहे हैं हमें हमारे अंधेर वापस दिला दो, हम जीना चाहते हैं। हमें हमारी रातें वापव कर दो, नहीं चाहिए हमें ये आँखें चौंधियाने वाली रोशनी। हम अंधेरे में ही भले।
पिछले साल जुलाई में कनाडा के एडमोंटन में सोसायटी फॉर कंजर्वेशन बायोलॉजी की एक बैठक प्रकाश प्रदूषण को लेकर हुई। इस बैठक में कई देशों के प्रतिनिधि शामिल थे। सभी ने एक राय से यह कहा कि अब समय आ गया है कि वन्यजीवों को उनकी रातें वापस की जाए। आजकल हो यह रहा है कि अमावस्या की काली रातें भी अब प्रकाशमय होने लगी हैं। शहरों, राजमार्गो, पर्यटन स्थलों, चौराहे आदि अब जगमगाने लगे हैं। जंगलों से होकर गुजरने वाली सड़कें भी भले सुनसान रहे, पर रोशनी से जगमगाती अवश्य हैं। इस दौरान इस हिस्सों में रहने वाले जीव-जंतु, वनस्पति आदि का जीवनचक्र प्रभावित होने लगा है। अब तो शहरों में भी तारों भरी अंधेरी रात दिखने को नहीं मिलती। हम तेज रोशनी के इतने अधिक आदी हो चुके हैं कि अंधेरी रातें हमें काट खाने को दौड़ती हैं। ऐसे में अमेरिका के उटार के ‘ओवाकोमब्रीज’को ‘डार्कस्काय पार्क’ नाम दिया गया है। यह नाम इंटरनेशनल डार्कस्काय ऐसोसिएशन ने दिया है। डार्कस्काय पार्क यानी अंधेरे आकाश का बगीचा। वहाँ अभी भी तारों भरी अंधेरी रात देखने को मिलती है। निशाचर प्राणियों के लिए यह एक वरदान है कि उनके हिस्से अंधेरी रातें हैं। इंसान अपना अधिकांश काम दिन में करता है, इसलिए उसे रोशनी पंसद है। पर वनस्पतियों और निशाचरों के लिए अंधेरे का काफी महत्व है। रात में उजाला होने से कई लाभ हो सकते हैं, पर हानियाँ भी कई हैं। इसे ही कहते हैं प्रकाश प्रदूषण। इससे इंसान तो ठीक, पर निशाचर अपनी कई क्रियाएँ जैसे प्रजनन, स्थानांतरण, बच्चों को खिलाना जैसे काम नहीं कर पा रहे हैं। तेज रोशनी हमारे भीतर इस तरह से बस गई है कि ये रोशनी दूसरे अन्य प्राणियों के लिए कितना विध्वंसक असर कर रही है, इसका अंदाजा शायद हमें नहीं है। संसार में कई जीव ऐसे हैं, जो अपने कई काम अंधेरे में ही करते हैं। आपको मालूम है कछुए की तरह चलने वाला एक दरियाई प्राणी है। उसके अंडों से निकलने वाले ताजा बच्चे चाँदनी में समुद्र तट पर जाने के बजाए तेज रोशनी वाले रिसोर्ट की तरफ आकर्षित होने लगे हैं। यही हाल पक्षियों का है, वे भी इस रोशनी से आकर्षित होते हैं, लेकिन बिजली के तारों में उलझकर अपने प्राण गँवाते हैं।
जंगलों का लगातार होता नाश, बढ़ता शहरीकरण, दूर-दूर आबादी ही आबादी, ऐसे में निशाचर प्राणियों की वंशवृद्धि, व्यवहार कैसे संयमित हो पाएगा? प्रकाश प्रदूषण ने उनके जीवन मंे खलल पैदा कर दिया है। कनाडा में हुई उक्त बैठक में यह तय किया गया कि अब जब भी रोशनी स्थापित करने की बात हो, तो वन्य जीवों की तरफ भी ध्यान दिया जाए, ताकि उनका जीवन सुचारू रूप से चलता रहे। इस बैठक की अध्यक्षता करने वाले ट्रेविस बोंगकोर ने आवेशपूर्ण शब्दों में कहा कि तेज रोशनी के कारण कई पक्षी अपना रास्ता बदलने लगे हैं। सोडियम लैप की पीली रोशनी में कई चमगादड़ अपना रास्ता भटक गए, बाद में पता चला कि इसमें से अधिकांश गर्भवती थीं। बोंगकोर इंग्लैंड यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ केलिफोर्निया में प्रोफेसर हैं। कई प्रजाति के पक्षी रात में भी प्रवास करते हैं, जगमगाते टॉवरों, इमारतों के कारण वे भ्रमित हो जाते हैं। उन्हें भ्रांति हो जाती है, वे उस जगमगाते टॉवरों, इमारतों के चारों ओर चक्कर लगाने लगते हैं। कई बार इससे टकराकर अपने प्राण गवाँ देते हैं। एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि अमेरिका के लोरिडा स्थित एक टीवी टॉवर के पिछले 25 वर्षो के सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि 189 जाति के 42 हजार से अधिक पक्षी मौत के घाट उतर गए।
अमेरिका के न्यूयार्कसिटी की फ्रोर्धान यूनिवर्सिटी की सूचना के अनुसार अब शहरी पर्यावरण पक्षियों के रास्तों की जानकारी लेने के लिए माइक्रोफोन और राडार का उपयोग किया जाता है। शोध से यह बात सामने आई कि अधिकांश पक्षी अपना रास्ता अधिक शांत और गहरी काली रात में ही तय करते हैं। लेकिन जगमगाती रोशनी के कारण ये भटकने लगे हैं, इन्हें दिशा ज्ञान नहीं रहता, तब ये विचित्र आवाजें करने लगते हैं, जिसका आशय यही होता है कि ये तेज रोशनी के कारण ये भटक गए हैं। शोध में यह बात भी सामने आई है कि एलआईडी लाइट को छोड़कर शेष सभी लाइटें वन्य प्राणियों के लिए हानिकारक होती हैं। हमने भी देखा होगा कि ऊँची-ऊँची इमारतों के आसपास पक्षियों के शव बिखरे पड़े होते हैं। जहाँ भी तेज लाइटें होती है, ऐसे स्थानों पर इस तरह के हादसे आम हैं। समुद्र किनारे आने वाले पक्षियों की स्थिति पर अध्ययन होने लगा है। कई रोशनी कुछ प्राणियों के लिए लाभदायक होती हैं, तो कुछ के लिए हानिकारक। इसलिए यदि रात की रोशनी को कुछ हल्का कर दिया जाए, तो निशाचरों के लिए आसानी होगी।
यह तो तय है कि तेज रोशनी इंसानों को भी विचलित कर देती है। फिर पशु-पक्षियों की क्या बिसात? लेकिन इसके बिना आज मानव जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इंसानों के लिए आजकल रात-दिन समान होने लगे हैं। कई लोग रात ड्यूटी ही पसंद करते हैं। बरसों से उन्हें दिन ड़्यूटी मिली ही नहीं, ऐसे मंे उनका जीवन चक्र गड़बड़ा जाता है। यही हाल पशु-पक्षियों का है, वन्य प्राणियों की हालत तो और भी खराब है। वन रहे नहीं, आबादी का दबाव चारों ओर से बढ़ रहा है। ऐसे में कहाँ जाएँ? अभयारण्यों में वह माहौल नहीं मिल पाता, वहाँ भी रोशनी का साम्राज्य है। इसलिए अब चारों तरफ से यही आवाजें आने लगीं हैं कि हमें हमारी रातें वापस कर दो, हमें अंधेरा चाहिए, हम जीना चाहते हैं, हमें इस तेज रोशनी से मुक्ति दो!
डॉ. महेश परिमल