मंगलवार, 18 नवंबर 2008
मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है?
डॉ. महेश परिमल
मुसीबतों से घिरे लोग अक्सर यह कहते पाए जाते हैं कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है? हम सभी के जीवन में इस तरह के अवसर आते ही रहते हैें, जब हमें हालात से शिकायत रहती है। यह नकारात्मक विचारों की एक ऐसी श्रृंखला है, जो कभी नहीं टूटती। इसे ही यदि दूसरे नजरिए से देखें, तो क्या तब भी हम ऐसा ही कहते हैं, जब हम लगातार सफलता प्राप्त करते रहते हैं? लगातार सफलता प्राप्त करने पर हम कभी ऐसा नहीं कहते कि ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है?
अच्छे और बुरे कार्य रबर की गेंद की तरह होते हैं, जो लौटकर आते हैं। कई बार हम किसी दुर्घटना से बाल-बाल बचते हैं, तब हमारे अच्छे कार्य ही हमें बचा लेते हैं। पर हम उसे अपनी सावधानी से बचना मान लेते हैं। कई बार हम मुसीबतों से घिर जाते हैं, तब हमारे द्वारा किए गए बुरे कार्य ही होते हैं, जिनके कारण मुसीबतों का पहाड़ हम पर टूट पड़ा। इसे हम अपनी किस्मत मान लेते हैं, पर दुंर्घटना से बचने को हम अपनी सावधानी मानकर उसे भूलने की कोशिश करते हैं। ये हमारी सोच ही है, जो हमें इस तरह से सोचने के लिए विवश करती है। हम यह भूल जाते हैं कि मुसीबतें आती ही हैं, हमारी परीक्षा लेने के लिए। मुसीबतें हमें तराशती हैं, जिस समय हमारे सामने मुसीबतें होती हैं, यदि उन परिस्थितियों का बारीकी से अवलोकन किया जाए, तो स्पष्ट होगा कि भविष्य में आने वाले हालात का यह एक पूर्वाभ्यास है। इस दौरान यदि हम उन मुसीबतों से निकल गए, तो निकट भविष्य में आने वाला समय हमारे लिए सहज हो जाएगा।
डॉ. महेश परिमल
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चिंतन
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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प्रिय मित्र
जवाब देंहटाएंहिन्दी साहित्य निकेतन देश की ऐसी साहित्यिक संस्था है, जो सन्दर्भ ग्रंथों के प्रकाशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. इस संस्था की और से अब तक दो खंडों में 'साहित्यकार सन्दर्भ कोश' तथा चार खंडों में 'हिन्दी शोध सन्दर्भ' प्रकाशित हुये हैं.
अब संस्था ने 'साहित्यकार सन्दर्भ कोश' का तीसरा भाग प्रकाशित करने की योजना बनाई है.
इसमें सभी साहित्यकारों के परिचय उनके चित्रों के साथ प्रकाशित किये जायेंगे.
आपसे आग्रह है कि आप अपना विस्तृत परिचय और अपना फोटो यथाशीघ्र हमारे पास भेजें. परिचय विवरण इस प्रकार रहेगा-
नाम, जन्मतिथि, जन्मस्थान, शिक्षा
वर्तमान कार्य, विधाएं, प्रकाशित साहित्य, पुरस्कार सम्मान
पता, फोन, ईमेल
डा. गिरिराज शरण अग्रवाल
संपादक : साहित्यकार सन्दर्भ कोश
16 साहित्य विहार, बिजनौर, 246701 उत्तर प्रदेश
फ़ोन : 09412712789, 09368141411
E-mail : giriraj3100@gmail.com