शनिवार, 29 नवंबर 2008
चोला बदल रहा है आतंकवाद!
डॉ. महेश परिमल
आतंकवादियों के बुलंद हौसलों ने एक बार फिर देश की कानून व्यवस्था पर एक सवालिया निशान लगा दिया है। इस बार आतंकवादियों ने समुद्री मार्ग से आकर देश की आर्थ्ािक राजधानी पर हमला बोला है। मुम्बई पुलिस को कई सूत्रों से इस हमले की जानकारी मिली थी, किंतु उसे अनदेखा किया गया, फलस्वरूप पुलिस के कई जवानों के अलावा कई नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस बार हमारे सामने आतंक का जो चेहरा हम सबके सामने आया है, उससे यही कहा जा सकता है कि आतंकवाद ने अब अपनी दिशा बदली है। अब उसके पास न केवल अत्याधुनिक शस्त्र हैं, बल्कि उसके पीछे एक गहरी सोच भी है। अब वे अपनी मौत से खौफ नहीं खाते, बल्कि अपने सर पर कफन बाँधकर निकलते हैं और देश की सुरक्षा एजेंसियों को धता बताते हैं। आतंकवादी बार-बार हमला करके हमेशा हमारे देश की सुरक्षा एजेंसियों की तमाम सुरक्षा पर सेंध लगा रहे हैं। हम केवल आतंकवादियों की आलोचना कर, उनकी भर्त्सना करके ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। हमें आतंकवाद के बदलते चेहरे को पढ़ना होगा, तभी समझ पाएँगे कि वास्तव में आतंकवाद का चेहरा इतना कू्रर कैसे हो गया?
पूरे विश्व में आतंकवाद की परिभाषा बदल रही है। अब तक हमारा देश दाऊद इब्राहीम और अबू सलेम को ही सबसे बड़ा आतंकवादी मानता था। अब हमें हमारे ही देश के उन शिक्षित युवा आतंकवादियों से जूझना होगा, जो संगठित होकर पूरे देश में अराजकता फैला रहे हैं। इन युवाओं की यही प्रवृत्ति है कि देश में अधिक से अधिक बम विस्फोट कर जान-माल का नुकसान पहुँचाया जाए। विश्व के सभी आतंकवादी संगठनों में एक बात की समानता है कि उनका निशाना आम आदमी और सरकारी सम्पत्ति है। इन युवाओं को उनके आका यही कहते हैं कि हमेशा आम आदमी को ही निशाना बनाओ, किसी बड़े आदमी को निशाना बनाओगे, तो पुलिस हाथ-धोकर पीछे पड़ जाएगी। आम आदमी के मरने पर केवल जाँच आयोग ही बैठाए जाएँगे और उन आयोग की रिपोर्ट कब आती है और उस पर कितना अमल होता है, यह सभी जानते हैं। इसलिए आज आम आदमी ही बम विस्फोट का शिकार हो रहा है। वीआईपी विस्फोट के बाद घटनास्थल पर पहुँचते हैं। विस्फोट के पहले कोई वीआईपी आज तक घटनास्थल पर नहीं पहुँचा। ऐसा केवल श्रीलंका में ही हो सकता है।
क्या आप जानते हैं कि अल कायदा का नेता ओसामा बिन लादेन सिविल इंजीनियर है, अल जवाहीरी इजिप्त का कुशल सर्जन है। ट्वीन टॉवर की जमींदोज करने की योजना बनाने वाला मोहम्मद अट्टा आर्किटेक्चर इंजीनियर में स्नातक था। इन तमाम आतंकवादियों ने पूरे होश-हवास में अपने काम को अंजाम दिया था। ये सभी टीम वर्क में काम करते हैं और सदैव अपने साथियों से घिरे हुए होते हैं। वैसे ये आतंकवादी जब अकेले होते हैं, तब वे बिलकुल घातक नहीं होते, पर जब वे संगठित हो जाते हैं, तब उनका मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है।
हाल ही में आतंकवादियों की जो नई खेप आई है, वह हमारे देश की ही उपज है। आज राजनीतिक हालात बदलते जा रहे हैं, ऐसे में ये युवा पीढ़ी अपने आपको असुरक्षित महसूस कर रही है। आज के मुस्लिम युवाओं की मानसिक स्थिति का वर्णन करते हुए जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्स्ािटी के वाइस चांसलर मुशीरुल हसन कहते हैं कि आज की परिस्थिति में मुस्लिम युवा खुद को लाचार और असहाय समझ रहे हैं। यह लाचारी उन्हें विद्रोह के लिए प्रेरित कर रही है। यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है, इसे हमें हलके ढंग से नहीं लेना चाहिए। 2002 में गुजरात में जिस तरह से दंगे हुए और हत्याएँ हुईं, ऐसे ही दंगे यदि और होते रहे, तो मुस्लिम युवाओं में विद्रोह की आग और भड़केगी। मुस्लिम युवाओं में घर कर रही इसी असुरक्षा की भावना का कुछ लोग गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। आतंकवादियों की नई खेप में उच्च शिक्षा प्राप्त युवा हैं। आतंकवादी बन जाने में मेडिकल और इंजीनियर युवा सबसे अधिक है, दूसरी ओर वकालात करने वाले युवा आतंकवाद से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
अभी देश भर में हुए बम विस्फोट में जिन आतंकवादियों के नाम सामने आए हैं, उनमें से प्रमुख हैं मुफ्ती अबू बशीर, अब्दुल सुभान कुरैशी, साहिल अहमद, मुबीन शेख, मोहम्मद असगर, आसिफ बशीर शेख, ये सभी आतंकवादी अपने फन में माहिर हैं, इसके पीछे यही कारण है कि इन्होंने ये सारा ज्ञान अपनी समझ और शिक्षा से प्राप्त किया है। इनमें से अधिकांश ने तकनीकी शिक्षा प्राप्त की है। जिस तरह से शिक्षा हासिल करने में ये पारंगत रहे, उसी तरह अपनी जिम्मेदारी को निभाने में भी ये अव्वल रहे। इन्हें आतंकवाद की ओर धकेलने के लिए इनकी मानसिकता ही जवाबदार है। जाने-माने शिक्षाशास्त्री और समाजशास्त्री यह मानते हैं कि आजकल मुस्लिम समाज में जातिवाद का जहर फैलाया जा रहा है। इसका सीधा असर इस समाज के विद्यार्थ्ाियों और युवाओं पर पड़ रहा है। भुलावे में डालने वाली इस करतूत का असर युवाओं में कट्टरवाद के रूप में हो रहा है। कट्टरवाद के बीज रोपने में उन्हें दी जाने वाली जातिवाद की शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसीलिए ये युवा अपना विवेक खो रहे हैं।
अपना नाम न बताने की शर्त पर इंटेलिजेंस ब्यूरो के भूतपूर्व अधिकारी अभी की स्थिति की समीक्षा करते हुए कहते हैं कि आतंकवादियों की मनोदशा देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा और मानसिकता के बीच कोई संबंध नहीं है। 60 और 70 के दशक में प्रेसीडेंसी और सेंट स्टिफंस जैसी प्रतिष्ठित कॉलेज के विद्यार्थ्ाियों का रुझान नक्सलवाद की ओर बढ़ने लगा था। उसी तरह आज ये शिक्षित मुस्लिम सम्मानजनक वेतन की नौकरी छोड़कर आतंकवाद को अपनाने लगे हैं। आतंकवाद के प्रति इन युवाओं के आकर्षण के पीछे किसी वस्तु का अभाव नहीं है, किंतु एक निश्चित विचारधारा का प्रभाव जवाबदार है। इस तरह की स्थिति केवल भारत में ही है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। आज विश्व स्तर पर जो आतंकवादी पकड़े जा रहे हैं, उसमें से अधिकांश मुस्लिम युवा उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। पिछले वर्ष ब्रिटेन के ग्लास्को एयरपोर्ट में हुए बम विस्फोट का जो आरोपी पकड़ा गया था, वह साबिल था, जो ब्रिटेन की एक अस्पताल में डॉक्टर था। इस विस्फोट में साबिल का भाई काफिल की मौत हो गई थी, यह इंजीनियरिंग में पी-एच.डी. था। साबिल ने बेंगलोर के बी.आर. अंबेडकर कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई की थी।
आज के भटके हुए मुस्लिम युवाओं पर गीतकार जावेद अख्तर कहते हैं कि आतंकवादी बनने का प्रचलन देश के लिए चिंता का विषय है। इनके पीछे कुछ राजनीतिक दलों का भी हाथ है, जो परदे के पीछे से अपना खेल खेल रहे हैं। सरकार को इस पर अंकुश लगाना चाहिए और उन युवाओं की तरफ ध्यान देना चाहिए, जिनके हालात बद से बदतर हो रहे हैं। सन 2004 में एक भूतपूर्व सीआईए एजेंट ने अलकायदा के 172 आतंकवादियों की पृष्ठभूमि पर शोध किया, इसमें उन्होंने पाया कि इनमें से अधिकांश आतंकवादी मध्यमवर्गीय या उच्च मध्यमवर्गीय परिवार के उच्च शिक्षा प्राप्त युवा हैं। हाँ वकालत करने वाले मुस्लिम युवा इससे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझता है।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि आतंकवाद को देखने का नजरिया बदलना आवश्यक हो गया है। इसे अब लाचार और बेबस लोग नहीं अपनाते। पहले इन लाचारों की विवशता का लाभ उठाकर कुछ लोग अपना उल्लू सीधा कर लेते थे, पर अब ऐसी बात नहीं है। अब तो इसमें उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं का समावेश हो गया है, जो पूरे होश-हवास के साथ अपने काम को अंजाम देते हैं। ऐसे लोग टीम वर्क से अपना काम करते हैं, जिसका परिणाम हमेशा खतरनाक रहा है। सरकार ने अपना रवैया नहीं बदला, तो संभव है कोई सिरफिरा 'ए वेडनेस डे' जैसी हरकत कर बैठे। सरकार को इसके लिए भी सचेत रहना होगा।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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बस इंतेज़ार कीजिए, दाउद इब्राहिम और सलेम ही इस देश के नेता बनेंगे।
जवाब देंहटाएंसरकार और सचेत,क्या बात कर रहे हैं डाक्टर साब्। रायपुर आना नही होता क्या डाँ साब्।
जवाब देंहटाएं