मंगलवार, 27 अप्रैल 2021
मंजिल पाने के उपाय

बुधवार, 21 अप्रैल 2021
आलेख - पहाड़ के आँसू - डाॅ. महेश परिमल
इस बार पहाड़ फिर जी भरकर रोया है। पहाड़ को रोना
क्यों पड़ा? यह समझने को कोई तैयार ही नहीँ है। बस लोग पहाड़ द्वारा की गई तबाही के आंकड़ों
में ही उलझे हैं। संसद में प्रधानमंत्री के आँसू सभी को दिखे, पर पहाड़ के आँसू किसी
की नज़र में नहीं आए। बरसों से रो रहे हैं पहाड़। पर कोई हाथ उसकी आंखों तक नहीं पहुँचा।
पहाड़ के सिर पर प्यार भरा हाथ फेरने वाले लोग अब गुम होने लगे हें। आखिर रोने की भी
एक सीमा होती है। इस रुलाई के पीछे बहुत बड़ा दु:ख है। इस बार यह दु:ख नाराजगी के रूप
में बाहर आया है। पहाड़ों को अब गुस्सा आने लगा है। पहाड़ को हमने सदैव पूजा है। पहाड़ ने हमें हमेशा कुछ न कुछ
अच्छा दिया ही है। अगस्त्य ऋषि के सामने पहाड़ भी झुक जाते थे। इसी ऋषि का एक आश्रम
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में है। हमारे देश में पहाड़ों की विशेष पूजा-अर्चना
होती है। पहाड़ को कोई नाराज नहीं करना चाहता। पहाड़ सदैव मुस्कराते रहें, इसके लिए मानव
कई तरह के जतन करता रहता है। पहाड़ संस्कृति को बचाने में सहायक होते हैं। हमारे पुराणों
में पहाड़ सदैव ही पूजनीय रहे हैं। पहाड़ यदि विशाल होना जानते हैं, तो वे झुकना भी जानते
हैं। इस पूरे लेख का आनंद लीजिए, ऑडियो की सहायता से...

रविवार, 18 अप्रैल 2021
कविता - गरमी की छुट्टियाँ - भारती परिमल
वो गरमी की छुट्टियाँ
पुकारती हैं मुझे
वो बचपन का
बेफिक्र समय
पुकारता है मुझे।
वो परीक्षा शुरू होते ही
उसके खत्म होने की बेताबी
और आखरी पेपर होते ही
स्कूल से घर न लौटने की बेफिक्री
नींद से टूटता रिश्ता
मस्ती से जुड़ता नाता
रिश्ते-नातों की ये
भूल-भुलैया सताती है मुझे
वो गरमी की छुट्टियाँ
पुकारती हैं मुझे...
इस कविता को पूरा सुनने का आनंद लीजिए ऑडियो की मदद से...

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021
कॉमेडी के मसीहा-चार्ली चैप्लिन

रविवार, 11 अप्रैल 2021
सकारात्मकता की उजास
अमर उजाला दिल्ली में 11 अप्रैल 2021 को प्रकाशित
दैनिक दावा राजनांदगांव में 1 अप्रैल 2021 को प्रकाशित

सोमवार, 5 अप्रैल 2021
बाल कविता - क्यों कवि - सोहनलाल द्विवेदी

कविता - करती हैं लहरें मधुर गान - ठाकुर गोपाल शरण सिंह
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
जगती के मन को खींच खींच
निज छवि के रस से सींच सींच
जल कन्यांएं भोली अजान
सागर के उर पर नाच नाच,करती हैं लहरें मधुर गान।
प्रातः समीर से हो अधीर
छू कर पल पल उल्लसित तीर
कुसुमावली सी पुलकित महान
सागर के उर पर नाच नाच,
करती हैं लहरें मधुर गान।
संध्या से पा कर रुचिर रंग
करती सी शत सुर चाप भंग
हिलती नव तरु दल के समान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
करतल गत उस नभ की विभूति
पा कर शशि से सुषमानुभूति
तारावलि सी मृदु दीप्तिमान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
तन पर शोभित नीला दुकूल
है छिपे हृदय में भाव फूल
आकर्षित करती हुई ध्यान
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
हैं कभी मुदित, हैं कभी खिन्न,
हैं कभी मिली, हैं कभी भिन्न,
हैं एक सूत्र से बंधे प्राण,
सागर के उर पर नाच नाच, करती हैं लहरें मधुर गान।
- ठाकुर गोपाल शरण सिंह

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021
गीत - जहाँ सबसे सुन्दर रंग श्याम - कवि - जयकृष्ण राय तुषार

गुरुवार, 1 अप्रैल 2021
कविता - मुहावरों के रंग - भारती परिमल
कैसे थाली के बैंगन थे, बिन पेंदे के लोटे थे
नाच ना जाने आँगन टेढ़ा मानकर
यहाँ-वहाँ भटकते हम भी सिक्के खोटे थे
खरबूजे को देख जैसे खरबूजा रंग बदलता है,
हम भी खरबूजे और गिरगिट से रंग बदलते थे
बाबूजी के आगे तो दाल गल नहीं पाती थी,
पर माँ को नाकों चने चबवाते थे।
मस्ती की पाठशाला में
तिल का ताड़, राई का पहाड़ बनाया करते थे

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