डॉ. महेश परिमल
गुजरात के पाटण पी.टी.सी. कॉलेज में 6 प्रोफेसरों द्वारा एक छात्रा के साथ किए गए सामूहिक अनाचार के बाद देश भर की शैक्षणिक संस्थाओं में सन्नाटा छा गया है। वैसे तो हम सभी शालाओं को सरस्वती मंदिर मानते हैं, पर उसी मंदिर में नराधमों की नियुक्ति होती है, जहाँ ये अध्यापन के अलावा कुछ ऐसा अवश्य करते हैं, जिससे समाज कलंकित होता है। शिक्षक याने गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा स्थान हमारे पुराणों में दिया गया है, वही गुरु आज अपनी शिष्याओं के साथ इस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं, जिससे पूरा शिक्षक वर्ग लाित है। समझ में नहीं आता कि जब घर में एक नौकर को रखा जाता है, तब उसके बारे में सारी जानकारी इकट्ठा की जाती है, उसके चरित्र की पड़ताल करने से लोग नहीं चूकते, पर एक शिक्षक की नियुक्ति के समय केवल उसकी अंक सूची ही देखी जाती है। उसकी प्रतिभा के आगे उसके चरित्र को परखने की कोशिश कोई नहीं करता। यही हमारी शिक्षण पध्दति का सबसे बड़ा दोष है।
आज शिक्षा जगत में ऐसे लम्पट शिक्षकों की संख्या बहुत ही अधिक है, जो अध्यापन को छोड़कर स्कूल-कॉलेज में आने वाली छात्राओं पर लपलपाती निगाहें रखते हैं। जहाँ भी उन्हें अवसर मिलता है, वे छात्राओं की विवशता का लाभ लेने से नहीं चूकते। सबसे बड़ी बात तो यह है कि शालाओं में आजकल दूसरे कर्मचारी भी इस तरह के कार्य में शामिल हो रहे हैं, इससे स्पष्ट है कि उन्हें भी शिक्षकों से पूरा संरक्षण मिल रहा है। छात्राओं का शाला या कॉलेज में कहीं भी अध्यापकों के साथ अकेले में बातचीत करना भी मुश्किल हो गया है। आखिर छात्राओं की शाला में पुरुष अध्यापकों की नियुक्ति ही क्यों की जाती है? अब इस दिशा में गुजरात सरकार ने घोषणा करते हुए कहा है कि छात्राओं की जिन कॉलेजों में पुरुष शिक्षक नियुक्त हैं, उनका 5 वर्ष बाद तबादला कर दिया जाएगा। इसका आशय यही हुआ कि प्राध्यापक 5 वर्ष तक पढ़ाने के बाद ही अनाचार की कोशिश कर सकते हैं, उसके पहले नहीं?
पुराने जमाने में गुरु जब अपने शिष्यों को स्नातक की डिग्री देते थे, तब केवल उसकी प्रतिभा ही नहीं, बल्कि उसके चारित्र्य, व्यवहार, चाल-चलन, सदाचार, धैर्य, दया, करुणा और क्रोध आदि को परखने के विभिन्न उपाय करते। आज के पालक अपने बच्चों को ऐसे शिक्षकों के हाथों सौंप रहे हैं, जिनके पास प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, पर उसके चरित्र के बारे में जानने की कोई कोशिश नहीं करते। आज के पाठयक्रम में इतने सारे विषय हैं, इसमें नए-नए विषयों को शामिल किया जा रहा है, फिर भी अभी तक कहीं सुनने को नहीं मिला कि पाठयक्रम में सदाचार, धैर्य, सदाचार का नीतिशास्त्र शामिल किया गया हो। आज की शिक्षण पध्दति का सबसे बड़ा दोष यही है कि सब कुछ पढ़ाया जा रहा है, पर वह नहीं, जिससे चरित्र बनता हो, जिससे आत्मा को शांति मिलती हो, आदर, सम्मान, प्रेम और प्यार बढ़ता हो, स्नेह की गंगा बहती हो। सब कुछ इतना आधुनिक होने लगा है कि ऐसी बातें करना भी बेमानी होने लगा है।
आज की शिक्षा पध्दति में कहीं भी धर्म, नीति, सदाचार, पाप-पुण्य, स्वर्ग-नर्क, आत्मा, मोक्ष, ईश्वरभक्ति, अतिथि-सत्कार, विनय, विवेक, श्रम, आत्मनिर्भरता, देश-भक्ति आदि का कहीं भी ािक्र नहीं है। इन विषय के अभाव में शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थी जितने भी अच्छे अंक लाएँ, उनकी शिक्षा अधूरी है। जिन्हें सदाचार और नीति की जानकारी नहीं है, वे इस भौतिकतावादी शिक्षा को ग्रहण करने के बाद यदि चिकित्सक बन भी जाएँ, तो वे मरीजों से धन लूटने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि चिकित्सकीय शिक्षा में उन्हें कहीं भी यह नहीं पढ़ाया जाता कि जो मजबूर हैं, उनका इलाज मुफ्त में किया जाना एक चिकित्सक का धर्म है। ऐसी शिक्षा ग्रहण करने वाले यदि वकील बन जाएँ, तो वे आरोपियों को असत्य कहने के लिए ही विवश करेंगे, क्योंकि उन्हें सत्य का पाठ तो पढ़ाया ही नहीं गया है। यही कारण है कि आज की शिक्षा को ग्रहण करने वाले विद्यार्थी शिक्षक बनकर अपनी शिष्या से ही अनाचार कर रहे हैं। दूसरी ओर कॉलेज में प्रोफेसरों की नियुक्ति होती है, तो केवल उनकी प्रतिभा को ही देखा जा रहा है, उसके चरित्र से प्र्रबंधन को कोई लेना-देना नहीं होता। ऐसे में अव्यवस्था तो फैलेगी ही, इस दुष्परिणाम भी सामने आ रहा है।
आज जमाना बहुत ही खराब हो गया है। अब वह समय नहीं रहा कि शाला में पढ़ने वाली बिटिया को शिक्षक के भरोस छोड़ दिया जाए। हर जगह महिलाओं को समान अधिकार देने वाली सरकार कन्याओं की शाला में पुरुष शिक्षकों की नियुक्ति ही क्यों करती है, यह एक विचारणीय प्रश्न है। केंद्र सरकार के महिला एवं बालविकास मंत्रालय ने पिछले वर्ष अप्रैल माह में 13 रायों के 12 हजार 447 विद्यार्थियों से मिलकर यह जानने की कोशिश हुई कि समाज में उनके साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाता है, तो 53 प्रतिशत विद्यार्थियों ने बताया कि उनके साथ छेड़छाड़ या उनका यौन शोषण किया जाता है। इन कार्य में विद्यार्थियों के स्वजन, रिश्तेदारों के अलावा शिक्षक भी शामिल थे। आश्चर्य इस बात का है कि इस तरह का दुष्कर्म केवल छात्राओं ही नहीं, बल्कि किशोरों के साथ भी हुआ था। पुरुष शिक्षकों की लपलपाती निगाहें हमेशा सुंदर कन्याओं या फिर किशोरों पर टिकी होती हैं, जहाँ कहीं भी मौका मिला, ये शिक्षक अपनी काली करतूत कर दिखाते हैं।
आज देश में जो शिक्षा माफिया हावी है, उसके तहत ये पुरुष शिक्षक अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। अधिकांश निजी शिक्षा संस्थाओं में जब भी किसी शिक्षिका की नियुक्ति की जाती है, तब उसे कई मानसिक यंत्रणाओं से होकर गुजरना पड़ता है। एक नियुक्ति के पीछे कई कहानियाँ होती हैं, पर वह बाहर नहीं आ पाती। जब कोई बड़ा हादसा होता है, तभी पता चलता है कि ऐसा हो रहा था। जैसा कि अब गुजरात में शिक्षकों द्वारा कथित रूप में कन्याओं के साथ अनाचार या छेड़छाड़ के मामले सामने आ रहे हैं। छात्राओं के साथ सबसे बड़ी बात यह होती है कि वे शमर् र् के कारण या फिर बदनामी के कारण कुछ कह नहीं पातीं। कई बार तो मामला सीधे उनके भविष्य से जुड़ा होता है, इसलिए वे खामोश रहकर शिक्षकों का कथित रूप से अत्याचार सहन करती रहती हैं। छात्राओं की इन्हीं विवशताओं का भरपूर लाभ ये लम्पट शिक्षक उठाते हैं। यह बात भी सामने आई है कि शिक्षक कई बार युवतियों के शोषण में बड़े लोगों को भी शामिल कर लेते हैं, जिससे भविष्य में कोई गड़बड़ हो, तो ये उन्हें बचाने में मदद कर सकें। अधिकांश मामलों में ऐसा ही होता है और हो भी रहा है।
पते की बात यह है कि आज शिक्षा पूरी तरह से व्यावसायिक हो गई है, इसमें चरित्र शिक्षा का नामोनिशान भी नहीं है। शिक्षक भी व्यावसायिक हो गए हैं। इसलिए उनकी हरकतें भी समाज को कलंकित करने वाली हो गई हैं। इस स्थिति में पालकों को यह समझना होगा कि अपने बच्चों को शाला या कॉलेज में प्रवेश दिलाने के पहले यह अवश्य देख लें कि वहाँ के शिक्षक किस तरह के हैं? वहाँ के परिणाम का प्रतिशत न देखें, बल्कि वहाँ होने वाली शैक्षणिक गतिविधियों पर बारीक नजर रखें। घर में बच्चों को यह अवश्य सिखाया जाए कि स्कूल-कॉलेज में उन पर होने वाली तमाम हरकतों का वे अपने पालकों को अवगत कराएँ। ताकि समय रहते उसका समाधान किया जा सके। सरकार इस दिशा में कोई कड़े कदम उठाए, उसके पहले पालकों को ही सचेत होना होगा, तभी लम्पट शिक्षकों की हरकतों पर अंकुश रखा जा सकता है।
डॉ. महेश परिमल
शुक्रवार, 21 नवंबर 2008
नारी देह पर लपलपाती निगाहें
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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ऐसे प्रोफेसरों को चौराहे पर फांसी पर लटकाया जाना चाहिए.
जवाब देंहटाएंडा. परिमल, आपने अपनी पोस्ट में यह फोटो क्यों लगाई है?
डा. परिमल, आपने अपनी पोस्ट में यह फोटो क्यों लगाई है?
जवाब देंहटाएंmaere man mae bhi yahii prashn haen
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंSir AAP to khud aisi photo lagaye ho ki nigah laplapayegi he please nariyo se boliye ki aise ang pradarshan na kare
जवाब देंहटाएंplease change boobs photo
हर युग में होता रहा , नर-नारी संयोग.
जवाब देंहटाएंहिन्दू संस्कृति ने दिया,संयम-पूर्वक भोग.
संयम-पूर्वक भोग,सिर्फ़ अपनी पत्नी से.
धर्माचरण ही श्रेयष्कर है धर्म-पत्नी से.
कह साधक इन्डिया बना अब भारत कहाँ.
पशु-आचरण तो हर युग में होता ही रहा.
बहुत ही सामयिक एवं मन को छेद देना वाला लेख है.
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