डॉ. महेश परिमल
कुछ सप्ताह पहले ममता बनर्जी मुम्बई में थीं, वहां उनकी आवाज कुछ बदली हुई सी थी। तेवर भी आक्रामक नहीं थे। ममता दीदी के इस रूप से सभी को आश्चर्य मे डाल दिया। आश्चर्य इसलिए कि उन्होंने वहां मिथुन चक्रवर्ती और भप्पी लहरी को साथ लेकर उद्योगपतियों को संबोधित किया। स्वयं तो सफेद साड़ी और स्लिपर में थीं, पर उद्योगपतियों को अपने राज्य में बुलाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दे रही थीं। उनके वादे सुनकर उद्योगपति हैरत में हैं कि ये वही ममता बनर्जी हैं, जिसने सिंगूर से टाटा का नेनो प्रोजेक्ट हटवाया था। वही प्रोजेक्ट गुजरात जाकर उसे समृद्ध कर गया। आज वही ममता उद्योगपतियों को इस बात का विश्वास दिला रही हैं कि उन्हें हर तरह की सुविधाएं दी जाएंगी। उद्योगपति इस आशा से उनकी बात सुन रहे थे कि क्या पता 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद देश का राजनीतिक परिदृश्य बदल जाए। इसलिए आज उनकी बात सुनना लाजिमी है।
ममता बनर्जी का यह रूप लोगों को भले ही न भाये, पर उद्योगपति हतप्रभ थे। वे ममता की इस छवि को एकदम से गले से उतारने के लिए भीतर से तैयार नहीं हैं। ममता भी यह अच्छी तरह से समझ गई हैं कि यदि राज्य का विकास करना है, तो राज्य में उद्योगों का होना आवश्यक है। सिंगूर के बाद वहां कोई उद्योगपति जाने को तैयार ही नहीं है। ऐसे में ममता अब इस कोशिश में है कि कैसे भी हो, उद्योगपतियों को अपने राज्य में बुलाना ही है। इसलिए आज कापरेरेट लैग्वेज में बात कर रही हैं। अपनी आक्रामक छवि को चोला उन्होंने मुम्बई में उतार दिया है। गुस्सा तो उन्हें अब छू भी नहीं पा रहा है। उद्योगपतियों ने ममता बनर्जी को एक शांत और सौम्य मुख्यमंत्री के रूप में देखा। हिंदी औरा बंगला भाषा के मिश्रण से बोले गए उनके संवादों ने लोगों को रिझाया। अपनी जानी-पहचानी कार्यशैली में ममता ने कहा कि मेरी मित्रता अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान के साथ है, लता मंगेशकर के साथ भी कभी-कभी बातचीत कर लेती हूं। मैं चाहती हूं कि बॉलीवुड और बंगला फिल्में मिलकर हॉलीवुड बनाएं।
सभी राज्यों के मुख्यमंत्री अपने राज्य में उद्योग लगाने के लिए लाल जाजम बिछाते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का स्वभाव बहुत ही रफ-टफ हैं, स्वयं तो बहुत ही सादगी से रहती हैं, पर सूट-बूट वाले उद्योगपतियों के सामने उनकी छवि एकदम ही अलग थी। उद्योगपतियों ने ममता का जोरदार स्वागत किया। मुकेश अंबानी, आदी गोदरेज, देवेश्वर राव, गोयनका सहित करीब 24 कंपनियों के चेयरमेन ममता को सुनने के लिए आए थे। यही नहीं एनटीपीसी, स्टेट बैंक, सेल, आईसीआईसीआई और एक्सिस बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर भी उनसे मिलने आए थे। राजनीति के जानकार यह मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में उद्योगों की स्थापना हो या न हो, पर उद्योगपति ममता से अच्छे संबंध बनाए रखने के पक्ष में थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी संभवत: किंगमेकर के रूप में उभरकर आए, ऐसा माना जा रहा है। वैसे तो ममता ने अपने मुम्बई प्रवास को पूरी तरह से गैरराजनीतिक ही रखा था, पर पत्रकार कहां मानने वाले थे, वे अपने प्रश्नों से बार-बार राजनीतिक बयान उगलवाने के प्रयास में रहे। यह सभी जानते हैं कि ममता बनर्जी ने पहली बार पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट सरकार को उखाड़ फेंका, उसके बाद पंचायत चुनाव में भी अपना परचम फैलाया। अपनी इस सफलता के बाद वे यह समझा रही हैं कि भविष्य में लोकसभा चुनाव में उनकी भूमिका किंग मेकर की रहेगी। लोगों को न तो कांग्रेस रास आ रही है और न ही भाजपा, इसलिए एक तीसरा मोर्चा बनेगा और और वर्चस्व स्थापित करेगा। पत्रकारों से इतना कहने के बाद वे यह कहने लगी कि मुझसे राजनीति की बातें मत कीजिए, मैं तो उद्योगपतियों से मिलने के लिए आई हूं। राजनीति की बातें पूछकर मेरा ध्यान डायवर्ट न करें।
लोग अभी तक यह नहीं भूले हैं कि टाटा के नेनो प्रोजेक्ट के लिए ममता के नेतृत्व में सिंगूर में फैक्टरी बंद करवा दी थी। उस समय वे विपक्ष में थीं। इसलिए उन्होंने अपनी आक्रामक पहचान बना ली। टाटा का यही प्रोजेक्ट बाद में गुजरात चला गया, जहां उसने उसकी सूरत ही बदल दी। वही ममता बनर्जी उद्यागपतियो से यह कह रही थीं कि आप लोग मेरे राज्य में उद्योग लगाएं, आपको हर तरह की सुविधाएं दी जाएगी। मैं वादा करती हूं कि किसी भी उद्योगपति को कोई मुश्किल नहीं होगी। विपक्ष में रहकर एक पूरे कारखाने को हटा देना और सत्ता में रहकर उद्योगपतियों को राज्य में उद्योग लगाने के लिए लुभाना अलग बात है। यह बात ममता के व्यवहार से पता चली। इस सम्मेलन में ममता उद्योगपतियों से मिलने की पूरी तैयारी के साथ आई थीं। उन्होंने कई प्रलोभनों के पैकेज जारी किए। उन्होंने कहा कि किसी भी उद्योगपति को लैंड एक्जीविजन की आवश्यकता ही नही होगी, क्योंकि दस हजार एकड़ जमीन पर ‘लैंड हब’ बनाया गया है। उद्योगों को चाहे जितनी बिजली मिलेगी। उद्योगपतियों द्वारा पूछे गए सभी सवालों का जवाब भी ममता के पास था। हां राजनीति से जुड़े प्रश्नों का उत्तर देने में वे कतरा रही थीं। अपने साथ वे दादा मिथुन चक्रवर्ती और गहनों की चलती-फिरती दुकान बप्पी लहरी को भी लेकर आई थीं। ताकि कुछ लोग इन्हीं से ही अपना मनोरंजन कर सकें।
जिस तरह से हमारे देश के वित्त मंत्री विदेशों में पूंजीनिवेशकों के लिए रोड शो का आयोजन करते हैं, उसी तरह देश के मुख्यमंत्री भी उद्योगपतियों के लिए लाल जाजम बिछाते हैं। कोई खुलेआम उद्योगपतियों को आमंत्रित करते हैं, तो कोई निजी तौर पर बैठकें आयोजित करते हैं। सभी जानते हैं कि उद्योग रोजी-रोटी खींचकर लाते हैं। एक तरफ यही मुख्यमंत्री सामान्य प्रजा के हितों की अनदेखी करते हैं, तो दूसरी तरफ उद्योगपतियों के आगे पूरी तरह से झुक जाते हैं। सामान्य रूप में उद्योगपति भरोसे और ट्रेंड पर चलते हैं। पश्चिम बंगाल से टाटा नेनो को हटा देने वाली ममता बनर्जी आज जिस तरह से उद्योगों को आमंत्रित करने के लिए प्रयासरत हैं, उससे सभी को आश्चर्य है। वे उद्योगपतियों पर किस तरह से विश्वास दिला पाएंगी, यह देखना है। लोग इसी ताक पर हैं कि वे ऐसा कैसे करेंगी, यह आज चर्चा का भी विषय है। इधर उद्योगपतियों ने भी अपनी पब्लिक रिलेशंस की टीम को मैदान में उतार दिया हे, ताकि पश्चिम बंगाल में सस्ती जमीन, सस्ता रॉ मटेरियल और अन्य सुविधाओं का पता लगाया जा सके। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि राजनैतिक स्थिरता। यही स्थिति ही उद्योगों को लम्बे समय तक चलने की गारंटी देती है। उधर पश्चिम बंगाल के वामपंथी भी एक महत्वपूर्ण कारक हैं, उन्हें भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसे उद्योगपति बखूबी समझते हैं। देखना यह है कि ममता इन उद्योगपतियों को कहां तक लुभा पाती हैं और कहां तक उन्हें सुविधाओं का आश्वासन देकर उन्हें अपने राज्य में उद्योग लगाने के लिए विवश कर सकती हैं।
डॉ. महेश परिमल
कुछ सप्ताह पहले ममता बनर्जी मुम्बई में थीं, वहां उनकी आवाज कुछ बदली हुई सी थी। तेवर भी आक्रामक नहीं थे। ममता दीदी के इस रूप से सभी को आश्चर्य मे डाल दिया। आश्चर्य इसलिए कि उन्होंने वहां मिथुन चक्रवर्ती और भप्पी लहरी को साथ लेकर उद्योगपतियों को संबोधित किया। स्वयं तो सफेद साड़ी और स्लिपर में थीं, पर उद्योगपतियों को अपने राज्य में बुलाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दे रही थीं। उनके वादे सुनकर उद्योगपति हैरत में हैं कि ये वही ममता बनर्जी हैं, जिसने सिंगूर से टाटा का नेनो प्रोजेक्ट हटवाया था। वही प्रोजेक्ट गुजरात जाकर उसे समृद्ध कर गया। आज वही ममता उद्योगपतियों को इस बात का विश्वास दिला रही हैं कि उन्हें हर तरह की सुविधाएं दी जाएंगी। उद्योगपति इस आशा से उनकी बात सुन रहे थे कि क्या पता 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद देश का राजनीतिक परिदृश्य बदल जाए। इसलिए आज उनकी बात सुनना लाजिमी है।
ममता बनर्जी का यह रूप लोगों को भले ही न भाये, पर उद्योगपति हतप्रभ थे। वे ममता की इस छवि को एकदम से गले से उतारने के लिए भीतर से तैयार नहीं हैं। ममता भी यह अच्छी तरह से समझ गई हैं कि यदि राज्य का विकास करना है, तो राज्य में उद्योगों का होना आवश्यक है। सिंगूर के बाद वहां कोई उद्योगपति जाने को तैयार ही नहीं है। ऐसे में ममता अब इस कोशिश में है कि कैसे भी हो, उद्योगपतियों को अपने राज्य में बुलाना ही है। इसलिए आज कापरेरेट लैग्वेज में बात कर रही हैं। अपनी आक्रामक छवि को चोला उन्होंने मुम्बई में उतार दिया है। गुस्सा तो उन्हें अब छू भी नहीं पा रहा है। उद्योगपतियों ने ममता बनर्जी को एक शांत और सौम्य मुख्यमंत्री के रूप में देखा। हिंदी औरा बंगला भाषा के मिश्रण से बोले गए उनके संवादों ने लोगों को रिझाया। अपनी जानी-पहचानी कार्यशैली में ममता ने कहा कि मेरी मित्रता अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान के साथ है, लता मंगेशकर के साथ भी कभी-कभी बातचीत कर लेती हूं। मैं चाहती हूं कि बॉलीवुड और बंगला फिल्में मिलकर हॉलीवुड बनाएं।
सभी राज्यों के मुख्यमंत्री अपने राज्य में उद्योग लगाने के लिए लाल जाजम बिछाते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का स्वभाव बहुत ही रफ-टफ हैं, स्वयं तो बहुत ही सादगी से रहती हैं, पर सूट-बूट वाले उद्योगपतियों के सामने उनकी छवि एकदम ही अलग थी। उद्योगपतियों ने ममता का जोरदार स्वागत किया। मुकेश अंबानी, आदी गोदरेज, देवेश्वर राव, गोयनका सहित करीब 24 कंपनियों के चेयरमेन ममता को सुनने के लिए आए थे। यही नहीं एनटीपीसी, स्टेट बैंक, सेल, आईसीआईसीआई और एक्सिस बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर भी उनसे मिलने आए थे। राजनीति के जानकार यह मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में उद्योगों की स्थापना हो या न हो, पर उद्योगपति ममता से अच्छे संबंध बनाए रखने के पक्ष में थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी संभवत: किंगमेकर के रूप में उभरकर आए, ऐसा माना जा रहा है। वैसे तो ममता ने अपने मुम्बई प्रवास को पूरी तरह से गैरराजनीतिक ही रखा था, पर पत्रकार कहां मानने वाले थे, वे अपने प्रश्नों से बार-बार राजनीतिक बयान उगलवाने के प्रयास में रहे। यह सभी जानते हैं कि ममता बनर्जी ने पहली बार पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट सरकार को उखाड़ फेंका, उसके बाद पंचायत चुनाव में भी अपना परचम फैलाया। अपनी इस सफलता के बाद वे यह समझा रही हैं कि भविष्य में लोकसभा चुनाव में उनकी भूमिका किंग मेकर की रहेगी। लोगों को न तो कांग्रेस रास आ रही है और न ही भाजपा, इसलिए एक तीसरा मोर्चा बनेगा और और वर्चस्व स्थापित करेगा। पत्रकारों से इतना कहने के बाद वे यह कहने लगी कि मुझसे राजनीति की बातें मत कीजिए, मैं तो उद्योगपतियों से मिलने के लिए आई हूं। राजनीति की बातें पूछकर मेरा ध्यान डायवर्ट न करें।
लोग अभी तक यह नहीं भूले हैं कि टाटा के नेनो प्रोजेक्ट के लिए ममता के नेतृत्व में सिंगूर में फैक्टरी बंद करवा दी थी। उस समय वे विपक्ष में थीं। इसलिए उन्होंने अपनी आक्रामक पहचान बना ली। टाटा का यही प्रोजेक्ट बाद में गुजरात चला गया, जहां उसने उसकी सूरत ही बदल दी। वही ममता बनर्जी उद्यागपतियो से यह कह रही थीं कि आप लोग मेरे राज्य में उद्योग लगाएं, आपको हर तरह की सुविधाएं दी जाएगी। मैं वादा करती हूं कि किसी भी उद्योगपति को कोई मुश्किल नहीं होगी। विपक्ष में रहकर एक पूरे कारखाने को हटा देना और सत्ता में रहकर उद्योगपतियों को राज्य में उद्योग लगाने के लिए लुभाना अलग बात है। यह बात ममता के व्यवहार से पता चली। इस सम्मेलन में ममता उद्योगपतियों से मिलने की पूरी तैयारी के साथ आई थीं। उन्होंने कई प्रलोभनों के पैकेज जारी किए। उन्होंने कहा कि किसी भी उद्योगपति को लैंड एक्जीविजन की आवश्यकता ही नही होगी, क्योंकि दस हजार एकड़ जमीन पर ‘लैंड हब’ बनाया गया है। उद्योगों को चाहे जितनी बिजली मिलेगी। उद्योगपतियों द्वारा पूछे गए सभी सवालों का जवाब भी ममता के पास था। हां राजनीति से जुड़े प्रश्नों का उत्तर देने में वे कतरा रही थीं। अपने साथ वे दादा मिथुन चक्रवर्ती और गहनों की चलती-फिरती दुकान बप्पी लहरी को भी लेकर आई थीं। ताकि कुछ लोग इन्हीं से ही अपना मनोरंजन कर सकें।
जिस तरह से हमारे देश के वित्त मंत्री विदेशों में पूंजीनिवेशकों के लिए रोड शो का आयोजन करते हैं, उसी तरह देश के मुख्यमंत्री भी उद्योगपतियों के लिए लाल जाजम बिछाते हैं। कोई खुलेआम उद्योगपतियों को आमंत्रित करते हैं, तो कोई निजी तौर पर बैठकें आयोजित करते हैं। सभी जानते हैं कि उद्योग रोजी-रोटी खींचकर लाते हैं। एक तरफ यही मुख्यमंत्री सामान्य प्रजा के हितों की अनदेखी करते हैं, तो दूसरी तरफ उद्योगपतियों के आगे पूरी तरह से झुक जाते हैं। सामान्य रूप में उद्योगपति भरोसे और ट्रेंड पर चलते हैं। पश्चिम बंगाल से टाटा नेनो को हटा देने वाली ममता बनर्जी आज जिस तरह से उद्योगों को आमंत्रित करने के लिए प्रयासरत हैं, उससे सभी को आश्चर्य है। वे उद्योगपतियों पर किस तरह से विश्वास दिला पाएंगी, यह देखना है। लोग इसी ताक पर हैं कि वे ऐसा कैसे करेंगी, यह आज चर्चा का भी विषय है। इधर उद्योगपतियों ने भी अपनी पब्लिक रिलेशंस की टीम को मैदान में उतार दिया हे, ताकि पश्चिम बंगाल में सस्ती जमीन, सस्ता रॉ मटेरियल और अन्य सुविधाओं का पता लगाया जा सके। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि राजनैतिक स्थिरता। यही स्थिति ही उद्योगों को लम्बे समय तक चलने की गारंटी देती है। उधर पश्चिम बंगाल के वामपंथी भी एक महत्वपूर्ण कारक हैं, उन्हें भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसे उद्योगपति बखूबी समझते हैं। देखना यह है कि ममता इन उद्योगपतियों को कहां तक लुभा पाती हैं और कहां तक उन्हें सुविधाओं का आश्वासन देकर उन्हें अपने राज्य में उद्योग लगाने के लिए विवश कर सकती हैं।
डॉ. महेश परिमल
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