डॉ. महेश परिमल
स्वतंत्रता दिवस करीब है। देश में आजादी के तराने बजने लगे हैं। हमें यह बताया जाएगा कि हमें आजाद हुए 66 वर्ष हो गए हैं। इस आजादी को पाने के लिए हमारे देश के अनेक वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। बहूत ही मुश्किलों से हमें यह आजादी मिली है। इस तरह के तमाम नारों से हमें यह समझाने की कोशिश की जाएगी कि यह आजादी हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। पर यह बहुत कम लोग जानते हैं कि हमें गुलाम बनाने के लिए अंग्रेजों ने जिस तरह के कानूनों का सहारा लिया था, वह आज भी कायम हैं। यानी 66 वषों में हमने उन कानूनों को बदलने की कोशिश भी नहीं की, जिसके आधार पर हमें गुलाम बनाया गया था। वास्तव में यही सबसे बड़ी गुलामी है कि हम आज तक वे कानून ही नहीं बना पाए, जिसने हमें गुलाम बनाया। इसे हम अपनी काहिली ही कहेंगे। अब तो यह साफ हो गया है कि हमारी वर्तमान सरकार पूरी तरह से पंगु हो गई है। वह अपनों को तो भ्रष्टाचार की पूरी छूट दे रही है, दूसरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बात भी करती है। न तो वह स्वयं को भ्रष्टाचार से दूर रख पा रही है और न ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम ही उठा पा रही है।
इस बार स्वतंत्रता दिवस पर एक बार फिर लालकिले की प्राचीर से हमारे कर्मठ प्रधानमंत्री अपनी चिर-परिचित शैली में पाकिस्तान को चेताएंगे कि वह अपनी हरकतों से बाज आए, अन्यथा उसे इसके भयानक दुष्परिणाम भोगने होंगे। इसके अलावा वे देशवासियों को देश की खातिर अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिेए भी कहेंगे। वे हमारी स्वतंत्रता का अर्थ समझाएंगे। अंत में अपनी शुभकामनाओं के साथ देशवासियों को इस दिन की बधाई देंगे। प्रधानमंत्री के भाषण के बाद आप स्वयं एक बार यह सोचने की कोशिश करेंगे कि क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं। जब हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था, तब उसने प्रजा को कुचलने और शासक का विरोध करने वालों क अधिकार छीन लेने के लिए एक कानून बनाए थे। इन कानूनों में से एक कानून था प्रिवेंटिव डिटेंशन, इस कानून के अनुसार सरकार केवल शंका के आधार पर किसी भी नागरिक को गिरफ्तार कर सकती है। यदि सरकार को पता चल जाए कि इससे देश की शांति को खतरा है, तो उसे तुरंत गिरफ्तार किया जा सकता है। ऐसा पुलिस को अधिकार था। जब देश आजाद हुआ, तो इस कानून को बनाए रखने की कतई आवश्यकता नहेीं थी, लेकिन आज भी वह कानून बदस्तूर कायम है। आज भी सरकार को लगता है कि उसे अमुक व्यक्ति से देश की शांति को खतरा है, तो उसे गिरफ्तार कर सकती है। यह काननू नागरिकों की स्वतंत्रता पर किसी आघात से कम नहीं है। समाज सेवक अन्ना हजारे की गिरफ्तारी इसी कानून के तहत की गई थी।
देश जब गुलाम था, तब गांधीजी ने नमक कानून तोड़ा था। अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इस कानून देश में कहीं भी यदि नमक तैयार किया जाता हो, तो सरकार को उसे टैक्स देना होगा। अन्यथा नमक तैयार करने वाले सजा होती थी। सरकार यह मानती थी कि जिस जमीन पर नमक तैयार किया जा रहा है, वह सरकारी है। आजादी के बाद इस कानून में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया, पर उपरोक्त कानून की तरह यह कानून आज भी कायम है। सरकार आज भी नमक पर कर ले रही है। अंग्रेजों ने मंदिरों एवं धर्म से जुड़ी संस्थाओं पर अंकुश रखने के लिए पब्लिक ट्रस्ट से जुड़े कानून बनाए थे। भारत आजाद हुआ, तब भारतीय दंड संहिता 25 और 26 के माध्यम से नागरिकों के धार्मिक स्वातं˜य को मूलभूत अधिकार के रूप में माना गया था। इसके बाद भी 1950 में सरकार ने बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट नामक कानून बनाकर नागरिकों से एक झटके में ही धार्मिक स्वतंत्रता छीन ली। इस कानून के खिलाफ अनेक ट्रस्ट सुप्रीमकोर्ट तक गए, पर देश की सर्वोच्च अदालत से उन्हें न्याय नहीं मिला। आज भी यह कानून अमल में लाया जा रहा है। हमारी अदालतों ने प्रशासनिक मदद से प्रजा की स्वतंत्रता पर किस तरह से वार करती है, इसका उदाहरण यह है कि सुप्रीमकोर्ट ने यह आदेश दिया कि देश की तमाम मोटर कार के कांच पर काले रंग की फिल्म निकाल ली जाए। इसके पहले आरटीओ की अनुमति लेकर यह फिल्म लगाई गई थी। किंतु सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से वाहनों से यह फिल्म निकाली जाने लगी। अदालत ने यह आदेश भी दिया कि यदि इसमें ढिलाई बरती गई, तो उसके सामने अदालत के अपमान की कार्रवाई की जाएगी। जिस देश के नागरिक कड़ी धूप से बचने के लिए अपने वाहन पर फिल्म तक नहीं लगा सकते, उन्हें हम किस तरह से स्वतंत्र कह सकते हैं। आज आतंकवाद जोर पकड़ रहा है, इसे हमारे देश के नेताओं ने ही संरक्षण दिया है। लेकिन आज इसी आतंकवाद के नाम पर सरकार नागरिकों पर विभिन्न तरीके अत्याचार कर रही है।
अंग्रेज यह मानते थे कि इस देश में जितनी जमीन है, उतने ही जंगल है और वे ही इनके मालिक हैं। इस कारण उन्होंने जंगल अधिनियम ओर जमीन अधिग्रहण धारा जैसे कानून बनाए, इस कानून से प्रजा की जमीन की मालिकी उनसे छीन ली गई। स्वतंत्र भारत की सरकार ने इस कानून को रद्द करने के बजाए इसे जारी रखा। इस कानून के मुताबिक आज भी गरीब किसानों की जमीन उद्योगों के लिए इस्तेमाल कर ली जाती है। इसी तरह अंग्रेजों के शासन में 1894 में एक कानून बनाया गया था, जिसके अनुसार निजी जमीन छीनने के लिए जमीन संपादन की धारा तैयार की गई, जो आज भी अमल में लाई जाती है। इन कानूनों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि आज हम भले ही आजाद हो गए हैं, पर देखा जाए, तो हम पूरी तरह से गुलाम ही हैं। कई मामलों में हमें यह आजादी अखरती है। कई बार तो सरकार ने अंग्रेजों से अधिक अत्याचार किए हैं।
आज हम भले ही स्वयं को स्वतंत्र मानें, पर देखा जाए तो हमारी सरकार भी स्वतंत्र नहीं है। वह भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों का खिलौना बनकर रह गई है। हमारी सरकार अमेरिका जैसी महासत्ता की गुलाम है। हमारे प्रधानमंत्री रिटेल में विदेशी कंपनियों को देश में घुसने न देने की घोषणा करें, तो अमेरिका हम पर यह दबाव बनाता है। उसके लिए अनुमति दिलवाता है। यदि हम आज ईरान के साथ व्यापार करना चाहें, तो नहीं कर सकते, क्योंकि ईरान अमेरिका का दुश्मन है, इसलिए अमेरिका हम पर यह दबाव बनाता है कि ईरान से किसी भी तरह का व्यापार समझौता न किया जाए। वर्ल्ड बैंक, वर्ल्ड ट्रेड आर्गनाइजेशन और यूनेस्को जैसी संस्थाएं ग्लोबोलाइजेशन के नाम पर हमारी सरकार की स्वतंत्रता छीन रही है। यदि हम ऐसा सोचते हैं कि हमारी आजादी केवल वायवीय या आभासी है, तो हमें अपनी सच्ची आजादी के लिए फिर से लड़ाई शुरू करनी होगी।
डॉ. महेश परिमल
स्वतंत्रता दिवस करीब है। देश में आजादी के तराने बजने लगे हैं। हमें यह बताया जाएगा कि हमें आजाद हुए 66 वर्ष हो गए हैं। इस आजादी को पाने के लिए हमारे देश के अनेक वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। बहूत ही मुश्किलों से हमें यह आजादी मिली है। इस तरह के तमाम नारों से हमें यह समझाने की कोशिश की जाएगी कि यह आजादी हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। पर यह बहुत कम लोग जानते हैं कि हमें गुलाम बनाने के लिए अंग्रेजों ने जिस तरह के कानूनों का सहारा लिया था, वह आज भी कायम हैं। यानी 66 वषों में हमने उन कानूनों को बदलने की कोशिश भी नहीं की, जिसके आधार पर हमें गुलाम बनाया गया था। वास्तव में यही सबसे बड़ी गुलामी है कि हम आज तक वे कानून ही नहीं बना पाए, जिसने हमें गुलाम बनाया। इसे हम अपनी काहिली ही कहेंगे। अब तो यह साफ हो गया है कि हमारी वर्तमान सरकार पूरी तरह से पंगु हो गई है। वह अपनों को तो भ्रष्टाचार की पूरी छूट दे रही है, दूसरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बात भी करती है। न तो वह स्वयं को भ्रष्टाचार से दूर रख पा रही है और न ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम ही उठा पा रही है।
इस बार स्वतंत्रता दिवस पर एक बार फिर लालकिले की प्राचीर से हमारे कर्मठ प्रधानमंत्री अपनी चिर-परिचित शैली में पाकिस्तान को चेताएंगे कि वह अपनी हरकतों से बाज आए, अन्यथा उसे इसके भयानक दुष्परिणाम भोगने होंगे। इसके अलावा वे देशवासियों को देश की खातिर अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिेए भी कहेंगे। वे हमारी स्वतंत्रता का अर्थ समझाएंगे। अंत में अपनी शुभकामनाओं के साथ देशवासियों को इस दिन की बधाई देंगे। प्रधानमंत्री के भाषण के बाद आप स्वयं एक बार यह सोचने की कोशिश करेंगे कि क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं। जब हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था, तब उसने प्रजा को कुचलने और शासक का विरोध करने वालों क अधिकार छीन लेने के लिए एक कानून बनाए थे। इन कानूनों में से एक कानून था प्रिवेंटिव डिटेंशन, इस कानून के अनुसार सरकार केवल शंका के आधार पर किसी भी नागरिक को गिरफ्तार कर सकती है। यदि सरकार को पता चल जाए कि इससे देश की शांति को खतरा है, तो उसे तुरंत गिरफ्तार किया जा सकता है। ऐसा पुलिस को अधिकार था। जब देश आजाद हुआ, तो इस कानून को बनाए रखने की कतई आवश्यकता नहेीं थी, लेकिन आज भी वह कानून बदस्तूर कायम है। आज भी सरकार को लगता है कि उसे अमुक व्यक्ति से देश की शांति को खतरा है, तो उसे गिरफ्तार कर सकती है। यह काननू नागरिकों की स्वतंत्रता पर किसी आघात से कम नहीं है। समाज सेवक अन्ना हजारे की गिरफ्तारी इसी कानून के तहत की गई थी।
देश जब गुलाम था, तब गांधीजी ने नमक कानून तोड़ा था। अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इस कानून देश में कहीं भी यदि नमक तैयार किया जाता हो, तो सरकार को उसे टैक्स देना होगा। अन्यथा नमक तैयार करने वाले सजा होती थी। सरकार यह मानती थी कि जिस जमीन पर नमक तैयार किया जा रहा है, वह सरकारी है। आजादी के बाद इस कानून में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया, पर उपरोक्त कानून की तरह यह कानून आज भी कायम है। सरकार आज भी नमक पर कर ले रही है। अंग्रेजों ने मंदिरों एवं धर्म से जुड़ी संस्थाओं पर अंकुश रखने के लिए पब्लिक ट्रस्ट से जुड़े कानून बनाए थे। भारत आजाद हुआ, तब भारतीय दंड संहिता 25 और 26 के माध्यम से नागरिकों के धार्मिक स्वातं˜य को मूलभूत अधिकार के रूप में माना गया था। इसके बाद भी 1950 में सरकार ने बाम्बे पब्लिक ट्रस्ट एक्ट नामक कानून बनाकर नागरिकों से एक झटके में ही धार्मिक स्वतंत्रता छीन ली। इस कानून के खिलाफ अनेक ट्रस्ट सुप्रीमकोर्ट तक गए, पर देश की सर्वोच्च अदालत से उन्हें न्याय नहीं मिला। आज भी यह कानून अमल में लाया जा रहा है। हमारी अदालतों ने प्रशासनिक मदद से प्रजा की स्वतंत्रता पर किस तरह से वार करती है, इसका उदाहरण यह है कि सुप्रीमकोर्ट ने यह आदेश दिया कि देश की तमाम मोटर कार के कांच पर काले रंग की फिल्म निकाल ली जाए। इसके पहले आरटीओ की अनुमति लेकर यह फिल्म लगाई गई थी। किंतु सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से वाहनों से यह फिल्म निकाली जाने लगी। अदालत ने यह आदेश भी दिया कि यदि इसमें ढिलाई बरती गई, तो उसके सामने अदालत के अपमान की कार्रवाई की जाएगी। जिस देश के नागरिक कड़ी धूप से बचने के लिए अपने वाहन पर फिल्म तक नहीं लगा सकते, उन्हें हम किस तरह से स्वतंत्र कह सकते हैं। आज आतंकवाद जोर पकड़ रहा है, इसे हमारे देश के नेताओं ने ही संरक्षण दिया है। लेकिन आज इसी आतंकवाद के नाम पर सरकार नागरिकों पर विभिन्न तरीके अत्याचार कर रही है।
अंग्रेज यह मानते थे कि इस देश में जितनी जमीन है, उतने ही जंगल है और वे ही इनके मालिक हैं। इस कारण उन्होंने जंगल अधिनियम ओर जमीन अधिग्रहण धारा जैसे कानून बनाए, इस कानून से प्रजा की जमीन की मालिकी उनसे छीन ली गई। स्वतंत्र भारत की सरकार ने इस कानून को रद्द करने के बजाए इसे जारी रखा। इस कानून के मुताबिक आज भी गरीब किसानों की जमीन उद्योगों के लिए इस्तेमाल कर ली जाती है। इसी तरह अंग्रेजों के शासन में 1894 में एक कानून बनाया गया था, जिसके अनुसार निजी जमीन छीनने के लिए जमीन संपादन की धारा तैयार की गई, जो आज भी अमल में लाई जाती है। इन कानूनों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि आज हम भले ही आजाद हो गए हैं, पर देखा जाए, तो हम पूरी तरह से गुलाम ही हैं। कई मामलों में हमें यह आजादी अखरती है। कई बार तो सरकार ने अंग्रेजों से अधिक अत्याचार किए हैं।
आज हम भले ही स्वयं को स्वतंत्र मानें, पर देखा जाए तो हमारी सरकार भी स्वतंत्र नहीं है। वह भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों का खिलौना बनकर रह गई है। हमारी सरकार अमेरिका जैसी महासत्ता की गुलाम है। हमारे प्रधानमंत्री रिटेल में विदेशी कंपनियों को देश में घुसने न देने की घोषणा करें, तो अमेरिका हम पर यह दबाव बनाता है। उसके लिए अनुमति दिलवाता है। यदि हम आज ईरान के साथ व्यापार करना चाहें, तो नहीं कर सकते, क्योंकि ईरान अमेरिका का दुश्मन है, इसलिए अमेरिका हम पर यह दबाव बनाता है कि ईरान से किसी भी तरह का व्यापार समझौता न किया जाए। वर्ल्ड बैंक, वर्ल्ड ट्रेड आर्गनाइजेशन और यूनेस्को जैसी संस्थाएं ग्लोबोलाइजेशन के नाम पर हमारी सरकार की स्वतंत्रता छीन रही है। यदि हम ऐसा सोचते हैं कि हमारी आजादी केवल वायवीय या आभासी है, तो हमें अपनी सच्ची आजादी के लिए फिर से लड़ाई शुरू करनी होगी।
डॉ. महेश परिमल
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