डॉ. महेश परिमल
एक तरफ सुप्रीम कोर्ट गीर के जंगलों से बाघों को मध्यप्रदेश स्थानांतरित करने का आदेश दिया है, वही दूसरी तरफ पिछले एक साल में मध्यप्रदेश में एक दर्जन बाघों की मौत हुई है। बाघों के लगातार होते शिकार को देखते हुए पहले मध्यप्रदेश को ‘टाइगर स्टेट’ कहा जाता था, पर अब ‘टाइगर किलर स्टेट ’ कहा जाने लगा है। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर बाघ सबसे अधिक कहां सुरक्षित हैं? मध्यप्रदेश सरकार को बाघों पर कम किंतु बाघों को देखने आने वाले पर्यटकों की चिंता अधिक है। इसलिए पर्यटकों के लिए लगातार सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है, पर बाघों का शिकार करने वाले अभी तक कानून की पहुंच से दूर हैं। उन्हें पकड़ने के लिए कोई तैयारी दिखाई नहीं दे रही है। गीर के जंगलों में बाघ भले ही सुरक्षित न हों, पर मध्यप्रदेश की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
पिछले एक साल में जिस तरह से शिकारियों द्वारा बाघों का शिकार किया गया है, उससे यही लगता है कि बाघों का शिकार इलेक्ट्रिक तार में करंट देकर किया गया है। सभी मामलों में शिकारी इतने अधिक चालाक दिखाई दिए कि वन विभाग का अमला मृत बाघ तक पहुंचे, इसके पहले बाघ के तमाम अवशेष गायब कर दिए जाते हैं। कई मामलों में ऐसा भी हुआ कि बाघ की लाश को पहचाना भी नहीं जा सके, इस तरह से उसके शरीर की चीर-फाड़ कर दी गई। इसलिए अब मध्यप्रदेश बाघों के शिकार के लिए स्वर्ग बन गया है। क्योंकि यह अब पूरी तरह से स्पष्ट हो चुका है कि मध्यप्रदेश में बाघों की सुरक्षा करने के लिए पर्याप्त संख्या में सुरक्षाकर्मी नही हैं। देश में कुल 40 टाइगर रिजर्व में से सबसे अधिक 5 मध्यप्रदेश में ही हैं।
अब यदि मध्यप्रदेश से बाहर निकलकर देश की बात करें, तो 2012 में समग्र भारत में 89 बाघों की मौत हुई। इसमें से 31 का शिकार हुआ है। 2013 को अभी साढ़े पांच महीने ही पूरे हुए हैं, इस बीच देश में 42 बाघों की मौत हुई है। इन 42 में 19 का शिकार हुआ है। इन 19 में से 12 का शिकार मध्यप्रदेश में ही हुआ है। पिछले एक दशक में मध्यप्रदेश के विविध अभयारण्यों में कुल 453 बाघ कम हुए हैं। इसमें बाघों की प्राकृतिक मौत के अलावा उनके शिकार भी शामिल हैं। इनमें से अभी तक केवल दो व्यक्तियों पर ही बाघ की हत्या के मामले में सजा हुई है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाघों की सुरक्षा को लेकर मध्यप्रदेश सरकार कितनी चिंतित है? आंकड़े सरकार की बेबसी को दर्शाते हैं। 2001-02 में मध्यप्रदेश के 6 नेशनल पार्क में कुल 710 बाघ थे। जब 2011 में गिनती हुई, तब बाघों की संख्या कम होकर 257 रह गई। अब इसमें लगातार कमी आ रही है। ‘वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया’ द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले दो दशक में 986 बाघों की हत्या हुई है। ये आंकड़े केवल हत्या के हें। कई बाघ प्राकृतिक तौर पर मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इनकी संख्या भी काफी अधिक है। बाघों की मौत के संबंध में मध्यप्रदेश पूरे देश में आगे है। यहां अभी तक बाघों के संरक्षण के लिए कोई ठोस नीति नहीं बन पाई है और न ही बाघों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों पर किसी तरह की कठोर कार्रवाई हुई है। जो शिकारी पकड़े गए हैं, उन्हें भी मामूली सजा हुई है। इससे शिकारियों में किसी प्रकार की दहशत नहीं है। शिकारी बेखौफ हैं। सरकार निश्ंिचत। ऐसे में बाघों का संरक्षण कैसे हो?
एक तरफ सुप्रीम कोर्ट गीर के जंगलों से बाघों को मध्यप्रदेश स्थानांतरित करने का आदेश दिया है, वही दूसरी तरफ पिछले एक साल में मध्यप्रदेश में एक दर्जन बाघों की मौत हुई है। बाघों के लगातार होते शिकार को देखते हुए पहले मध्यप्रदेश को ‘टाइगर स्टेट’ कहा जाता था, पर अब ‘टाइगर किलर स्टेट ’ कहा जाने लगा है। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर बाघ सबसे अधिक कहां सुरक्षित हैं? मध्यप्रदेश सरकार को बाघों पर कम किंतु बाघों को देखने आने वाले पर्यटकों की चिंता अधिक है। इसलिए पर्यटकों के लिए लगातार सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है, पर बाघों का शिकार करने वाले अभी तक कानून की पहुंच से दूर हैं। उन्हें पकड़ने के लिए कोई तैयारी दिखाई नहीं दे रही है। गीर के जंगलों में बाघ भले ही सुरक्षित न हों, पर मध्यप्रदेश की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।
पिछले एक साल में जिस तरह से शिकारियों द्वारा बाघों का शिकार किया गया है, उससे यही लगता है कि बाघों का शिकार इलेक्ट्रिक तार में करंट देकर किया गया है। सभी मामलों में शिकारी इतने अधिक चालाक दिखाई दिए कि वन विभाग का अमला मृत बाघ तक पहुंचे, इसके पहले बाघ के तमाम अवशेष गायब कर दिए जाते हैं। कई मामलों में ऐसा भी हुआ कि बाघ की लाश को पहचाना भी नहीं जा सके, इस तरह से उसके शरीर की चीर-फाड़ कर दी गई। इसलिए अब मध्यप्रदेश बाघों के शिकार के लिए स्वर्ग बन गया है। क्योंकि यह अब पूरी तरह से स्पष्ट हो चुका है कि मध्यप्रदेश में बाघों की सुरक्षा करने के लिए पर्याप्त संख्या में सुरक्षाकर्मी नही हैं। देश में कुल 40 टाइगर रिजर्व में से सबसे अधिक 5 मध्यप्रदेश में ही हैं।
अब यदि मध्यप्रदेश से बाहर निकलकर देश की बात करें, तो 2012 में समग्र भारत में 89 बाघों की मौत हुई। इसमें से 31 का शिकार हुआ है। 2013 को अभी साढ़े पांच महीने ही पूरे हुए हैं, इस बीच देश में 42 बाघों की मौत हुई है। इन 42 में 19 का शिकार हुआ है। इन 19 में से 12 का शिकार मध्यप्रदेश में ही हुआ है। पिछले एक दशक में मध्यप्रदेश के विविध अभयारण्यों में कुल 453 बाघ कम हुए हैं। इसमें बाघों की प्राकृतिक मौत के अलावा उनके शिकार भी शामिल हैं। इनमें से अभी तक केवल दो व्यक्तियों पर ही बाघ की हत्या के मामले में सजा हुई है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाघों की सुरक्षा को लेकर मध्यप्रदेश सरकार कितनी चिंतित है? आंकड़े सरकार की बेबसी को दर्शाते हैं। 2001-02 में मध्यप्रदेश के 6 नेशनल पार्क में कुल 710 बाघ थे। जब 2011 में गिनती हुई, तब बाघों की संख्या कम होकर 257 रह गई। अब इसमें लगातार कमी आ रही है। ‘वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया’ द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले दो दशक में 986 बाघों की हत्या हुई है। ये आंकड़े केवल हत्या के हें। कई बाघ प्राकृतिक तौर पर मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इनकी संख्या भी काफी अधिक है। बाघों की मौत के संबंध में मध्यप्रदेश पूरे देश में आगे है। यहां अभी तक बाघों के संरक्षण के लिए कोई ठोस नीति नहीं बन पाई है और न ही बाघों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों पर किसी तरह की कठोर कार्रवाई हुई है। जो शिकारी पकड़े गए हैं, उन्हें भी मामूली सजा हुई है। इससे शिकारियों में किसी प्रकार की दहशत नहीं है। शिकारी बेखौफ हैं। सरकार निश्ंिचत। ऐसे में बाघों का संरक्षण कैसे हो?
कुछ रोचक तथ्य
- वर्ष 2004 को बाघों की संख्या 713 थी वर्तमान में बाघों की संख्या घटकर 245 हो गई है। इससे मप्र मे टाइगर स्टेट का दर्जा छिन गया। जहां कर्नाटक में बाघों की संख्या 235 से कम थी, उस राज्य में बाघों की संख्या बढकर 300 हो गई।
- वर्ष 2002 से 2012 जून तक 24 बाघों का शिकार हुआ, इसमें से केवल 2 प्रकरणों में अपराधियों को सजा हुई।
भोपाल में वर्ष 2012 में हुई बाघों की मौत को वन विभाग शिकार नहीं, बल्कि हादसा मान रहा है, वहीं कटनी रेंज में करंट लगाकर बाघों के शिकार की घटना को वन विभाग हादसा ही मान रहा है। इस मामले में वन विभाग का कहना है कि किसान ने सुअरों से खेत को बचाने के लिए करंट लगाया था उसकी चपेट में बाघ आ गया तो क्या किया जा सकता है। वर्ष 2012 में बाघों की हो रही आप्रकृतिक मौत के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मप्र शासन को को पत्र लिखकर बाघ की आप्रकृतिक मौत की जांच एक हफ्ते में कर जिम्मेदार अधिकारियों जबावदेही तय करने के निर्देश दिए थे। लेकिन बाघों की जांच एक हफ्ते में दूर छह माह में भी पूरी नहीं होती तो जबावदेही तय करने की बात बहुत दूर की बात है।
बाघों का संबंध चीन से
देश के किसी भी हिस्से में यदि बाघ का शिकार होता है, तो उसके पीछे चीन का संबंध निश्चित रूप से है। चीन में बाघ की मांग खूब है। आयुर्वेद में बाघ के अंगों का इस्तेमाल किया जाता है। चीन में बरसों से इसे आजमाया जा रहा है। चीन की कुल आबादी का 60 प्रतिशत आज भी आयुर्वेद से इलाज करता है। बाघ दवा के रूप में इस्तेमाल किए जाने से वहां बाघ की कमी हमेशा से ही रहती आई है। विश्व बाजार में बाघों की संख्या लगातार कम होने से अब मांग बढ़ने लगी है और आपूर्ति कम होने लगी है। इसलिए चीन येन केन प्रकारेण अधिक से अधिक बाघों के अंगों का आयात करने लगा है। चीन की आवश्यकता के अनुसार दुनियाभर में औसतन रोज ही एक बाघ की हत्या की जा रही है। बाघ के शरीर के दांत, नख, चमड़ी, हड्डी, आंख की पुतली, मूंछ, मस्तिष्क, प्रजनन अंग और उसके मल के बहुत से खरीददार हैं। जिस तरह से अनेक उपयोग में आने वाली गाय को कामधेनु कहा जाता है, ठीक उसी तरह बाघ की हत्या के बाद पूरा बाघ किसी कामधेनु से कम नहीं होता। उसके शरीर का एक-एक ीाग कीमती होता है। इतनी अधिक मात्रा में बाघ के अंगों का आयात करने के बाद भी चीन में अभी भी मांग बनी हुई है। चीन के कई इलाकों में टाइगर फार्म बने हुए हैं, जहां बाघों का लालन-पालन किया जाता है। पूरे विश्व के जंगलों में अभी 3500 बाघ नहीं हैं, किंतु चीन के कब्जे में करीब 5 हजार बाघ हैं। चीन के अपने जंगलों में 30 से अधिक बाघ नहीं हैं, चीन की दिलचस्पी बाघों के संरक्षण में कभी भी नहीं रही। उसके देश में बाघ नहीं हैं, पर वह विदेशों से बाघ आयात करने में सक्षम है। उसकी इस प्रवृत्ति के कारण पूरे विश्व में बाघों का शिकार हो रहा है। यदि सरकार सचमुच बाघों के संरक्षण के लिए गंभीर है, तो उसे बाघों के संरक्षण पर पूरा ध्यान देना होगा, यही नहीं बाघों की हत्या करने वाले को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए, ताकि दूसरे उससे सबक सीखें। यह जान लीजिए कि बाघ हैं, तो हम हैं, हमारा पर्यावरण है। यदि बाघ नहीं रहे, तो हम भी नहीं रहेंगे। बाघ का इस्तेमाल जिस तरह से दवाओं के रूप में किया जा रहा है, उस पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। ताकि बाघ के शिकार पर अंकुश लग सके।
बाघ की मौत: कब कितनी
वर्ष हत्या
1994 95
1995 121
1996 52
1997 88
1998 39
1999 81
2000 52
2001 72
2002 46
2003 38
2004 38
2005 46
2006 37
2007 27
2008 29
2009 32
2010 30
2011 13
2012 31
2013 19
1994 95
1995 121
1996 52
1997 88
1998 39
1999 81
2000 52
2001 72
2002 46
2003 38
2004 38
2005 46
2006 37
2007 27
2008 29
2009 32
2010 30
2011 13
2012 31
2013 19
डॉ. महेश परिमल