डॉ. महेश परिमल
पश्चिम के देशों में आज मैनेजमेंट की पुस्तकों और वेबसाइट्स पर भगवद् गीता के श्लोकों को समावेश करने का एक नया ही फैशन चल पड़ा है। अमेरिका की सभी उच्च बिजनेस स्कूलों के मैनेजर अपनी नेतृत्व क्षमता के विकास के लिए और काम के दबाव के बीच अपनी आत्मिक शक्ति के संचरण के लिए गीता का सहारा ले रहे हैं। इसके लिए कई लोग क्लासेस भी चला रहे हैं। कई भारतीय विद्वान अब इसी काम में लग गए हैं। भारत के सी.के. प्रह्लाद , रामचरण और विजय गोविंदराज जैसे बिजनेस गुरु आज अनेक मल्टीनेशनल कंपनियों के कंसल्टेंट हैं। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल , केलोग्स स्कूल ऑफ बिजनेस, मिशीगन यूनिवर्सिटी की रोस स्कूल ऑफ बिजनेस आदि के भारतीय मूल के प्रोफेसरों की काफी संख्या में नियुक्ैित की गई है। ये सभी भगवद् गीता के तत्वज्ञान के आधार पर शिक्षा दे रहे हैँ। यह सच्चई ही साबित कर रही है कि गीता का तत्वज्ञान आज भी प्रासंगिक है।
व्यापार और वाणिज्य विषय में दुनिया के ख्यातिप्राप्त मेगजीन के लेखक पेटे एंगार्डियो ने विस्तार ने बताया कि विश्व की ख्यातनाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीए आखिर क्यों भगवद् गीता के प्रवचनों को सुनने के लिए मोटी रकम चुकाते हैं। कितने ही एक्जिक्यूटिव तो भगवद् गीता का ट्यूशन भी ले रहे हैं। ये सभी ईसाई धर्म के बुद्धिजीवी हैं, पर भगवद् गीता का पाठ कर रहे हैं। ताकि उसमें निहित अर्थो को समझ सकें। अब उन्हें पता चल गया है कि इसे ही पढ़कर जीवन सफल हो सकता है। वे इससे जीवन को सफल बनाने का गुर समझ रहे हैं। भारत के स्वामी पार्थसारथी वेदांत के विद्वान माने जाते हैं और अमेरिका में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एक्जिक्यूटिव लोगों के लिए वे भगवद् गीता का विशेष प्रवचन करते हैं। 85 वर्षीय स्वामी जी का प्रवचन सुनने के लिए कई अधिकारी फीस का भुगतान करते हैं। उन्होंने व्हाटर्न बिजनेस स्कूल में गीता के आधार पर तनाव पर अंकुश के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया। न्यूयार्क में उन्होंने हेज फंड के मैनेजरों की एक बैठक को संबोधित किया। इसमें उन्होंने बेपनाह दौलत जमा करने की तृष्णा के साथ उसे किेस तरह से मैनेज कर आंतरिक सुख प्राप्त किया जाए, इस पर भी उनके प्रवचन को काफी सराहा गया। अपने प्रवचन में उन्होंने कहा-बिजनेस में सफल होने के लिए एकाग्रता, न टूटने वाली परंपरा और सहकार की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। इन तीन चीजों पर किस तरह से विजय प्राप्त की जाए, यह रहस्य हमें भगवद् गीता में समझाया गया है। बुद्धि के विकास के बिना मन और शरीर पर अकुश नहीं रखा जा सकता। बुद्धि का विकास करने के उपाय केवल भगवद् गीता में ही जानने को मिलता है।
एक बार लेहमेन ब्रदर्स कंपनी की एक इकाई में स्वामी जी का प्रवचन रखा गया। वहां एक निवेशक ने उनसे प्रश्न किया कि स्वभाव से उग्र कर्मचारियों पर किस तरह से काम लिया जाए? तब स्वामी जी ने एक आसान सा उत्तर दिया कि उसे अपने दिमाग से निकाल दो, अपनी सफलता-विफलता के लिए आप ही जिम्मेदार हैं। आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मैनेजरों में एक होड़ लगी है कि किस तरह से दूसरी कंपनियों को नीचा दिखाकर अपनी कंपनी को आगे बढ़ाया जाए। इस उत्तर उन्हें भगवद् गीता से ही मिल रहा है। भगवद् गीता में युद्ध के समय जब अजरुन ने कौरवों की सेना में सभी अपनों को देखा, तब हथियार डाल दिए। अजरुन द्वारा युद्ध से इंकार किए जाने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया कि मोह-माया को त्यागकर स्थित प्रज्ञ बनो। अपने कर्तव्य को पूर्ण करो। उनका यही ज्ञान भगवद् गीता में समाहित है। मैनेजरों को इससे यह समझाया जा रहा है कि जो प्रज्ञावान नेता हैं, उन्हें भावनाओं से उठकर काम करना चाहिए। वही हैं, जो आपको उचित निर्णय लेने से रोकते हैं। अच्छे नेता उन्हें कहा जाएगा, जो नि:स्वार्थी होते हैं और आर्थिक लाभ या परिणाम की चिंता किए बिना ही अपना कर्तव्य निभाते हैं।
अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी की सीईओ जेकी इमेल्ट तो रामचरण नामक एक भारतीय मैनेजमेंट गुरु के पास भगवद् गीता का प्राइवेट ट्यूशन ले रही हैं। इस पर रामचरण कहते हैं कि भगवद् गीता में व्यक्ति के बजाए उद्देश्य को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। आज की कापरेरेट लीडरशिप के लिए यह बात महत्वपूर्ण है कि जो कंपनी आज की स्पर्धा में प्रगति कर सर्वोच्च स्थान प्राप्त करना चाहती है, उसके लिए भारत का कर्म विज्ञान जानना बहुत ही आवश्यक है। यह कर्म विज्ञान उनके लिए मार्गदर्शक साबित हो सकता है। गीता में इसका समाधान बताया गया है। भारत के मैनेजमेंट गुरु इस तत्वज्ञान को कापरेरेट लीडर को समझा रहे हैं। अमेरिका की प्रसिद्ध टक स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर विज गोविंदराज ने मैनेजमेंट पर अनेक बेस्ट सेलर किताबें लिखी हैं। वे शेवरॉन कापरेरेशन और ऐसी ही कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कंसल्टेंट भी हैं। वे इन कंपनियों को अपना भूतकाल भूलकर अब नए सिरे से किस तरह से आगे बढ़ा जाए, इसकी शिक्षा भी दे रहे हैं। गोविंदराज कहते हैं कि उनके मैनेजमेंट के सिद्धांतों की बुनियाद कर्म की थ्योरी है। इस थ्योरी में वे कहते हैं कि कर्म यानी कार्य करने का सिद्धांत,हम आज जो कर्म कर रहे हैं, उसी पर निर्भर है हमारा भविष्य। नई शोध करने के लिए परिणाम की चिंता किए बिना ही कर्म करते रहना चाहिए। इसके पहले की मार्केटिंग थ्योरी उपभोक्ताओं को गलत दिशा में ले जाती थी। अब भारतीय तत्वज्ञान के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी में परिवर्तन आया है। अब ये कंपनी ग्राहकों का विश्वास प्राप्त करने के लिए सहभागिता का पाठ पढ़ रही हैं। केलोग्स बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर मोहनबीर साहनी स्वयं सिख हैं, इसके बाद भी अपनी वेबसाइट में भगवद् गीता के श्लोकों का इस्तेमाल अपने मैनेजमेंट के सिद्धातों को समझने के लिए करते हैं।
इस तरह से देखा जाए, तो अब भगवद् गीता पूरे विश्व में मैनेजमेंट के लिए काम आ रही है। अब तक भारतीय ही इसके गुण गाते नहीं अघाते थे, पर अब यह पूरे विश्व में समझी जा रही है। गीता के ज्ञान को कभी अनदेखा नहीं किया जा सकता। वह केवल मैनेजमेंट ही नहीं, बल्कि जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी कई तरह से अनुकरणीय है। हम भारतीय भले ही इसे समझ न पाएं हों, पर विदेशों में इसकी चर्चा है और गीता का थोड़ा सा भी ज्ञान रखने वाला वहां किसी न किसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कंसल्टेंट बन रहा है, यह बहुत बड़ी बात है। हमें इस पर गर्व होना चाहिए।
डॉ. महेश परिमल
पश्चिम के देशों में आज मैनेजमेंट की पुस्तकों और वेबसाइट्स पर भगवद् गीता के श्लोकों को समावेश करने का एक नया ही फैशन चल पड़ा है। अमेरिका की सभी उच्च बिजनेस स्कूलों के मैनेजर अपनी नेतृत्व क्षमता के विकास के लिए और काम के दबाव के बीच अपनी आत्मिक शक्ति के संचरण के लिए गीता का सहारा ले रहे हैं। इसके लिए कई लोग क्लासेस भी चला रहे हैं। कई भारतीय विद्वान अब इसी काम में लग गए हैं। भारत के सी.के. प्रह्लाद , रामचरण और विजय गोविंदराज जैसे बिजनेस गुरु आज अनेक मल्टीनेशनल कंपनियों के कंसल्टेंट हैं। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल , केलोग्स स्कूल ऑफ बिजनेस, मिशीगन यूनिवर्सिटी की रोस स्कूल ऑफ बिजनेस आदि के भारतीय मूल के प्रोफेसरों की काफी संख्या में नियुक्ैित की गई है। ये सभी भगवद् गीता के तत्वज्ञान के आधार पर शिक्षा दे रहे हैँ। यह सच्चई ही साबित कर रही है कि गीता का तत्वज्ञान आज भी प्रासंगिक है।
व्यापार और वाणिज्य विषय में दुनिया के ख्यातिप्राप्त मेगजीन के लेखक पेटे एंगार्डियो ने विस्तार ने बताया कि विश्व की ख्यातनाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीए आखिर क्यों भगवद् गीता के प्रवचनों को सुनने के लिए मोटी रकम चुकाते हैं। कितने ही एक्जिक्यूटिव तो भगवद् गीता का ट्यूशन भी ले रहे हैं। ये सभी ईसाई धर्म के बुद्धिजीवी हैं, पर भगवद् गीता का पाठ कर रहे हैं। ताकि उसमें निहित अर्थो को समझ सकें। अब उन्हें पता चल गया है कि इसे ही पढ़कर जीवन सफल हो सकता है। वे इससे जीवन को सफल बनाने का गुर समझ रहे हैं। भारत के स्वामी पार्थसारथी वेदांत के विद्वान माने जाते हैं और अमेरिका में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एक्जिक्यूटिव लोगों के लिए वे भगवद् गीता का विशेष प्रवचन करते हैं। 85 वर्षीय स्वामी जी का प्रवचन सुनने के लिए कई अधिकारी फीस का भुगतान करते हैं। उन्होंने व्हाटर्न बिजनेस स्कूल में गीता के आधार पर तनाव पर अंकुश के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया। न्यूयार्क में उन्होंने हेज फंड के मैनेजरों की एक बैठक को संबोधित किया। इसमें उन्होंने बेपनाह दौलत जमा करने की तृष्णा के साथ उसे किेस तरह से मैनेज कर आंतरिक सुख प्राप्त किया जाए, इस पर भी उनके प्रवचन को काफी सराहा गया। अपने प्रवचन में उन्होंने कहा-बिजनेस में सफल होने के लिए एकाग्रता, न टूटने वाली परंपरा और सहकार की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। इन तीन चीजों पर किस तरह से विजय प्राप्त की जाए, यह रहस्य हमें भगवद् गीता में समझाया गया है। बुद्धि के विकास के बिना मन और शरीर पर अकुश नहीं रखा जा सकता। बुद्धि का विकास करने के उपाय केवल भगवद् गीता में ही जानने को मिलता है।
एक बार लेहमेन ब्रदर्स कंपनी की एक इकाई में स्वामी जी का प्रवचन रखा गया। वहां एक निवेशक ने उनसे प्रश्न किया कि स्वभाव से उग्र कर्मचारियों पर किस तरह से काम लिया जाए? तब स्वामी जी ने एक आसान सा उत्तर दिया कि उसे अपने दिमाग से निकाल दो, अपनी सफलता-विफलता के लिए आप ही जिम्मेदार हैं। आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मैनेजरों में एक होड़ लगी है कि किस तरह से दूसरी कंपनियों को नीचा दिखाकर अपनी कंपनी को आगे बढ़ाया जाए। इस उत्तर उन्हें भगवद् गीता से ही मिल रहा है। भगवद् गीता में युद्ध के समय जब अजरुन ने कौरवों की सेना में सभी अपनों को देखा, तब हथियार डाल दिए। अजरुन द्वारा युद्ध से इंकार किए जाने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया कि मोह-माया को त्यागकर स्थित प्रज्ञ बनो। अपने कर्तव्य को पूर्ण करो। उनका यही ज्ञान भगवद् गीता में समाहित है। मैनेजरों को इससे यह समझाया जा रहा है कि जो प्रज्ञावान नेता हैं, उन्हें भावनाओं से उठकर काम करना चाहिए। वही हैं, जो आपको उचित निर्णय लेने से रोकते हैं। अच्छे नेता उन्हें कहा जाएगा, जो नि:स्वार्थी होते हैं और आर्थिक लाभ या परिणाम की चिंता किए बिना ही अपना कर्तव्य निभाते हैं।
अमेरिका की जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी की सीईओ जेकी इमेल्ट तो रामचरण नामक एक भारतीय मैनेजमेंट गुरु के पास भगवद् गीता का प्राइवेट ट्यूशन ले रही हैं। इस पर रामचरण कहते हैं कि भगवद् गीता में व्यक्ति के बजाए उद्देश्य को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। आज की कापरेरेट लीडरशिप के लिए यह बात महत्वपूर्ण है कि जो कंपनी आज की स्पर्धा में प्रगति कर सर्वोच्च स्थान प्राप्त करना चाहती है, उसके लिए भारत का कर्म विज्ञान जानना बहुत ही आवश्यक है। यह कर्म विज्ञान उनके लिए मार्गदर्शक साबित हो सकता है। गीता में इसका समाधान बताया गया है। भारत के मैनेजमेंट गुरु इस तत्वज्ञान को कापरेरेट लीडर को समझा रहे हैं। अमेरिका की प्रसिद्ध टक स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर विज गोविंदराज ने मैनेजमेंट पर अनेक बेस्ट सेलर किताबें लिखी हैं। वे शेवरॉन कापरेरेशन और ऐसी ही कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कंसल्टेंट भी हैं। वे इन कंपनियों को अपना भूतकाल भूलकर अब नए सिरे से किस तरह से आगे बढ़ा जाए, इसकी शिक्षा भी दे रहे हैं। गोविंदराज कहते हैं कि उनके मैनेजमेंट के सिद्धांतों की बुनियाद कर्म की थ्योरी है। इस थ्योरी में वे कहते हैं कि कर्म यानी कार्य करने का सिद्धांत,हम आज जो कर्म कर रहे हैं, उसी पर निर्भर है हमारा भविष्य। नई शोध करने के लिए परिणाम की चिंता किए बिना ही कर्म करते रहना चाहिए। इसके पहले की मार्केटिंग थ्योरी उपभोक्ताओं को गलत दिशा में ले जाती थी। अब भारतीय तत्वज्ञान के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी में परिवर्तन आया है। अब ये कंपनी ग्राहकों का विश्वास प्राप्त करने के लिए सहभागिता का पाठ पढ़ रही हैं। केलोग्स बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर मोहनबीर साहनी स्वयं सिख हैं, इसके बाद भी अपनी वेबसाइट में भगवद् गीता के श्लोकों का इस्तेमाल अपने मैनेजमेंट के सिद्धातों को समझने के लिए करते हैं।
इस तरह से देखा जाए, तो अब भगवद् गीता पूरे विश्व में मैनेजमेंट के लिए काम आ रही है। अब तक भारतीय ही इसके गुण गाते नहीं अघाते थे, पर अब यह पूरे विश्व में समझी जा रही है। गीता के ज्ञान को कभी अनदेखा नहीं किया जा सकता। वह केवल मैनेजमेंट ही नहीं, बल्कि जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी कई तरह से अनुकरणीय है। हम भारतीय भले ही इसे समझ न पाएं हों, पर विदेशों में इसकी चर्चा है और गीता का थोड़ा सा भी ज्ञान रखने वाला वहां किसी न किसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कंसल्टेंट बन रहा है, यह बहुत बड़ी बात है। हमें इस पर गर्व होना चाहिए।
डॉ. महेश परिमल
हमारे महाकाव्यों की कथाओं की इस दृष्टि से व्याख्या नहीं हो पाई है.
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