सोमवार, 3 नवंबर 2008
चीन के उत्पादों में जहर
डॉ. महेश परिमल
सुपरस्टॉर अमिताभ बच्चन टीवी पर लालटेन वाला जो विज्ञापन करते हैं, वह केडबरी चॉकलेट का है। लोग इस विज्ञापन को मजे से देखते हैं और अपनी दोस्ती को याद करते हैं। दोस्ती को तो याद करना ही चाहिए। इस विज्ञापन के तथ्यों से दूर होकर बात की जाए, केडबरी की। इस कंपनी की चॉकलेट पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। लोग उपहार के बतौर इसे परस्पर बाँटते हैं। रोते बच्चों को चुप कराने का सबसे आसान तरीका है, उसे चॉकलेट दे दी जाए। केडबरी देने से व्यक्ति का स्टेंडर्ड झलकेगा, तो निश्चित ही वह अपने कद में इजाफा ही करेगा। पर शायद कम लोगों को यह मालूम होगा कि यह चॉकलेट चीन में बनती है। चीन में बनने वाले दूध के सेवन से वहाँ चार मासूम तो मौत के शिकार हो गए, बाकी 53 हजार बच्चे इलाज करवा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपने ही देश में बने मेलेमाइनयुक्त दूध का सेवन किया था। मेलेमाइन एक तरह का जहर ही है, जो शरीर में धीरे-धीरे असर करता है। चीन में हुए इस हादसे के बाद केडबरी कंपनी ने चीन में बनने वाली अपनी चॉकलेट के उत्पादन को बंद करने के लिए कहा है। भारत ने चीन के बने दूध पावडर पर तीन महीनों के लिए प्रतिबंध लगा दिया है। कई अन्य देश अब इस दिशा में सचेत हुए हैं।
चीन में दूध से मासूमों की मौत की खबर तो ओलिम्पिक के समय ही आ गई थी, पर चीन उस खबर को दबाने में सफल रहा। इसके पूर्व चीन के बने खिलौने और टूथपेस्ट में जहरीले रसायनों के प्रयोग का खुलासा होने के बाद अपना सारा माल वापस लेने का फैसला किया था। बेशक चीन का माल ससता होता है, किंतु उसकी गुणवत्ता ठीक नहीं होती। उसमें हानिकारक तत्वों का मिश्रण होता है, यह बात अब जगजाहिर हो गई है। अब आते हैं दूध में मिलाए जाने वाले मेलेमाइन पर। वास्तव में इस मेलेमाइन का इस्तेमाल प्लास्टिक के बरतन बनाने में होता है। यह पेट्रोलियम के कचरे से बनता है। चीन में जिस दूध का उत्पादन होता है, उसमें पानी मिलाकर उसे गाढ़ा करने के लिए मेलेमाइन मिलाया जाता है। मेलेमाइन में 60 प्रतिशत नाइट्रोजन ही होता है। मेलेमाइनयुक्त दूध की जब लेबोरेटरी में जाँच की जाती है, तब इसमें काफी मात्रा में प्रोटीन होना बताया जाता है। इस तरह से मेलेमाइन के कारण प्रयोगशाला की मशीनें भी धोखा खा जाती हैं। इसी दूध को चीन के बच्चे पीते थे और उसी दूध का पावडर बनाकर उसे पूरी दुनिया में भेजा जाता था। केडबरी और नेस्ले जैसी कंपनियाँ तो चॉकलेट बनाने के लिए इसी दूध का इस्तेमाल करती थीं। चीन में स्थित केडबरी के चॉकलेट कारखाने में बनने वाली चॉकलेट ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और हांगकांग जैसे देशों में निर्यात किया जाता था।
चीन में मेलेमाइनयुक्त दूध के सेवन से बच्चों की हुई मौत के बाद पूरी दुनिया में डेरी के दूध को शक की नजरों से देखा जाने लगा है। जब भारत ने यह घोषणा की कि तीन महीनों तक चीन के बने दूध पावडर पर प्रतिबंध लगा दिया है, तो कई लोगों ने इसकी सराहना की, पर यह बताने के लिए कोई तैयार नहीं है कि इसके पहले कितना दूध पावडर चीन से आया और अभी कितना बाकी है जो देश की विभिन्न दूकानों में पड़ा हुआ है। भारत के कई डेयरियाँ चीन निमत पावडर से दूध बनाकर बाजार में बेच रही हैं। इसके अलावा इस दूध पावडर से कई तरह की मिठाइयाँ भी बनाई जा रही है। निश्चित ही ये मिठाइयाँ अपेक्षाकृत सस्ती होंगी, पर उसकी घटिया क्वालिटी के कारण कितनों को नुकसान पहुँच रहा होगा, यह जानने की फुरसत किसी को भी नहीं है। चीन से पिछले वर्ष 35.9 करोड़ डॉलर के दूध पावडर का निर्यात हुआ। जिन निर्यात करने वाली कंपनियों को दूध में मेलेमाइनयुक्त की जानकारी दी गई, उनमें प्रमुख है सानलु कार्पोरेशन।
आज चीन का दूध विभिन्न तरह से विश्व के कई देशों तक पहुँच गया है। दक्षिण कोरिया ने सजगता दिखाते हुए चीन के दूध पावडर पर प्रतिबंध लगा दिया है, पर चीन के बने नाश्ते पर प्रतिबंध नहीं लगा पा रहा है। इस नाश्ते में भी मेलेमाइन की मिलावट की गई है। दक्षिण कोरिया में हांगकांग से जो बिस्किट्स आयात किया जाता है, उसमें भी मेलेमाइन मिलाया जाता है। इस बिस्किट्स की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया है। चीन के दूध के आयात पर अब तक कुल 25 देशों में प्रतिबंध लगाया गया है। ब्रिटेन के सबसे बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर्स टेस्को की हजारों दूकानों से चीन निमत केंडी को वापस मँगा लिया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जिनके पेट में मेलेमाइन जाता है, उन्हें ह्दय को नुकसान होता है और उनकी किडनी में पत्थर के टुकड़े मिल रहे हैं। अब तक चीन निमत दूध से कितनों के ह्दय और किडनियों को नुकसान हुआ है, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है।
भारत में पिछले वर्ष चीन से 10 हजार किलोग्राम पनीर का आयात हुआ। इस पनीर से बनने वाली चीजें खाकर न जाने कितने भारतीयों के पेट में मेलेमाइन पहुँच गया है। म्यांमार और अमेरिका में चीन के दूध से बनी वस्तुओं की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। सन् 1972 में अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन जब चीन गए थे, तब उन्हें भेंट में व्हाइट रेबिट केंडी नामक चॉकलेट भेंट में दी गई थी। तब से पूरे यूरोप में इस चॉकलेट का खूब प्रचार हुआ और यह उन देशों में लोकप्रिय भी हो गई। हाल ही में जब अमेरिका में इस केंडी का वैज्ञानिक परीक्षण किया गया, तब उसमें मेलेमाइन नामक उक्त जहर पाया गया। इस कारण यूरोप और अमेरिकी के तमाम डिपार्टमेंटल स्टोर्स से व्हाइट रेबिट केंडी की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया। पिछले वर्ष चीन से अमेरिका निर्यात किए गए प्राणियों की खुराक में भी मेलेमाइन मिला होने के कारण उसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
चीन के दूध में मेलेमाइन की मिलावट के कारण कई देशों की मल्टीनेशनल कंपनियाँ मुश्किल में आ गई हैं। इनमें प्रमुख हैं यूनिलिवर, एच. जे. हेइंज, नेस्ले। अमेरिका की तरह भारत भी चीन नर्िम्ाित वस्तुओं के मोह में फँसता जा रहा है। हमारे यहाँ होली पर चीन की बनी पिचकारियाँ खूब बिकी, अब चीन के पटाखे भी खूब बिकेंगे, यह तो बाद में पता चलेगा कि पटाखे में किस तरह का बारुद इस्तेमाल में लाया गया और उससे भारत के पर्यावरण को किस तरह से नुकसान हुआ। चीन के बने खिलौनों में जहरीले पदार्थों के इस्तेमाल की जानकारी होते ही भले ही भारत में उन खिलौनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया हो, पर वे खिलौने आज भी भारत के बाजारों में खुले आम बेचे जा रहे हैं। यही नहीं चीन निमत वस्तुओं की गुणवत्ता ठीक न होने के कारण भारत ने अभी तक कोई कड़ा रुख इस दिशा में अपनाया हो, ऐसा जान नहीं पड़ता। यदि भारत को सचमुच अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की इतनी ही चिंता है, तो चीन से आने वाली हर तरह की वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए और जो इन वस्तुओं को बेचते हुए पकड़ा जाए, उस पर कड़ी कार्रवाई की जाए। तभी लगेगा कि सचमुच देश को हमारी चिंता है।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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भारत में सस्ती वस्तुओं पर कम ही ध्यान दिया जाता है, चीनी वस्तुएं सस्ती हैं और भारतीय जानें भी, तो क्यों कोई वक्त बर्बाद करे? नेताओं और अधिकारीयों के पास तो जनसंख्या कम करने का अचूक अस्त्र आ गया है.
जवाब देंहटाएंहमारे यहां कबाड़ में बम भेज दिया जाता है... भारतीयों के बीच सब कूड़ा-कचरा खप जाता है। 'मेलेमाइन' की चर्चा आपने की, अपने यहां इतनी बारीकी से जांच-पड़ताल करने की फुर्सत कहां? अपन तो बस जिये जा रहे हैं, खाये जा रहे हैं।
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